विश्व जल दिवस 2024 : थीम इतिहास महत्व उद्देश्य | World Water Day 2024 Theme in Hindi

 विश्व जल दिवस 2024 : थीम इतिहास महत्व उद्देश्य  (World Water Day 2024 in Hindi)

विश्व जल दिवस 2022 : थीम इतिहास महत्व उद्देश्य | World Water Day 2022 Theme in Hindi


विश्व जल दिवस 2024 : थीम इतिहास महत्व उद्देश्य

  • सारी दुनिया में 1993 से प्रत्येक 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है। इसका दिवस को मनाने का उद्देश्य विश्व के सभी विकसित देशों में स्वच्छ, सुरक्षित जल की उपलब्धता सुनिश्चित करवाना है। साथ ही जल संरक्षण के महत्व पर ध्यान केंद्रित करना है। 


विश्व जल दिवस का इतिहास 

  • विश्व जल दिवस मनाने की अनूठी पहल रियो डी जेनेरियो में 1992 में आयोजित पर्यावरण तथा विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में की गई थी। इसके उपरान्त 1993 में संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को वार्षिक कार्यक्रम के रूप में मनाने का निर्णय लिया।


  • संयुक्त राष्ट्र ने सुरक्षित पीने के पानी को एक मौलिक अधिकार और जीवन स्तर को सुधारने की दिशा में एक आवश्यक कदम के रूप में घोषित किया है। संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक अपने सतत विकास लक्ष्यों में सुरक्षित और सस्ते पीने के पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना निर्धारित किया है। सतत विकास 2030 का लक्ष्य 6 ‘स्वच्छ जल तक पहुंच एवं स्वच्छताहेतु समर्पित है।


  • संपूर्ण विश्व में जल संकट को दूर करने एवं जलापूर्ति को बहाल करने के साथ जल संसाधनों पर पड़ रहे दबाव (बाढ़, सूखा) इत्यादि से निपटने हेतु वर्ष 2018 से 2028 तक के दशक को जल कार्यवाई दशकघोषित कर रखा है।


विश्व जल दिवस की थीम World Water Day Theme 

  • विश्व जल दिवस 2024 की थीम “'Water for Peace'-शांति के लिए जल है। 
  • विश्व जल दिवस 2023 की थीम “'“Accelerating Change”'- है। 

  • विश्व जल दिवस 2022 की थीम “Groundwater: making the invisible visible”- भूजल: अदृश्य को दृश्यमान बनाना है। 
  • विश्व जल दिवस 2021 की थीम 'VALUING WATER-पानी का मूल्यांकनहै। उल्लेखनीय है कि विश्व जल दिवस 2021 के अवसर पर 'Valuing Water' के शीर्षक से ‘UN World Water Development Report 2021’ को लांच किया गया है।

विश्व में जल की वर्तमान स्थिति 

  • वर्तमान में इस महामारी के समय में भी पूरे विश्व में 3 अरब से भी ज्यादा लोगों के पास अब तक हाथ धोने के लिये जल जैसे बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
  • जल संकट से 80 देशों के करीब एक अरब 42 करोड़ लोग प्रभावित हैं। उल्लेखनीय है कि इनमें से 45 करोड़ बच्चे हैं।
  • 2050 तक जल संसाधनों पर अत्यधिक दबाव के कारण आधे से अधिक वैश्विक आबादी पर जल संकटका जोखिम होगा।
  • अकेले मरुस्थलीकरण से 100 देशों में एक अरब से ज़्यादा लोगों की आजीविकाओं पर ख़तरा उत्पन्न होने का संकट बरकरार है।
  • जल की भारी कमी से से वर्ष 2030 तक 70 करोड़ लोग विस्थापन के लिये मजबूर हो सकते हैं।

भारत में जल की वर्तमान स्थिति

  • विगत कुछ दशकों से देश को तीव्र जलसंकट का सामना करना पड़ रहा है। देश के ग्रामीण इलाकों में स्वच्छ पेयजल की स्थिति बेहद गंभीर है। 18.93 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से केवल 3.23 करोड़ (17 प्रतिशत) नल के पानी का कनेक्शन था। हालांकि जलजीवन मिशन (जेजेएम) जिसका उद्देश्य 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को नल के पानी का कनेक्शन देना एवं इसके तहत19 करोड़ से अधिक ग्रामीण परिवारों को लाभ मिला है। पांच राज्यों यानी गोवा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना में सभी आंगनवाड़ी केंद्रों में 100 प्रतिशत पेयजल कनेक्शन दिया गया है।
  • उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे कुछ राज्यों में जलापूर्ति की स्थिति बेहद गंभीर है, जहाँ पाइपलाइन से आपूर्ति पाँच प्रतिशत से भी कम है।


जल प्रबंधन और जल की उपलब्धता के लिए सरकारी प्रयास

  • राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (NRDWP) का प्रारंभ जिसका उद्देश्य प्रत्येक ग्रामीण व्यक्ति को 2022 तक 70 लीटर स्वच्छ जल प्रति व्यक्ति प्रतिदिन उनके घरेलू परिसर के भीतर या 50 मीटर तक की दूरी तक प्रदान करना है।
  • वर्ष 2018 में शुरू हुए स्वजल योजनाके माध्यम से ग्रामीण इलाकों में पाइपलाइन से जल आपूर्ति को बढ़ाना।
  • कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी के अंतर्गत, पानी की गुणवत्ता और इससे संबंधित विभिन्न महत्वपूर्ण मापदंडों को शामिल करना।
  • भारत सरकार का लक्ष्य 2022 तक सतही जल आधारित पाइप जलापूर्ति योजनाओं के माध्यम से 90 प्रतिशत ग्रामीण आबादी को एक दीर्घकालिक टिकाऊ समाधान के रूप में सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना है।
  • सरकार जल उपचार तकनीकों को अधिक किफायती और पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए प्रयासरत है।
  • आर्सेनिक/फ्रलोराइड प्रभावित ग्रामीण बस्तियों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय जल गुणवत्ता उपमिशनका प्रारंभ।
  • नीति आयोग द्वारा 2018 में संयुक्त जल प्रबंधन सूचकांक की शुरुआत जो जल प्रबंधन और जल चक्र के विभिन्नन आयामों को मापता है।
  • जल शक्ति मंत्रालय का गठन


जल प्रबंधन और जल की उपलब्धता के लिए सरकार की कुछ प्रमुख योजना

  • कमान क्षेत्र विकास कार्यक्रम
  • नदी बेसिन विकास कार्यक्रम
  • नीरांचल : राष्ट्रीय जलसंभर प्रबंधन परियोजना
  • राष्ट्रीय जल-ग्रिड
  • राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना
  •  'नमामि गंगे'
  • राष्ट्रीय जल मिशन
  • प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना
  • अटल भू जल योजना
  • जल जीवन मिशन
  • जलशक्ति अभियान


वर्तमान में जल से जुड़ी चुनौतियाँ

  • भू-जल पर लगातार बढ़ती निर्भरता और इसका निरंतर अत्यधिक दोहन
  • जल स्रोतों का सुखना, भू-जल तालिका में तेजी से कमी, सूखे की पुनरावृत्ति और विभिन्न राज्यों में बिगड़ता जल प्रबंधन
  • बंद पड़े बोर पंपों, जलापूर्ति पाइपलाइनों की मरम्मत समय पर नहीं होना।
  • औद्योगीकरण और नगरीकरण का दवाब।
  • अधिकांश शहरों और लगभग 19,000 गाँवों के भू-जल में फ्रलोराइड, नाइट्रेट, कीटनाशक आदि का स्वीकार्य सीमा से अधिक मौजूद होना।
  • ग्रामीण भारत में न केवल पेयजल अपर्याप्त है बल्कि देशभर में इसका असंतुलन बहुत व्यापक है।
  • नेशनल हेल्थ प्रोफाइल ऑफ इंडिया-2018 के अनुसार भारत में सूचित किए गए करीब एक चौथाई या चार मामलों में से एक संचारी रोगों की वजह से तथा हर पाँच मौतों में से एक जल जनित रोगों के कारण होती है।
  • दुनिया के 30 देशों में जल संकट एक बड़ी समस्या बन चुकी है और अगले एक दशक में वैश्विक आबादी के करीब दो-तिहाई हिस्से को जल की अत्यधिक कमी का सामना करना पड़ेगा। वास्तविक अर्थों में भारत में जल संकट एक प्रमुख चुनौती बन चुका है।
  • एक उत्तम जल प्रबंधन प्रणाली को कैसे सुनिश्चित किया जाये?
  • तकनीकों और नवाचारों के साथ भारत की परंपरागत ज्ञान प्रणाली की अंतर्दृष्टि को अपनाकर;
  • वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहित करना (तालाब, चेकडैम, गेबियन स्ट्रक्चर, स्टॉप डैम, सोखता गड्ढा, अधोभूमि अवरोधक, रोक बांध, रिचार्ज शॉफ्रट, अस्थायी बांध, गली प्लग नाली अवरोधक इत्यादि);
  • छत पर प्राप्त वर्षा जल का भूमि जलाशयों में पुनर्भरण एवं जल का संचयन;
  • समुद्र में बह जाने वाले वर्षा जल का भी संचयन;
  • वर्षा आधारित खेती, प्राकृतिक खेती व सूखारोधी बीजों के चलन को बढ़ावा;
  • पेयजल के लिए कुशलता से पानी की निकासी व प्रयोग एवं खेतों में सिंचाई के लिए बूंद-बूंद सिंचाई तथा फव्वारा पद्धति का प्रयोग;
  • रसायनों व कीटनाशकों का कम प्रयोग करके जल प्रदुषण को रोकना एवं प्राकृतिक खेती को बढ़ावा;
  • जल स्रोतों में कचरा/मलमूत्र के निस्तारण को रोकना एवं जलस्रोतों को जीवाणुरहित करना;
  • जल का पुनर्चक्रण;
  • अनुकूलतम प्रबंधन और बेहतर आवंटन प्रक्रिया के साथ रिसाव की उच्च-दर में कमी लाना,
  • वैकल्पिक संसाधनों को बढ़ाने के लिए मरम्मत, नवीनीकरण और पुनर्स्थापन (आरआरआर) के लिए व्यक्तिगत, सामूहिक और संस्थानिक प्रयासों को प्रोत्साहित करना;

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