यौगिक अभ्यास के पूर्व की जाने वाली तैयारियाँ एवं सावधानियां |योगाभ्यास करते समय सावधानियां | Yoga Preparation and Precaution in HIndi

यौगिक अभ्यास के पूर्व की जाने वाली तैयारियाँ एवं सावधानियां

यौगिक अभ्यास के पूर्व की जाने वाली तैयारियाँ एवं सावधानियां |योगाभ्यास करते समय सावधानियां | Yoga Preparation and Precaution in HIndi
 

यौगिक अभ्यास के पूर्व की जाने वाली तैयारियाँ एवं सावधानियां

शिक्षार्थियों, यौगिक अभ्यास, हम सभी के जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि हम अपने परिवार के बड़े एवं बुर्जुगों के क्रियाकलापों पर विचार करें, तो पायेंगे कि वे सभी क्रियाकलाप हमारे योग की विभिन्न यौगिक क्रियाओं से मिलते-जुलते हैं। आप यह भी पायेंगे कि, आज से कुछ वर्ष पूर्व, लोगों द्वारा दैनिक जीवन में किये जाने वाले बहुत से क्रियाकलाप (जैसे- चक्की चलाना, कुएं से पानी खींचना, लकड़ी काटना, खेत से चारा लाना, मशीन से चारा काटना, साइकिल चलाना, बैलों का हल चलाना, खुदाई-गुड़ाई करना इत्यादि) किये जाते थे। यदि इन सभी क्रियाकलापों को ठीक से देखा जाये तो ये सब यौगिक क्रियाएं ही हैं। आज मशीनीकरण का युग है अधिकाशंतः कार्य मशीनों से किये जा रहे हैं, जिससे शारीरिक श्रम न हो पाने के कारण, हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है, साथ ही जीवन शैली संबंधित रोग पनप रहे हैं। यही कारण है कि, आज लोग योगाभ्यास की ओर आकर्षित हो रहे हैं। यह वास्तव में, एक अच्छी पहल है कि, लोगों को अपने स्वस्थ जीवन से लगाव है और वे उसे लेकर सजग हैं। और यह उचित भी है कि, सभी को स्वस्थ रहने के लिए योगाभ्यास करना भी चाहिए। तो क्या आप जानते हैं कि योगाभ्यास कराने या करने से पूर्व हमें, किन-किन आवश्यक एवं महत्वपूर्ण निर्देशों का पालन करना चाहिए? साथ ही योग कक्षा की तैयारी कैसे की जाए? आइये इस पर विचार करें

 

योग अभ्यास के लिए, हमारा स्थान, परिवेश तथा पहनावा बहुत महत्वपूर्ण है। हमें योग कक्षा की तैयारी और इसके साथ ही, ध्यान देने योग्य विशिष्ट बातों को समझने की जरूरत है -

 

1. योग कक्षा की तैयारी

 

क) स्थानः 

योगाभ्यास करने के लिए, स्थान का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। ऐसा कहा भी गया है, कि भोजन और ईश्वर-भजन एकांत में करना चाहिए ताकि अभ्यास में किसी भी प्रकार की व्यवधान न पड़े और आप अपने अभ्यास को, पूरी तन्मयता और ध्यान से पूरा कर सकें । अतः ऐसे योग कक्ष का चयन करें जो-

 

  • साफ व स्वच्छ हो; 
  • उचित हवा एवं प्रकाश का संचार रखता हो; 
  • किसी तरह का अनावश्यक फर्नीचर, सामान, वस्तुएँ आदि योग कक्ष में न हों
  • योग कक्ष में फर्श पूर्णतः समतल हो; 

  • प्राकृतिक वातावरण हो । यदि आप-पास सुंदर पेड़-पौधे, बाग बगीचे हों या फिर सुंदर रमणीय पर्वत, नदी, सरोवर झरने आदि के साथ योग का पावन स्थान जुड़ा है तो निश्चित ही योग के लिए ऐसा स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यही कारण है कि आजकल लोग, योग संस्थानों को खुले व प्राकृतिक वातावरण में स्थापित करते जा रहे हैं, जो पर्यटकों को पर्यटन के साथ-साथ, योग अभ्यास करने और सीखने का भी एक अच्छा अवसर प्रदान करते हैं। योगाभ्यास खुले हुए हवादार कमरे में करना चाहिए, साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वहां आसपास ज्यादा शोरगुल न हो अभ्यास स्थल में या आसपास किसी प्रकार प्रदूषण या दुर्गंध नहीं होनी चाहिए।

 


ख) साफ, सफाई और स्वच्छता: 

  • शिक्षार्थियों साफ-सफाई और स्वच्छता का सीधा संबंध हमारे स्वास्थ्य से है। जहां साफ-सफाई, स्वच्छता पायी जाती है, वहां रोगों को फैलाने वाले रोगाणु नहीं पनपते । फलस्वरूप वहां रोग नहीं फैलते । अतः योग कक्ष का साफ-स्वच्छ होना, अति आवश्यक है। ऐसा वर्णन मिलता है कि, पाठ पूजा, पवित्र व धार्मिक अनुष्ठानों और योग करने के स्थान को पहले गोबर से लीपा जाता था, जिससे स्थान साफ-सुथरा और सुंदर लगे, साथ ही चींटी, कीड़े-मकौड़े आदि का प्रकोप भी न हो। तात्पर्य यह है कि, अभ्यास स्थल स्वच्छ और निर्मल होना चाहिए । हम कपूर या किसी सुगंधित धूप का भी प्रयोग कर सकते हैं ताकि अभ्यास के दौरान चींटी या कीड़े-मकौड़े विघ्न पैदा न करें ।

 

  • प्राकृतिक स्थान, जैसे- किसी नदी सरोवर, झरने के किनारे, पहाड़ों, हिमालय, समुद्र आदि पर योग अभ्यास करना अति सुन्दर लगता है।

 

ग) वस्त्र (पहनावा) : 

योगाभ्यास के दौरान, वस्त्रों का उपयुक्त होना परम आवश्यक माना गया है । अतः अभ्यास के दौरान :

 

  • ढीले, हल्के व आरामदायक वस्त्र पहनें । 
  • नायलोन या कृत्रिम वस्त्र योगाभ्यास के लिए अनुकूल नहीं माने गये हैं । अतः प्रशिक्षण केंद्र द्वारा निर्धारित योग परिधान पहनें। 
  • पेट के पास कोई कसा हुआ (टाइट) वस्त्र नहीं होना चाहिए। 
  • ऐसे वस्त्रों का उपयोग बिल्कुल ना करें, जो अभ्यास में व्यवधान उत्पन्न करें।

 

घ) योग मेटः 

आजकल रबड़ मैट का प्रचलन है । ये ऊर्जारोधन गुण से युक्त हैं, परंतु प्राकृतिक सामग्री से बने मैट या खादी से निर्मित दरी का उपयोग और भी बेहतर माना जाता है। प्राकृतिक सामग्री से निर्मित कंबल अभ्यास के लिए लिया जा सकता है। यह शरीर और पृथ्वी के बीच ऊर्जारोधक का काम करता है। स्पंज वाले मैट या ज्यादा गद्देदार आसन का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह मेरूदंड और संतुलन के लिए हितकर नहीं हैं। योग मैट का उपयोग, योगाभ्यास के लिए ही सीमित होना चाहिए, उस पर कभी बैठकर खाना पीना नहीं चाहिए ।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.