भाषायी विविधता या बहुभाषिकता । शिक्षण में द्वि-भाषिकतावाद । बच्चों में भाषा सम्बन्धी कठिनाइयाँ । Language Diversification or Multilingualism

 भाषायी विविधता या बहुभाषिकता, शिक्षण में द्वि-भाषिकतावाद , बच्चों में भाषा सम्बन्धी कठिनाइयाँ 

भाषायी विविधता या बहुभाषिकता । शिक्षण में द्वि-भाषिकतावाद ।  बच्चों में भाषा सम्बन्धी कठिनाइयाँ । Language Diversification or Multilingualism



भाषायी विविधता या बहुभाषिकता Language Diversification or Multilingualism

 

  • बहुभाषिकतावाद भारतीय अस्मिता का अभिन्न अंग है। यहाँ तक की दूर दराज स्थित गाँव में तथाकथित एक भाषा बोलने वाला एक ऐसे शाब्दिक भण्डार को नियन्त्रित करता है जो उसमें कई तरह की संवादात्मक परिस्थितियों का सामना करने की योग्यता प्रदान करता है। वस्तुतः भारतीय भाषिक व सामाजिक भाषिक मैट्रिक्स में भारतीय भाषिक स्वरों की बहुलता एक-दूसरे से परस्पर संवाद करती है, जोकि कई तरह के साझे भाषिक व सामाजिक भाषिक खासियतों पर खड़ी होती है।

 

  • हाल के कई अध्ययनों ने दिखाया है कि द्वि-भाषिकता का संज्ञानात्मक विकास व विद्वत - उपलब्धि से गहरा सकारात्मक सम्बन्ध है।

 

  • भारत एक बहुभाषी देश है- यह एक जानी मानी बात है। हमारे देश में सोलह सौ से अधिक भाषाओं की पहचान की गई है जो पाँच विभिन्न भाषा परिवारों के तहत आती है प्रिन्ट मीडिया में 87 से ज्यादा भाषाएँ होती हैं, रेडियो में 71 भाषाएँ और प्रशासन के स्तर पर 13 विभिन्न भाषाएँ प्रयुक्त होती हैं। 

  • किन्तु केवल 47 भाषाएँ ही स्कूलों में पठन-पाठन के माध्यम के रूप में प्रयोग की जाती हैं और इनमें से केवल 22 भाषाओं को ही संविधान द्वारा मान्यता प्रदान की गई है। इतनी विविधता के बावजूद कई भाषिक व सांस्कृतिक तत्व भारत को एक ही भाषिक एवं सामाजिक भाषिक क्षेत्र के रूप में बाँधते हैं। कई विद्वानों ने यह सिद्ध किया है कि बहुभाषिकता समाजों में सम्प्रेषण को बाधित करने के बजाय सहायता ही प्रदान करती है। 

  • बहुभाषिकतावाद पर हुए अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था को है इसे दबाने के बजाय बनाए रखने और प्रोत्साहित करने का भरपूर प्रयास करना चाहिए। इसी बात को ध्यान में रखते हुए त्रिभाषा-सूत्र लागू किया गया था। 

  • त्रिभाषा - सूत्र को कार्यान्वित करने के लिए कड़े नियमों के बजाय बहुभाषिकतावाद को बनाए रखने व इसे जीवन्तता प्रदान करने का प्रयास किसी भी भाषा योजना का केन्द्र होना चाहिए। 

  • यू. एस. में नेशनल ऐसोसिएशन ऑफ बाइलिंगुअल एजुकेशन ने स्पष्ट किया है कि द्वि-भाषीय शिक्षण के कई फायदे देखने को मिले हैं। उदाहरणतया अकादमी उपलब्धि में सुधार, स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में कमी, शिक्षा में सामुदायिक संलग्नता में वृद्धि, विद्यार्थियों की अनुपस्थिति में गिरावट और विद्यार्थियों के आत्मसम्मान में वृद्धि।

 

 

शिक्षण में द्वि-भाषिकतावाद के लाभ Advantages of Bi-Language in Teaching

 

  • बहुत समय तक यह विश्वास किया जाता रहा है कि द्वि-भाषिकता : संज्ञानात्मक वृद्धि और शैक्षिक सम्प्राप्ती पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। किन्तु विद्वान शिक्षाविद् सायर (1923) ने साबित किया कि 7-14 वर्ष की आयु के बच्चे जो दोनो भाषाएँ बोलते हैं, का एक भाषा बोलने वाले अपने ही सहपाठी की तुलना में आई. क्यू. (बुद्धिलब्धि) स्तर कम होता है। 


  • हाल में कुछ अध्ययनों से भी यह साबित हुआ कि द्वि-भाषिकता संज्ञानात्मक लचीलेपन व विद्वत् उपलब्धि में सकारात्मक रिश्ता है। दो भाषा बोलने वाले बच्चे न केवल अन्य भाषाओं पर अच्छा नियन्त्रण रखते हैं बल्कि अकादमिक स्तर पर भी वे ज्यादा रचनात्मकता दिखाते हैं, साथ ही उनमें ज्यादा सामाजिक सहिष्णुता भी पाई गई।

 

  • दो भाषा बोलने वाले बच्चे न केवल अन्य भाषाओं पर अच्छा नियन्त्रण रखते हैं बल्कि शैक्षिक स्तर पर भी वे ज्यादा रचनात्मक होते हैं, साथ ही उनमें ज्यादा सामाजिकता और सहिष्णुता भी पाई गई है। भाषिक खजाने की व्यापक व्यवस्था पर नियन्त्रण उन्हें विविध प्रकार की एवं विविध स्तर की सामाजिक परिस्थितियों से कुशलतापूर्वक जूझने में सहायक होता है। साथ ही इस बात के पक्के सबूत मिले हैं कि द्वि-भाषी बच्चे विविध सोच में ज्यादा अच्छा प्रदर्शन करते हैं। 

 

बहुभाषिकतावाद को बढ़ावा देने की जरूरत Necessity of Excitement of Multilingualism

 

  • भारत जैसे देश में सामाजिक सौहार्द्रता तभी सम्भव है जब एक-दूसरे की भाषा और संस्कृति को सम्मान दें। इस प्रकार का सम्मान ज्ञान के बिना सम्भव नहीं है। अज्ञानता, भय, घृणा और असहिष्णुता को जन्म देती है और राष्ट्रीय अस्मिता की अखण्डता के रास्ते में रोड़े अटकाने का कार्य करती है। प्रत्येक राज्य में एक वर्चस्व प्राप्त भाषा के साथ ही नस्लगत (समुदायगत) रुख व निष्ठा का पनपना स्वाभाविक है। यह लोगों और विचारों के स्वतन्त्र आवागमन को तो रोकता ही है, साथ ही रचनात्मक, नवाचार आदि को दबाता है और समाज के आधुनिकीकरण अब जबकि हम पाते हैं कि बहुभाषिकता, संज्ञानात्मक विकास व शैक्षणिक सम्प्राप्ति के बीच सकारात्मक जुड़ाव है तो यह अत्यन्त जरूरी है कि स्कूलों में बहुभाषी शिक्षण को प्रोत्साहित किया जाए।

 

भाषा विविधता वाली कक्षा में भाषा-शिक्षण की चुनौतियाँ 

Challenges of Language Teaching in a Diverse Language Classroom

 

क्षेत्रीय भाषाओं का छात्रों पर प्रभाव 

  • भारत बहुभाषिक देश है। यहाँ के लगभग हर क्षेत्र की भाषा में अन्तर है और छात्रों पर क्षेत्रीय भाषाओं का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है।

 

बच्चों को सामाजिक आधार पर सुदृढ़ करने की चुनौती

  • भाषा शिक्षण में बच्चों को सामाजिक आधार पर सुदृढ़ करने की चुनौती होती है क्योंकि यदि बच्चों को सामाजिक आधार पर सुदृढ़ नहीं बनाया गया तो बच्चे कभी भी एक अच्छा सामाजिक व्यक्ति नहीं बन पाएँगे। 

बच्चों को सांस्कृतिक आधार पर सुदृढ़ करने की चुनौती 

  • भाषा संस्कृति की अभिव्यक्ति होती है। अतः भाषा-शिक्षण में यह एक चुनौती है कि बच्चों को सांस्कृतिक आधार पर सुदृढ़ किया जाए।

 

बच्चों में सम्प्रेषण कौशल का विकास करने की चुनौती 

  • बच्चों में सम्प्रेषण कौशल का विकास करने के लिए भाषा पर नियन्त्रण एवं इसमें कुशलता आवश्यक है किन्तु क्षेत्रीय भाषाओं के प्रभाव से इसमें कई प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

 

छात्रों में पढ़ने, सुनने, बोलने तथा लिखने के कौशलों का विकास करने की चुनौती

  • भाषायी विविधता के कारण छात्रों को विविध भाषायी कौशलों के विकास में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि क्षेत्रीय भाषा के प्रभाव के कारण भाषायी कौशलों पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है। 


संसाधनों के अभाव की चुनौती 

  • भाषा-शिक्षण में संसाधनों का अभाव शिक्षण में आने वाला एक प्रमुख अवरोध है। विद्यालय के पास ऐसे संसाधनों की उपलब्धता नहीं है जिनका उपयोग भाषा-शिक्षण में किया जा सके।

 

उचित तथा योग्य अध्यापकों की कमी 

  • हमारे देश में जिस तरह भाषायी विविधता है उसके अनुरूप विविध भाषाओं के योग्य अध्यापकों की कमी है। भाषा के प्रति छात्रों की रुचि और रुझान का अभाव भाषा शिक्षण की एक समस्या यह है कि छात्रों में भाषा के प्रति रुचि तथा रुझान का अभाव पाया जाता है जिस कारण से भाषा-शिक्षण का कार्य और चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

 

बच्चों में भाषा सम्बन्धी कठिनाइयाँ, त्रुटियाँ तथा विकार

Language Related Dificulties, Errors and Disorders in Childrentiat 

पाठन सम्बन्धी कठिनाई

  • कुछ छात्रों को पढ़ने में कठिनाई होती है क्योंकि पूर्व कक्षाओं में उनका यह कौशल पूर्ण से विकसित नहीं हो पाता। 

उच्चारण सम्बन्धी कठिनाई

  • भाषा के अन्तर्गत व्याकरण से कहीं अधिक महत्त्व शुद्ध उच्चारण का है। शुद्ध उच्चारण वाक्य, व्याकरण-सम्मत होने पर भी अर्थ प्रदान करता है परन्तु व्याकरण सम्मत वाक्य अशुद्ध उच्चारण होने पर अपूर्ण माना जाता है क्योंकि श्रोता उसे समझ नहीं पाते अथवा प्रयत्न करके उसका अर्थ निकाल पाते हैं। 

वर्तनी सम्बन्धी कठिनाई 

  • यह बच्चों में पाई जाने वाली एक प्रमुख त्रुटि है। शुद्ध वर्तनी में अक्षरों को सुन्दर तथा सुडौल लिखने की अपेक्षा शब्दों में निहित अक्षरों या वर्णो को सही क्रम एवं शुद्ध रूप में लिखने को आवश्यक माना जाता है। भाषा-शिक्षण के लिए शुद्ध वर्तनी के प्रयोग करना महत्त्वपूर्ण है। उच्चारण और वर्तनी एक-दूसरे के - पूरक हैं तथा एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।

 

श्रवण सम्बन्धी विकार 

  • कुछ बालकों में श्रवण सम्बन्धी विकार पाए जाते हैं जिनके कारण वे भाषा ठीक से सुन नहीं पाते तथा इसे समझने में भी उन्हें कठिनाई होती है। दृष्टि सम्बन्धी विकार दृष्टि सम्बन्धी विकार के उच्चारण के विभिन्न भेदों को समझने में छात्र को कठिनाई हो सकती है।

 

व्याकरण सम्बन्धी कठिनाई 

  • अधिकतर बच्चों में व्याकरण सम्बन्धी त्रुटियाँ पाई जाती हैं जिस कारण उनका भाषा-शिक्षण अनियमित तथा अस्थिर हो जाता है।

 

आषा सम्बन्धी कठिनाइयों, चुटियों तथा विकारों को दूर करने के उपाय

  • बालकों को अक्षर बोध कराना। 
  • बालकों को विभिन्न अक्षरों की ध्वनियों का बोध कराना। 
  • उन्हें संयुक्ताक्षरों (ड़, ढ़) आदि से अवगत कराना। 
  • विभिन्न ध्वनियों के उच्चारण स्थान बताकर उसका अभ्यास कराना। 
  • बालकों को बलाघात का ज्ञान कराना। 
  • अल्पप्राण और महाप्राण ध्वनियों का बोध कराना। 
  • छात्रों को लघु और दीर्घ अक्षरों से परिचित कराना। 
  • अनुनासिक अक्षरों एवं चन्द्रबिन्दु से अवगत कराना। 
  • आशय के अनुरूप विभिन्न ध्वनियों पर बलाघात का अभ्यास कराना। 
  • " , ष और स, ब और व, रि और ऋ ण और न, ग्य और द्ध, तृ और त्र आदि का भेद बताना। 
  • बलाघात के साथ अक्षरों या शब्दों का उच्चारण कराना। 
  • विराम-चिह्नों का ध्यान रखते हुए पढ़ने का अभ्यास कराना। 
  • सम्बोधन के चिह्न पर समुचित बल देते हुए पढ़ने का अभ्यास कराना। प्रश्नसूचक वाक्यों में अन्तिम शब्द पर बल देकर पढ़ने का अभ्यास कराना। 
  • सहज गति से पढ़ने का अभ्यास कराना। 
  • विचार एवं भावानुरूप वाचन की शिक्षा देना। 
  • पठित सामग्री के आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुँचना । 
  • दो गद्य या पद्य अंशों को पढ़कर उनकी तुलना कराना। 
  • किसी अनुच्छेद की मात्रा, ध्वनि, विराम आदि का विश्लेषण कराना। 
  • आरोह अवरोहानुसार पढ़ने का अभ्यास कराना। 
  • गतिपूर्वक पढ़ने का अभ्यास कराना। 
  • मनोयोग (ध्यान) के साथ पढ़ने का अभ्यास कराना। 
  • गद्य, पद्य, नाटक आदि अलग-अलग से ढंग से पढ़वाना। 

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