वाचन पठन कौशल अर्थ प्रकार महत्व उद्देश्य आधार विशेषताएँ शिक्षण विधियाँ त्रुटियाँ। Importance of Reading Skill in Hindi

 वाचन / पठन कौशल अर्थ प्रका महत्व उद्देश्य आधार विशेषताएँ  शिक्षण विधियाँ त्रुटियाँ,   Importance of Reading Skill in Hindi

वाचन / पठन कौशल अर्थ प्रका महत्व उद्देश्य आधार विशेषताएँ  शिक्षण विधियाँ त्रुटियाँ ।  Importance of Reading Skill in Hindi



वाचन / पठन कौशल Reading Skill ( पढ़कर अर्थ ग्रहण करने का कौशल )

 

वाचन पठन अधिगम प्रक्रिया क्या है 

  • भाषा शब्द से ही ज्ञात होता है कि भाषा का मूल रूप उच्चरित रूप है। इसका दृष्टिकोण प्रतीक लिपिबद्ध होता है। मुद्रित रूप लिपिबद्ध रूप का प्रतिनिधि है। जब हम बच्चे को पढ़ाना आरम्भ करते हैंतो अक्षरों के प्रत्यय हमारे मस्तिष्क के कक्ष भाग में क्रमबद्ध होकर एक तस्वीर बनाते हैं और हम उसे उच्चरित करते हैं। यह क्रिया जिसमें शब्दों के साथ अर्थ ध्वनि भी निहित है। वाचन कहलाती है।


  • कैथरीन ओकानर के मतानसार "वाचन पठन वह जटिल अधिगम प्रक्रिया हैजिसमें दृश्यश्रव्यों सर्किटों का मस्तिष्क के अधिगम केन्द्र से सम्बन्ध निहित है।"

 

  • लिखित भाषा के ध्वन्यात्मक पाठ को मौखिक पठन कहते हैं। पर बिना अर्थ ग्रहण किए पढ़ने को पठन नहीं कहा जा सकता। पठन की क्रिया में अर्थ ग्रहण करना आवश्यक होता है। अर्थ ग्रहण किस सीमा तक होता हैयह तो पठनकर्ता के ज्ञान एवं कौशल पर निर्भर है।

 

वाचन/पठन कौशल का महत्त्व Importance of Reading Skill 

  •  वाचन की जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यकता होती है। वाचन की योग्यता न रखने से व्यक्ति संसार की सांस्कृतिक महानता में अपने अस्तित्व का आनन्द नहीं ले पाता।
  • वाचन योग्यता के बिना मनुष्य के जीवन में कई प्रकार की बाधाएँ खड़ी हो जाती हैं। 
  • वाचन शिक्षा प्राप्ति में सहायक है। 
  • वाचन कौशल ज्ञानोपार्जन का साधन हैक्योंकि पाठ्य पुस्तक पढ़ने से तो केवल ज्ञान के दर्शन होते हैं। सन्दर्भ ग्रन्थ पढ़ने से ज्ञान की पिपासा कुछ हद तक शान्त होती है। 
  • आधुनिक युग 'विशिष्टताओं का युग हैव्यक्ति जिस भी व्यवसाय में है वह विशिष्टता प्राप्त करना चाहता हैनवीनतम जानकारी प्राप्त करना चाहता हैयह जानकरी उसे पुस्तकों से मिलती है।
  •  सामाजिक दृष्टिकोण से भी वाचन बहुत महत्त्वपूर्ण है। सामाजिक कार्यों तथा दैनिक कार्यों में मनुष्य को कहीं कुछ पढ़कर सुनाना पड़ता है। कहीं अभिनन्दन पत्र पढ़ना होता हैकहीं किसी महापुरुष या नेता का सन्देश पढ़कर सुनाना होता है। कहीं पत्र लिखने पढ़ने होते हैं अतः इस प्रकार के अनेकों सामाजिक कार्यों में वाचन की आवश्यकता से उसकी सामाजिक उपयोगिता बढ़ जाती है। 
  • लोकतन्त्रात्मक युग में वाचन का महत्त्व और भी बढ़ गया है। चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों में घोषणा प्रकाशित होती रहती हैंउन्हें अच्छी प्रकार से समझने के लिए वाचन की योग्यता का होना आवश्यक है। अतः लोकतन्त्रात्मक प्रवृत्ति के विकास में वाचन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 
  • 'वाचनमनोरंजन का महत्त्वपूर्ण साधन है। घर मेंउपवन मेंयात्रा में व्यक्ति कहीं भी अपनी बोरियत को दूर करने के लिएकहानीपत्रिका इत्यादि पढ़कर समय का सदुपयोग कर सकता है। 
  • सामाजिकराजनीतिकसाहित्यिक तथा सांस्कृतिक विकास के लिए आलोचनात्मक दृष्टिकोण का विकसित होना आवश्यक है। आलोचनात्मक दृष्टिकोण के विकास के लिए अध्ययन अति आवश्यक है और 'अध्ययनवाचन का ही एक रूप है।
 

वाचन/पठन कौशल के उद्देश्य Objectives of Reading Skill

 

  • बालकों के स्वर में आरोह-अवरोह का ऐसा अभ्यास करा दिया जाए कि वे यथावसर भावों के अनुकूल स्वर में लोच देकर पढ़े।
  • बालकों को वाचन के माध्यम से शब्द-ध्वनियों का पूर्ण ज्ञान कराया जाता है वाचन की इस कला से छात्र मुँह व जिह्वा के उचित स्थान से ध्वनि उच्चरित करते रहेंगे। 
  • वाचन के माध्यम से शब्दों पर उचित बल दिया जाता है। 
  • छात्र पढ़कर उसका भाव समझें तथा दूसरों को भी समझाएँ वाचन का यह एक उद्देश्य है। 
  • वाचन से अक्षरउच्चारणध्वनिबलनिर्गमसस्वरता आदि को सम्यक् संस्कार प्राप्त होता है। वाचन के द्वारा छात्र विरामअर्द्धविराम आदि चिह्नों का प्रयोग समझ जाता है।
  • वाचन का उद्देश्य पठित अंश का भाव ग्रहण करना है। 
  • वाचन का अन्य उद्देश्य त्रुटियों का निवारण भी है। 
  • वाचन शब्द भण्डार में वृद्धि करता है।
  •  वाचन से स्वाध्याय की प्रवृत्ति जागृत होती है।

 

वाचन/पठन के आधार Base of Reading 

  •  वाचन के दो प्रमुख आधार हैं- वाचन मुद्रा एवं वाचन शैली। 
  • वाचन मुद्रा का अर्थ है बैठनेखड़े होने का ढंगवाचन सामग्रीहाथ में ग्रहण करने की रीति तथा भावानुसार हाथपैरनेत्र आदि अन्य अंगों का संचालन । भावानुसार स्वर के उचित आरोह-अवरोह के साथ पढ़ना वाचन शैली है। प्रत्येक वाचक को वाचन करते समय बाएँ हाथ में पुस्तक को इस प्रकार बीच में पकड़ना चाहिए कि ऊपर उसके बीच में मोड़ पर बाएँ हाथ का अंगूठा आ जाए और दूसरा हाथ भावाभिव्यक्ति के लिए खुला छुटा रहे। बड़ी पुस्तक को दोनों हाथों से पकड़ा जा सकता है। पढ़ते समय दृष्टि पुस्तक पर ही ना रहेवरन् छात्रों की ओर भी देख लेना चाहिए।

 

वाचन / पठन कौशल की विशेषताएँ Characteristics of Reading Skill

 

  • प्रत्येक अक्षर को शुद्ध तथा स्पष्ट उच्चारित करना 
  • वाचन में सुन्दरता के साथ प्रवाह बनाए रखना 
  • मधुरताप्रभावोत्पादकता तथा चमत्कारपूर्ण ढंग से आरोह-अवरोह के साथ वाचन होना चाहिए। 
  • प्रत्येक शब्द को अन्य शब्दों से अलग करके उचित बल तथा विराम के साथ पढ़ना।

 

वाचन / पठन कौशल की शिक्षण विधियाँ Teaching Methods of Reading Skill 

शब्द तत्व पर आधारित विधियाँ Methods Based on Words Element 

  • वर्णबोध विधि इस विधि में पहले छात्रों को वर्णों का ज्ञान कराया जाता है। वर्णों में भी स्वर पहले और व्यंजन बाद में सिखाए जाएँ फिर मात्राओं का ज्ञान कराया जाए। मात्राओं के उपरान्त संयुक्ताक्षरों की जानकारी दी जाए। यह विधि मनोवैज्ञानिक नहीं है। इस का आधार यह है कि जब तक बालक को अक्षर ज्ञान नहीं होगातब तक वह उच्चारण या वाचन नहीं सीख सकता है। 

ध्वनि साम्य विधि

  • यह विधि वर्णबोध विधि का संशोधित रूप है। इसमें समान उच्चारण वाले शब्दों को साथ-साथ सिखाया जाए।

स्वरोच्चारण विधि

  •  इस विधि में अक्षरों एवं शब्दों को उनकी स्वर ध्वनि के अनुसार पढ़ाया जाता है। इसमें बारहखड़ी को आधार माना जाता हैजैसे-ककाकिकीकुकूकेकैकोकौकंकः । इसमें स्वर के बिना व्यंजन नहीं सिखा सकते। यह विधि प्रगतिशील एवं मनोवैज्ञानिक नहीं है।

 

अर्थ ग्रहण पर आधारित विधियाँ Methods Based on Accept Meaning

 

देखो और कहो 

  • विधि इस विधि में शब्द से सम्बन्धित वस्तु या चित्र दिखाकर पहले शब्द का ज्ञान कराया जाता है। चित्र के नीचे वस्तु का नाम लिखा होता है। चित्र परिचित होने के कारण बच्चे आसानी से शब्द से साहचर्य स्थापित कर लेते हैं। अध्यापक का अनुकरण करते हुए बच्चे शब्द का उच्चारण करते हैं। कई बार देखने-सुनने और बोलने से वर्णों के चित्र मस्तिष्क पर अंकित हो जाते हैं। यह विधि मनोवैज्ञानिक है। इसमें पूर्ण से अंश की ओरज्ञात से अज्ञात की ओर तथा सरल से जटिल की ओर आदि शिक्षण सूत्रों का पालन होता है। 
  • इस विधि में सभी शब्दों के चित्र उपस्थित करना असम्भव है। बच्चे चित्र से  साहचर्य स्थापित कर लेते हैं। चित्र के अभाव में शब्द पढ़ना कठिन हो जाता है।

वाक्य विधि 

  • इस मत के प्रतिपादकों का मत है कि बालक वाक्य या वाक्यांशो में बोलता है। इसकी इकाई वाक्य है शब्द नहीं। इसलिए प्रारम्भ से ही बालकों को वाक्यों से ही वाचन शुरू कराना चाहिए। यह विधि मनोवैज्ञानिक है। पहले वाक्य फिर शब्दफिर वर्ण इस क्रम से बच्चों को वाचन का अभ्यास कराया जाता है।

 

कहानी विधि

  • इस विधि में छोटे-छोटे वाक्यों से निर्मित कहानी चार्ट व चित्रों के माध्यम से बच्चों के समक्ष प्रस्तुत की जाती है। शिक्षक इस कहानी को कक्षा में कहता है। इसके बाद शिक्षक कहानी को श्यामपट्ट पर लिखता है व वाचन  कराता है। विद्यार्थी शिक्षक का अनुकरण करते हैं। वाक्य के विश्लेषण के माध्यम से छात्र शब्द एवं वर्णों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। यह वाक्य विधि का परिष्कृत रूप है। 

 

अनुकरण विधि

  • यह विधि 'देखो और कहोविधि का दूसरा स्वरूप है। इसमें अध्यापक एक-एक शब्द बालकों के समक्ष कहता है और छात्र उसे दुहराते हुए अनुकरण करते हैं। इस प्रकार छात्र शब्द- ध्वनि का उच्चारण एवं वाचन सीखते हैं।

 

सम्पर्क विधि

  • इस विधि का प्रचार मॉण्टेसरी ने किया था। इसमें पहले बालकों को चित्रखिलौनेवस्तुओं आदि से परिचित कराते हैं। उनके आगे उन वस्तुओं कार्ड रखते हैं। फिर कार्डों को आपस में मिला देते हैं और बच्चों को कहा जाता हैजो कार्ड जिस वस्तु से सम्पर्क रखते हैंउसके आगे पुनः रख दें। इस सम्पर्क प्रणाली के अभ्यास से धीरे-धीरे छात्र शब्द व वर्ण से परिचित हो जाते हैं।

 

वाचन / पठन सम्बन्धी त्रुटियाँ Errors Related to Reading 

 

  • वाचन के समय अनुचित मुद्रापुस्तक को आँखो के सन्निकट या दूर रखना। 
  • अशुद्ध उच्चारण । 
  • वाचन में गति का न होना। 
  • दृष्टि दोष से अक्षरों का ठीक दिखाई न देना। 
  • पाठ्य सामग्री का कठिन होना।
  • अक्षर या संयुक्ताक्षरों सम्बन्धी त्रुटियाँ। 
  • भावानुकूल आरोह-अवरोह का अभाव ।
  • वाचन सम्बन्धी मार्गदर्शन का अभाव 
  • अध्यापक का व्यवहार

 

वाचन / पठन सम्बन्धी दोषों का निवारण Prevention of Reading Related Defects

 

  • आवृत्ति - पुनरावृत्ति इसका अभिप्राय यह है कि बार-बार आवृत्ति या पुरावृत्ति के माध्यम से अभ्यास कराकर उच्चारण सम्बन्धी दोषों का निवारण किया ज सकता है।

 

  • वातावरण परिवर्तन बच्चों को सिखाई जाने वाली भाषा हेतु उपयुक्त वातावरण उपलब्ध करवाकर पठन सम्बन्धी दोषों का निवारण किया जा सकता है।

 

  • चिकित्सा विधि यदि किसी अंग में कोई खराबी के कारण या भयघबराहट आदि के कारण बच्चों में वाचन सम्बन्धी कठिनाई होतो उसे चिकित्सकों की मदद से दूर किया जा सकता है।

 

  • छात्रों के मानसिक स्तर के अनुकूल पाठ्य सामग्री का चुनाव बच्चों के पठन सम्बन्धी दोषों का निवारण तभी सम्भव हैजब छात्रों के मानसिक स्तर के अनुकूल पाठ्य सामग्री का चुनाव किया जाए।

 

वाचन के प्रकार Types of Reading

 

वाचन के दो प्रकार हैं सस्वर वाचन एवं मौन वाचन ।


सस्वर वाचन Recitation Reading 

  • स्वर सहित पढ़ते हुए अर्थ ग्रहण करने को सस्वर वाचन कहा जाता है। यह वाचन की प्रारम्भिक अवस्था होती है। वर्णमाला के लिपिबद्ध वर्णों की पहचान सस्वर वाचन के द्वारा ही कराई जाती है।

 

सस्वर वाचन में ध्यान रखने योग्य बातें Important Things in Recitation Reading

 

सस्वर वाचन भावानुकूल करना चाहिए। 

सस्वर वाचन आदि करते समय विराम चिह्नों का ध्यान रखना चाहिए। 

सस्वर वाचन करते समय शुद्धता एवं स्पष्टता का ध्यान रखना चाहिए । 

स्वर में यथा सम्भव स्थानीय बोलियों का पुट नहीं होना चाहिए । 

ॐ सस्वर वाचन में आत्मविश्वास का होना आवश्यक है।

 

सस्वर वाचन के गुण Merits of Recitation Reading

 

  • शुद्ध उच्चारण
  • उचित ध्वनि निर्गम
  • उचित बल-विराम 
  • उचित वाचन मुद्रा 
  • प्रभावोत्पादकता 
  •  स्वाभाविकता 
  • उचित लय एवं गति
  • उचित हाव-भाव 
  • ॐ स्वर माधुर्य 
  • अंग संचालन
  •  अर्थ-प्रतीति 
  • स्वर में रसात्मकतावाचन की मुद्रा

 

आदर्श वाचन Ideal Reading

 

जब अध्यापक कक्षा में छात्रों के समक्ष स्वयं वाचन प्रस्तुत करता हैउसे आदर्श वाचन कहते हैं। अध्यापक अपने वाचन को गतियतिआरोह-अवरोहस्वराघात व  बलाघात को ध्यान में रखकर कक्षा में प्रस्तुत करता है।

 

अनुकरण वाचन Imitation Reading

 

आदर्श वाचन के पश्चात् छात्रों द्वारा कक्षा में अनुकरण वाचन किया जाता है। 

अनुकरण वाचन के निम्न उद्देश्य हैं

  • शिक्षक द्वारा किए गए आदर्श वाचन का अनुकरण करना।
  •  उच्चारण को शुद्ध बनाना। 
  • वाचन में गति एवं प्रवाह का ध्यान रखना।
  •  वाचन करते समय अर्थ ग्रहण की योग्यता का विकास करना।
  • पाठ के भावानुसार वाचन पैदा करने की क्षमता विकसित करना तथा वीर रस की के शिक्षण सामग्री का वाचनओजपूर्ण उच्च स्वर सेशृंगार रस शिक्षण का वाचनस्नेहयुक्त एवं मधुर स्वर सेकरुण रस में द्रयार्द स्वर सेभक्ति रस का शान्त एवं गम्भीर स्वर से वाचन करना ।

 

वाचनकर्ता के अनुसार पुनः सस्वर वाचन का विभाजन Further Division of Recitation Reading According to Reader

 

वैयक्तिक वाचन

  • एक व्यक्ति द्वारा आवाज किए जाने वाले सस्वर वाचन को व्यक्तिगत वाचन कहते हैं। माध्यमिक कक्षाओं में वाचन प्रायः वैयक्तिक ढंग से होता है। शिक्षक सुनकर छात्रों की उच्चारण सम्बन्धी त्रुटियों का निवारण करता है। इस विधि में वाचन दोषों का निदान सरलता से हो जाता है और उपचारात्मक शिक्षण के लिए व्यक्तिगत ध्यान देने में शिक्षक को सरलता होती है।

 

सामूहिक वाचन

  • दो या दो से अधिक छात्रों द्वारा आवाज सहित किए जाने वाले वाचन को सामूहिक वाचन कहते हैं। इस वाचन से बच्चों (छात्रों) की झिझक दूर होती है। उनमें मौखिक अभिव्यक्ति के लिए आत्मविश्वास का संचार पैदा होता है। सामूहिक वाचन 13-14 वर्ष की आयु तक के बालकों के लिए ही किया जाए । छात्रों की संख्या बहुत अधिक ना होताकि पड़ोसी कक्षा की शान्ति भंग न हो।

 

मौन वाचन Silent Reading

 

लिखित सामग्री को चुपचाप बिना आवाज निकाले पढ़ना मौन वाचन  कहलाता है।

मौन वाचन का महत्त्व Importance of Silent Reading

 

  • मौन वाचन में थकान कम होती हैक्योंकि इस में वाग्यन्त्रों पर जोर नहीं पड़ता। मौन वाचन में नेत्र तथा मस्तिष्क सक्रिय रहते हैं। 
  • मौन वाचन के समय पाठक एकाग्रचित्त होकर ध्यान केन्द्रित कर पढ़ता है। 
  • मौन वाचन अवकाश का सदुपयोग करता है।
  • मौन वाचन में समय की बचत होती है। श्रीमती ग्रे एवं रीस के एक परीक्षण द्वारा यह पता चलता है कि कक्ष छह के बालक एक मिनट में सस्वर वाचन में 170 शब्द बोलते हैं और मौन वाचन में इतने समय में 210 शब्द बोलते हैं। 
  • मौन वाचन कक्षा में अनुशासन बनाए रखने में सहायक है। 
  • चिन्तन करने में मौन वाचन सहायक है।
  • स्वाध्याय की रुचि जागृत करने में मौन वाचन सहायक है। गहन अध्ययन वही व्यक्ति कर सकता हैजिसे मौन वाचन का अभ्यास हो ।

 

मौन वाचन के उद्देश्य Objectives of Silent Reading

 

  • पठित सामग्री के केन्द्रीय भाव को समझना
  • अनावश्यक स्थलों को छोड़ते हुएमूल तथ्यों का चयन करना । 
  • पठित सामग्री का निष्कर्ष निकालना। 
  • पठित सामग्री पर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दे सकना । 
  • भाषा एवं भाव सम्बन्धी कठिनाइयाँ सामने रख सकना ।
  • शब्दों का लक्ष्यार्थ और व्यंग्यार्थ जान लेना। 
  • अनुक्रमणिकापरिशिष्टपुस्तक-सूची आदि के प्रयोग की योग्यता प्राप्त कर लेना।
  • उपसर्गप्रत्ययसन्धि विच्छेद द्वारा शब्द का अर्थ जान लेना।

 

मौन वाचन के भेद Parts of Silent Reading

 

  • मौन वाचन के दो भेद होते हैं गम्भीर वाचन एवं द्रुत वाचन ।

 

गम्भीर वाचन Serious Reading

 

भाषा पर अधिकार करना। 

 विषय-वस्तु पर अधिकार करना। 

 नवीन सूचना एकत्र करना।

केन्द्रीय भाव की खोज करना।

 

  

द्रुत वाचन Rapid Reading

 

  • सीखी हुई भाषा का अभ्यास करना। 
  • साहित्य से परिचय प्राप्त करना । 
  • आनन्द प्राप्त करना। 
  • खाली समय का सदुपयोग । 
  • द्रुत वाचन के माध्यम से सूचनाएँ एकत्रित करना। 

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