प्राचीन साहित्य और मध्यप्रदेश का इतिहास । मध्यप्रदेश के इतिहास अध्ययन स्त्रोत के रूप में साहित्य -भाग 01। MP History Sahityik Sources

प्राचीन साहित्य और मध्यप्रदेश का इतिहास

 मध्यप्रदेश के इतिहास अध्ययन स्त्रोत के रूप में साहित्य -भाग 01 

प्राचीन साहित्य और मध्यप्रदेश का इतिहास । मध्यप्रदेश के इतिहास अध्ययन स्त्रोत के रूप में साहित्य -भाग 01। MP History Sahityik Sources

मध्यप्रदेश के इतिहास अध्ययन स्त्रोत के रूप में साहित्य

 

  • वैदिक काल से प्रारंभ कर तेरहवीं शती के बीच लिखे गये साहित्यिक ग्रंथों में मध्यप्रदेश से संबंधित जो संदर्भ प्रकाश में आये हैं उनका संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार किया जा सकता है।

 

वैदिक साहित्य और  मध्यप्रदेश

 

  • वैदिक साहित्य के अध्ययन से आभास होता है कि तत्कालीन समाज वर्तमान मध्यप्रदेश द्वारा अधिकृत क्षेत्र के भूगोल से कुछ अंशों तक परिचित था। 
  • यद्यपि ऋग्वेद में नर्मदा नदी का उल्लेख नहीं है, तथापि शतपथ बाह्मण (12-81, 17 : 9.3, 1) में रेवा' का उल्लेख मध्यप्रदेश से परिचय का संकेत करता है। 
  • उत्तर वैदिक साहित्य में नर्मदा और रैवा का समीकरण किया गया है । इसी प्रकार कौशीतकी उपनिषद्, ऐतरेय ब्राह्मण और वसिष्ठधर्मसूत्र में विंध्यपर्वत का उल्लेख है। चेदियों की एक शाखा मध्यप्रदेश में बसी थी। 
  • चेदियों का उल्लेख ऋग्वेद में आया है। वैदिक साहित्य में कुछ अनार्य प्रजातियों का भी उल्लेख है जिन्हें दस्यु कहा गया है। इनमें से कुछ मध्यप्रदेश से संबंधित हैं। 
  • ऐतरेय ब्राह्मण में पुलिंदों का उल्लेख है जो विदिशा के दक्षिण-पूर्व के क्षेत्र में बसी थी। इसी प्रकार परवर्ती संहिताओं और ब्राह्मण ग्रंथों में निषादों का विवरण है जिनका निवास क्षेत्र विन्ध्य और सतपुड़ा पर्वतीय प्रदेश था।

 

रामायण और मध्यप्रदेश

 

  • रामायण में मध्यप्रदेश का प्राचीन भूगोल, इतिहास एंव संस्कृति से संबंधित कई संदर्भ उपलब्ध हैं। 
  • ऋक्ष पर्वत से नर्मदा का उद्गम, सोन, तमसा, मन्दाकिनी, मालिनी, पैसुनी आदि नदियों का विवरण, साथ ही चित्रकूट और प्रश्रवन का उल्लेख रामायण में है। कहा गया है कि ऋक्ष पर स्थित अत्रि का आश्रम चित्रकूट से अधिक दूरी पर नहीं था। गंगा-यमुना संगम पर स्थित भरद्वाज आश्रम से यह ढाई योजन दूर था।  
  • रामायण के किष्किन्धा काण्ड में 40 से 43वें अध्याय में भारत और उसके पड़ोसी देशों का भौगोलिक विवरण उपलब्ध है। पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण के प्रदेशों और उनमें स्थित नदी, पर्वत आदि का वर्णन करते हुये विन्ध्यपर्वत, नर्मदा नदी, महानदी, मेकल, दशार्ण नगर, अवन्ति और दण्डकारण्य का उल्लेख आया है। 
  • विन्ध्याटवी और वहाँ उत्पन्न होने वाली वस्तुओं, प्राणियों आदि का विस्तार से विवरण दिया गया है। दशार्ण को मेकलों और उत्कलों से संबंधित करते हुये वहाँ सुग्रीव द्वारा सीता की खोज में वानरों को भेजने का विवरण है। 
  • रामायण के उत्तरकाण्ड में उपलब्ध वर्णन से ऐसा लगता है कि राम ने शत्रुघ्न के पुत्र शत्रुधातिन् को वैदिश का राज्य दे दिया था। विदिशा वैदिश प्रदेश की राजधानी थी।

 

रामायण में उल्लिखित अन्य प्रदेश हैं: 

  • कोसल, श्रीपुर, और करुष। इनमें से प्रथम दो छत्तीसगढ़ से संबंधित हैं। करूष की उत्पत्ति विषयक रामायण में रूचिपूर्ण कथा का वर्णन है। करूष जनपद वर्तमान के बुन्देलखण्ड और बघेलखण्ड के कुछ भाग तक विस्तृत था ।

 

  • राम की लंका यात्रा के मार्ग निर्धारण में विद्वानों में गहरा मतभेद है। परन्तु यह निश्चित है कि चित्रकूट से प्रस्थान कर राम मध्यप्रदेश के सतना और शहडोल जिलों से होते हुये छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर, सरगुजा जिला स्थित रामगढ़, बिलासपुर, रायपुर, बस्तर जिला होते हुये दण्डकारण्य पहुँचे होंगे। 


महाभारत और मध्यप्रदेश का इतिहास 

 

  • महाभारत में भी अनेक संदर्भ उपलब्ध हैं जो मध्यप्रदेश के प्राचीन इतिहास और संस्कृति के पुनर्निर्माण में सहायक सिद्ध हुए हैं। 
  • मध्यप्रदेश की कई नदियों, पर्वतों, राज्यों, नगरों, आश्रमों एवं जनजातियों का उल्लेख महाभारत में आया है। 
  • महाभारत के नलोपाख्यान (महा.भा. ।।। 61,21.) में ऋक्ष पर्वत को अवन्ति और दक्षिणापथ के मध्य में स्थित बताया गया है। इसी प्रकार निषादों को पारियात्र का निवासी बताया गया है (महा. भा.XII, 135, 3-5)। निषादभूमि आधुनिक नरवर क्षेत्र में ग्वालियर और झांसी के बीच थी। निकट ही गोश्रृंग पर्वत का उल्लेख है। 
  • महाभारत के अनुसार (महा. भा. ।।।89, 11-12) च्यवन और कक्षसेन मुनियों के आश्रम असित पर्वत पर थे और विद्वानों के अनुसार यह पर्वत उज्जैन के निकट था। 
  • महाभारत में (महा. भा. ।।।.85,86) चित्रकूट पर्वत को मन्दाकिनी नदी के तट पर और कालंजर से संबंधित उल्लेख किया गया है। इसी प्रकार चेदि प्रदेश में कोलाहल पर्वत की स्थिति बताई गई है और यह पर्वत शुक्तिमती (केन) से संबंधित है।

 

  • मध्यप्रदेश की कई नदियों का उल्लेख महाभारत में आया है। नर्मदा का संबन्ध ऋक्ष पर्वत से बताया गया है (महा. भा. XII,52,32,)। भीष्मपर्व में (महा. भा. VI.9) मालवा स्थित वेदस्मृति (आधुनिक बेसुला, जो कालिसिंध की सहायक है) नदी का उल्लेख है। संभवत: यह महाभारत की दक्षिण सिन्धु है। आधुनिक चंबल का उल्लेख चर्मणवती के रूप में हुआ है। चबंल की सहायक आधुनिक कुन्ती संभवतः महाभारत की अश्वनदी या अश्वरथ नदी है।

 

  • महाभारत के अनुसार (महा. भा. ॥20,27-29) राजगृह की ओर जाते हुए पाण्डव और कृष्ण ने शोण और महासोण को पार किया था। ज्योतिरथ (आधुनिक जोहिला) उसकी सहायक नदी थी। महाभारत दशार्णा नदी का उल्लेख करता है जो आधुनिक घसान है। प्राचीन दशार्ण प्रदेश होकर बहने के कारण इसका नाम दशार्णा पड़ा।

 

  • महाभारत (III. अ. 85) वेण्वा नदी का उल्लेख करता है जो आधुनिक वैनगंगा है जिसका उद्गम स्थल सिवनी जिला स्थित सिवनी से 16 कि. मी. दूर परतापुर के निकट सतपुड़ा पर्वत में है। 
  • अन्य वर्णित नदियाँ हैं? मधुवाहिनी (ग्वालियर जिले मे आधुनिक महावर), मालिनी (चित्रकूट पर्वत के निकट) तथा पाटलवती (चंबल की एक शाखा ) । 
  • प्रदेशों के विवरण में महाभारत के कई संदर्भों में अवन्ति, चेदि, अनूप, दशार्ण, माहिष्मती, नलपुर, शुक्तिमती, त्रिपुरी, भोजकटक का उल्लेख आया है।

 

मध्यप्रदेश की ऐतिहासिक घटनायें भी महाभारत में उल्लिखित हैं

  • जैसे: ययाति द्वारा पांच पुत्रों में अपने साम्राज्य का बंटवारा जिसमें चर्मणवती (चंबल), वेत्रवती (बेतवा) तथा शुक्तिमती के क्षेत्र सम्मिलित थे। बंटवारे में तुर्वसु को आधुनिक रीवा का निकटवर्ती क्षेत्र मिला। कालांतर में हैहयवंशी मालवा के क्षेत्र में बसे और माहिष्मती उनकी राजधानी बनी। हैहयवंशी कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुन ने कर्कोटक नागों को पराजित कर अनूप पर अधिकार किया।

 

  • महाभारत युद्ध में भाग लेने वाले राजाओं की एक लंबी सूची उपलब्ध है। इनमें से माहिष्मती का नील, अवन्ति का विन्द और अनुविन्द, निषाद और शल्वों ने कौरवों का समर्थन किया। पाण्डवों के समर्थक थे मध्यप्रदेश के चेदि, करूष एवं दशार्ण के राजा।

 

पुराण में मध्यप्रदेश का उल्लेख 

 

  • विभिन्न पुराण परवर्ती काल की रचनायें हैं जिन्हें कई शताब्दियों पश्चात विभिन्न कालों में लिपिबद्ध किया गया। अधिकांश विद्वानों का मानना है कि अपने वर्तमान स्वरूप में पुराणों की रचना गुप्तकाल एवं उसके बाद हुई। अवश्य ही उनमें वर्णित घटनायें शताब्दियों पूर्व घटित हुई होगीं। विभिन्न पुराणों में मध्यप्रदेश के इतिहास एवं संस्कृति संबंधित कई विवरण उपलब्ध हैं और इसलिये वे जानकारियों के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
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  • ई. पू. छठी शती के जनपदयुगीन मध्यप्रदेश पर पुराणों द्वारा कुछ प्रकाश डाला गया है। पुराणों के अनुसार नंदवंश के संस्थापक ने उत्तर तथा मध्यभारत के सभी शासकों को परास्त कर अपनी सत्ता स्थापित की। इनमें से हैहय भी थे जो मालवा क्षेत्र के शासक थे। पुराण यह भी उल्लेख करते हैं कि किस प्रकार पुनिक द्वारा अपने स्वामी की हत्या करने के उपरान्त चण्डप्रद्योत को अवन्ति का शासक बनाया गया। 
  • चण्डप्रद्योत का सभी समकालीन राजाओं से युद्ध हुआ। कौशाम्बी के शासक उदयन के साथ उसके संघर्ष संबंधित कई आख्यानों के विवरण पुराणों में उपलब्ध हैं। उसके वंश के चौथै उत्तराधिकारी नन्दिवर्धन को मगध के शासक शिशुनाग द्वारा पराजित किये जाने के उपरान्त अवन्ति को मगध साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया गया। 
  • शुंग, कण्व, आंध्र एवं सातवाहनों के इतिहास पर भी पुरणों ने प्रकाश डाला है। ऐसा प्रतीत होता है कि शुंग के अवनति के काल में विदिशा शुंगों की राजधानी थी। 
  • भागवत पुराण में वर्णित पाँचवा शुंग शासक भद्रक का विद्वानों ने बेसनगर स्थित गुरूड़ स्तंभ पर उत्कीर्ण लेख में वर्णित राजा भागभद्र से पहचान की है। पुराणों के विवरणों से लगता है कि शुंग-कण्व सातवाहनों का संघर्ष क्षेत्र विदिशा ही था। 
  • ई. पू. प्रथम सदी में सातवाहन सिमुक द्वारा कण्व के अंतिम नरेश सुशर्मा को इसी क्षेत्र में पराजित कर उसका राज्य हड़प लिया गया था। पुराणों में इस घटना झलक उपलब्ध है। 
  • विदिशा, पद्मावती, कान्तिपुरी और मथुरा तीसरी-चौथी शताब्दी ई. में नागवंशी शासकों की राजाधानियाँ थीं। पुरणों द्वारा इनके इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है और शासकों की वंशावली दी गई है। विष्णुपुराण में "नव नाग" (नौ अथवा नव-नया नाग) राजाओं का विवरण है। नाग शासकों के सिक्के पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हुए हैं। 
  • पुराणों द्वारा वाकाटक राजवंश पर भी पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। वायुपुराण के अनुसार, वाकटक वंश के संस्थापक विन्ध्यशक्ति ने 96 वर्ष तक शासन किया और उसके पुत्र प्रवीर ने 60 वर्ष तक वाकाटकों के मूल निवास के विषय पर भी पुराणों ने प्रकाश डाला है। पुराणों में वर्णित विन्ध्यशक्ति से संबधित किलकिल' नदी को विद्वानों ने पन्ना जिला की किलकिला नदी से पहचान की है।

 

पुराणों में मध्यप्रदेश के प्राचीन भूगोल

  • पुराणों में मध्यप्रदेश के प्राचीन भूगोल संबंधित अनेक विवरण उपलब्ध हैं। मार्कण्डेय पुराण (57.10 - 11 ) के 'भुवनकोश' खण्ड में कुलपर्वतों की एक सूची दी गई है। इनमें से शुक्तिमत, विन्ध्य, रिक्ष और पारियात्र मध्यप्रदेश स्थित हैं। इन चारों पर्वतमालाओं से निकली नदियों का विभिन्न पुरणों में पर्याप्त विवरण उपलब्ध है।

 

  • पुराणों में मध्यप्रदेश के प्राचीन जनपद, उनकी राजधानियाँ, नगर और निवासियों पर भी पर्याप्त जानकारियाँ उपलब्ध हैं। उल्लिखित जनपद हैं: अवन्ति, चेदि, अनूप, दशार्ण, मेकल, जजाहूति आदि। राजधानियों में कोसला, माहिष्मतीमेकला, त्रिपुरी, तुम्माण, उज्जयिनी और विदिशा का उल्लेख है। नगरों में देवपुर, पद्मावती, पुरिका, तुलजापुर और तुम्बवन वर्णित हैं। इनके निवासियों पर भी पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।

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