गणित शिक्षण की विधियाँ - आगमन विधि निगमन विधि संश्लेषण विधि विश्लेषण विधि अन्वेषण या ह्यूरिस्टिक विधि।Teaching Methods of Mathematics

 
गणित शिक्षण की विधियाँ - आगमन विधि निगमन विधि संश्लेषण विधि  विश्लेषण विधि अन्वेषण या ह्यूरिस्टिक विधि।Teaching Methods of Mathematics

गणित शिक्षण की विधियाँ Teaching Methods of Mathematics

  • आगमन विधि. 
  • निगमन विधि
  • संश्लेषण विधि 
  • विश्लेषण विधि
  • अन्वेषण या ह्यूरिस्टिक विधि
  • प्रयोगशाला विधि 

 

  • गणित शिक्षण में सीखने और सीखने के कार्य को सुगम बनाने के लिए शिक्षण विधियों का प्रयोग अत्यन्त आवश्यक होता है क्योंकि प्रभावी शिक्षण विधियों के ही प्रयोग से बालक गणित के अध्ययन में रुचि लेते हैं तथा उनको यह विषय जटिल तथा नीरस भी नहीं लगता है तथा उनका शिक्षण कार्य त्रुटिरहित रहता है।

 

आगमन विधि Inductive Method

 

  • आगमन विधि अनुप्रेरण पर आधारित है। इस विधि में विशेष तथ्यों या उदाहरणों की सहायता से सामान्य नियमों का निष्कासन छात्रों से करवाया जाता है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि इसमें "विशेष से सामान्य की ओर" सूत्र का पालन किया जाता है। लेण्डल ने इस विधि को स्पष्ट करते हुए लिखा है "जब कभी हम बालकों के समक्ष बहुत से तथ्य उदाहरण या वस्तुएँ प्रस्तुत करते हैं और फिर उनसे अपने स्वयं के निष्कर्ष निकलवाने का प्रयास करते हैंतब हम शिक्षण की आगमन विधि का प्रयोग करते हैं।

 

  • इस विधि में अध्यापक एक गणितीय समस्या को एक विशेष ढंग से हल कर लेता है। दूसरी समस्या भी उसी ढंग से हल हो जाती है। इसी प्रकार तीसरी भी। अब ढंग विशेष को ही नियम या सूत्र का रूप दे दिया जाता है। यही आगमन है। यह आवश्यक नहीं कि प्रश्न का हल करने का ढंग शिक्षक द्वारा ही बनाया जाएछात्र स्वयं भी अभ्यास और त्रुटि द्वारा ऐसा नियम निकाल सकते हैं। यह विधि नितान्त मनौवैज्ञानिक है और छात्र के मस्तिष्क को अच्छा व्यायाम करा देती है। यथा 4:8:6:12. 

 

आगमन विधि के गुण Merits of Inductive Method 

  • गणित शिक्षण की आगमन प्रणाली छात्रों को अभ्यास एवं स्वयं प्रयास करने का अवसर प्रदान करती है एवं उसके मस्तिष्क के विकास में सहायक सिद्ध होती है। 
  • आगमन विधि के द्वारा प्राप्त किया गया गणित का ज्ञान बालक के मस्तिष्क में सदैव के लिए बैठ जाता है। 
  • यह विधि प्रत्यक्ष तथ्यों पर आधारित है। इस कारण पूर्णतया वैज्ञानिक है। 
  • इस प्रणाली से प्रदान किया गया गणित शिक्षण छात्रों में आत्मविश्वास ही भावना उत्पन्न करता है।

 

आगमन विधि के दोष Demerits of Inductive Method

 

  • यह प्रणाली अत्यन्त धीमी है और यदि इस प्रणाली को अपनाकर गणित का शिक्षण प्रदान किया जाए तो कभी पाठ्यक्रम समाप्त नहीं होगा। 
  • यह विधि सभी बालकों के लिए उपयोगी नहीं है। सब बालकों में योग्यता एक-सी नहीं होती कि वे गणित के सामान्य नियम निकाल सकें। कुछ विशिष्ट बालक ही ऐसे होते हैं जो अध्यापक की सहायता से नियम निकलवाने में समर्थ हो पाते हैं।
  •  इस विधि के फलस्वरूप कभी-कभी छात्र गलत निष्कर्ष पर पहुँच जाते हैं और उनके मस्तिष्क पर विषय की गलत छाप अंकित हो जाती है। 
  • गणित शिक्षण में इस विधि का कक्षा में सदैव प्रयोग नहीं किया जा सकता।


निगमन विधि Deductive Method

 

  • यह विधि आगमन विधि के विपरीत है। इस विधि में पहले परिभाषासूत्र एवं निर्देश आदि को बता दिया जाता है और फिर प्रयोग निरीक्षण आदि की सहायता से उसे सत्य सिद्ध किया जाता है। इस विधि में सामान्य से विशेष की ओर" सूत्र का अनुसरण किया जाता है। निगमन विधि में शिक्षक छात्रों को सामान्य नियम का सूत्र स्वयं बता देते हैं और उस सूत्र के द्वारा नियम का प्रयोग विशेष समस्या को हल करने के लिए करते हैं। उदाहरण के लिए छात्रों को यह पहले ही बता दिया जाए कि समानुपात में बाह्य राशियों का गुणनफल मध्य राशियों के गुणनफल के बराबर होता है और इस नियम से सम्बन्धित प्रयोग किए जाएँ तो यह निगमन विधि है. 

 

निगमन विधि के गुण Merits of Deductive Method

  •  यह विधि गणित शिक्षण कार्य को अत्यन्त सरल बना देती है एवं छात्रों से नियम ज्ञात कराने से कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती। 
  • अंकगणित एवं बीजगणित शिक्षण में निगमन विधि विशेष रूप से सहायक सिद्ध होती है। 
  • इस विधि द्वारा छात्र अत्यन्त शीघ्रता एवं सरलतापूर्वक ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। 
  • यह विधि सामान्य नियम या सिद्धान्त या सूत्र की सत्यता जाँच हेतु अत्यन्त लाभदायक सिद्ध होती है। 
  • निगमन तर्क अन्तिम एवं अकाट्य होता है। यह तर्क वास्तव में गणितीय ढंग का होता है एवं इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं किया जा सकता।

 

निगमन विधि के दोष Demerits of Deductive Method

 

  • निगमन विधि के अन्तर्गत छात्र सामान्य नियमों और सूत्रों की खोज स्वयं नहीं करते बल्कि उनको स्मरण रखते हैं। कभी-कभी भूल जाने पर उन्हें पुनः स्मरण करना होता है। अतः यह विधि अमनोवैज्ञानिक है। 
  • यह विधि छात्रों को रटने की आदत डालती है। छात्र सामान्य नियमोंसिद्धान्तों या सूत्रों को बिना समझे हुये ही कण्ठस्थ करने का प्रयास करते हैं जो कि गणित जैसे विषय के लिए अत्यन्त हानिकारक है। 
  • यह विधि छात्रों को जो ज्ञान देती है। वह अस्थायी और अस्पष्ट होता है क्योंकि वह उस ज्ञान को स्वयं के प्रयास से प्राप्त नहीं करते।

 

संश्लेषण विधि Synthesis Method

 

  • संश्लेषण विधिविश्लेषण विधि के विपरीत है। इस विधि में ज्ञात से अज्ञात की तरफ जाते हैं। जब कभी हमको रेखागणित में कोई साध्य सिद्ध करनी होती है तो हम परिकल्पना के आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं। रेखागणित की पुस्तकों में जिस रूप में साध्यों को हल लिखा जाता है वह संश्लेषण का रूप है। इसे विश्लेषण विधि के पदों का संक्षिप्त रूप कहते हैं।

 

  • संश्लेषण में एक तथ्य की सत्यता की जाँच होती है। परन्तु इससे पाठ का सही तथा वास्तविक ढाँचा ज्ञात नहीं होता है। इस प्रकार संश्लेषण विधि साध्य सिद्ध करती है लेकिन उसकी व्याख्या नहीं करती। इसके द्वारा विश्लेषण विधि से प्राप्त तथ्य की जाँच की जा सकती है।

 

संश्लेषण विधि के गुण Merits of Synthesis Method 

  • यह विधि विश्लेषण विधि से सरल है तथा हल या निष्कर्ष निकालने की विधि से अधिक स्थान नहीं घेरती ।
  • विश्लेषण विधि के पश्चात् संश्लेषण विधि का उपयोग आवश्यक है।
  • ज्ञात से अज्ञात की ओर अग्रसर करने का सिद्धान्त मनोवैज्ञानिक है तथा विद्यार्थियों के लिए असुविधाजनक है। अध्यापक के कार्य को इस विधि ने अत्यधिक सरल बना दिया है।

 

संश्लेषण विधि के दोष Demerits of Synthesis Method

 

  • इस विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान विद्यार्थियों के द्वारा स्वयं ढूँढा हुआ नहीं होता इसलिए वह स्थायी नहीं होता। 
  • यह विधि केवल सिद्ध कर सकती हैसमझा नहीं सकती। 
  • किसी साध्य अथवा समस्या का हल इस विधि से ज्ञात नहीं किया जा सकता। 
  • इस विधि से छात्रों की तर्कशक्ति निर्णयशक्ति तथा सोचने की शक्ति का विकास नहीं हो सकता। 
  • यह एक नीरस तथा निर्जीव विधि है। छात्र प्रत्येक बात को समझने के लिए अध्यापक पर निर्भर रहते हैं।

 

विश्लेषण विधि Analytical Method

 

  • विश्लेषण से अभिप्राय है कि किसी समस्या को छोटे-छोटे भागों में विभाजित करके उसका अध्ययन करना और किसी निष्कर्ष पर पहुँचना संश्लेषण से अभिप्राय है विश्लेषित तथ्यों को इकट्ठा करना और अभीष्ट परिणाम प्राप्त करना । रसायन शास्त्र में पानी (H2O) को हाइड्रोजन व ऑक्सीजन में विभाजित करना विश्लेषण है। इसके विपरीत ऑक्सीजन को किसी विशेष ताप या दबाव पर संयुक्त कर पानी बनाना संश्लेषण है। संश्लेषण और विश्लेषण एक-दूसरे के पूरक हैं। 
  • संश्लेषण में हमें कुछ तथ्य ज्ञात होते हैं और उनकी सहायता या उन्हें संयुक्त करके हम एक निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं जो पहले अज्ञात था। इस प्रकार संश्लेषण ज्ञात से क्या अज्ञात की ओर बढ़ता है। मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक यह मानते हैं कि मनुष्य की बौद्धिक क्रिया का अन्तिम सोपान संश्लेषण विश्लेषण के उद्देश्य को पूरा करता है। गणित शिक्षण में विश्लेषण और संश्लेषण दोनों ही उपयोगी है।

 

अन्वेषण या ह्यूरिस्टिक विधि Heuristic Method 

  • वैज्ञानिक विषयों को पढ़ाने के लिए 19वीं शताब्दी में आर्मस्ट्रांग ने इस विधि की खोज की। 
  • Heuristic (ह्यूरिस्टिक) शब्द यूनानी भाषा के शब्द Heurisco (ह्यूरिस्को) से बना है जिसका तात्पर्य है "मैं स्वयं खोज करता हूँ।" इस प्रकार स्पष्ट है कि ह्यूरिस्टिक विधि स्वयं खोज करके या अपने आप सीखने की विधि है। वास्तव में इसे एक अलग से विधि न कहकर शिक्षण की एक प्रवृत्ति कहना अधिक उचित होगा। 
  • इस विधि में अध्यापक विषय वस्तु की व्याख्या विधि की भाँति ही सीधे-सीधे ढंग से बतलाता नहीं है बल्कि प्रश्नों द्वारा छात्रों को स्वयं खोजने हेतु बाध्य करता है। इस विधि में छात्र निष्क्रिय श्रोता मात्र न रहकर स्वयं अन्वेषक या आविष्कारक बन जाते हैं। प्रयोगशाला विधि से भिन्न इस विधि में छात्रों को स्वयं सोचने का अवसर प्रदान किया जाता है। छात्र गणित के विभिन्न प्रश्नों के उत्तर बिना किसी की सहायता के स्वयं प्राप्त करते हैं। 
  • बर्नार्ड ने इस विधि को स्पष्ट करते हुए लिखा है, "जहाँ तक सम्भव होता है वहाँ तक यह प्रणाली छात्र को खोजने वाले की स्थिति में रखती है। उसे अपनी आधार सामग्री स्वयं खोजनी पड़ती है और अपने प्रश्नों को स्वयं पूछना पड़ता है। फिर आगमन की वैज्ञानिक विधि का प्रयोग करके उसे अपने सिद्धान्तों का परीक्षण और अपने निष्कर्षों का निर्माण करना पड़ता है। 
  • गणित शिक्षण में ह्यूरिस्टिक विधि सर्वाधिक उपयोगी सिद्ध हो सकती है परन्तु आवश्यकता इस बात की हो सकती है कि इसके लिए वांछित पर्यावरण उपयुक्त सामग्री योग्य शिक्षक और विशिष्ट विद्यालय संगठन की व्यवस्था की जाए तथा छात्रों को आवश्यतानुसार खोज कार्य में सहायता प्रदान की जाये। छात्रों से विचारोत्तेजक प्रश्न किये जाएँ जिससे कि उनको सोचने का अवसर प्राप्त हो । छात्रों से "हाँ" या ‘“नहीं” वाले प्रश्न न पूछे जाएँ उनसे उत्तरसूचक प्रश्न भी न पूछे जाएँ। यहाँ हम कुछ उदाहरणों द्वारा अशुद्ध और शुद्ध ह्यूरिस्टिक विधियों को संक्षेप में स्पष्ट करेंगे।

 

ह्यूरिस्टिक विधि के गुण Merits of Heuristic Method

 

गणित शिक्षण में ह्यूरिस्टिक विधि विशेष रूप से लाभदायक सिद्ध होती है। यहाँ गणित में इस विधि को अपनाने के गुणों का उल्लेख संक्षेप में किया जा रहा है-

 

  • गणित शिक्षण हेतु यह विधि इस कारण उपयोगी है कि यह छात्रों में मनोवैज्ञानिक भावना और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का निर्माण करती है। 
  • यह विधि तर्कनिर्णयकल्पनाचिन्तन आदि का उपयुक्त अवसर प्रदान करके बालक के मानसिक विकास की प्रक्रिया को तीव्र बनाती है। 
  • यह विधि छात्र को ज्ञान की खोज करने की स्थिति में रखती है। 
  • गणित शिक्षण में यह विधि इसलिए भी उपयोगी है कि यह छात्र को पहले से निश्चित रूप से तथ्यों को न बताकर उसे उनकी ओर अग्रसर करती है। 
  • यह विधि छात्रों को स्वयं गणित कार्य करने हेतु प्रेरित करती है और उसमें स्वतन्त्र अध्ययन और स्वाध्याय की आदत का निर्माण करती है।

 

ह्यूरिस्टिक विधि के दोष Demerits of Heuristic Method

 

गणित में ह्यूरिस्टिक विधि के अनेक लाभ हैंपरन्तु उसके कुछ कपितय दोष भी हैं जिनका उल्लेख कर देना आवश्यक है -

 

  • यह विधि केवल असाधारण बुद्धि वाले छात्रों के गणित शिक्षण के लिए उपयोगी हैक्योंकि वे ही गणित के क्षेत्र में अन्वेषण करने में समर्थ होते हैंसाधारण बुद्धि वाले छात्र स्वयं अन्वेषण नहीं कर पाते। 
  • गणित शिक्षण की यह विधि छात्रों को गलत नियमनिष्कर्ष अथवा सिद्धान्तों पर पहुँचा सकती हैक्योंकि उनका मस्तिष्क इतना परिपक्व और विकसित नहीं होता कि वे अपनी गलती को समझ सकें। 
  • निम्न कक्षाओं में गणित शिक्षण में इस विधि का उपयोग नहीं किया जा सकताक्योंकि निम्न कक्षाओं के छात्र स्वयं अन्वेषण करने में समर्थ नहीं होते। 
  • इस विधि का एक दोष यह भी है कि इसमें आगमन और वस्तुपरक शिक्षण के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार के शिक्षण का प्रयोग नहीं किया जा सकता। परिणाम यह होता है कि इसमें शिक्षण के समस्त पहलुओं का समावेश नहीं होता है।

 

प्रयोगशाला विधि Laboratory Method

  • विज्ञान की सभी शाखाओं के अध्ययन में प्रयोगशाला विधि अत्यन्त लाभदायक सिद्ध हुई है। गणित एक ऐसा विषय है जो केवल पढ़कर ही नहीं सीखा जा सकता। गणित के अध्यापन को सुधारने एवं अर्थपूर्ण बनाने के लिए विद्वानों ने प्रयोगशाला विधि को ही लाभप्रद माना है। गणित एक ऐसा विषय है जो केवल पढ़कर ही नहीं सीखा जाता बल्कि करने से सीखा जाता है। क्रियात्मक रूप में यह गणित का ज्ञान देने के लिए यह विधि बहुत महत्त्वपूर्ण है। यह विधि शिक्षा की प्रसिद्ध उक्ति 'स्थूल से सूक्ष्म की ओरपर आधारित है।

 

  • इस विधि में छात्र स्वयं गणित की प्रयोगशाला में उपलब्ध यन्त्रोंउपकरणों तथा अन्य सामग्री की सहायता से गणित के तथ्योंनियमोंसिद्धान्तोंसम्बन्धों आदि की सत्यता की जाँच करते हैं और उनका उपयोग व्यावहारिक समस्याओं के हल ज्ञात करने में करते हैं। यह विधि विद्यार्थियों को स्वयं अपने हाथों से काम करने की प्रेरणा देती है तथा उनमें गणित के प्रति रुचि जाग्रत करती है। 
  • इस विधि में 'ज्ञात से अज्ञाततथा 'करो और सीखोका सिद्धान्त काम में लाया जाता है।

 

प्रयोगशाला विधि के गुण Merits of Laboratory Method

 

  • प्रयोगशाला में सीखा हुआ ज्ञान स्थायी होता है तथा प्रायोगिक उपयोग की सम्भावनाएँ भी अधिक होती हैं। 
  • इस विधि से जो ज्ञान प्राप्त होता है वह सक्रिय रहता है तथा स्थूल तथ्यों पर आधारित होता है। 
  • इस विधि द्वारा छात्रों की प्रयोग करने की भावना को प्रोत्साहन मिलता है। 
  • इससे गणित के सिद्धान्तोंसंकल्पनाओंसम्बन्धोंविधियों आदि का स्पष्ट ज्ञान प्राप्त करना सम्भव है। 
  • विद्यार्थियों में निरीक्षण एवं तर्क करने की क्षमता का विकास होता है। 
  • छात्र प्रयोगशाला के उपकरणों आदि का कुशलता से उपयोग करना सीखते हैं जो उनको विज्ञानइन्जीनियरिंग आदि क्षेत्रों में लाभप्रद सिद्ध होता है।

 

प्रयोगशाला विधि के दोष Demerits of Laboratory Method

 

  • इस विधि का मुख्य दोष यह है कि गणित के सभी प्रकरण इस विधि द्वारा नहीं पढ़ाए जा सकते। 
  • यह विधि अधिक खर्चीली है। गणित की एक अच्छी प्रयोगशाला संगठित करने के लिए पर्याप्त धन की तथा परिश्रम की आवश्यकता होती है। साधारण विद्यालय इसके लिए धन खर्च करने की क्षमता नहीं रखता। 
  • यह विधि सभी विद्यार्थियों के लिए समान रूप से उपयोगी नहीं हैक्योंकि प्रत्येक विद्यार्थी की कार्यक्षमता समान नहीं होती। 
  • यह एक बहुत ही धीमी विधि है तथा निर्धारित पाठ्यक्रम को इसकी सहायता से समय पर पूरा नहीं किया जा सकता। 
  • प्रत्येक अध्यापक इस विधि का ठीक रूप से प्रयोग नहीं कर सकता।

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