मध्यप्रदेश में प्रागैतिहासिक कला । उच्च पुरापाषाण कालीन संस्कृति तिथि निर्धारण। Prehistoric Art in Madhya Pradesh

मध्यप्रदेश में प्रागैतिहासिक कला

मध्यप्रदेश में प्रागैतिहासिक कला । उच्च पुरापाषाण कालीन संस्कृति  तिथि निर्धारण। Prehistoric Art in Madhya Pradesh


 

प्रागैतिहासिक कला

  • उच्च पुरापाषाण काल से कला का प्रारम्भ माना जाता है। वस्तुतः ब्यूरिन उपकरण खुरचने हेतु ही निर्मित किये गये थे। खुरचकर कला निर्माण के अनेक अवशेष भारत में अनेक स्थलों से प्राप्त हुए हैं। 
  • मध्यप्रदेश कला अवशेषों में विश्व में सर्वाधिक समृद्ध एवं महत्वपूर्ण है। भीमबैठका के शैलाश्रयों में शैल चित्रण दीवालों एवं छतों पर प्राप्त होते हैं। 
  • मध्यप्रदेश में शैल चित्रकला पर अनेक विद्वानों ने समय-समय पर कार्य किया जिनमें वी. एस. वाकणकर,  वी. एन. मिश्रयशोधर मठपालइरविन न्यूमेयर,  गिरिराज कुमारशंकर तिवारी मुख्य हैं। 
  • इस क्षेत्र की शैल चित्रकलाआभूषण एवं वस्त्रों पर  राजेश गुप्ता ने शोध प्रबन्ध जीवाजी विश्वविद्यालय में प्रस्तुत किया गया हैं। 
  • भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के एस. वी. ओटा द्वारा सभी शैलाश्रयों के चित्रण पर  कार्य किया गया है। इन्हीं कार्यों को देखते हुए एवं इस पुरास्थल की समृद्धता के कारण इस पुरास्थल (भीमबैठका) को विश्व धरोहर पुरास्थल की श्रेणी में रखा गया है। 


पुराकला में सर्वाधिक समृद्ध प्रदेशमध्यप्रदेश में 4 प्रकार के कलावशेष प्रतिवेदित किये गये हैं

 

1. सोन घाटी से प्राप्त पाषाण पर मातृदेवी 

2. शुतुरमुर्ग के अण्ड कवच पर नर्मदा से मनके बनाने की फैक्ट्री 

3. घोड़ामाड़ा उत्खनन के पुरापाषाण कालीन स्तरों से प्राप्त खण्डित कर्णाभूषण 

4. शैल कला चित्रण

 

  • सोन घाटी से भग्नावस्था में उच्च पुरापाषाण पाषाण कालीन स्तरों से प्राप्त विशेष त्रिकोणीय रंगीन मातृदेवी की पाषाणमूर्ति विशेष उल्लेखनीय है। यह मूर्ति चबूतरे पर रखी प्रतिवेदित है। चबूतरे पर उच्च पुरापाषाण कालीन उपकरण अधिक मात्रा में थे। सभी मातृदेवी के खण्डों को एकत्रित करने पर सही स्वरूप उभरकर आया जिसकी माप 15x6.5x6.5 से.मी. प्राप्त हुई। 15 से. मी. ऊँचाई, 6.5 से.मी. एवं 6.5 से.मी. मोटाई एवं चौड़ाई आकार की मातृदेवी की मूर्ति प्रस्थापित हुई ।
  • वर्तमान में उस क्षेत्र के निवासी (कोल जाति) इस प्रकार की मातृपूजा अभी भी करते हैं एवं करई देवीअंगार देवीअंगारी माई के नाम से पूजते हैं। अतः इस प्रकार की मातृदेवी की पूजा कोल जनजाति के लोगों में उच्च पुरापाषाण काल से प्रचलित है। घोड़ामाड़ा (जिला डिण्डोरी) के उत्खनन से उच्च पुरापाषाण कालीन स्तरों से प्राप्त खण्डित कर्णाभूषण विशेष उल्लेखनीय है।

 

  • जैसा कि ऊपर उल्लिखित हैमध्यप्रदेश एवं मध्यप्रदेश में भीमबैठका शैल चित्रकला के संदर्भ में विशेष है। इस क्षेत्र में 762 शैलाश्रय उपलब्ध हुए हैं। भीमबैठका के शैलाश्रयों में चित्रकला के अनेक उदाहरण विद्यमान हैं। यहाँ से प्राप्त चित्र हरे रंग से चित्रित मानव चित्र (Dynamic Human) के स्तरीकरण के आधार पर वी. एस. वाकणकर ने इसे उच्च पुरापाषाण कालीन माना है। 

 

  • खापरखेड़ा (जिला धार) से भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के एस.वी. ओटा को पुरास्थल कालीन स्तरों से शुतुरमुर्ग के अंड कवच पर मनके बनाने की फैक्ट्री प्राप्त हुई है।  यह अवशेष इसलिए महत्वपूर्ण हैं कि इस काल में मनकों से आभूषण बनाने एवं उपयोग करने का प्रचलन प्रारम्भ हो गया था। यह अवशेष इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि कर्णकुण्डल के लिए मनके निर्माण हेतु सामग्री का चुनाव एवं श्रृंगार की ओर प्रागैतिहासिक मानव का रूझान इसके द्वारा प्रमाणित होता है।

 

प्रागैतिहासिक आभूषण 

  • इस काल में आभूषणों का निर्माण एवं प्रयोग प्रारंभ हो गया था। नर्मदा घाटी के पास के क्षेत्र तापी घाटी में पाटने से प्राप्त Shell कौड़ी एवं शुतुरमुर्ग के अण्ड कवच पर छिद्र कर उन्हें आभूषणों के रूप में परिवर्तित किया गया है।
  • मध्यप्रदेश में भी ऐसे आभूषण प्राप्त होने लगे हैं जो आभूषण प्रयोग एवं मानव की कलात्मक रूचि की ओर संकेत देते हैं। 
  • नर्मदा घाटी में घोड़ामाड़ा पुरास्थल के उच्च पुरापाषाण कालीन जमाव से खंडित कर्ण आभूषण प्राप्त हुआ है जो महत्वपूर्ण है।
  • नर्मदा घाटी में खापरखेड़ा के उत्तर पाषाण कालीन स्तरों से शुतुरमुर्ग के अण्ड कवचों पर मनके बनाने का उद्योग प्राप्त हुआ है, जो कि संभवत: भारतवर्ष में पहला इस प्रकार का प्रमाण होगा। इसके अतिरिक्त शैलाश्रयों में अनेक स्थानों पर Cup-marks मिले हैं जो इस काल के मानव द्वारा आवश्यकतानुसार निर्मित किये गये हैं।

 

उच्च पुरापाषाण कालीन संस्कृति  तिथि निर्धारण

 

  • उच्च पुरापाषाण कालीन संस्कृति के प्रमाण स्तरीकरण में मध्य पुरापाषाण काल एवं मध्य पाषाण काल के बीच में एवं मध्य पुरापाषाण के अन्तिम चरण से उच्च पुरापाषाण काल के उपकरणों में तकनीकी विकास को प्रदर्शित करते हैं जिससे इस संस्कृति की मध्य पुरापाषाण काल से परवर्ती तिथि निर्धारित होगी। इस संस्कृति के उद्योग मध्य पुरापाषाण कालीन जमावों के ऊपर स्थित हैं। 
  • अतः स्वभावतः इस जमाव (सैण्डी ग्रैवेल) की तिथि परवर्ती होगी। इस संस्कृति के उपकरण के साथ अनेक पुरास्थलों पर उच्च पुरापाषाण कालीन स्तरों से शुतुरमुर्ग के अंण्ड कवच के टुकड़े प्राप्त हुए जिनके आधार पर इस ल के स्तरों एवं संस्कृति की तिथि 25,000 वर्ष बी.पी. निर्धारित है। 

 

  • चम्बल घाटी में राजस्थानकोटा से प्राप्त तिथियाँ अत्यधिक हैं एवं मध्य पुरापाषाण काल को प्रदर्शित करती हैं। यहाँ से प्राप्त उच्च पुरापाषाण कालीन उपकरण विकसित हैं। अत: इन तिथियों को इस संस्कृति हेतु प्रस्तावित करने हेतु अन्य उच्च तिथियों की आवश्यकता है।

 

  • पूर्व में इस संस्कृति के अवशेष भारतवर्ष में अत्यल्प थे एवं कुछ ही क्षेत्रों मेंजैसे पूर्वी भारत एवं पश्चिमी भारत के कुछ ही स्थलों परजैसे कुरनूल की गुफाएँकाँदीवली-बोरीवली आदि में प्राप्त हुये थे। परन्तु बाद में पूरे भारतवर्ष में उत्खननों एवं सर्वेक्षणों के फलस्वरूप अनेक पुरास्थल ऐसे प्राप्त हुए जहाँ से पाषाण कालीन संस्कृतियों के अनवरत विकास के प्रमाण प्राप्त हुए। 
  • इन पुरास्थलों के उत्खनन से सांस्कृतिक सम्बद्धता के साथ-साथ कई पुरास्थलों पर सांस्कृतिक विकास के अवशेष प्रचुर मात्रा में मिले। मध्यप्रदेश में बाघोर एवं भीमबैठका ऐसे पुरास्थल हैं जहाँ से सांस्कृतिक क्रमबद्धता एवं सांस्कृतिक विकास के सभी अवयव प्राप्त होते हैं। 
  • सोन घाटी के पास बहने वाली नदी बेलन पर भी क्रमबद्ध विकास एवं क्रमबद्धता के प्रमाण पूर्व में ही प्राप्त हो चुके है। अनेक पुरास्थलों के उत्खनन के परिणामस्वरूप भी उसी स्थान पर इस संस्कृति विकास एवं उपकरणों की तकनीकी क्रमबद्धता इस संस्कृति के मध्यप्रदेश में बाहर से आने की ओर संकेत नहीं करती। अत: उत्खननों में प्राप्त प्रमाणों के आधार पर भी इस संस्कृति का पूर्व मध्य पुरापाषाण कालीन संस्कृतियों से प्रस्फुटन एवं चरणबद्ध विकास भारतवर्ष में ही हुआ विदित होता है।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.