प्राणायाम क्या है |प्राणायाम शब्द का अर्थ, प्राण का स्वरूप क्रिया विधि |Pranayama kya hai

 प्राणायाम क्या है , प्राणायाम शब्द का अर्थ 

प्राणायाम क्या है |प्राणायाम शब्द का अर्थ, प्राण का स्वरूप क्रिया विधि  |Pranayama kya hai



 प्राणायाम क्या है, प्राणायाम शब्द का अर्थ -महर्षि पतंजलि के अनुसार

महर्षि पतंजलि के अनुसार 'श्वास और प्रश्वास की गति का विच्छेद ही प्राणायाम है। जब श्वास-प्रश्वास अनुशासित होकर निग्रह की स्थिति में पहुंचता है, तब प्राणायाम की पूर्णता होती है। सरल शब्दों में प्राणायाम को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि "प्राण तथा अपान का योग प्राणायाम है अर्थात् श्वास-प्रश्वास पर नियमन तथा नियंत्रण प्राणायाम कहलाता है।

 

  • प्राणायाम शब्द का अर्थ है प्राणिक ऊर्जाओं का नियंत्रण यह उस प्राणिक ऊर्जा का नियंत्रण है जो लोगों के स्नायुओं में सनसनाती, उसकी मांसपेशियों का संचालन करती तथा उसके बाहरी जगत का अनुभव करने और आंतरिक विचारों को सोचने का कारण बनती है। प्राणायाम के द्वारा इस ऊर्जा पर नियंत्रण पाना ही योगियों का लक्ष्य है।

 

  • आसनों के अभ्यास से आप स्थूल शरीर को वश में कर सकते हैं जबकि प्राणायाम के अभ्यास से आप सूक्ष्म शरीर को वश में कर सकते हैं। श्वास तथा प्राणिक नाड़ियों के बीच गहरा संबंध है। अतः श्वास के नियंत्रण से प्राणिक प्रवाहों पर भी नियंत्रण हो जाता है।

 

  • जिस प्रकार सोने को गरम भट्ठी में तपाकर उसकी गंदगी को दूर कर दिया जाता है, ठीक उसी तरह योग साधक, प्राणायाम के व्यवहार से अपने शरीर तथा इन्द्रियों के मल-विकारों का निवारण करता है।

 

  • प्राणायाम का मुख्य उद्देश्य है प्राण तथा अपान को संयुक्त करना तथा इस संयुक्त प्राण-अपान को धीरे-धीरे मस्तक की ओर ले जाना। शरीर के भीतर सुप्त शक्तियों को जागृत करना प्राणायाम का फल है।

 

  • महर्षि पतंजलि ने प्राणायाम के परिणाम की चर्चा करते हुए लिखा है "ततः क्षीयते प्रकाशावरणम“अर्थात् प्राणायाम द्वारा प्रकाश पर आया आवरण क्षीण हो जाता है। हम कह सकते हैं कि चेतना जागृत होती है। चित्त की निर्मलता बढ़ती है, ज्ञान का विकास होता है। इंद्रियां शुद्ध होती हैं और मन की प्रसन्नता व एकाग्रता बढ़ती है। प्राणायाम से शक्ति का संचयन होता है, जठराग्नि की वृद्धि, शरीर में स्फूर्ति आती है और वह दीप्तिमान और स्वस्थ होता है।

 

प्राण का स्वरूप

 

प्राण विश्व में अभिव्यक्त सभी शक्तियों का योग है। ताप, प्रकाश, विद्युत चुम्बकत्व - ये सभी प्राण की ही अभिव्यक्तियाँ हैं। सारी भौतिक तथा मानसिक शक्तियाँ प्राण की ही श्रेणी में आती हैं। यह वह शक्ति है जो हमारी सत्ता के उच्चतम से निम्नतम स्तर तक प्रत्येक तल में विद्यमान है। जो कुछ भी गतिशील अथवा कार्यशील है अथवा जिसमें जीवन है, वह सभी प्राण के ही स्वरूप में अभिव्यक्त है।

 

प्राण का स्थान हृदय है। प्राण का प्राकृतिक स्वरूप एक है, परन्तु कार्य के अनुसार इसके पाँच रूप हैं -

 

1. प्राण 

2. अपान 

3. समान 

4.उदान 

5. व्यान

 

  • प्रधान प्राण महाप्राण कहलाता है। इन पाँचों में प्राण तथा अपान ही महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। प्राण का स्थान हृदय है, अपान का स्थान गुदा है, समान का स्थान नाभि है, उदान का स्थान कण्ठ है तथा व्यान सारे शरीर में व्याप्त है।

 

  • जैसा कि आप जान चुके हैं कि श्वास-प्रश्वास पर नियमन तथा नियंत्रण प्राणायाम है। श्वास-प्रश्वास के संचालन को योग की भाषा में इस प्रकार वर्णित किया गया है।

 

1. रेचक: 

  • श्वास को नासिका से बाहर निकालकर उसकी स्वाभाविक गति पर नियंत्रण करना रेचक कहलाता है। यह प्रश्वास है।

 

2. पूरक - 

  • श्वास को नासिका से अंदर खींच कर उसकी स्वाभाविक गति पर नियंत्रण करना पूरक कहलाता है। यह श्वास है।

 

3. कुम्भक- 

  • श्वास-प्रश्वास दोनों गतियों पर नियंत्रण से प्राण को जहाँ-का-तहाँ रोक देना कुम्भक कहलाता है। कुम्भक आयु को बढ़ाता है। इससे आध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है।

 

प्राणवाही नाड़ियां

 

  • मेरुदंड के दोनों ओर दो नाड़ियां पायी जाती हैं जिनसे प्राण का संचार होता है। इनमें बांयीं नासिका से संबंधित नाड़ी को 'इड़ा' कहते हैं, इसे चन्द्र नाड़ी भी कहा जाता है। दाहिनी नासिका से संबंधित नाड़ी को 'पिंगला' कहते हैं, इसे सूर्य नाड़ी भी कहते हैं। इड़ा का स्वभाव शीतल तथा पिंगला का स्वभाव गरम है। इड़ा तथा पिंगला से जब श्वास चलती है तब मनुष्य सांसारिक कार्यों तथा मान्यताओं को पूरा करने में व्यस्त रहता है, यही उसकी दिनचर्या का मुख्य भाग होता है।

 

  • इन दो प्राणवाही नाड़ियों के अतिरिक्त एक और महत्वपूर्ण नाड़ी है- सुषुम्ना वैसे तो मनुष्य के शरीर में कुल 72000 नाड़ियों का जाल बिछा हुआ है । सुषुम्ना मेरुदंड के मध्य से होकर जाती है । अन्य सभी नाड़ियाँ सुषुम्ना से संबंध रखती हैं।

 

इस प्रकार हमारे शरीर में सबसे मुख्य तथा महत्वपूर्ण तीन प्राणवाही नाड़ियां हैं-

 

प्राणवाही नाड़ियाँ (मुख्य)

 

  1. इड़ा (चन्द्रनाड़ी) 
  2. पिंगला (सूर्य नाड़ी) 
  3. सुषुम्ना नाड़ी

 

  • इड़ा, पिंगला तथा सुषुम्ना तीनों प्राणवाहिनी नाड़ियों का सीधा संबंध क्रमशः चन्द्रमा, सूर्य तथा अग्नि से है । जब प्राण सुषुम्ना से संचरित हो, तो ध्यान के लिए बैठ जाना चाहिए । आप ध्यान की गहराई में प्रवेश कर जायेंगे ।

 

  • ईश्वर की कृपा से हमें यह स्वचालित रूप से चलने वाला यंत्र मिला हुआ है। जब हमारे शरीर में उष्णता की आवश्यकता होती है, तब दायीं नासिका से श्वास आने लगता है और जब हमारे शरीर में ठण्डक की आवश्यकता होती है तो बायीं नासिका से श्वास आने लगती है। इस स्वचालित यंत्र को हम अपनी इच्छा और आवश्यकतानुसार भी उपयोग में ला सकते हैं ।

 

प्राणायाम करने की क्रिया विधि

 

प्राणायाम करने से पहले प्राणायाम साधना के कुछ महत्वपूर्ण निर्देश जानना अति आवश्यक है-

 

महत्वपूर्ण निर्देश

 

  • 1. प्राणायाम से पहले अपनी नासिकाओं को अच्छी तरह से साफ कर लें। 
  • 2. पद्मासन, सुखासन, स्वस्तिकासन, वज्रासन आदि किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठें। 
  • 3. स्थिरतापूर्वक मेरुदंड को सीधा रखें और सुखपूर्वक पूरे आत्मविश्वास के साथ बैठें। 
  • 4. जो प्राणायाम शरीर में गर्मी उत्पन्न करते हैं - उन्हें गर्मियों में न करें। इसी प्रकार जो शरीर में शीतलता लाते हैं - उन्हें सर्दियों में न करें। 
  • 5. दमा, उच्च रक्तचाप तथा हृदय रोग से पीड़ित रोगी अपनी अपनी सीमाओं व क्षमताओं का ध्यान रखते हुए प्राणायाम करें। यह अच्छा होगा कि प्राणायाम का अभ्यास किसी योग शिक्षक के मार्गदर्शन में करें। 
  • 6. प्राणायाम में ब्रह्मचर्य का विशेष महत्व है।

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