जनसंपर्क की परिभाषा |जनसंपर्क के सिद्धांत |Public Relation Definition and Principles

 जनसंपर्क की परिभाषा, जनसंपर्क के सिद्धांत 

जनसंपर्क की परिभाषा |जनसंपर्क के सिद्धांत |Public Relation Definition and Principles


जनसंपर्क की परिभाषाएं (Public Relation Definition in Hindi)

 

ब्रिटिश इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक रिलेशंस के अनुसारजनसंपर्क की परिभाषा

जनसंपर्क सूझबूझ के साथ योजनाबद्ध एक ऐसी सतत् प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य एक संस्थान और उसके लक्ष्य जन के बीच परस्पर समझ विकसित करना व उसे कायम रखना है।

 

  • इस परिभाषा से पता चलता है कि जनसंपर्क किसी संस्थान व उससे जुड़ी जनता के बीच परस्पर समझ का निर्माण अथवा स्थापना करना है और इससे यह भी पता चलता है कि जनसंपर्क कोई आकस्मिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि इसे सजग होकर नियोजित किया जाता है। इसकी योजना में सतर्कता, सूझबूझ, शोध, दूरदर्शिता, विश्लेषण और परिणाम आदि पर विचार शामिल होने चाहिए। जनसंपर्क की प्रक्रिया को न सिर्फ यह सुनिश्चित करना होता है कि संस्थान जनभावनाओं को समझने में सक्षम हो, बल्कि जनता भी संस्थान के दर्शन व शैली को समझने में सक्षम बनाई जानी चाहिए। उसे संस्थान के प्रत्येक कदम के पीछे के कारण अथवा उद्देश्य को समझना चाहिए।

 

  • यदि आप किसी संस्थान में जनसंपर्क अधिकारी के रूप में कार्य करते हैं, तो इस समझ को सुनिश्चित करने का दायित्व आपका होगा। अधिकतर मामलों में जनता इस भूमिका को निभाने के मामले में निष्क्रियता ही प्रदर्शित करती है। अतः आपको अपने संस्थान की ओर से इसे अर्जित करने के लिए कुछ कारगर कदम उठाने पड़ेंगे।

 

  • इसके लिए सतत् प्रयासों की आवश्यकता होती है। सतत् प्रयासों का अर्थ यह है कि सिर्फ योजना का आरंभ ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि इसे एक तार्किक परिणीति तक पहुंचने तक निरंतर जारी रखना आवश्यक है। कई बार ऐसी राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियां होती हैं, जब यह कार्य बहुत दुष्कर हो जाता है। पब्लिक रिलेशंस सोसाइटी ऑफ अमेरिका (पीआरएसए) के अनुसार, “जनसंपर्क की प्रमुख चिंता या प्रतिबद्धता समूहों और संस्थानों के बीच परस्पर समझ निर्मित करने के लिए होती है। पीआरएसए जनसंपर्क की प्रक्रिया में समूहों और संस्थानों को चिन्हित करती है। यह स्वीकार करती है कि इनके कुछ ऐसे हित होते हैं, जिनका संरक्षण जरूरी है। यह इस पर भी जोर देती है कि यह परस्परता सभी पक्षों के लिए लाभप्रद भी हो। इससे आप अपने संस्थान और जनता, दोनों के लिए प्रिय व वांछनीय हो जाते हैं।

 

  • इसका तात्पर्य यह है कि आपको एक जनसंपर्क अधिकारी के रूप में आपको दोनों पक्षों के हित को एक साथ लाना है। इसके लिए आपको अपने संस्थान को अपनी बात से सहमत कराना होगा, क्योंकि जनसंपर्क में जन के हित को, संस्थान के लाभ से पहले रखना चाहिए। ऐसा करने से संस्थान परोक्ष रूप से अपने ही हितों को सुरक्षित करता है।

 

अमेरकी जनसंपर्क की दुनिया की बाइबिल कही जाने वाली लड की , ‘इफेक्टिव पब्लिक रिलेशंस' में कहा गया है कि

जनसंपर्क एक प्रबंधन प्रकार्य है जो एक पुस्तक संस्थान और उसकी जनता, जिस पर उसकी सफलता निर्भर होती है, के बीच परस्पर लाभदायक संबंधों को पहचानता, स्थापित करता और बरकरार रखता है।" 


अब इस परिभाषा के अंतिम हिस्से पर ध्यान दीजिए, “यह एक तथ्य है कि सफलता की जनता पर इस निर्भरता को बहु संस्थान महसूस नहीं कर पाते। किसी भी कंपनी की सफलता और असफलता काफी हद तक विभिन्न जनसमूहों से उसके संबंधों पर निर्भर करती है।

 

अब हम जनसंपर्क की कुछ और परिभाषाओं पर विचार करते हैं-

 

ब्रिटिश लेखक फ्रैंक जेफ्किंस ने अपनी पुस्तक पब्लिक रिलेशन में लिखा है कि-

जनसंपर्क में एक संस्थान और इसकी जनता के बीच परस्पर समझ से संबंधित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए, आंतरिक व बाह्य, दोनों तरह के योजनाबद्ध संवाद के सभी प्रकार शामिल होते हैं।


  • इस परिभाषा में भी अन्य कई परिभाषाओं की भांति परस्पर समझ पर जोर दिया गया है।

 

  • परस्पर समझ एक बहुत ही व्यापक अवधारणा है, जिसकी स्थापना प्रत्येक संस्थान के लिए अत्यंत आवश्यक होती है। आंतरिक व बाह्य संवाद से तात्पर्य संस्थान और विभिन्न जनसमूहों को शामिल किए जाने से है।

 

जनसंपर्क की एक और अत्यंत रोचक परिभाषा है, जिसे अक्सर मेक्सिकन स्टेटमेंट के नाम से उल्लेख किया जाता है। इसे 1978 में मेक्सिको में आयोजित राष्ट्रीय जनसंपर्क संगठनों के पहले विश्व सम्मेलन में अपनाया गया था। इसके अनुसार,

"जनसपर्क का विश्लेषण करने, इसके परिणामों की भविष्यवाणी करने, संस्थानिक नेतृत्व को परामर्श तथा साथ ही साथ इसे संस्थान और जनता, , दोनों के हितों का ख्याल रखने वाली कार्रवाईयों के लिए एक कार्यक्रम की योजना बनाने तथा लागू करने की कला और सामाजिक विज्ञान है।

 

  • निश्चय ही आप इस बात से सहमत होंगे कि यह परिभाषा विस्तृत, बहुव्यवहारिक और सर्वस्वीकार्य है। यह सुझाव देती है कि जनसंपर्क को मनोविज्ञान, राजनीति, समाजशास्त्र, भाषा आदि जैसे अन्य विषयों के ज्ञान और विषयज्ञता को साथ लेकर चलना चाहिए। जनसंपर्क एक कला है, क्योंकि इसमें कलात्मक दक्षता, भाषा, लेखन, संभाषण आदि शामिल होते हैं। यह एक सामाजिक विज्ञान है, क्योंकि मानव व्यवहार को समझने व इसकी भविष्यवाणी के लिए सामाजिक वैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग करता है। यह इसके वातावरण को समझती है और इसे परस्परता से जोड़ता है।

 

  • जनसंपर्क इस वातावरण में मुद्दों और घटनाओं की निगरानी, सर्वेक्षण और शोध करता है। यह संस्थान को उसकी नीतियों को जनता की अपेक्षाओं के साथ संयोजित करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह ऐसे कार्यक्रम लागू करता है, जो संस्थान व जनता, दोनों के हित में हों और जिनके परिणाम आने के बाद, दोनों ही विजयबोध का अनुभव करें।

 

जनसंपर्क के सिद्धांत (Principles of public relations)

 

विज्ञान की सभी शाखाओं की तरह जनसंपर्क का सैद्धांतिक पक्ष भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि उसका व्यवहारिक पक्ष । एक प्रभावी और अपेक्षित परिणाम देने वाले जनसंपर्क अभियान के लिए कुछ मूलभूत सिद्धांतों का ध्यान रखना आवश्यक है। इनके अभाव में किसी भी जनसंपर्क अभियान, चाहे वह कितना भी भव्य और विशाल क्यों न हो, की सफलता सदैव संदिग्ध ही रहती है। आगे हम ऐसे की कुछ आधारभूत सिद्धांतों के बारे में जानेंगे।

 

1. द्विपक्षीयता: 

  • जनसंपर्क का आधार द्विपक्षीय संप्रेषण है। इसमें सूचना का निर्गम जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही महत्वपूर्ण उसका आगम भी है, ताकि परस्पर समझ व सद्भावना का वातावरण निर्मित हो।

 

2. योजनाबद्धताः 

  • जनसंपर्क की योजना जितनी ठोस, रचनात्मक व सकारात्मक होगी, वह उतना ही प्रभावी उपयोगी व सुचारू होगा। एक कारगर योजना निर्माण के लिए समस्या व लक्ष्य, दोनों का पहले से निर्धारण किया जाना अत्यंत उपयोगी होता है।

 

3. आशावादिताः 

  • जनसंपर्क के मूल में आशावाद एक प्रमुख तत्व के रूप में उपस्थित होना आवश्यक है, जिसका लक्ष्य व अपेक्षा सकारात्मक परिणाम प्राप्त करना हो। इससे आत्मविश्वास की उत्पत्ति होती है।

 

4. पारदर्शिता: 

  • आधुनिक युग में के सहयोग के बिना सफलता संदिग्ध होती है। जनता इसलिए जनसंपर्क का उद्देश्य जनता के मन में संस्थान और उसके उपक्रमों के प्रति अच्छी राय उत्पन्न करना होना चाहिए। इसके लिए उसका पारदर्शी होना आवश्यक है।

 

5. विश्वसनीयता: 

  • जनसंपर्क को विश्वसनीय होना चाहिए, तभी उसके संस्थान के प्रति लोगों में विश्वास उत्पन्न होगा। इसके लिए अभियान को असत्य, भ्रामक प्रस्तुतिकरण, बढ़ा-चढ़ाकर किए गए दावों आदि से मुक्त होना चाहिए।

 

6. श्रमशीलता: 

  • जनसंपर्क में प्रतिभा, दूरदर्शिता और समझबूझ के अलावा जिस चीज की सर्वाधिक आवश्यकता होती है, वह है कठोर श्रम। जनसंपर्क के विद्वान एक सफल जनसंपर्क को दस प्रतिशत अंतः बोध, पच्चीस प्रतिशत अनुभव व शेष पैंसठ प्रतिशत कठोर श्रम का पैकेज मानते हैं।

 

7. लगनशीलता: 

  • जनसंपर्क की योजना के संचालन के लिए व्यक्ति का लगनशील होना आवश्यक है। यह एक ही बार में समाप्त हो जाने वाला आयोजन नहीं है, अपितु एक सतत् जारी रहने वाली प्रक्रिया है। जिसे जारी रखने के लिए पर्याप्त धैर्य व लगन की आवश्यकता होती है।

 

8. आदर्शवादिताः 

  • जनसंपर्क में नैतिक मूल्यों का पालन हमें जनता के सामने जाने से पहले आत्मविश्वास से भरता है। नैतिक बल के अभाव में हमारा अभियान अत्यंत अविश्वसनीय प्रतीत होता है और अपने मूल उद्देश्य को ही खो देता है। एक सफल जनसंपर्क अभियान के लिए उसमें सच्चाई और नैतिकता की उपस्थिति अनिवार्य है।

 

9. व्यावहारिकता: 

  • एक जनसंपर्क अभियान तभी सफलता सुनिश्चित कर सकता है, जो सिर्फ किताबी ज्ञान पर आधारित न हो, बल्कि देश, काल और परिवेश के तकाजों को समझकर उनके अनुसार आचरण करे। दस में से नौ मामलों में जनता की प्रतिक्रिया अनिश्चित व अप्रत्याशित होती है। ऐसे में उसका पूर्व अध्ययनकर अभियान की व्यावहारिक योजना बनाना अत्यंत उपयोगी होता है।

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