रिपोर्ताज का अर्थ परिभाषा एवं व्याख्या। हिन्दी का प्रथम रिपोर्ताज। Hindi Ka pratham Reportaj

 रिपोर्ताज का अर्थ परिभाषा एवं व्याख्या, हिन्दी का  प्रथम रिपोर्ताज

रिपोर्ताज का अर्थ परिभाषा एवं व्याख्या। हिन्दी का  प्रथम रिपोर्ताज। Hindi Ka pratham Reportaj


 

रिपोर्ताज का जन्म 

  • रिपोर्ताज शब्द का रिपोर्ट अंग्रेजी से कोई संबंध प्रतीत नहीं होता है क्योंकि रिपोर्ट का अर्थ किसी घटना आदि का वह विवरण है जो किसी अधिकारी को उनकी जानकारी के लिए दिया जाता है जिसे प्रतिवेदन कहते हैं। किसी संस्था आदि के कार्यों का विस्तृत विवरण कार्य विवरण किसी वस्तु या व्यक्ति के संबंध में जानने योग्य बातों का ब्यौरा रिपोर्ट का बहुवचन रिपोर्ट्स बनेगा रिपोर्ताज नहीं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि रिपोर्ताज रिपोर्ट का हिंदी करण नहीं है। रिपोर्ट की संज्ञा रिपोर्टर होता जो प्रतिवेदन नहीं संवाददाता कहलाता है जिसका कार्य समाचार पत्रों में प्रकाशनार्थ घटनादि की सूचना देना होता है।

 

  • महाभारत युद्ध के समय संजय धतराष्ट्र को आंखों देखा समाचार देता था धतराष्ट्र के साथ बैठे हुए। प्रथम विश्वयुद्ध के समय चर्चिल युद्ध की विभीषिका का संवाद दाता बना था। इसलिए यह कहना कि प्रथम विश्वयुद्ध के समय रिपोर्ताज का आविर्भाव हुआ सत्य नहीं है। आविर्भाव तो महाभारत काल में हो गया था। डॉ. हरदयाल का मानना है कि द्वितीय विश्व महायुद्ध के समय रिपोर्ताज का प्रचार प्रसार हुआ।

 

डॉ. हरदयाल का कहना है-

 

"रिपोर्ताज का जन्म द्वितीय विश्वयुद्ध के समय हुआ, जब साहित्यकारों ने युद्ध भूमि में राष्ट्रीयता और मानवीयता की भावना से लिया हुआ तथ्य, युद्ध भूमि के दश्यों और घटनाओं की रिपोर्ट समाचार पत्रों में दी। इन रिपोर्टों में व्यावसायिक संवाददाताओं की रिपोर्ट में स्वाभाविक भिन्नता आ गई थी यह भिन्नता इनकी साहित्यिकता कलात्मकता और उत्साह में थी जो युद्ध में विद्यमान था। इस प्रकार अनायास ही रिपोर्ताज का जन्म हो गया।"

 

महादेवी वर्मा का कहना है -

 

  • "रिपोर्ट या विवरण से संबंध रिपोर्ताज समाचार युग की देन है और उसका जन्म सैनिक की खाईयों में हुआ है। रिपोर्ताज का विकास रूस में हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के समय इलिया एहरेन वर्ग को रिपोर्ताज लेखक के रूप में विशेष प्रसिद्धि मिली।

 

रिपोर्ताज का अर्थ एवं व्याख्या 

  • रिपोर्ताज मूलतः फ्रेंच (फ्रांसीसी) भाषा का शब्द है। इसका अंग्रेजी पर्याय रिपोर्ट माना जाता है। रिपोर्ताज का अभिप्राय किसी घटना, खबर, आंखो देखा हाल का यथा तथ्य वर्णन है जिसमें संपूर्ण विवरण दश्यमान हो जाता है। जबकि वास्तविक घटना का यथातथ्य चित्र उपस्थित करना रिपोर्ट कहलाता है। हिंदुस्तानी में इसे रपट कहते हैं। इसका सीधा संबंध समाचार पत्र से होता है इसलिए तथ्य चयन पर विशेष महत्व दिया जाता है।

 

  • किसी विषय का आंखो देखा या कानों सुना वर्णन इतने कलात्मक, साहित्यिक और प्रभावोत्पादक ढंग से किया जाता है कि उसकी अमिट छाप हृदय पटल पर अंकित हो जाती है उसे रिपोर्ताज की संज्ञा दी जाती है।
  • रिपोर्ताज लेखक की वैयक्तिकता के साथ-साथ इसमें भावना एवं संवेदना का आवेश भी समन्वित होता है। लेखक घटना विशेष को लेखक अपनी मानसिकता से प्रदीप्त करके पुनः मूर्त रूप में इसका प्रस्तुतीकरण रिपोर्ताज का स्वाभाविक धर्म है। रिपोर्ट की साहित्यिकता उसे रिपोर्ताज का स्वरूप प्रदान करती है। 
  • रिपोर्ताज को अन्य अनेक नाम दिए गए हैं जिनमें रूपनिका सूचनिका तथा वत निदेशन आदि प्रमुख हैं किंतु प्रचलित एवं सर्वमान्य शब्द रिपोर्ताज है।

 

रिपोर्ताज की परिभाषा 

डॉ. भगीरथ मिश्र ने रिपोर्ताज को परिभाषित करते हुए लिखा है 

  • "किसी घटना या दश्य का अत्यंत विवरणपूर्ण सूक्ष्म, रोचक वर्णन इसमें इस प्रकार किया जाता है कि वह हमारी आंखों के सामने प्रत्यक्ष हो जाए और हम उससे प्रभावित हो उठें।"

 

  • कोई भी निबंध, कहानी, रेखाचित्र या संस्मरण पत्रकारिता से संपक्त होकर रिपोर्ताज का स्वरूप ग्रहण कर लेता है। साहित्यिकता इसका अनिवार्य तत्व है। रेखांकित एवं रिपोर्ट का समन्वित रूप रिपोर्ताज को जन्म देता है क्योंकि रेखाचित्र साहित्यिक विधा है।


रिपोर्ताज का विवेचन करते हुए शिवदान सिंह चौहान ने लिखा है -

 

  • "आधुनिक जीवन की द्रुतगामी वास्तविकता में हस्तक्षेप करने के लिए मनुष्य को नई साहित्यिक रूप विधा को जनम देना पड़ा। रिपोर्ताज उन सबसे प्रभावशाली एवं महत्वपूर्ण विधा है।"

 

  • रिपोर्ताज का विकास अमेरिका एवं रूस में हुआ। भारत में इसका आगमन विदेशी है।

 

  • हिंदी में रिपोर्ताज लेखन की प्रणाली अति नवीन है। इसलिए यह साहित्य अन्य साहित्य गद्य विधाओं की अपेक्षा सीमित है। हिंदी में उपलब्ध रिपोर्ताज, पत्र-पत्रिकाओं, उपन्यासों में प्रसांगानुकूल, ललित निबंधों तथा गोष्ठियों सभाओं, अधिवेशनों आदि के आधार लिखे गए रिपोर्ताज दष्टिगोचर होते हैं। किन्तु इन्हें वास्तविक रिपोर्ताज की संज्ञा नहीं दी जा सकती है। मात्र ललित निबंधों में इनका वास्तविक स्वरूप उपलब्ध होता है।

 

प्रथम रिपोर्ताज

 

  • रिपोर्ताज का प्रारंभ सन् 1940 ई. के आस पास माना जाता है। शिवदान सिंह चौहान द्वारा लिखित मौत के खिलाफ जिंदगी की लड़ाई प्रथम रिपोर्ताज है जो हंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ स्तंभ का नाम समाज और विचार था।

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