मध्यप्रदेश की स्मारक और कलाकृतियाँ । MP Ke Smarak aur kalakratiyan

मध्यप्रदेश की स्मारक और कलाकृतियाँ 

 MP Ke Smarak aur kalakratiyan 

मध्यप्रदेश की स्मारक और कलाकृतियाँ । MP Ke Smarak aur kalakratiyan



मध्यप्रदेश की स्मारक और कलाकृतियाँ

 

  • धार्मिक और लौकिक स्मारक और मूर्तियों के अपने समृद्ध कलाकृतियों के लिये म.प्र. प्रसिद्ध है। ये स्मारक और मूर्तियाँ म.प्र. के इतिहास के विभिन्न चरणों में बनाई गई थीं। इस विषय पर विस्तृत साहित्य उपलब्ध है। यह म.प्र. के विभिन्न पुरातात्त्विक स्थलों के उत्खननों, खोजों और इन क्षेत्रों में किये गये क्षेत्रीय कार्यों पर आधारित हैं।


निम्नलिखित विवरण से म.प्र. में कला और वास्तुकला के अवशेषों की एक झलक मिलती है-


मध्यप्रदेश में बौद्ध धर्म से संबंधित वास्तुकला

  • बौद्ध धर्म से संबंधित वास्तुकला के अवशेष मुख्यतः स्तूप हैं। ईसा पूर्व युग के प्रमुख स्तूप साँची और भरहुत में हैं। साँची के स्तूप मूल स्थान पर अवस्थित हैं जबकि भरहुत के स्तूप के सिर्फ अवशेष मिले हैं। देउरकुठार (रीवा) स्थित एक स्तूप के अवशेष कुछ वर्ष पूर्व प्रकाश में आये हैं। 
  • अन्य स्थल हैं: अन्धेर, उज्जैन, उदयगिरी, कसरावद, खेजड़ियाभोप, ग्यारसपुर, बिगान, बेसनगर, भोजपुर, पतौरा, नावदाटोली, राजापुर, विदिशा, सतधारा और सोनारी। बौद्ध मठों के अवशेष साँची, बिगान और खेजड़ियाभोप से मिले हैं। पत्थरों को काटकर बनाए गए बौद्ध धर्म से सम्बंधित मठों जैसी व्यवस्था खेजड़ियाभोप, धमनार, पोलाड़ोंगर और बाघ से मिली हैं।

 

बौद्ध दैवीय - 

  • परिवार की मूर्तियाँ म. प्र. में बड़ी संख्या में प्राप्त हुई हैं जो पत्थर और धातु दोनों की हैं। 
  • पत्थर की मूतियाँ - अकाहा, इन्द्रगढ़, उज्जैन, खिरकी, ग्यारसपुर, ग्वारीघाट, गोपालपुर, तिलवाराघाट, तेवर, बगरोल, बाघ, बेसनगर, भरहुत, भेडाघाट, मांडा, रीवा, सांची, सोहागपुर और हीरापुर से मिली हैं। बौद्ध देवताओं की दुर्लभ कांस्य प्रतिमाएँ फोपनार कलां से मिली हैं।

मध्यप्रदेश के इतिहास के में जैन धर्म 

  • म.प्र के इतिहास के सभी चरणों में जैन तीर्थकरों और शासनदेवियों के मंदिर और प्रतिमाएँ निर्मित की गई थीं। जैन धर्म की वास्तुकला और मूर्तियों के अवशेष म.प्र. में 150 से भी ज्यादा स्थानों में मिले हैं।

जैन धर्म की वास्तुकला और मूर्तियों के अवशेष स्थल - 

  • नागर शैली तथा उसकी उपशैलियों में विभिन्न कालों में निर्मित जैन मंदिर इन्दौर, उन्हेल, उरवाहा, ऊन, करेरा, कलां, कुकड़ेश्वर, केथुली, कोटा-उधमड़े, कोठड़ी, कोतवाल, कोनी, कोलादित, कोहला, खजुराहो, खंडवा, गंधावल, ग्वालियर, ग्यारसपुर, गुजर्रा, गुरिल का पहाड़, गुड़र, गंगली, घुसई, चितारा, चैत, जबलपुर, तेवर, थोबन, डूंगरपुर, दूबकुण्ड, धोनाकोना,धनपुर, नरवरगढ़, निमथूर, नोहटा, पतौरा, पनागर, पचरई, पढ़ावली, पाली, पीपल - रावां, पैठा,बघेर, बडोह, बनाड्या, बरई, बलारपुर, बारो या बरनगर, बूढीचंदेरी, बूढीराई, बेरड, बैजनाथ, बंडा, भीमपुर, भुरौदा, भोजपुर, मगरोनी, मछलपुर, मदनपुर, मल्हारगढ़, माकशी, मान्धता, मामोन, मेहसाना, मोहनपुर, रदेब, लखनादौन, विदिशा, सिद्धावरकूट, संदोर, संधारा, सहाजई, सिरोहा, सुहानिया, सेसई, सोहागपुर और सिंघना में हैं। वास्तुकला के विविध अवशेष कटनी, खजुराहो, घुसई, तेवर, बरहटा और सुहनिया से मिले हैं।

 

  • अभिलेखयुक्त और अभिलेखविहीन दोनों ही प्रकार की विभिन्न तीर्थकरों की प्रतिमाएँ अजयगढ़, अमरोल, अहाड़, आशापुरी, उचहेरा, ऊन, कारीतलाई, कुलान, खजुराहो, खुतियानी बेहड़, ग्वालियर, ग्यारसपुर, गुरिल का पहाड़, गुड़ार, घन्सौर, चैत, चैनपुर, चोली, जखोदा, जबलपुर, जसो, जूरा, टिकटोली दुमदार, टिमरनी, टीकमगढ़, टोला, तिगवां, तुमैन, तेरही, तेवर, देवरी, ढोनाकोना, धनपुर, धनाचा, नरवर, पनागर, पनिहार, पपौरा, पेन्ड्रा, बजरंगगढ़, बड़गांव, बरहटा, बहुरीबंद, बालाघाट, बावनगजा, बैजावर, बिठाला, बिलहरी, बुढ़ीखार, बोरतलाव, भीलसा, भोजपुर, मझोली, मैहर, रखेतरा, रामबन, लखनादौन, विदिशा, शहडोल, सारंगपुर, सिद्धावरकूट, स्लीमनाबाद, सुनहरा, सुहानिया, सोहागपुर, और सिंहपुर से मिली हैं। 
  • जैन देवताओं की मूर्तियाँ खजुराहो, तेवर और बरहटा से मिली हैं। उदयगिरी में शैलोत्कीर्ण जैन संप्रदाय की गुफाएँ हैं। 

मध्यप्रदेश में वैष्णव मत की वास्तुकला और मूर्तियों 

  • वैष्णव मत की वास्तुकला और मूर्तियों के अवशेष की दृष्टि से म.प्र. काफी सम्पन्न है। ये मंदिरों, शैलोत्कीर्ण गुफाओं, मठों और प्रतिमाओं के रूप में हैं और इनके निमार्ण और कलात्मकता में क्षेत्रीय भिन्नता परिलक्षित होती है।

 

मध्य प्रदेश में वैष्णव मंदिरों के अवशेष 

  • अचेरा, अफजलपुर, अमझेरा, अमरंकटक, आगर, आशापुरी, इन्दौर, उज्जैन, उमरिया, एरण, कचरौद, कंजरदा, कागपुर, कांबली, कारीतलाई, कालाम, कुकडेश्वर, केथुलि, कोनी, कोहला, खजुराहो, खड़ावदा, ग्यारसपुर, ग्वालियर किला, गुडार, घुसई, टोंगड़ा, तिगवां थोबन, देवकानी, धारहर, धुडेरी, नरसिंहा, निमथूर, पठारी, पढ़ावली, पनिहार, परैनी, पलनागर, पवाया, पानविहार, पीपलरावां, पिपरोल, बडोह, बड़ाकलां, बढ़ेर, बामोरा, बरमानघाट, बलारपुर, बांधोगढ़, बारो, बिलहरी, बिलौनी, मदनखेड़ी, महीदपुर, मकुंदपुर, मांधाता, मितावली, मोहनपुर, मोहेन्द्रा, सतनवाड़ा, संधारा, सोनारी और सोहागपुर से मिले हैं। शैलोत्कीर्ण वास्तुकला और वैष्णव मत की मूतियाँ उदयगिरी, परगढ़, पिपलोदा और सिन्दूरसी में मिली हैं।

 

  • विष्णु और उसके अवतारों की मूर्तियाँ और वैष्णव सम्प्रदाय की अन्य मूर्तियाँ अमरकंटक, आशापुरी, ईश्वरपुर, इन्दौर, एरण, कटनी, करनपुरा, कारीतलाई, केथुली, खजुराहो, खमरिया बाकल, खोह, ग्वालियर किला, गूदर, गुरह, गोपालपुर, जीरण, टिमरनी, टोंगरा, डोंगर, तिगवां, तेवर, दुधिया, देवरी, देवला, धरमपुरी, नचना, नड़ेरी, पठारी, पढ़ावली, पनागर, पलनागर, पनिहार, पिपरिया, बबई बमोरा, बरहटा, बांधोगढ़, बिलहरी, बेसनगर, भिलसा, भेड़ाघाट, मझोली, मदनपुर, मड़ई, रीठी, रीवा, रेहली, विदिशा, शम्शाबाद, श्योपुर, सकरी, सिंघपुर, सिंदूरसी, सिलचट, सुवासरा, सोहागपुर और होशंगाबाद से खोजी गई हैं।

 

  • ऐतिहासिक महत्व का एक पाषाण स्तम्भ जिस पर हेलियोडोर का अभिलेख उत्कीर्ण है बेसनगर से मिला है।

 

मध्यप्रदेश में शैव धर्म के मंदिरों के अवशेष

  • शैव धर्म के मंदिरों के बहुत से अवशेष, गुफाएँ और मठ, मध्यप्रदेश के 225 से भी अधिक स्थलों में मिले हैं। मंदिरों के अवशेष अंघोरा, अचाना, अफजलपुर, अमझेरा, अमरकंटक, अमरोल, आसुखेड़ी, इंदौर, उज्जैन, उदयपुर, ऊन, एकलबारा, कंजरदा, कर्णावद, कदवाहा, कनोदाबड़ी, करारी - अहमदपुर, करेना, काकरशीशा, कागपुर, कारोहन, कालामध, कुकडेश्वर, कुलवर, कूड़ां, केलधार, खजुराहो, खजुहा, खेड़ा, खेराट, गुर्गी, गुड़ार, घुसई, चंद्रेह, चंचोल, चुर्ली, चिकालदा, चिरमोलिया, चोरपुरा, चोली, चौरा, छितारा, छोटी देवरी, जखोदा, जामली, झरोदा, टिमरणी, ठकुराई, डंगरवा, तेरही, दिगथान, देवकानी, देवडुंगरी, देवतालाब, देपालपुर, देहरी, दुंदापुरा, दुल्हागांव, धन्धोली, धन्वंतरी, धमरपुरी, धुड़ेंरी,. नचना-कुठरा, नरेसर, नवली, नांदचांद, निमथूर, नेमावर, नोहटा, पठारी, पढावली, परखेरा, पहाड़ोखुर्द, पिठोरिया, पिपरिया, पीपरगढ़, पीपलरावां, पोहरी, फतेहपुर, बगरोद, बजरंगढ़, बिलहरी, बिलाव, बीना, बुढीराई, बैजनाथ, भक्तर, भरावली, भीतरवार, भूमरा, भेड़ाघाट, भैंसोदा, भोजपुर, भोपाली, मढ़ा-गुरुहारू, मंदसौर, मड़िया, महीदपुर, महुआ, महुवन, महू, माकनगंज, मांधाता, मामोन, मितावली, मियाना, पोड़ी, रपेठ, राई, रिधोरा, रीठी, रीवा, लखारी, लबन, लांजी, शंखुधर, शनिचरा, सकर्रा, सतनवारा, संधोर, सामली, सुल्तानपुर, सुहानिया, सेमरखेड़ी, सेमुलढा, स्योंधा,बघेर, बडोह, बनाड्या, बरई, बलारपुर, बारो या बरनगर, बूढीचंदेरी, बूढीराई, बेरड, बैजनाथ, बंडा, भीमपुर, भुरौदा, भोजपुर, मगरोनी, मछलपुर, मदनपुर, मल्हारगढ़, माकशी, मान्धता, मामोन, मेहसाना, मोहनपुर, रदेब, लखनादौन, विदिशा, सिद्धावरकूट, संदोर, संधारा, सहाजई, सिरोहा, सुहानिया, सेसई, सोहागपुर और सिंघना में हैं। वास्तुकला के विविध अवशेष कटनी, खजुराहो, घुसई, तेवर, बरहटा और सुहनिया से मिले हैं। सेसई, सोनकच्छ, सोहागपुर और हरनखेड़ी में हैं।

 

शैव धर्म से सम्बंधित शैलोत्कीर्ण गुफाएँ 


  • उदयगिरी, खतामा, बिलौवा, मांडा, मांडू और माड़ा से मिली हैं। शैव धर्म के मठ-कुंडलपुर, बिसेसरा, रणोद, सुरवाया और चन्द्रेह में स्थित पाई गई हैं। पत्थरों को काट कर बनाई गई प्रतिमाएँ पिपलोदा और शंकरगढ़ में देखी जा सकती हैं। शैव धर्म के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी हुई मूर्तियाँ अंतरा, अमरकंटक, अमरपाटन, कारीतलाई, कुंडेश्वर, कुलवर, कुलान, खजुराहो, खजुहा, खंडवा, खमरिया बाकल, खिलचीपुरा, खोह, ग्वालियर किला, गुर्गी, गूडार, गुरह, चंचोड़ा, जसो, जीरण, तेरही, तेवर, देवगवां, देवदह, देवरगाँव, भेड़ाघाट, मऊ, मझौली, मड़ई, मसांव, माकला, मांधाता, रखेतरा, रीवा, रूपनाथ, शम्साबाद, सकरवारा, सकर्रा, सतना, सनपुही, सिंघपुर, सीनावल, सुंदरसी, सुवासरा, सुहानिया, सेवई, सोहागपुर और होशंगाबाद में मौजूद हैं।

 

  • इसी तरह शाक्त स्मारक और मूर्तियों के अवशेष भी म.प्र. के 85 से अधिक स्थलों में पाये गये हैं। मंदिरों के अवशेष: अमझेरा, अमरोल, आंतरी, करेड़ी, कागपुर, कारीतराई, कोलारस, कुंडलपुर, खजुराहो, ग्वालियर किला, गिरवानी, गंधावल, चंदेरी, तिगवां, तुमैन, तेरही, दुदाखेड़ी, नचना कुठरा, नरेसर, नवली, पचावली, बगरोद, बड़वानी, देलची, बडोह, बालकवाड़ा, बिचरोद, भीलसा, भेड़ाघाट, माकगंज, मैहर, सगौर, सिरोहा और सुहानिया से पाए गये हैं।

 

  • विभिन्न शक्तियों की मूर्तियाँ और उनके अवशेष अजयगढ़, अंतरा, अफजलपुर, इन्द्रगढ़, एरण, करीमगंज, कोलारस, खजुराहो, खजुहा, गड़िया, गिरवानी, गुर्गी, तेवर, गन्धावल, छुरी, तिगवां, देवबलोदा, धार, नगरिया, ठठारी, पाली बछरा, पंचगवां, पंचमठा, बड़गांव, बहोरीबंद, बाघ, बुढीखार, बैजनाथ, मांधाता, मोरबान, रीवा, लोहारी, लवन, विदिशा, सकर्रा, सकरी, सतना, सिंघपुर, सिलचट, सेवई और त्रिपुरी से मिले हैं।

 

  • सूर्य की पूजा से संबंधित वास्तुकला और मूर्तियों के अवशेष 20 से भी ज्यादा स्थलों से प्राप्त हुये हैं। सूर्य मंदिरों के अवशेष-खजुराहो, टोंगरा, भरौली, मन्खेरा और सेसई में मौजूद हैं। सूर्य की मूर्तियाँ अजयगढ़ किला, उमरी, कारीतलाई, कोटगढ़, पनागर, बरहटा, भेड़ाघाट, मनोरा, सकर्रा, समतपुर, सेवई, खजुराहो और सोहागपुर से मिली हैं।

 

  • 500 से भी अधिक स्थलों से कला और वास्तुकला के विविध खंड प्राप्त हुये हैं जिनमें मंदिरों के अवशेष, स्तंभ, तोरण, सती - स्मारक, सीढ़ियों वाले कुएँ, पुरूषों, नारियों और पशुओं की पौराणिक आकृतियाँ, दुर्ग अवशेष, शैलोत्खाद गुफाएँ शामिल हैं। इनके अतिरिक्त केन्द्र शासन, राज्य शासन के संग्रहालयों, शोध-केन्द्रों, विश्वविद्यालयों, निजी तथा व्यक्तिगत संग्रहों में मध्यप्रदेश के प्राचीन इतिहास के विभिन्न चरणों और संस्कृति के कला तथा वास्तुकला के उत्कृष्ट अवशेषों का समृद्ध खजाना संरक्षित है। 
  • वास्तु और मूर्तिकला के उपरोक्त खजाने को कालक्रमानुसार और शैलीगत अध्ययन कर अनेक ग्रंथ प्रकाशित किये गये हैं। 


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