सामुदायिक जीवन में गणित का स्थान।नैतिक मूल्य सांस्कृतिक मूल्य मनोवैज्ञानिक मूल्य और गणित Place of Mathematics in Community

 नैतिक मूल्य  सांस्कृतिक मूल्य मनोवैज्ञानिक मूल्य और गणित समाज और गणित

सामुदायिक जीवन में गणित का स्थान।नैतिक मूल्य  सांस्कृतिक मूल्य मनोवैज्ञानिक मूल्य और गणित Place of Mathematics in Community



सामुदायिक जीवन में गणित का स्थान Place of Mathematics in Community

 

  • मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा मानव जीवन एक-दूसरे के परस्पर सहयोग पर निर्भर करता है। सामाजिक जीवन यापन करने के लिए गणित के ज्ञान की अत्यधिक आवश्यकता होती है क्योंकि समाज में भी लेन-देन, व्यापार, उद्योग आदि व्यवसाय गणित पर ही निर्भर हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना तथा समाज के विभिन्न अंगों को निकट लाने में सहायक विभिन्न आविष्कारों, सामाजिक कठिनाइयों, आवश्यकताओं आदि में सहायता देने में गणित का बहुत बड़ा योगदान है, क्योंकि सभी वैज्ञानिक खोजों का आधार गणित विषय ही है। 
  • आदर्श शिक्षा वही है जोकि बालक को प्रारम्भ से ही समाज के लिए योग्य नागरिक बनाने में सहायता प्रदान करती है। 
  • नेपोलियन ने गणित के सामाजिक महत्त्व को स्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि - "गणित की उन्नति तथा वृद्धि देश की सम्पन्नता से सम्बन्धित है।"

 

  • इस प्रकार समाज की उन्नति को उचित ढंग से समझने के लिए ही नहीं, बल्कि समाज को आगे बढ़ाने में भी गणित की मुख्य भूमिका रही है। वर्तमान में हमारी सामाजिक संरचना इतनी वैज्ञानिक एवं सुव्यवस्थित नजर आती है, जिसका श्रेय भी गणित को ही जाता है। गणित के अभाव में सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था एवं संरचना का स्वरूप ही बिगड़ जाएगा। 
  • इस प्रकार हम सकते हैं कि मानव का सामाजिक जीवन गणित पर निर्भर करता है। गणित के जिस रूप का प्रयोग हम समाज में करते हैं वह स्वरूप सामुदायिक गणित के रूप में उभर कर सामने आता है। सामुदायिक जीवन के साथ गणित का सम्बन्ध निम्न रूप से स्पष्ट किया जा सकता है. 

 

नैतिक मूल्य और गणित Moral Value and Mathematics

 

  • नैतिकता एक ऐसा महत्त्वपूर्ण प्रत्यय है जो समय, व्यक्ति, परिस्थिति तथा स्थान से सबसे अधिक प्रभावित है। 
  • गणित का ज्ञान बच्चों के चारित्रिक एवं नैतिक विकास में सहायक है। एक अच्छे चरित्रवान व्यक्ति में जितने गुण होने चाहिए, उनमें से अधिकांश गुण गणित विषय के अध्ययन से विकसित होते हैं। 
  • गणित पढ़ने से बच्चों में स्वच्छता, यथार्थता, समय की पाबन्दी, सच्चाई, ईमानदारी, न्यायप्रियता, कर्तव्यनिष्ठा, आत्म-नियन्त्रण, आत्म-निर्भरता, आत्म-सम्मान, आत्म-विश्वास, धैर्य, नियमों पर अडिग रहने की शक्ति, दूसरों की बात को सुनना एवं सम्मान देना, अच्छा-बुरा सोचने की शक्ति आदि गुणों का विकास स्वयं ही हो जाता है। इस प्रकार गणित के अध्ययन से चरित्र निर्माण तथा नैतिक उत्थान में भी सहायता मिलती है। गणित का प्रशिक्षण लेने वाले का स्वभाव स्वयं ही ऐसा हो जाता है कि उसके मन से ईर्ष्या, घृणा इत्यादि स्वतः ही निकल जाते हैं।

 गणित के नैतिक मूल्य के महत्त्व 

  • गणित के नैतिक मूल्य के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए महान् दार्शनिक डटन ने कहा कि गणित तर्क सम्मत विचार, यथार्थ कथन तथा सत्य बोलने की सामर्थ्य प्रदान करता है। व्यर्थ गप्पें, आडम्बर, धोखा तथा छल-कपट सब कुछ उस मन का कहना है, जिसको गणित का प्रशिक्षण नहीं दिया गया है।इस प्रकार गणित ही एकमात्र ऐसा विषय है जो वास्तविक रूप में बच्चों को अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण रखने का अभ्यास कराता है तथा उच्च प्रशिक्षण प्रदान करता है ।

 

सांस्कृतिक मूल्य और गणित Cultural Value and Mathematics

 

  • किसी राष्ट्र या समाज की संस्कृति की अपनी कुछ अलग ही विशेषताएँ होती हैं। प्रत्येक समाज या राष्ट्र की संस्कृति का अनुमान उस राष्ट्र या समाज के निवासियों के रीति-रिवाज, खान-पान, रहन-सहन, कलात्मक उन्नति, आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक आदि पहलुओं के द्वारा हो जाता है। गणित का इतिहास विभिन्न राष्ट्रों की संस्कृति का चित्र प्रस्तुत करता है। प्रसिद्ध गणितज्ञ हॉगवेन ने लिखा है कि "गणित सभ्यता और संस्कृति का दर्पण है। 

  • गणित हमें केवल संस्कृति एवं सभ्यता से ही परिचित नहीं कराता है, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित, उन्नत एवं उसे भविष्य में आने वाली पीढ़ी तक हस्तान्तरित करने में भी सहायता प्रदान करता है। 

  • गणित विषय को संस्कृति एवं सभ्यता का सृजनकर्ता एवं पोषक माना जाता है। रस, छन्द, अलंकार, संगीत के सभी साज-सामान, चित्रकला और मूर्तिकला आदि सभी अप्रत्यक्ष रूप से गणित के ज्ञान पर ही निर्भर होते हैं। संस्कृति किसी भी राष्ट्र के जीवन-दर्शन का प्रतिबिम्ब होती है। जीवन के प्रति दृष्टिकोण जीवन पद्धति को प्रभावित करता है, जिसके परिणामस्वरूप हमारा जीवन दर्शन प्रभावित होता है। इस प्रकार नये-नये आविष्कारों से हमारे जीने का ढंग, सभ्यता एवं संस्कृति में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है।

 

जीविकोपार्जन सम्बन्धी मूल्य और गणित Related Value of Livelihood and Mathematics


  • शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य बालकों को अपनी जीविका कमाने तथा रोजगार प्राप्त करने में समर्थ बना देना भी है। अन्य विषयों की अपेक्षा गणित इस उद्देश्य की प्राप्ति में सर्वाधिक सहायक सिद्ध हुआ है। आज वैज्ञानिक तथा तकनीकी समय में विज्ञान के सूक्ष्मतम नियमों, सिद्धान्तों एवं उपकरणों का प्रयोग एवं प्रसार सर्वव्यापी हो गया है जिनकी आधारशिला गणित ही है। 
  • वर्तमान समय से इंजीनियरिंग तथा तकनीकी व्यवसायों को अधिक महत्त्वपूर्ण तथा प्रतिष्ठित माना जाता है। इन सभी व्यवसायों का ज्ञान एवं प्रशिक्षण गणित के द्वारा ही सम्भव है। लघु उद्योग एवं कुटीर उद्योगों की स्थापना का आधार भी गणित ही है। अतः यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जीविका कमाने के लिए गणित के ज्ञान की आवश्यकता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अवश्य ही होती है, तभी वह अपना जीवन यापन कर सकता है तथा अपने जीवन को सरस बना सकता है।

 

मनोवैज्ञानिक मूल्य और गणित Psycological Value and Mathematics

 

  • गणित की शिक्षा मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी उपयोगी है। गणित के अध्ययन से बालकों की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। गणित में क्रियाओं तथा अभ्यास कार्य पर अधिक बल दिया जाता है जिसके कारण गणित का ज्ञान अधिक स्थायी हो जाता है। 


  • गणित का शिक्षण मनोविज्ञान के विभिन्न नियमों एवं सिद्धान्तों का अनुसरण करता है। उदाहरण के लिए गणित में छात्र करके सीखना, अनुभवों द्वारा सीखना तथा समस्या समाधान आदि महत्त्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर ज्ञान प्राप्त करता है। गणित शिक्षण द्वारा बालकों की जिज्ञासा, रचनात्मक प्रवृत्तियाँ, आत्म-तुष्टि तथा आत्म-प्रकाशन आदि मानसिक भावनाओं की तृप्ति तथा सन्तुष्टि होती है।

 

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सम्बन्धित मूल्य और गणित Related Value to Scientific View and Mathematics

 

  • गणित का अध्ययन करने से बच्चों को समस्याओं का सामना करने के लिए एक विशेष प्रकार की विधि का प्रशिक्षण मिलता है जिससे छात्र नियमित अपना कार्य करते हैं, जिसे हम वैज्ञानिक ढंग कहते हैं . 


सामान्यतः गणित की समस्या को वैज्ञानिक ढंग से हल करने के लिए निम्न पदों का प्रयोग किया जाता है-

 

  • समस्या क्या है? 
  • 'क्या ज्ञात करना है तथा उसके क्या उद्देश्य हैं? 
  • समस्या पर चिन्तन करना । 
  • प्राप्त परिणामों की अन्य परिस्थितियों में जाँच करना।
  •  जो परिणाम सही सिद्ध हों, उन्हें नियम मान लेना।

 

समाज और गणित Society and Mathematics

 

  • समाज के प्रत्येक व्यक्ति को गणित के ज्ञान की आवश्यकता होती है। चाहे वह व्यक्ति सामाजिक दृष्टि से उपेक्षित हो अथवा महत्त्वपूर्ण । ऐसा नहीं है की गणित के ज्ञान की आवश्यकता केवल इंजीनियर, उद्योगपति, बैंककर्मी, डॉक्टर, गणित अध्यापक अथवा अन्य वित्तीय संस्थानों तथा व्यवसायों से सम्बन्धित व्यक्तियों को ही होती है; बल्कि समाज के छोटे से छोटे व्यक्ति जैसे - मजदूर, रिक्शा चालक, बोझा ढोने वाला कुली, फुटपाथ पर बेचने वाला दुकानदार, सब्जी बेचने वाला, बढ़ई, मोची आदि अन्य सभी व्यक्तियों को अपनी रोजी-रोटी कमाने तथा अपने परिवार की देखभाल करने के लिए भी गणित की आवश्यकता पड़ती है।


  • इस प्रकार सारांश रूप में यह कहा जा सकता है कि हमारे समाज में प्रत्येक व्यक्ति जो अपनी जीविका कमाता है तथा आय-व्यय करता है उसे किसी न किसी रूप में गणित के ज्ञान की आवश्यकता होती है। इस सम्बन्ध में यंग महोदय का कथन सत्य ही प्रतीत होता है कि लौह, वाष्प और विद्युत के इस युग में जिस ओर भी मुड़कर देखें, गणित ही सर्वोपरि है। यदि रीढ़ की हड्डी' निकाल दी जाए तो हमारी भौतिक सभ्यता का ही अन्त हो जाएगा।"

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