अनुवाद शब्द का अर्थ व्याख्या परिभाषा महत्त्व |Meaning and definition of translation word

अनुवाद शब्द का अर्थ व्याख्या परिभाषा महत्त्व

अनुवाद शब्द का अर्थ और व्याख्या  परिभाषा महत्त्व |Meaning and definition of translation word


अनुवाद शब्द का अर्थ और व्याख्या  (Meaning and definition of translation word)

  • अनुवाद पहले कही गई बात को दुबारा कहना होता है। अनुवाद संस्कृत का तत्सम शब्द है। संस्कृत कोशों में दिए गए अर्थ के अनुसार अनुवाद को पुनर्रुक्ति कहते हैं। पुनरूक्ति का अर्थ होता है फिर से कहना . संस्कृत की वद् धातु में घञ्य प्रत्यय जुड़ने से वाद शब्द बनता है। इसका अर्थ हुआ कहना, कहने की क्रिया या कही हुई बात फिर इसमें पीछे, बाद में आदि के अर्थ में वाला उपसर्ग अनु लगने से यह शब्द बनता है - अनुवाद । इसका अर्थ हुआ पुनरू कथन । 
  • शब्दार्थ चिन्तामणि कोश में अनुवाद अर्थ है प्राप्तस्य पुनरू कथनम् या ज्ञातार्थस्यप्रतिपादनम्। इसका अर्थ है  प्राप्त या ज्ञात बात को एक बार फिर कहना या प्रतिपादन करना । प्राचीन भारत में शिक्षा-दीक्षा की प्रयुक्त होने मौखिक परम्परा प्रचलित थी। गुरू जो कहते थे शिष्य उसे दुहराते थे। इस दुहराने को अनुवाद शब्द से जाना जाता था। 
  • आजकल हिन्दी में अनुवाद का आशय है एक भाषा में कही हुई बात को दूसरी भाषा में कहना इसके लिए उलथा और तरजुमा शब्द का प्रयोग भी किया जाता है। आजकल अनुवाद शब्द अंग्रेजी के ट्रान्सलेशन के रूप में प्रचलित है। इसका अर्थ है किसी शब्द को एक भाषा से दूसरी भाषा में ले जाना जिसका आशय निकला एक भाषा से दूसरी भाषा में भाव विचार ले जाना। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है मूल कथ्य के अर्थ की पुनरावृत्ति को ही दूसरे शब्दों में और प्रकारान्तर से अर्थ का भाषान्तरण कहा जा सकता है। इस दृष्टि से अनुवाद के तीन सन्दर्भ हैं समभाषिक अन्य भाषिक, द्विमाषिक और अन्तरसंकेतपरक

 

  • समभाषिक संदर्भ में अर्थ की पुनरावृत्ति एक ही भाषा की सीमा के भीतर होती है परन्तु इसके आयाम अलग-अलग हो सकते हैं। मुख्यत: आयाम दो है- कालक्रमिक और समकालिक  कालक्रमिक आधार पर समभाषिक अनुवाद एक ही भाषा के ऐतिहासिक विकास की दो निकटस्थ अवस्थाओं में होता है जैसे पुरानी हिन्दी से आधुनिक हिन्दी में अनुवाद । एककालिक आयाम पर समभाषिक अनुवाद मुख्य रूप से तीन स्तरों पर होता है बोली, शैली और माध्यम अनुवाद का शाब्दिक अर्थ से जानने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि अनुवाद में अनुवादक को मूल लेखक की कही हुई में दूसरी भाषा मे कहना होता है। अब आप समझ गये हैं कि अनुवाद एक भाषा से दूसरी भाषा में किया जाता है। जिस भाषा से अनुवाद किया जाता है अर्थात् मूल पाठ जिस भाषा में है वह स्रोत है। अत: मूल पाठ की भाषा को मूल भाषा या स्रोत भाषा कहा जाता हैं। उस भाषा से जिस भाषा में अनुवाद करना है वह लक्ष्य होती है। अत: उसे प्रस्तुत भाषा या श्लक्ष्या भाषा कहा जाता है। 


  • संक्षेप में अनुवाद के क्षेत्र में जिस भाषा से अनुवाद करना होता है उसे स्रोत भाषा और जिसमें अनुवाद करना होता है उसे लक्ष्या-भाषा कहते हैं। आगे के विवेचन में हम इसी स्रोत भाषा और लक्ष्याभाषा शब्द का प्रयोग करेंगे। अब आपको स्पष्ट हो गया है कि मूल लेखक की कही हुई बात को अनुवादक को दूसरी भाषा में कहना या लिखना होता है। इस प्रक्रिया में उसके लिए मूल रूप में कही गई बात को समझना में आवश्यक होता है क्योंकि यदि वह मूल बात को समझेगा ही नहीं तो वह उसे प्रस्तुत कैसे कर पायेगा मूल पाठ के दो महत्वपूर्ण पक्ष होते हैं- 1. विषय 2. भाषा । 
  • अच्छे अनुवाद के लिए अनुवादक को विषय, स्रोत भाषा तथा लक्ष्या भाषा तीनों का ज्ञान होना चाहिए यदि अंग्रेजी की किसी कहानी का हिन्दी में अनुवाद करना तो यह आवश्यक है कि कहानी में व्यक्त देश काल परिस्थिति और मूल संवेदना की जानकारी हो तथा अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान हो ताकि जो कुछ कहा गया हो और जिस तरह से कहा गया हो उसे अनुवादक पूर्णतया समझ सके। जब आप मूल पाठ में कही गई बात और उसे प्रस्तुत ; जिसमें अनुवाद करने के ढंग को समझ लेंगे तभी उस बात को इसी प्रभाव के साथ लक्ष्य भाषा होना है में कह सकेंगे। अनुवाद एक भाषा की दूसरी भाषा में पुनर्रचना है। इसलिए याद रखें कि मूल रचना के भाव विचार या संदेश को ज्यों का त्यों बिना अपनी ओर से कुछ जोड़े या कम करे वैसा ही प्रभाव डालते हुए लक्ष्यभाषा ; जिसमें अनुवाद होना है दूसरी भाषा में कहना आवश्यक है। अनुवाद का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है कि अनुवाद की प्रक्रिया में यह निश्चित होना चाहिए कि किसी भी दशा में अर्थान्तरण न हो।

 

एक अच्छे अनुवादक में निम्न गुण होने चाहिए.


  • अनुवाद की जाने वाली सामग्री के विषय का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए। 
  • दोनों भाषाओं की प्रकृति और शब्द सम्पदा का अच्छा ज्ञान होना चाहिए।
  • अभिव्यभक्ति में स्पष्टता अर्थात् सम्प्रेषणीयता का गुण होना चाहिए।
  • विषय सामग्री के प्रति कुछ हद तक तटस्थता का भाव होना चाहिए नहीं तो वह अपने मनोभावों को भी उसमें शामिल करने में नहीं रोक पायेगा।

 


अनुवाद की परिभाषा Definition of Translation in Hindi

 

अनुवाद के स्वनरूप को समझने के लिए विभिन्न विद्वानों के दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने वाली परिभाषाएं सहायक हैं। इस संदर्भ में विभिन्न भारतीय एवं विदेशी विचारकों का दृष्टिकोण निम्नवत् है -


कैटफोर्ड के अनुसार अनुवाद की परिभाषा

1. एक भाषा की पाठ्यसामग्री को दूसरी भाषा की पाठ्य सामग्री द्वारा प्रतिस्थापित करना अनुवाद कहलाता है। 


Translation consists in producing in the receptor language in the chosen natural equivalent in the massage of the source language. First in meaning and secondary in style. (The Theory and practice of Traslation-Nida)

 

The replacement of taxtual material in one language by equivalent taxtual material in another language. - (Linguistic Theory of Translation J.C. Catford P. 20)


नाइडा तथा टेबर के अनुसार अनुवाद की परिभाषा

2. मूल भाषा के सन्देश के सममूल्यम संदेश को लक्ष्य भाषा में प्रस्तुसत करने की क्रिया को अनुवाद कहते हैं। संदेशों की यह मूल्य समता पहले अर्थ और फिर शैली की दृष्टि सेए तथा निकटतम एवं स्वाभाविक होती है। - नाइडा तथा टेबर, 1969

 

Translation consists in producing in the receptor language in the chosen natural equivalent in the massage of the source language. First in meaning and secondary in style. - (The Theory and practice of Traslation-Nida)

 

The replacement of taxtual material in one language by equivalent taxtual material in another language. -(Linguistic Theory of Translation J.C. Catford)


ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार अनुवाद की परिभाषा

3. ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार- यद् वाचि प्रोदितायाम् अनुब्रूयाद् अन्यस्यैवैनम् उदितानुवाहिनम् दृकुर्यात्  - ऐतरेय ब्राहमण 3, 15

 

4. भाषा ध्वन्यात्मक प्रतीकों की व्यवस्था तथा अनुवाद इन्हीं प्रतीकों का प्रतिस्थापन है। अर्थात् एक भाषा के प्रतीकों के स्थान पर कथ्य एवं और कथन की दृष्टि से दूसरी भाषा के समतुल्य और सहज प्रतीकों का प्रयोग अनुवाद कहलाता है. - (अनुवाद विज्ञान पृ0 18)

 

इस प्रकार अनुवाद निकटतम समतुल्य और सहज भाषान्तारण प्रक्रिया है इसमें -

1. भाषान्तारण सदैव ऐसा होना चाहिए कि स्रोत भाषा के कथ्य में लक्ष्य भाषा के आने पर न तो विस्तार न संकोच या अन्य किसी प्रकार का परिवर्तन हो। 

2. स्रोत भाषा में कथ्य और अभिव्यक्ति का जैसा सामंजस्य हो लक्ष्य भाषा में अनूदित होने पर भी दोनों का सामंजस्य लगभग वैसा ही हो । 

3. मूल पाठ पढ़कर या सुनकर स्रोत भाषा भाषी जो अर्थ और प्रभाव ग्रहण करता है अनूदित सामग्री पढ़ या सुनकर लक्ष्य भाषा भाषी भी ठीक वही प्रभाव ग्रहण कर सके।

 

अनुवाद का महत्त्व Importance of Translation 

 

  • अनुवाद की परंपरा बहुत पुरानी है पारस्परिक संपर्क की सामाजिक अनिवार्यता के कारण अनुवाद व्यवहार का जन्म भी बहुत पहले हो गया था। लम्बे समय तक मौलिक लेखन न होने के कारण इसे अधिक महत्व नहीं दिया गया। किन्तु वर्तमान समय में विविध स्तरों पर आपसी सम्पर्क को बढ़ावा मिला है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद साम्राज्यवाद का पतन होने से कई छोटे-बड़े देश स्वतंत्र हुए और उनकी स्वतंत्र सत्ता बनी। विकास के लिए ज्ञान के नये-नये स्रोतों से परिचित होने तथा विश्वस्तरीय विचारकों का ज्ञान प्राप्त करने के उद्देश्य से आपसी सम्पर्क की आवश्यकता हुई। आज अलग-अलग संस्कृतियों के लोगों में सम्पर्क बढ़ रहा है. लोग विदेशों में शिक्षा के लिए जाते हैं व्यापारिक, औद्योगिक संगठन विभिन्न देशों में कार्य करते हैं विभिन्न भाषा-भाषी लोग सम्मेलनों में एक साथ बैठकर विमर्श करते हैं राष्ट्रों के राष्ट्र प्रमुख दूसरे देशों में सद्भाव यात्रा के लिए जाते हैं। इन सभी में अनुवाद की अनिवार्य रूप से आवश्यकता होती है। वर्तमान समय में शिक्षा के क्षेत्र में बहुत से ऐसे पाठ्यक्रम हैं जो किसी भाषा विशेष में उपलब्ध हैं उन्हें सर्वसुलभ बनाने के लिए भी स्थानीय भाषा में अनुवाद की बहुत आवश्यकता है। 

 

  • रोजगार के नये-नये अवसर बन रहे हैं पत्रकारिता ने आज जो व्यापक रूप ले लिया है उसमें विश्वरस्तरीय सूचनाओं और परिघटनाओं की जानकारी अपने देश को और अपनी भाषा में देने के लिए अनुवाद की आवश्याकता है। यही नहीं विभिन्न धर्मविलम्बियों द्वारा अपने धर्म प्रचार हेतु भी अनुवाद का सहारा लिया जाता रहा है। क्रिश्चियन धर्मावलम्बियों के धर्म ग्रन्थ बाईबिल का विश्व की सर्वाधिक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। 
  • भारत में प्रारंभिक अनुवाद को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि संस्कृत प्राकृत पाली तथा उभरते हुए क्षेत्रीय भाषाओं के बीच और उन्हीं भाषाओं का अनुवाद अरबी और फारसी में हुआ है। आठवीं से नौवीं शताब्दी के बीच भारतीय कथ्य और ज्ञानमूलक पाठ जैसे पंचतंत्र, अष्टांगहृदय, अर्थशास्त्र, हितोपदेश, योगसूत्र, रामायण, महाभारत और भगवद्गीता का अनुवाद अरबी में हुआ। उन दिनों भारतीय और फारसी साहित्य मूलपाठों के बीच व्यापक स्तर पर आदान प्रदान हुआ। 
  • भक्तिकाल के दौरान संस्कृत मूलपाठ (प्रमुखतः भगवद्गीता और उपनिषद) दूसरे भारतीय भाषाओं के संपर्क में आया जिसके परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण मराठी संत कवि ज्ञानेश्वर द्वारा गीता का अनुवाद ज्ञानेश्वरी तथा विभिन्न महाकाव्यों का अनुवाद तथा विभिन्न भाषाओं के संत कवि द्वारा रामायण और महाभारत का अनुवाद प्रकाश में आया । उदाहरण स्वरूप पम्पा, कंबर, तुलसीदास, प्रेमानन्द, एकनाथ, बलरामदास और कृत्तिवास आदि की प्रादेशिक रामायण को देखा जा सकता है। विश्व में किसी भी देश की भाषाओं में उपलब्ध ज्ञान-विज्ञान, शास्त्र, साहित्य और कला आदि के संचित ज्ञान को दूसरे देश की भाषाओं में अनूदित करके उपलब्ध कराया जा रहा है। यही नहीं एक ही देश के विभिन्न राज्यों और अंचलों की भाषा बोली में संचित ज्ञान को सामने लाने में अनुवाद की महत्वपूर्ण भूमिका है।

 

  • आज के भूमण्डलीकरण के दौर में ज्ञान की पूंजी होना आवश्यक हो गया है यदि ज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में हो रहे नये-नये प्रयोगों से हम आप वाकिफ नहीं होगें तो विकास की दौड़ में पिछड़ जायेंगे। दुनिया का कोई भी देश या कोई भी भाषा-बोली सम्पूर्ण ज्ञान का भण्डार नहीं है। विश्व भर में विभिन्न स्थानों पर विभिन्न प्रकार के अनुसन्धान अन्वेषण और साहित्यिक सृजनात्मक कार्य हो रहे है गहन चिन्तन विश्लेषण चल रहे हैं। सबको इनकी अधुनातन जानकारी रहना आज जीवन की अनिवार्यता बन गई है। हर कोई बहुभाषाविद् या विषयविशेषज्ञ नहीं हो सकता इसलिए अनुवाद कार्य का महत्व और भी बढ़ जाता है।

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