मौखिक अभिव्यक्ति कौशल शिक्षण विधियाँ महत्त्व विशेषताएँ उद्देश्य। Oral Expression Skill Teaching in Hindi

मौखिक अभिव्यक्ति कौशल शिक्षण विधियाँ महत्त्व विशेषताएँ उद्देश्य

Oral Expression Skill Teaching in Hindi

मौखिक अभिव्यक्ति कौशल शिक्षण विधियाँ महत्त्व विशेषताएँ उद्देश्य। Oral Expression Skill Teaching in Hindi


मौखिक अभिव्यक्ति कौशल Oral Expression Skill

 

  • मानव प्रधानतः अपनी अनुभूतियों तथा मनोवेगों की अभिव्यक्ति उच्चरित अथवा मौखिक भाषा में ही करता है। लिखित भाषा तो गौण तथा उसकी प्रतिनिधि मात्र है, क्योंकि भावों की अभिव्यक्ति का साधन साधारणतः उच्चरित भाषा ही होती है। भावों के आदान-प्रदान का एक ही साधन है भाव या वाणी।

 

  • आधुनिक जनतान्त्रिक युग में जीवन की सफलता के लिए मौखिक भाव-प्रकाशन या वाणी उतना ही आवश्यक और अनिवार्य है जितना कि स्वयं हमारा जीवन । जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्यक्ति को प्रतिपल मौखिक आत्माभिव्यक्ति की शरण लेनी पड़ती है।

 

मौखिक अभिव्यक्ति का महत्त्व Importance of Oral Expression

 

  • मौखिक भाषा ही अभिव्यक्ति का सहज व सरलतम माध्यम है। 
  • भाषा की शिक्षा मौखिक भाषा से प्रारम्भ होती है। 
  • मौखिक अभिव्यक्ति में अनुकरण और अभ्यास के अवसर बराबर मिलते रहते हैं। 
  • मौखिक भाषा के प्रयोग में कुशल व्यक्ति, अपनी वाणी से जादू जगा सकता है, लोकप्रिय नेताओं के भाषण इसी बात का प्रमाण है। 
  • मौखिक भाषा के द्वारा विचारों के आदान-प्रदान से नई नई जानकारियाँ मिलती हैं। अशिक्षित व्यक्ति बोलचाल के द्वारा ही ज्ञान अर्जित करता है।
  • रोजमर्रा के कार्य-कलापों में मौखिक भाषा प्रयुक्त होती है। 
  • सामाजिक सम्बन्धों के सुदृढ़ बनाने में एवं सामाजिक जीवन में सामंजस्य स्थापित करने में मौखिक भाषा की प्रमुख भूमिका होती है।

 

मौखिक भाव-प्रकाशन शिक्षण के उद्देश्य Objectives of Oral Expression Teaching

 

  • बालकों का उच्चारण शुद्ध एवं परिमार्जित हो । 
  • छात्रों को शुद्ध उच्चारण, उचित स्वर, उचित गति के साथ बोलना सिखाना। 
  • छात्रों को निस्संकोच होकर अपने विचार व्यक्त करने के योग्य बनाना। 
  • छात्रों को व्याकरण सम्मत भाषा का प्रयोग करना सिखाना। 
  • छात्र सरल एवं मुहावरेदार भाषा का प्रयोग करते हैं। 
  • बोलने में विराम चिह्नों का ध्यान रखना सिखाना। 
  • विषयानुकूल व प्रसंगानुकूल शैली का प्रयोग करना सिखाना। 
  • छात्र में स्वाभाविक ढंग से परस्पर वार्तालाप करने की आदत विकसित करना । 
  • छात्रों को धाराप्रवाह, प्रभावोत्पादक वाणी में बोलना सिखाना। 
  • छात्र क्रमबद्धता बनाए रखेगा। 
  • वह विषय की योग्यता को अक्षण्णु बनाएगा।

 

मौखिक अभिव्यक्ति की विशेषताएँ Characteristics of Oral Expression

 

स्वाभाविकता 

  • बोलने में स्वाभाविकता हो, बनावटी बोली का प्रयोग हास्यास्पद हो सकता है। अस्वाभाविक भाषा वक्ता को अविश्वसनीय बना देती है। स्वाभाविक भाषा विश्वसनीय होती है।

 

स्पष्टता 

  • मौखिक अभिव्यक्ति का दूसरा गुण है स्पष्टता। बोलने में स्पष्टता होना अति आवश्यक है। जो बात कही जाए वह स्पष्ट व साफ होनी चाहिए।

शुद्धता 

  • बोलते समय शुद्ध उच्चारण होना चाहिए अशुद्ध उच्चारण से अर्थ का अनर्थ हो जाता है।
 

 बोधगम्य 

  • मौखिक अभिव्यक्ति में सरल व सुबोध भाषा का प्रयोग करना है।

 

सर्वमान्य भाषा 

  • अप्रचलित शब्दों के प्रयोग से वार्तालाप नीरस हो जाता है।

 

शिष्टता 

  • वार्तालाप करते समय शिष्टाचार का ध्यान रखना चाहिए। अशिष्टता सम्बन्धों को बिगाड़ देती है। शिष्टता मौखिक भाव-प्रकाशन का एक अन्य गुण है।

मधुरता

  • मौखिक भाव-प्रकाशन का अन्य गुण है मधुरता। कहा भी गया है- 'कोयल काको देत है कागा काको लेत, वाणी के कारणेन मन सबको हर लेत मीठी वाणी का प्रयोग कर मनुष्य किसी ( दुश्मन) को भी अपना बना सकता है। 


प्रवाहमयता

  • विराम चिह्नों के उचित प्रयोग से अभिव्यक्ति में सम्यक् गति आ जाती है। अतः मौखिक भाव-प्रकाशन में उचित प्रवाहमयता होनी चाहिए।

 

अवसरानुकूल

  • मौखिक भाव- प्रकाशन की अन्य विशेषता है अवसरानुकूल भाषा का प्रयोग। हर्ष, उल्लास, सुख-दुःख, दया, करुणा, सहानुभूति प्यार आदि भावों को अवसर के अनुकूल व्यक्त करते हैं। 

श्रोताओं के अनुकूल भाषा

  • मौखिक अभिव्यक्ति की अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि सुनने वाले कौन हैं? किस स्तर के हैं? के अनुकूल ही भाषा का प्रयोग करना चाहिए।

 

मौखिक अभिव्यक्ति कौशल की शिक्षण विधियाँ Teaching Methods of Oral Expression Skill 

वार्तालाप 

  • शिक्षण सामग्री या पाठ्य विषय पढ़ाते हुए या अन्य मौकों पर छात्रों के साथ अध्यापक वार्तालाप करते हैं। अतः शिक्षक को चाहिए कि वह प्रत्येक छात्र को वार्तालाप में भाग लेने के लिए प्रेरित करें। वार्तालाप का विषय छात्रों के मानसिक, बौद्धिक स्तर के अनुसार ही होना चाहिए। 

सस्वर वाचन

  •  पाठ पढ़ाते समय पहले शिक्षक को स्वयं आदर्श वाचन करना चाहिए, बाद में कक्षा के छात्रों से अनुकरण वाचन या सस्वर वाचन करना चाहिए। सस्वर वाचन से छात्रों की झिझक व संकोच खत्म होता है। 

प्रश्नोत्तर

  • सामान्य विषयों पर या पाठ्य पुस्तकों से सम्बन्धित पाठों पर प्रश्न पूछने चाहिएँ। अगर छात्रों का उत्तर अपूर्ण या अशुद्ध है, तो सहानुभूति पूर्ण ढंग से उत्तर को पूर्ण व शुद्ध कराया जाए। 


कहानी सुनाना 


  • मौखिक भाव  प्रकाशन विकसित करने की एक विधि कहानी सुनाना भी है। छोटे बच्चे कहानियाँ सुनना पसन्द करते हैं। अतः अध्यापक पहले स्वयं कहानी सुनानी चाहिए। बाद में छात्रों से कहानी सुननी चाहिए। 

 

चित्र वर्णन 

  • प्रायः छोटी कक्षाओं के बच्चे चित्र देखने में रुचि लेते है। उदाहरणार्थ 'गाय' का चित्र दिखा कर गायों के बारे में छात्रों से पूछा जा सकता है व छात्रों को बताया जाता है। इसी प्रकार चित्र की सहायता सकती है।

 

कविता सुनना व सुनाना

  •  छोटे बच्चे कविता या बालोचित गीत सुनाने व सुनने में काफी रुचि लेते हैं अतः कविताएँ कण्ठस्थं कराके उन्हें कविता पाठ के लिए प्रेरित करना चाहिए। अतः कविता पाठ मौखिक भाव- प्रकाशन की शिक्षा देने का अन्य उपयोगी साधन है।

 

वाद-विवाद

  • बालकों के मानसिक स्तर व बौद्धिक स्तर को ध्यान में रखकर वाद-विवाद करवाया जा सकता है। अपने विचारों का तर्कपूर्ण प्रतिपादन करने का प्रशिक्षण देने के लिए वाद-विवाद एक उत्तम साधन है।

 सत्संग 

  • सत्संग का हमारे मौखिक भाव-प्रकाशन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। साधारणतः बालक जैसे वातावरण में रहेगा। उसका इसी प्रकार का भाव प्रकाशन होगा। 

पाठ का सार 

  • पाठ्य पुस्तक के किसी पाठ या रचना को पढ़कर छात्र से उस पाठ का सार सुनना मौखिक अभिव्यक्ति का अन्य उपयोगी साधन है।

 

भाषण 

  • 'भाषण' भाव-प्रकाशन का एक सशक्त साधन है परन्तु 'भाषण' छात्रों के मानसिक एवं बौद्धिक स्तर के अनुकूल होना चाहिए।

 

नाटक प्रयोग

  •  नाटक द्वारा भावाभिव्यक्ति का अच्छा अभ्यास हो जाता है। रंगशाला में बालक को आंगिक, वाचिक एवं भावों के अभिनय की दीक्षा सफलतापूर्वक मिल सकती है।

 

स्वतन्त्र आत्मप्रकाशन

  • बालकों को विभिन्न घटनाओं दृश्यों या व्यक्तिगत जीवन से जुड़े अनुभव सुनाने का अवसर देकर अध्यापक मौखिक भाषा का अभ्यास करा सकता है।

 

मौखिक भाव प्रकाशन से सम्बन्धित शिक्षक की सावधानियाँ

 

  • बच्चों की त्रुटियों को ठीक कराने के लिए स्वर यन्त्रों को साधा जाए। 
  • यदि प्राकृतिक कारणों से बालक शुद्ध उच्चारण नहीं कर पाता है, तो उसके माता-पिता को सूचित करना चाहिए एवं डॉक्टरों से उचित चिकित्सा करवानी चाहिए। 
  • शिक्षक स्वयं बोलने का दृष्टान्त पेश करें, जिसमें तेजी, शीघ्रता व क्रोध न हो।
  • बालकों में किसी प्रकार का संकोच न आने पाए। 
  • बोलने में कठिनाई अनुभव करने वाले छात्रों को अधिक-से-अधिक बोलने व पढ़ने का अवसर मिलना चाहिए। जिससे उनमें धीरे-धीरे साहस व स्वावलम्बन का विकास हो । कई बार बच्चा मनोवैज्ञानिक कारणों से भी हकलाने लगता है और अशुद्ध उच्चारण की आदत पड़ जाती है। अतः बच्चे के मन से भय, झिझक की भावना निकाल कर अभ्यास द्वारा यह कठिनाई दूर की जा सकती है। 
  • भाषा क्षेत्रीयता प्रान्तीयता व व्याकरण दोषों से रहित हो । 
  • बोलते समय सस्वरता व भावानुसार वाणी के उतार चढ़ाव पर भी ध्यान देना चाहिए।

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