दर्शन का अर्थ परिभाषा प्रकृति |Meaning Definition nature of philosophy

 

दर्शन का अर्थ परिभाषा प्रकृति

दर्शन का अर्थ परिभाषा प्रकृति |Meaning Definition nature of philosophy

दर्शन क्या होता है :

प्रत्येक मनुष्य का अपना दर्शन होता है। दर्शन प्रत्येक मनुष्य के साथ जुड़ा हुआ होता है। मनुष्य जाति का प्रमुख कर्त्तव्य है कि वह इस जीवन संग्राम में सफल हो इसके लिये वह विभिन्न तरह से संघर्ष करता है। दर्शन का अर्थ अत्यंत व्यापक है एवं इसका क्षेत्र भी अत्यंत व्यापक है।


दर्शन की परिभाषा :

 

1. हरबर्ट स्पेन्सर के अनुसार दर्शन की परिभाषा :

  • दर्शन एक सार्वभौमिक विज्ञान के रूप में प्रत्येक से संबधित है।

 

2. सैलर्स के अनुसार दर्शन की परिभाषा

  • दर्शन शास्त्र एक ऐसा अनवरत प्रयत्न है जिसके द्वारा मनुष्य संसार तथा अपनी प्रकृति के संबंध में क्रमबद्ध ज्ञान द्वारा एक अर्न्तदृष्टि प्रदान करने की चेष्टा करता है।

 

3. बरट्रेण्ड रसल के अनुसार दर्शन की परिभाषा

  • अन्य विज्ञानों के समान दर्शन का मुख्य उद्देश्य ज्ञान की प्राप्ति है।

 

अतः हम कह सकते है कि दर्शन ईश्वर का स्वरूपजीव का उससे संबंधसंसार की व्याख्या तथा आत्मा के रहस्य के संबंध में विचार करता है।

 

दर्शन का अर्थ :

 

भारतीय दृष्टिकोण से दर्शन का अर्थ :

  • राधाकृष्णन् के अनुसार दर्शन शब्द की उत्पत्ति दृशधातु से हुई है। जिसका अर्थ 'देखनाहै। दर्शन का प्रमुख उद्देश्य मनुष्य एवं उसकी उत्पत्ति के विभिन्न प्रश्नों के उत्तर देना है। जैसे संसार क्या हैईश्वर का स्वरूप क्या हैआत्मा क्या है। मै कौन हूँ आदि।

 

पाश्चात्य दृष्टिकोण से दर्शन का अर्थ : 

  • पाश्चात्य विचारधारा में इसको फिलॉस्फी (Philosophy) के नाम से पुकारा जाता है। यह शब्द दो ग्रीक शब्दो के संयोग से बना है। फिलॉस या फिलियो जिसका अर्थ है। प्रेम या अनुराग तथा सोफिया का अर्थ है ज्ञान या विद्या अतः इस शब्द फिलॉस्फी का अर्थ है विद्यानुरागी या ज्ञान से प्रेम।

 

दर्शन की प्रकृति :

 

दर्शन की प्रकृति दार्शनिक मानी जाती है। दर्शन की प्रकृति जानने के लिये निम्नलिखित बाते जानना आवश्यक हैं।

 

1. दार्शनिक समस्याएँ 

प्राचीन काल मे दर्शन आश्चर्य से शुरू हुआ परंतु वर्तमान समय में इसकी उत्पत्ति संदेह में देखने को मिलती है। जिसके कारण से इसमें विभिन्न प्रकार की समास्याओं को जन्म मिलता है। एवं विभिन्न प्रश्न उठते है। जैसे-ज्ञान क्या हैसंसार का निर्माणकर्ता कौन हैभगवान क्या हैमैं इस संसार मे क्यो आयाआदि।

 

2. दार्शनिक दृष्टिकोण : 

यदि कोई भी व्यक्ति सुख व दुःख की स्थिति मे समभाव रखता है। अर्थात् सुख की स्थिति में अधिक प्रसन्न नही रहता है एवं दुःख के समय भी ज्यादा परेशान व चिंतित नही रहता हैं। तो ऐसा कहा जाता है कि उस व्यक्ति का दृष्टिकोण दार्शनिक हैं।

 

3. दार्शनिक विधि

दार्शनिकों द्वारा अपनी समस्या सुलझाने के लिये निम्नलिखित विधियाँ प्रयोग में लाते हैं।

 

  • 1. आगमन विधि 
  • 2. निगमन विधि 
  • 3. द्वंद्वालक विधि 
  • 4. विश्लेषणात्मक विधि 
  • 5. संश्लेषणात्मक विधि

 

4. दार्शनिक क्रिया

दर्शन की क्रिया दार्शनिक चितंन है। यह चितंन संर्वागीण होता हैं। यह वैयक्तिक एवं सामूहिकएकांत तथा सामाजिक दोनों ही परिस्थितियों में किया जाता हैं

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