ग्रामीण पत्रकारिता परिचय इतिहास |Rural Journalism History

ग्रामीण पत्रकारिता परिचय इतिहास (Rural Journalism History )

ग्रामीण पत्रकारिता परिचय इतिहास |Rural Journalism History


ग्रामीण पत्रकारिता सामान्य परिचय 

 

  • वर्तमान युग पत्रकारिता का युग है। यह विकास का एक महत्वचपूर्ण हथियार है, जिसके माध्यभम से हम विकास के सभी पहलुओं को छूने की कोशिश कर सकते हैं। हम यह जानते हैं कि भारत का अधिकतर हिस्साथ ग्रामीण है, इसलिए देश की विकास नीतियों पर इसका प्रभाव अधिक है। यदि भारत के ग्रामीण क्षेत्र विकसित होंगे तो देश स्वरत: ही विकास की राह में आगे बढ़ेगा।

 

  • ग्रामीण पत्रकारिता के माध्यम से हम ग्रामीण क्षेत्रों को आज की वैश्विक दुनिया से जोड़ सकते हैं। विश्व की आधुनिक विकास दौड़ में शामिल होने के लिए मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। और यदि यह भूमिका ग्रामीण स्तर पर हो तो इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। इस इकाई में ग्रामीण पत्रकारिता का संक्षिप्त इतिहास, परिचय एवं वर्तमान स्वोरूप के बारे में शिक्षार्थियों को समझाने की कोशिश की जायेगी।


ग्रामीण पत्रकारिता : एक परिचय (Rural Journalism: An Introduction)

 

  • ग्रामीण-पत्रकारिता एक ऐसा विषय है, जिसकी परिभाषा अभी तक स्पष्ट नहीं हो पायी है। गांव से निकलने वाले पत्रों को ग्रामीण पत्रकारिता के अंतर्गत रखा जाय या गांवों में पढ़े जाने वाले पत्रों को या फिर गांवों के बारे में छापे जाने वाले पत्रों को? हो सकता है कि गांव से निकलने वाले पत्र गांव के समाचार न छापकर अपराध व राजनीति की ही चर्चा करते हों या शहर से प्रकाशित होने वाले कुछ पत्र ऐसे हों कि जिनकी पाठक-संख्याम गांवों में ही हो। तीसरी श्रेणी में वे पत्र आते हैं जो खेती किसानी, पशुपालन, पंचायती राज, सहकारिता आदि के बारे में लेख व समाचार प्रकाशित करते हैं, चाहे वे कहीं भी पढ़े जाते हों। पिछले कुछ दशकों में कुछ प्रमुख कृषि पत्रकारों ने इस परिभाषा को स्पोष्टर किया था। पत्रकारिता के जानकारों का मानना है कि जिन समाचार पत्रों में 40 प्रतिशत से अधिक सामग्री, गांवों के बारे में प्रकाशित हो, उसे ग्रामीण पत्रकारिता कहेंगे। ये समाचार कृषि, पशुपालन, बीज, खाद, कीटनाशक, पंचायती राज, सहकारिता और ग्राम्य जीवन आदि विषयों पर हों या गांव की अन्यक मूलभूत समस्याओं पर।

 

  • यह जरूर है कि कृषि पत्रकारिता का स्वरूप ग्रामीण पत्रकारिता से अलग है लेकिन यह भी सत्य है कि ग्रामीण पत्रकारिता का उद्भव कृषि पत्रकारिता से ही हुआ है। इसका कारण यही है कि पहले ग्रामीण परिवेश पूर्णत: कृषि पर ही आधारित होता था। ग्रामीण विकास कृषि पर निर्भर करता था और गांव के जीवन को आवाज देना ही ग्रामीण पत्रकारिता का उद्देश्य रहा है, इसलिए कृषि से सम्बन्धित समाचारों / सूचनाओं व जानकारियों को पत्रों के माध्यकम से किसानों तक पहुंचाया जाना भी अब ग्रामीण पत्रकारिता के अंतर्गत आता है।

 

ग्रामीण पत्रकारिता का संक्षिप्त इतिहास Brief History of Rural Journalism

 

  • ग्रामीण पत्रकारिता की शुरूआत कृषि विकास को लेकर हुई है, इसलिए ग्रामीण पत्रकारिता का इतिहास भी कृषि पत्रकारिता से जुड़ा है। विश्व में सर्वप्रथम वर्ष 1743 में फ्रांस ने पेरिस  किसानी गजट' नाम से फ्रांसीसी भाषा में ग्रामीण पत्र प्रकाशित किया। इसी प्रकार भारत में पहला कृषि पत्र 'कृषि सुधार' वर्ष 1914 में और 'कृषि' वर्ष 1918 में पहली बार आगरा से प्रकाशित हुये। पहले पत्र के संपादक बंशीधर तिवारी थे। वर्ष 1918 के बाद वर्ष 1934-35 में बंगाल में कृषि संबंधी पत्र-पत्रिकाएं बंगला भाषा में छपी और अंग्रेजी में वर्ष 1940 में 'फार्मर' तथा 'एग्रीकल्चरर गजट' नामक पत्र निकले। इसके बाद तो कृषि-शोध और वैज्ञानिक तथ्यों, किसान संबंधी कानूनों, पंचायती राज, सहकारिता आदि विषयों के प्रचार-प्रसार के लिए विभिन्नप भाषाओं में और हिंदी में भी कृषि-पत्रों का प्रकाशन आरंभ हो गया। इनमें सरकारी और गैर-सरकारी दोनों ही प्रकार के पत्र थे। सरकारी पत्रों में 1946 में 'खेती' और 1950 में 'कुरूक्षेत्र' पत्रों का प्रकाशन हुआ।

 

  • उधर, गैर सरकारी क्षेत्र में 1946 में नागपुर से 'कृषक जगत' और 1948 में बंगाल में फार्म जर्नल' का कलकत्तां से प्रकाशन प्रारम्भम हुआ। नई दिल्लीर से प्रकाशित 'आज की खेती', विस्तार निदेशालय, कृषि मंत्रालय, नई दिल्ली से प्रकाशित गोसंवर्द्धन' मासिक पत्रिका, बिहार राज्य सहकारी संघ पटना द्वारा प्रकाशित 'गांव', इलाहाबाद से प्रकाशित मासिक ग्राम भूमि', जयपुर प्रकाशित 'कृषि विकास', उत्तर प्रदेश सहकारी संघ द्वारा लखनऊ प्रकाशित 'किसानोत्थांन मासिक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्लीज से प्रकाशित 'खेती', कानपुर से प्रकाशित पाक्षिक 'कृषि प्रगति', दिल्लीत से प्रकाशित 'प्रौढ़ शिक्षा', 'सेवाग्राम' आदि पत्रों ने ग्रामीणों के लिए उपयोगी सामग्री प्रदान की है।

 

  • 1970 से दैनिक पत्रों में भी 'कृषि स्तेम्भा' चलाने की होड़ सी लग गयी। राज्यों में प्रकाशित होने वाले लगभग सभी बड़े दैनिकों ने कृषि पृष्ठ7 और 'स्तंगभ छापने शुरू कर दिये । 'आज', 'अमर उजाला', 'नवभारत', 'नई दुनिया', 'देशबंधु', नवज्योति', 'राजस्थान पत्रिका' और 'दैनिक आर्यावर्त' आदि पत्रों ने खेती के स्तंदभ साप्ताहिक रूप से छापे तो देश के शीर्ष दैनिक नवभारत टाइम्स,' और 'हिंदुस्तान' ने भी ग्राम जगत, कृषि- चर्चा और कृषि उद्योग स्तंभों को चलाकर इस परंपरा को जीवित रखा। इनके प्रकाशन का उद्देश्यन किसानों को उचित सूचनाएं देना और ग्राम जीवन को उभारना है। मगर इनसे गांवों तक कृषि तकनीक का प्रचार भी निरंतर हुआ।

 

  • 1973 में ग्रामीण समाचार पत्र संघ की स्थापना हुई इसके सदस्य । केवल ग्रामीण समाचार पत्र के प्रकाशक ही बन सकते हैं। इसका उद्देश्य ग्रामीण पत्रों के स्तपर को ऊंचा करना, विज्ञापन के लिए सामूहिक प्रयत्नग करना तथा सभी कठिनाइयों पर एक साथ बैठकर विचार करना है। उत्त राखण्डी में यदि देखा जाय तो यहां भी उत्तवराखण्ड ग्रामीण पत्रकार संघ' है जो पहाड़ी व ग्रामीण क्षेत्र से प्रकाशित पत्र / पत्रिकाओं से जुड़े पत्रकारों का संगठन है। आज तो अधिकतर पत्र / पत्रिकाएं ग्रामीण क्षेत्रों से प्रकाशित हो रही हैं। इसके साथ ही सभी समाचार पत्रों में स्था नीयकरण की जो परम्प रा चली है उसने ग्रामीण क्षेत्र की सभी पहलुओं को छूने की कोशिश की है। पत्रों के स्थासनीयकरण से आज ग्रामीण क्षेत्र की सभी समस्याएं इनमें प्रकाशित होती रहती हैं। जिससे सरकार और जनता के बीच एक संवाद बना रहता है, जिसके चलते इन समस्याओं का निराकरण भी होता रहता है।

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