कैमरों, प्रोजेक्टरों, दूरवीनों, सूक्ष्मदर्शियों आदि प्रकाशीय यंत्रों
(उपकरणों) में लेंसों का उपयोग प्रतिबिम्ब प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
दृष्टि दोषों के निवारण हेतु भी लेंस लगे चश्मों (ऐनक) का प्रयोग किया जाता है।
सामान्यतः लेंस कांच के बनाए जाते हैं और मुख्यत: ये दो प्रकार के होते हैं-(i) उत्तल अर्थात् अभिसारी, तथा (ii) अवतल अर्थात् अपसारी।
उत्तल
लेंस पर आपतित एक समांतर किरण-पुंज लेंस में अपवर्तन के बाद जिस बिन्दु पर अभिसरित
होती हैं उसे मुख्य फोकस कहते हैं अवतल लेंस में अपवर्तन के पश्चात् किरणें मुख्य फोकस से अपसारित प्रतीत होती हैं ।
अभिसारी
लेंस को वस्तु के निकट, इस प्रकार रखा जाए कि यह मुख्य फोकस की
सीमा में रहे तो वस्तु का सीधा, आवधित
एवं आभासी प्रतिबिम्ब बनता मुख्य है। इस प्रकार अभिसारी लेंस आवर्धक कांच के रूप
में काम करता है। इस गुण के कारण इसे सरल सूक्ष्मदर्शी भी कहते हैं।
यदि वस्तु
अभिसारी लेंस के फोकस से बाहर हो तो वास्तविक प्रतिविष्य बनता है। अपसारी लेंस के
सामने किसी भी दूरी पर रखी वस्तु का प्रतिविष्य सदैव आभासी. सीधा व छोटा बनता है।
मानव नेत्र Eyes Physics in Hindi
चित्र में मानव नेत्र का एक सरल आरेख
दर्शाया गया है। आंख में प्रकाश प्रवेश कर अभिनेत्र लेंस के द्वारा फोकस होकर
दृष्टिपटल (रेटिना) पर प्रतिबिम्ब बनाता है। अभिनेत्र लेंस के ऊपर नेत्र का रंगीन
भाग होता है जिसे परितारिका (आइरिस) कहते हैं जो स्वत: ही पुतली (pupil) के आकार को प्रकाश की तीव्रता के अनुसार घटा बढ़ा देती है।
पुतली या
तारा, परितारिका में एक गोल द्वारक अथवा
डायफ्राम हैं, जिसमें होकर प्रकाश अन्दर प्रवेश करता
है। तीव्र प्रकाश में परितारिका स्वतः सिकुड़ जाती है जिससे तारा छोटा होकर प्रकाश
की कम मात्रा को प्रविष्ट होने देता है। प्रकार दृष्टि पटल को क्षति नहीं पहुंचती।
बाहर
तीव्र प्रकाश से अंधेरे कमरे में जाने पर हम कुछ क्षणों तक ठीक से नहीं देख पाते
क्योंकि स्थिति के अनुसार आंख की परितारिका तारे को तत्काल फैलाने में सक्षम नहीं
होती।
नेत्र-लेंस
द्वारा भिन्न दूरियों पर रखी वस्तुओं का प्रतिविम्व दृष्टि पटल पर फोकस कर पाने को
नेत्र की समायोजन क्षमता कहते हैं। नेत्र की यह क्षमता उसे रोमाभ-पेशियों (ciliary muscles) द्वारा प्राप्त होती है। ये पेशियां
अभिनेत्र लैंस की मोटाई एवं वक्रता में परिवर्तन करती हैं, जिससे उसकी फोकस दूरी में परिवर्तन हो
जाता है।
दृष्टि
का स्थायित्व (Persistence
of vision)
मस्तिष्क
द्वारा रेटिना पर पड़ने वाले प्रकाश की संवेदना प्रकाश स्त्रोत या प्रतिरूप के
हटने के कुछ क्षण बाद तक रहती है, जिसे
दृष्टि का स्थायित्व कहते हैं। यदि किसी क्रिया के विभिन्न पहलुओं के चित्रों को
एक क्रम में तैयार किया जाये और उन्हें एक द्रुत क्रम में देखा जाये तो आंखें
चित्रों को जोड़ देती हैं और परिणामतः चलते हुये प्रतिरूप का भ्रम होता है।
इस
कल्पना का उपयोग चलचित्र प्रक्षेषक यंत्र एवं टेलीविजन में होता है। आधुनिक
चलचित्रों में 24 तस्वीरें प्रति सेकण्ड की गति दिखायी
जाती हैं।
दृष्टि दोष-
एक सामान्य व स्वस्थ आंख अनन्त दूरी (दूर-बिन्दु) से लेकर 25 सेमी० दूरी (निकट विन्दु) तक की
वस्तुओं को स्पष्टतः देखने में सक्षम होती है।
दूर दृष्टि दोष (long sight अर्थात् हाइपरमैट्रोपिया)
दूर
दृष्टि दोष (long sight अर्थात् हाइपरमैट्रोपिया) से ग्रस्ति
व्यक्ति दूर की वस्तुओं को तो स्पष्टत: देख पाता है किन्तु निकट की वस्तुओं को
नहीं। यह नेत्र
दोष, नेत्रगोलक (eye-ball) के कुछ छोटा होने के कारण होता है तथा
अभिसारी लेंस की ऐनक लगा कर दूर किया जा सकता है।
निकट-दृष्टि दोष (short sight अर्थात् मायोपिया)
निकट-दृष्टि दोष (short sight अर्थात् मायोपिया) से ग्रसित नेत्र- दोष, जो नेत्र- गोलक के कुछ लम्बा होने के
कारण होता है, इसमें प्रतिबिम्ब दृष्टि पटल
से पहले ही फोकस हो जाता है। इस दोष के लिए अपसारी लेंस का चश्मा लगाकर
इसे ठीक किया जाता है।
उम्र
के बढ़ने के साथ हमारी आंख की समायोजन क्षमता कम हो जाती है, जिससे नेत्र निकट की वस्तुओं को ठीक से
फोकस नहीं कर पाते हैं। इस नेत्र दोष को अपसारी लेंस वाली ऐनक पहनकर दूर किया जा
सकता है।
लैंस की क्षमता
लैंस की क्षमता (सामर्थ्य) को, फोकल
दूरी के व्युत्क्रम से मीटर में व्यक्त करते हैं तथा इसका मात्रक डायोप्टर (D) है। अभिसारी लेंस की क्षमता धनात्मक
तथा अपसारी लेंस की ऋणात्मक है इसलिए अगर ऑप्टीशियन (चश्मा बनाने वाला)
+2.5 को सिफारिश करता है तो इसका अर्थ है 0.4 मीटर फोकल दूरी के लेंस
लगाइए।
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