अर्थ परिवर्तन के कारण|अर्थ परिवर्तन के भेद-उपभेद | Arth Parivartan Ke Karan

अर्थ - परिवर्तन के कारण

अर्थ परिवर्तन के कारण|अर्थ परिवर्तन के भेद-उपभेद | Arth Parivartan Ke Karan
 

अर्थ - परिवर्तन के कारण

  • अर्थ - परिवर्तन का सम्बंध मनुष्य की मानसिकता से है। इसलिए अर्थ - परिवर्तन के निश्चित सिद्धान्त नहीं स्थापित किए जा सकते हैं। वास्तव में किसी शब्द के अर्थ में परिवर्तन का कोई एक निश्चित कारण न होकर कई कारणों का योगदान होता है। भाव सादृश्य के साथ सामाजिक कारण भी हो सकता है। इसलिए यहाँ अर्थ परिवर्तन के मुख्य कारणों पर हम विचार करेगें। 


अर्थ परिवर्तन के मुख्य कारण और उनके भेद-उपभेद इस प्रकार हैं-

 

1. भाषा शास्त्रीय 

  • I. बल का अपसरण 
  • II. सादृश्य 
  • III अन्य भाषाओं से आए शब्द 
  • IV. व्याकरण 
  • V. लाघव की प्रवृत्ति 
  • VI. शब्द का रूप परिवर्तन 
  • VII. अज्ञानता 


2. सभ्यता का विकास 

  •  I. नवीन वस्तुओं/ आविष्कारों की खोज

 

3.सामाजिक साँस्कृतिक 

  • Iसामाजिक परम्पराएं और मान्यताएं 
  • II. नम्रता प्रदर्शन 
  • III. अशुभ-छोटे कार्य 
  • IV.सामाजिक परिवेश 

 

4. भौगोलिक परिवेश  

5. साहित्यिक कारण - 

  • I. लाक्षणिक प्रयोग 
  • II. व्यंग्य

 

6. ऐतिहासिक कारण पीढ़ी परिवर्तन 

7. सभ्यता का विकास 

8. सामाजिक-सांस्कृतिक

 

  • I. भ्रान्त धारणा 
  • II. अंधविश्वास 
  • III. नम्रता प्रदर्शन

 

1. अर्थ परिवर्तन के भाषा शास्त्रीय कारण

 

I. बल का अपसरण 

  • किसी शब्द के उच्चारण में यदि ध्वनि विशेष पर बल - दिया जाय तो शेष ध्वनियाँ कमजोर पड़कर धीरे-धीरे लुप्त हो जाती उपाध्यायसे ओझा होना इसका अच्छा उदाहरण है। ध्वनि में बल अपसरण से शब्द रूप के साथ ही उसका अर्थ भी बदल जाता है। इसी प्रकार पहले 'गोस्वामीका अर्थ 'बहुत सी गायों का स्वामीथा जो बाद में धार्मिक व्यक्ति के लिए 'गुंसाईरूप में प्रचलित हुआ ।

 

II. सादृश्य - 

  • अर्थ-परिवर्तन में इसके उदाहरण कम ही हैं। प्रश्रयका संस्कृत में अर्थ था विनयशिष्टताया नम्रता । इससे मिलता जुलता शब्द 'आश्रयहै - जिसका अर्थ सहारा है। अतः आश्रय के सादृश्य में प्रश्रयभी सहारा के अ में प्रयोग होने लगा।


III. अन्य भाषाओं से आये शब्द - 

  • हिन्दी और आधुनिक भारतीय भाषाओं में अरबीफारसीतुर्कीअंग्रेजी भाषाओं के अनेक शब्द भाषा में उनके अर्थ बदल गये हैं। जैसे फारसी 'दरियाशब्द (नदी) गुजराती में 'समुद्रके अर्थ में प्रयुक्त हिन्दी में पक्षी विशेष हो गया। होता है। इसी प्रकार फारसी का 'मुर्ग' (पक्षी)

 

IV. व्याकरण

  • व्याकरण के कारण भी शब्दों के अर्थ में परिवर्तन होता है। जैसे हारशब्द में उपसर्ग जोड़ने से उपहारविहारआहारसंहार या 'कारशब्द में उपसर्ग जोड़ने से आकारविकारसंहार नये अर्थवान शब्द बनते हैं। इसी प्रकार प्रत्यय जोड़ने या समास रचना से भी अर्थ भेद आ जाता है। जैसे मीठा से मिठाईगृहपति (गृहस्वामी)पतिगृह (ससुराल) आदि।

 

V. लाघव की प्रवृत्ति 

  • उच्चारण में मुख-सुख या लाघव की प्रवृत्ति मनुष्य का - स्वभाव है। इसमें लम्बे-लम्बे शब्दों के कुछ अंश हट जाते हैं जिससे अर्थ परिवर्तन हो जाता है। जैसे रेलवे स्टेशन की जगह केवल 'स्टेशनसे भी रेलवे स्टेशन का बोध होता है। ऐसे ही 'मोटर बाइकबाइक और 'आटो रिक्शाशब्द केवल आटो के रूप में पूरा अर्थ देता है

 

VI. शब्द का रूप परिवर्तन 

  • शब्द के तत्सम रूप से तद्भव रूप भी बनते हैं। जैसे गर्भिणी से गाभिनस्तन से थनश्रेष्ठ से सेठ । इसे अर्थ में भी परिवर्तन हो जाता है। जैसे गर्भिणी और स्तन स्त्री के सम्बंध में और गाभिन और थन शब्दों का प्रयोग पशुओं के संदर्भ में होता है। इसी प्रकार श्रेष्ठ का अर्थ आदर्श या अनुकरणीय व्यक्ति से है और सेठ धनी व्यक्ति को कहते हैं।

 

VII. अज्ञानता 

  • भाषा की अज्ञानता के कारण भी अर्थ - परिवर्तन होता है। जैसे संस्कृत का धन्यवाद’ (प्रशंसा) शुक्रिया के अर्थ में प्रयुक्त होता है। अज्ञान के कारण कभी-कभी शब्दों के दोहरे अर्थ वाले रूप चलने लगते हैं। जैसे फ़जूलके लिए बेफिजूल, 'खालिसके लिए निखालिस, 'विंध्याचलके लिए विंध्याचल पर्वत, 'सज्जनके लिए सज्जन व्यक्ति आदि। 

 

2. सभ्यता का विकास अर्थ परिवर्तन का कारण 

  • सभ्यता के विकास के साथ ही नवीन वस्तुओं का निर्माण और नये-नये आविष्कार होते रहते हैं। शासन-प्रशासनशिक्षा पद्धति में नये बदलाव आते हैं जो अर्थ-परिवर्तन का कारण बनते हैं। कलम पहले पंख (पेन) से बनती थी 'पत्रका अर्थ वृक्ष का पत्ता था। सभ्यता के विकास में पेन और पत्र कितने विस्तृत अर्थ के हो गए। सभ्य होने के साथ ही व्यक्ति अश्लील और गंदे कार्यों के लिए प्रयुक्त शब्दों के स्थान पर संकेतात्मक अर्थ वाले शब्दों का प्रयोग करने लगा है। नहानेपेशाब-लैट्रीन जाने-सभी के लिए बाथरूम शब्द का प्रयोग होता है। इसी तरह रेडियो के आने पर 'आकाशवाणीका प्रयोग प्रचलित हुआ।

 

3. सामाजिक साँस्कृतिक अर्थ परिवर्तन का कारण

  • सामाजिक मान्यताओं और परम्पराओं के कारण भी अर्थ - परिवर्तन होते हैं। जैसे- अंधविश्वास के कारण 'चेचकको देवीमाता कहना। पत्नी द्वारा अपने पति का नाम न लेने के अंधविश्वास ने पति के अर्थ में आदमीमलिकारघरवालाबेटवा के बाबू आदि अनेक शब्दों को जन्म दिया। इसी तरह अशुभ या बुरी खबर को सीधे न कहकर घुमा-फिराकर संकेत में कहा जाता है। किसी की मृत्यु होने पर मर गयासीधे न कहकर बल्कि नहीं रहा', स्वर्गवासी या दिवंगत हो गया कहा जाता है। लाशको पार्थिव शरीर या मिट्टी कहते हैं। किसी के विधवा होने पर सिंदूर पुछनासुहाग मिटना कहते हैं। एकमात्र संतान की मृत्यु पर चिराग बुझना कहते हैं। 
  • सामाजिक कारणों में नम्रता प्रदर्शन भी एक कारण है। उर्दू भाषा में नम्रता प्रदर्शन के प्रचुर उदाहरण हैं। हिन्दी में भी कम नहीं हैं क्योंकि वहाँ भी नम्रताशिष्टाचार बना हुआ है। मेरे यहाँ आइयेके अर्थ में 'मेरी कुटिया को पवित्र कीजिएचलता है। बहुत दिन बाद मिलने पर कैसे दर्शन दिएया 'इधर कैसे रास्ता भूल गएवाक्याशों का प्रयोग देखा जा सकता है। छोटे कार्यों को करने वालों के लिए भी आदर सूचक अर्थ वाले शब्दों का प्रयोग होता था। जैसे नाई के लिए 'नाई राजा', और नाईन के लिए 'नाईन चाची या नाईन काकी प्रयुक्त होता था। खाना बनाने वाला या वाली महाराज या महराजिन होते थे।

 

  • सामाजिक परिवेश से भी अर्थ - परिवर्तन होता है। अंग्रेजी के 'सिस्टर', 'फादर', 'मदरशब्द घर में बहनपितामाँ के लिए प्रयुक्त होते हैं किन्तु 'सिस्टरगिरिजाघर में 'ननके अर्थ में और अस्पताल में 'नर्सके अर्थ में प्रचलित है। 
  • 1. प्रत्येक समाज और समुदाय की साँस्कृतिक अस्मिता होती है जो भाषा व्यवहार को प्रभावित करती है। समुदाय विशेष की साँस्कृतिक अवधारणाएं शब्दों के अर्थ ग्रहण को प्रभावित करती है। इनमें परस्पर भेद के कारण अर्थभेद भी पैदा होता है। एक समुदाय विशेष में धर्म अधर्मपाप - पुण्यस्वर्ग - नरक आदि शब्दों के अर्थ से भिन्न हो सकते हैं। यह भिन्नता साँस्कृतिक अस्मिता की भिन्नता के कारण होती है।

 

4. भौगोलिक परिवेश अर्थ परिवर्तन का कारण

  • भौगोलिक परिवेश बदलने से भी शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं। वैदिक युग में 'उष्ट्रशब्द जंगली बैल के लिए होता था। आर्य जब रेगिस्तान क्षेत्र में आये तो उन्होंने इसे ऊँट’ कहा। इसी प्रकार अंग्रेजी के 'कार्नका मूल अर्थ 'गल्लाहै। यही 'गल्ला अमेरिका में 'मक्काके लिए और स्काटलैण्ड में 'बाजराके लिए प्रयुक्त होता है। शायद गल्ला मंडी’ (अनाज की मंडी) कार्न के मूल अर्थ से ही विकसित हुआ है। इसी प्रकार 'गंगाउत्तर भारत में विशिष्ट नदी है। गुजरात में सभी नदियों के लिए 'गंगाशब्द प्रचलित है। पूर्वी भारत में पके हुए चावल को 'भातकहते हैं किंतु खड़ी बोली क्षेत्र में कच्चे-पके दोनों प्रकार के चावल के लिए 'चावलही कहते हैं। इसी प्रकार 'ठाकुरका अर्थ उत्तर प्रदेश में त्रियबिहार में नाई और बंगाल में खाना बनाने वाले के लिए होता है। उत्तर प्रदेश में प्रचलित विशेष व्यंजन 'कढ़ीशब्द कुमाऊँ क्षेत्र में अशोभनीय माना जाता है। भौगोलिक परिवर्तन के ऐसे अनके उदाहरण देखे जा सकते हैं। पिल्लाउत्तर भारत में कुत्ते के बच्चे को कहते हैं किन्तु दक्षिण भारत में उसका अर्थ है 'बच्चावह चाहें किसी का भी हो।

 

  • किसी विशेष क्षेत्र का सम्बंध होने के कारण भी वस्तु विशेष या उत्पादन विशेष के आधार पर उनके नये अर्थ को समाहित कर लिया जाता है। जैसे सिंधु में नमक का अधिक उत्पादन होता था। अतः उसे सैन्धवकहा गया। सेंधा नमक भी 'सैंधवसे विकसित हुआ है। इसी प्रकार तम्बाकू का जहाज पहली बार 'सूरतमें उतरा। खाने वाली तम्बाकू 'सुरतीकहलायी। 'चीनी' (शक्कर) का अर्थ भी चीन से सम्बद्धता दर्शाता है। लंका से आयातित मिर्च को 'लंकाकहते हैं। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो वस्तुओं के साथ क्षेत्र विशेष की सम्बद्धता दर्शाते हैं।

 

5. साहित्यिक अर्थ परिवर्तन का कारण

  • इसके अन्तर्गत दो कारण हैं। लाक्षणिक प्रयोग और व्यंग्य। प्रायः साहित्यकार कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए शब्द के अर्थ की शक्ति को घटाता - बढ़ाता है। निर्जीव की विशेषता के लिए सजीव के गुण-धर्म का प्रयोग करता है। इससे उसमें अर्थ - परिवर्तन होता है। जैसे - घड़े का मुँहनारियल की आँखगुफा का पेटआरी के दाँत आदि। पशु-पक्षियों के स्वभाव को मनुष्य पर आरोपित करते हुए भी उसके गुण विशेष को लक्षण द्वारा व्यंजित किया जाता है। जैसे डरपोक को गीदड़मूर्ख को गधाखुशामदी को कुत्ता या चमचाऔर कपटी को साँप कहना। 


  • व्यंग्य में अर्थादेश की प्रवृत्ति होती है। इसमें अच्छे गुणों के व्यंग्यात्मक प्रयोग द्वारा दुर्गुण को प्रकट करते हैं। जैसे बदसूरत व्यक्ति के लिए 'कामदेवऔर स्त्री के लिए 'अप्सराकहना। झूठे व्यक्ति के लिए 'युधिष्ठिर के अवतारऔर कंजूस व्यक्ति के लिए 'कर्णकहना व्यंग्य के उदाहरण हैं। सूक्ष्म वस्तुओं या व्यापारों की साधारण शब्दों में अभिव्यक्ति आसान नहीं होती। इसके लिए उपमारूपक जैसे अलंकारों या लक्षणा शक्ति का प्रयोग आवश्यक हो जाता है। जैसे गहरी बातनिर्जीव भाषारूखी हँसीसूखी हँसीमधुर संगीतदुःख काटनासुख भोगनाविपत्तियों से घिर जाना जैसे प्रयोग देख जा सकते हैं। 


  • आलंकारिक अर्थ में कुछ प्रतीक रूढ़ हो जाते हैं। जैसे पत्थर दिल (कठोर हृदय)बेपेंदी का लोटा (जिसका कुछ निश्चय न हो)भैंस (बेवकूफ)बैल (मूर्ख) आदि। इनके कुछ अन्य उदाहरण ऊपर दिये जा चुके हैं। आलंकारिक प्रयोग में ये शब्द अपने अभिधात्मक अर्थ को छोड़कर गुण का अर्थ देते हैं। 
  • अर्थ - परिवर्तन के उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त और भी कारण हो सकते हैं। 


अर्थ-परिवर्तन की विशेषताएं- 

डॉ भोलानाथ तिवारी ने अर्थ - परिवर्तन की निम्नलिखित तीन विशेषताओं का उल्लेख किया है-

 

(क) अनेकार्थक - 

  • कभी-कभी शब्द के मूल अर्थ में परिवर्तन होता है किन्तु शब्द अपना नवीन अर्थ ही धारण करने पर भी मूल अर्थ को नहीं छोड़ता। ऐसी स्थिति में एक शब्द दो-दो या इससे अधिक अर्थों में प्रयुक्त होता है। जैसे 'जड़शब्द को लें। इसका प्रयोग वृक्ष की जड़रोग की जड़समस्या की जड़झगड़े की जड़आदि कई रूपों में देखा जा सकता है। इस प्रकार के शब्दों को अनेकार्थक शब्द कहा गया है।

 

(ख) एकमूलीय भिन्नार्थक शब्द

  • कभी-कभी एक ही मूल से निकले दो शब्दों के अर्थ में भी - परिवर्तन हो जाता है। पक्षी (चिड़िया) से निकले 'पंखीका अर्थ हवा करने वाले पंखे से है। 


(ग) समध्वनि भिन्नार्थक शब्द 

  • इसमें ध्वनियों की दृष्टि से एक से रहने पर भी दो भाषाओं के शब्दों के अर्थ में परस्पर पर्याप्त अंतर रहता है। जैसे हिन्दी आम (फल)सहन (सहना )कुल (परिवार) के अर्थ अरबी शब्दों में क्रमशः आम (साधारण)सहन (आँगन)कुल (समस्त) हो जाते हैं।

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