कुंडलिनी क्या होती है | नाड़ी क्या होती है ,प्रमुख नाड़ियां | Kundlini Kya Hoti Hai

कुंडलिनी क्या होती है , नाड़ी क्या होती है ,प्रमुख नाड़ियां

कुंडलिनी क्या होती है | नाड़ी क्या होती है ,प्रमुख नाड़ियां | Kundlini Kya Hoti Hai
 

कुंडलिनी क्या होती है

  • कुण्डलिनी शब्द की उत्पत्ति कुण्डल शब्द से हुई हैजिसका शाब्दिक अर्थ सांप होता है। हठयोग एवं मंत्र दर्शन की मान्यता हैकि कुण्डलिनी शक्ति मूलाधार चक्र पर साढ़े तीन लपेटा लिए हुए सोई है। उसकी सही सुषुप्ति स्थिति ही जीवात्मा का बंधन है। शक्ति सुषुम्ना के मार्ग को अवरूद्ध करते हुएवहीं सोई हुई है। हठयोग के अंगों - यथा षट्कर्मआसनप्राणायामबंधमुद्रा तथा ध्यान-समाधि आदि का अभ्यास कर कुंडलिनी शक्ति को जागृत किया जाता है। यह शक्ति मूलाधार से होते हुए सभी चक्रों का बेधन कर अतंतः सहस्रार पर आकर विराम लेती है। इस शक्ति का सहस्रार पर आकर शिव में लीन हो जाना हीकुण्डलिनी जागरण कहलाता है। जागृति के उपरान्त कुण्डलिनी सब चक्रों से होती हुई सहस्रार पर पहुंचती है तथा उसी स्रोत में उसका विलीनिकरण हो जाता हैजहां से उसकी उत्पत्ति हुई है।

 

नाड़ी क्या होती है 

  • नाड़ी का शाब्दिक अर्थ है- धारा या प्रवाह । आधुनिक समय में नाड़ी शब्द का अर्थ 'नस या तंत्रिकाशब्द से लिया गया है। किन्तुहठयोग के अनुसार नाड़ी और नसें एक नहीं हैंक्योंकि नाड़ी की रचना सूक्ष्म तत्वों से होती है। नसों और तंत्रिकाओं की स्थिति भौतिक शरीर में होती है । किन्तु नाड़ियां अतीन्द्रिय शरीर में होती है। ये वे सूक्ष्म नलिकायें हैं जो हमारे सूक्ष्म शरीर में स्थित होती हैं। इन्हीं के माध्यम से प्राण शक्ति एक जगह से दूसरे जगह पर जाती है। हठयोग ग्रंथों के अनुसारहमारे सूक्ष्म शरीर में बहत्तर हजार नाड़ियां पायी जाती हैं। शिव संहिता के अनुसारहमारे शरीर में साढ़े तीन लाख नाडियां हैं। किन्तु अधिकतर हठयोग ग्रंथ बहत्तर हजार नाड़ियों पर एकमत हैं। इन नाड़ियों में 14 नाड़ियां बहुत महत्वपूर्ण हैं। इनमें से भी नाड़ियां सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं । ये तीन नाड़ियां हैं- इड़ापिंगला एवं सुषुम्ना । इन तीनों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है- सुषुम्ना नाड़ी । सभी बहत्तर हज़ार नाड़ियां इसी सुषुम्ना नाड़ी की 34 नाड़ियां हैं। 


शिक्षार्थियोंआइये इन तीन प्रमुख नाड़ियों का संक्षिप्त परिचय समझें

 

प्रमुख नाड़ियां

 

  • इड़ा 
  • पिंगला 
  • सुषुम्ना

 

1 इड़ा नाड़ी 

  • इड़ा नाड़ी मूलाधार चक्र के बांयी ओर से निकलकरप्रत्येक चक्र में से वक्राकार बहती हुईअन्त में आज्ञा चक्र के बांयी ओर समाप्त होती है। इड़ा का रंग नीला माना गया है। यह ऋणात्मक होती हैंजिसे चंद्र नाड़ी भी कहते हैं। यह हमारी मानसिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। यह नाड़ी शीतलता प्रदान करती हैजिसके कारण इसेपरानुकंपी तंत्रिका का नियन्त्रक माना जाता है। जब व्यक्ति की इड़ा नाड़ी चल रही होती हैतो मानसिक शक्तियों की प्रधानता होती है। मन अंतर्मुखी होता है। इस अवधि में चितंनमनन तथा एकाग्रता का कार्य करने में सरलता होती है। इड़ा नाड़ी का प्रवाह अधिकतर निद्रावस्था में होता है। 

  • यदि भोजन के समय इड़ा नाड़ी का प्रवाह होता है तो पाचन क्रिया ठीक नहीं होती है तथा अपचन हो जाता है।

 

पिगंला नाड़ी 

  • पिंगला नाड़ी – मूलाधार चक्र के दांयी ओर से निकलकरप्रत्येक चक्र में इड़ा नाड़ी की - विपरीत दिशा में वक्राकार बहने वाली पिंगला नाड़ीअंततः आज्ञाचक्र के दांयी ओर समाप्त होती है। इसका रंग लाल होता है। यह धनात्मक होती है जिसे सूर्य नाड़ी भी कहते हैं। यह नाड़ी प्राणशक्ति एवं उर्जा शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। यह सक्रिय बहिर्मुखी एवं पुरुष जातीय है। दांये नथुने के प्रवाहकाल में प्राणशक्ति अधिक क्रियाशील होती हैइससे शारीरिक कार्यपाचन आदि में सहायता मिलती है। इसका प्रवाह गर्म होता है इसी कारणइसके प्रवाह काल में मन बहिर्मुखी रहता है एवं शरीर में अधिक ताप उत्पन्न होता है।

 

यदि रात्रि में पिंगला का प्रवाह अधिक होता है तो व्यक्ति को कठिनाई से नींद आती है।

 

सुषुम्ना नाड़ी

 

  • सुषुम्ना नाड़ी- सुषुम्ना नाड़ी मेरूदण्ड के केन्द्र मेंइड़ा तथा पिंगला के मध्य में स्थित होती है । सुषुम्ना नाड़ी का प्रवाहमेरूदण्ड में मूलाधार से सहास्रार तक होता है। इस सुप्त नाड़ी का रंग चांदी सा है। यह आध्यात्मिक मार्ग हैजो सामान्यतया सुप्त ही रहता है। जब इड़ा तथा पिंगला नाड़ी को षट्कर्मों तथा अन्य हठयौगिक क्रियाओं के अभ्यास से शुद्ध कर दिया जाता है तोप्राण का प्रवाह संतुलित हो जाता है। जब इड़ा एवं पिंगला नाडियांशुद्ध तथा संतुलित हो जाती हैं तथा मन में नियंत्रण आ जाता है और सुषुम्ना नाड़ी में प्राण प्रवाहित होने लगता है। ध्यान में सफलता के लिएसुषुम्ना का प्रवाहित होना आवश्यक है। जब सुषुम्ना प्रवाहित होती है तब कुण्डलिनी जागृत होकरचक्रों से ऊपर चढ़ती हुईसहस्रार की ओर उन्मुख होती है।

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