वेदांत दर्शन और शिक्षा |शंकराचार्य के अनुसार शिक्षा |वेदांत दर्शन की विशेषतायें | Vedant Darshan and Education

वेदांत दर्शन और शिक्षा,शंकराचार्य के अनुसार शिक्षा,वेदांत दर्शन की विशेषतायें

वेदांत दर्शन और शिक्षा |शंकराचार्य के अनुसार शिक्षा |वेदांत दर्शन की विशेषतायें | Vedant Darshan and Education


 

वेदांत और शिक्षा : 

वेदांत सम्प्रदाय के दर्शन का आधार वेद तथा उपनिषद् हैं। इसकी मान्यता है कि मानव अपने वर्तमान के कर्म तथा पूर्व के कर्म से नियंत्रित रहता है। धर्म ही केवल मानव को ब्रम्हाण्ड मे संपोषित रखता है। अविद्या मानव को माया के जाल मे बाँध देती हैं। जो कि मानव के दुःख और वेदना का कारण है। वह इनसे बच सकता है तथा अपने को जान सकता है विराग की भावना को अपना कर और ज्ञान को प्राप्त करके। मानव का उद्धार शाश्वत तथा नश्वर मे विभेद समझकर ही हो सकता है।

 

वेदांत केवल सैंद्धातिक दर्शन नही है। यह एक सम्पूर्ण या आदर्श मानव बनने के लिए पथ प्रदर्शिका प्रदान करता है। यह पथ प्रदर्शिका व्यक्ति को यह निर्देश देती है कि वह क्या सीखे और कैसे उसे सीखे। एक व्यक्ति जो उनका अनुसरण करता है उसे हम वेदांत दर्शन के अनुसार आदर्श शिक्षित व्यक्ति कह सकते है।

 

वेदांत इस बात पर बल देता है कि इस संसार में प्रत्येक वस्तु आत्मा है। आदर्श व्यक्ति नाम और रूप को त्याग देता है और आत्म अभिव्यक्ति प्राप्त करने की चेष्टा करता है। वह यह मानता है कि वास्तविक प्रेम जो सदैव रहेगा वह ईश्वर के प्रति प्रेम है।

 

वेदांत के अनुसार सच्ची शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तियों को केवल सही कार्य करना सिखाना नही है वरन् सही वस्तुओं से प्रसन्नता प्राप्त करना है। न केवल उद्यमशील होना है वरन् उद्यम के प्रति प्रेम होना है। यदि शिक्षा व्यक्ति को स्वंतत्रता प्रदान नहीं करती तो वह शिक्षा मूल्य रहित हैं। सच्ची शिक्षा उस समय प्रारंभ होती है। जबकि व्यक्ति सब सांसारिक प्रलोभनो से विमुख हो जाता है और अपना ध्यान अपने अतंर में निहित शाश्वत की ओर लगाने लगता है और मूल ज्ञान का स्त्रोत बन जाता है। एवं नवीन धारणाओं का झरना उसमे बहने लगता है।

 

वेदांत दर्शन सूत्रों का चयन वादरायण" ने किया था। जो ब्रम्ह सूत्र के रूप में प्रस्तुत किये गये। शंकराचार्य तथा रामानुजाचार्य ने भाष्य लिखकर ब्रम्ह सूत्र का स्पष्टीकरण किया। 


शंकराचार्य के अनुसार शिक्षा :

 

शंकराचार्य एक वेदांत के विद्यार्थी के लिये कहते है कि उसे वह वैदिक पाठ पढने चाहिए जो ब्रम्ह से सरोकार रखते है। धर्म के संबंध मे उसे नही पढना चाहिए और उन धार्मिक परम्पराओं पर ध्यान नहीं देना चाहिए जो धर्म के लिए होती है। वैदिक पाठ के सम्बधं मे वह कहते है कि शिक्षक को पहले आत्म की एकता के सम्बधं मे पढाना चाहिए और फिर उनको जो ब्रम्ह की परिभाषा देते हैं। अतएव शंकराचार्य स्थायी ज्ञान के महत्व पर बल देते हैं। वह ज्ञान जो परिवर्तनशील है उसका शिक्षण वह अच्छा नहीं समझते।

 

वेदांत दर्शन की विशेषताए :

 

वेदांत दर्शन को उत्तर मीमांसा कहते है। मीमांसा का विषय 'ब्रम्हज्ञानहै। पूर्व मीमांसा मे धर्म जिज्ञासा है तो उत्तर मीमांसा मे ब्रम्ह जिसासा है। दोनों का लक्ष्य एक ही है।

 

1. ब्रम्ह ही सत्य हैं। 

2. जगत मिथ्या पर सत्य है। 

3. माया ब्रम्ह की शक्ति और जगत की सृष्टि करने वाली है। 

4. जीव स्थूल शरीरधारी एक व्यक्ति है जिसकी समष्टि ईश्वर हैं। 

5. सृष्टि किया अक्षर ब्रम्ह की स्वाभाविक लीला रूप सूक्ष्म किया है। 

6. वेदांत दर्शन का विश्वास पुनजम में पाया जाता है। 

7. वेदांत दर्शन मोक्ष या मुक्ति को अंतिम लक्ष्य मानता है। 

8. परमात्मा की प्राप्ति का हेतु ब्रम्ह ज्ञान ही हैं। 

9. कर्म निष्ठ और ज्ञान निष्ठ मे समुच्चय पाया जाता है। 

10. सत्य त्रिकालावाधित होता है। 

11. सत्ता त्रिविधि होती हैं।

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