वर्षा किसे कहते हैं, वर्षा के प्रकार। What is Rain and Types of rain in Hindi

वर्षा किसे कहते हैं,  वर्षा के प्रकार। What is Rain and Types of rain in Hindi 

वर्षा किसे कहते हैं,  वर्षा के प्रकार। What is Rain and Types of rain in Hindi



वर्षा किसे कहते हैं 

 

  • वायुमण्डल में कुछ अंश तक नमी का समावेश हमेशा रहता है यही नमी जब वायुमण्डल में अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती है तो बूँदों के रूप में स्थल भाग पर गिरने लगती हैं जिसे वर्षा कहते हैं। 
  • वर्षा से पूर्व इसके लिए वायुमण्डलीय परिस्थितियों का होना आवश्यक है. जैसे-उष्ण आर्द्र पवनों का तापमान जल बिन्दुओं तक पहुँच जाना, जल बिन्दुओं का रूप बड़ा होना तथा बादलों का बड़ा होना आदि वायुमण्डल में मेघ तभी बनते हैं जब वायु पर्याप्त रूप से ठण्डी हो जाए। 


सामान्यतः निम्नलिखित दशाओं में वायु ठण्डी हो सकती है : -

 

  • धरातल पर वायु असाधारण ताप के कारण गर्म होकर ऊपर उठकर फैलती है, अधिक ऊँचाई पर पहुँचने पर ठण्डी हो जाती है. 
  • चक्रवात में पड़ी हुई गर्म वायु ठण्डी वायु के ऊपर चढ़ती है तो ठण्डी हो जाती है. 
  • भिन्न तापमान वाली वायुराशियाँ जब आपस में मिलती हैं तो ठण्डी हो जाती हैं गर्म अक्षांशों से ठण्डे अक्षांशों की ओर चलने वाली पवनें इसी प्रकार ठण्डी होती हैं।  
  • वायु के मार्ग में यदि कोई पर्वत आ जाता है, तो बाध्य होकर उसे ऊपर चढ़ना पड़ता है जिससे वह ठण्डी हो जाती है.

 

वर्षा के प्रकार 

वर्षा को मुख्य रूप से तीन भागों में बाँटा जा सकता है :

 

(i) संवहनी वर्षा (Conventional Rainfall) 

(ii) पर्वतीय वर्षा (Orographic Rain 

(iii) चक्रवातीय वर्षा (Cyclonic Rain fall)

 

(i) संवहनी वर्षा किसे कहते हैं 

  • धरातल के असाधारण रूप से गर्म हो जाने पर उससे लगी वायु गर्म होकर फैलती है जिससे आस-पास की भारी वायु उसे ऊपर उठने के लिए बाध्य कर देती है ये हवाएँ ऊपर तब तक उठती रहती हैं जब तक इनका तापमान ऊपरी सम्पर्क में आने वाली हवाओं के बराबर न हो जाय अधिक ऊपर उठकर वायु ठण्डी होती है और उसमें संघनन प्रारम्भ हो जाता है और वर्षा हो जाती है, संवहनी वर्षा का सम्बन्ध सर्वदा ग्रीष्म ऋतु और दिन के उष्णतम समय से होता है यह वर्षा भूमध्यरेखीय क्षेत्रों में बौछार के रूप में होती है, किन्तु अधिक समय तक नहीं होती है। 

 


(ii) पर्वतीय वर्षा किसे कहते हैं 

  • जब कभी उष्ण एवं आर्द्र पवनों को यात्रा करते समय मार्ग में पर्वत या कोई ऊँची पहाड़ी अवरोध के रूप में सामने आ जाती है, तो ये पवने उससे टकराकर ढाल के सहारे से ऊपर उठकर ठण्डी होती है और अपनी नमी को वर्षा के रूप में गिरा देती है. यह वर्षा पवनाभिमुख (Windward) ढालों पर अधिक होती है और पर्वतों के पीछे की ओर वर्षा नहीं होती है. इन भागों को वृष्टि छाया प्रदेश (Rain Shadow Area) कहते हैं.

 

(iii) चक्रवातीय वर्षा किसे कहते हैं 

  • दो दिशाओं से आने वाली गर्म व ठण्डी पवनों के मिलने के स्थान पर गर्म पवन हल्की होने के कारण ठण्डी व अधिक घनत्व की पवन के ऊपर चढ जाती है, तो ऊपर की गर्म हवाएँ ऊपर तथा नीचे के भागों से ठण्डी होकर संघनन क्रिया प्रारम्भ कर देती हैं तथा वर्षा होने लगती है इस प्रकार की वर्षा अधिकतर शीतोष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में होती है. यहाँ पर गर्म और ठण्डी हवाएँ आसानी से आ जाती हैं.

 


मेघों के प्रकार

 

अधिक ऊँचाई वाले मेघ (ऊँचाई 5,000 से 13,000 मीटर)

 

पक्षाभ ( Cimus Clouds) 

● पक्षाभ स्तरी मेघ (Cirro-Stratus Clouds) 

पक्षाभ कपासी मेघ (Cirro-Cumulus Clouds)

 

मध्यम ऊँचाई वाले मेघ (ऊँचाई 2,000 से 10000 मीटर) 

मध्य स्तरी मेघ (Altro Stratus Clouds ) 

मध्य कपासी मेघ (Altro Cumulus Clouds) 


कम ऊँचाई वाले मेघ (ऊँचाई 1,000 मीटर से कम)

 

स्तरी कपासी मेघ (Strato Cumulus Clouds) 

स्तरी मेघ (Strato Clouds ) 

वर्षा स्तरी मेघ (Nimbo-Stratus Clouds)

 

उर्धावर (Vertical) विकास वाले मेघ

 

कपासी वर्षी मेघ (Cumulo nimbus Clouds) 

कपासी मेघ (Cumulus Clouds)

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