ग्वालियर क्षेत्र का प्राचीन इतिहास -ग्वालियर का नामकरण । Gwalior Name Hisotry

ग्वालियर क्षेत्र का प्राचीन इतिहास  -ग्वालियर का नामकरण

ग्वालियर क्षेत्र का प्राचीन इतिहास  -ग्वालियर का नामकरण । Gwalior Name Hisotry


 

ग्वालियर क्षेत्र का प्राचीन इतिहास  

ग्वालियर' का नामकरण

  • वर्तमान 'ग्वालियरके नामकरण के सम्बन्ध में अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध किंवदंती के अनुसार इस क्षेत्र के पर्वत पर ग्वालिपा नामक एक सिद्ध पुरुष रहता था। कहा जाता है कि एक बार कुन्तलपुर ( वर्तमान कुतवारजिला मुरैना) का कछवाहा राजा सूरजसेन शिकार के दौरान अपनी प्यास बुझाने इस पर्वत पर पहुँचा और साधु से जल पिलाने का आग्रह किया। ग्वालिपा साधु ने कुण्ड का जल पिलाया जिसे पीते ही राजा का कुष्ठ रोग दूर हो गया। इससे अनुग्रहीत होकर राजा ने साधु के लिये कुछ करने की इच्छा प्रकट की। 
  • साधु के आदेश पर राजा ने पर्वत पर सुरक्षा दीवार का निर्माण कराया और कुण्ड का विस्तार किया। इसी ग्वालिपा साधु के नाम पर यह क्षेत्र 'ग्वालिअवारअथवा 'ग्वालियरकहलाया तथा उसी कुण्ड को राजा के नाम से जोड़ कर 'सूरज कुण्डकहा गया। 
  • प्राचीन साहित्य एवं अभिलेखों में भी ग्वालियर के अनेक नाम प्रचलित हैं जो संभवतः एक समतल शिखर वाली पहाड़ी पर बने दुर्ग के कारण पड़े। विभिन्न कालों में अलग-अलग नामों से ग्वालियर दुर्ग जाना गया। इसका उल्लेख तत्कालीन साक्ष्यों में मिलता है।
  • इस सम्बन्ध में ग्वालियर दुर्ग से प्राप्त प्राचीनतम साक्ष्य के रूप में हूण शासक मिहिरकुल का लगभग छठी शताब्दी ईस्वी का सूर्य मंदिर अभिलेख है जिसमें इस पर्वत को 'गोपाह्वयकहा गया । 
  • इसी दुर्ग से प्राप्त 875 ई. (संवत् 932) और 876 ई. संवत् अर्थात् 933 के प्रतिहार कालीन चतुर्भुज मंदिर अभिलेखों में इस पर्वत का नाम क्रमश: 'गोपाद्रिऔर 'गोपगिरिमिलता है। 
  • ग्वालियर दुर्ग से प्राप्त कच्छपघात कालीन सास बहू मंदिर अभिलेख में (सम्वत् 1150) 1093 ई. में भी इस पर्वत का नाम 'गोपाद्रिउल्लिखित है। 
  • यहीं से प्राप्त (सम्वत् 1161) 1104 ई. के शिव मंदिर अभिलेख में 'गोपालिकेरा' नाम मिलता है। 
  • तोमर कालीन शिलालेखों में इसका नाम 'गोपाचलऔर 'गोपगिरिमिलता है तथा इसे 'महादुर्गकहा गया है। 
  • स्थानीय लेखक फज़लअली और हीरामन ने इस पर्वत को 'गोमन्तकहा है जिसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है।

 

  • इन उपर्युक्त प्रचलित नामों में 'गोपशब्द का प्रयोग समान रूप से देखने को मिलता है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि 'ग्वालियरशब्द का उद्गम 'गोपहारमें समाहित है अर्थात् यह पर्वत और इसके आस पास का प्रदेश गोप संस्कृति का केन्द्र था और गोपालन इस क्षेत्र का प्रमुख व्यवसाय था । सम्भवतः इसी कारण मानसिंह तोमर के शिलालेख में इस गोपगिरि को 'गोवर्धनंगिरिवरंकहा गया है। 
  • आर. एन. मिश्र ने गोपालिकेरा का समानार्थी शब्द गोपालखेटक को मानते हुए इसे दो शब्दों का युग्म बताया है। इनमें गोपालयहाँ के गोपालक निवासियों की ओर तथा खेटक शब्द उस भू-भाग की ओर संकेत करता है जो प्राकृतिक रूप से एक ओर पर्वत से तथा दूसरी ओर नदी से घिरा हो। 
  • इस प्रकार गोपाल खेटक से आशय उन गोपालन व्यवसाय से जुड़े लोगों से है जो ऐसी जगह आकर बस गये जहाँ एक ओर नदी और दूसरी ओर पर्वतीय परिवेश था। ये दोनों ही सन्दर्भ ग्वालियर के सम्बन्ध में उचित प्रतीत होते हैं। 


  • सिंधिया काल में इसका नाम 'ग्वाल्हेरमिलता है। नामकरण की लम्बी श्रृंखला में प्रारम्भिक काल में यह पर्वत धार्मिक स्थल के रूप में मान्य हुआ जैसा कि ग्वालिपा साधु सम्बन्धी अनुश्रुति और मिहिरकुल द्वारा निर्मित सूर्य मंदिर के निर्माण सम्बन्धी अभिलेखीय साक्ष्य से विदित होता है किन्तु कालान्तर में यह सामरिक गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र बनता गया।
  • ग्वालियर के लिए प्रचलित उपर्युक्त नामावली के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि यह ग्वालियर क्षेत्र को परिभाषित न करके मात्र ग्वालियर दुर्ग को ही केन्द्रित करती है।

 

  • ग्वालियर या गोपाचल नाम का इतिहास अधिक प्राचीन नहीं है। त्रेता और द्वापर युग में इसे मधुपुरी या मथुरा के नाम से जाना जाता था। 
  • महाभारत काल में ग्वालियर के आस पास बसे प्रसिद्ध नगर कुन्तलपुरनरवर (नलपुर)पद्मावती और अधिराज (दतिया) का उल्लेख मिलता है। 
  • इस समय तक ग्वालियरनगर या राज्य के रूप में अपना परिचय नहीं दे पाया था। सम्भव है कि उस समय गोपाचल के निकटवर्ती क्षेत्रों में सामाजिक सुव्यवस्थासांस्कृतिक सम्पन्नता एवं भौतिक सुविधाएँ अधिक थीं। हो सकता है कि सुविधाओं के अभाव में तथा अविकसित भू-भाग के कारण गोपाचल क्षेत्र मानव सभ्यता के विकास और आवास के लिए अनुपयुक्त रहा हो।
 
  • ग्वालियर अंचल में मानव के निवास के प्रमाण लाखों वर्ष से प्राप्त होते हैं जिसका सम्बन्ध पूर्व पाषाण युग से है। 
  • पूर्व पाषाणकाल एवं मध्य पाषाणकाल के पुरास्थलों में ग्वालियर जिले में गुप्तेश्वरआम्रपहाड़विरुरदेवखोमहाराजपुरचंगेज खाँ की समाधिबरहाशंकरपुरपुरानी छावनीटीकलाविटोलीकरैलाबहादुरपुरकौमारीपनिहारसिरसागिरवाई नाकागोकुलपुरकेदारपुरासोनाराबोआ साहब का पुराउटीलाजोरासी घाटीशालेपुरागुर्रीसिल्होलीभिरकुलीझुण्डपुरापुतलीघरबैजनाथ छाजभाटों का पुरा आदि हैं। 
  • मुरैना जिले में नूराबादजसारापहाड़गढ़ आदि प्रमुख स्थल हैं। 
  • दतिया जिले के प्रमुख पुरा स्थलों में केवलारीरदुआपुरस्योढ़ाइन्दरगढ़डबरा आदि हैं। गुना जिले में कदवाहामहुआगौचीचाचौड़ा धारीचन्देरी आदि प्रमुख स्थल हैं। 
  • ग्वालियर से 3 कि.मी. दूर गुप्तेश्वर की गुफाओं एवं पहाड़ीपर पूर्वपुरा पाषाण एवं मध्य पाषाणयुगीन मानव संस्कृति के प्रमाण स्वरूप हथियार और खुरचनियाँमानव अस्थियाँ एवं बैलहिरणबंदर के चित्र आदि मिले हैं।
  • ग्वालियर से 10 कि.मी. दूर जड़ेरुआग्राम में लगभग 2600 वर्ष पूर्व की संस्कृति के प्रमाण स्वरूप कालेलालभूरे रंग की मिट्टी के चित्रित बर्तनलौहअस्त्रऔजार एवं ताँबे का घण्टा आदि प्राप्त हुए हैं। 
  • भिण्ड जिले के कुछ ग्रामों से प्रस्तरयुगीन उपकरण मिले हैं। 
  • मुरैना जिले में नूराबादजसारा तथा कुतवार में प्रागैतिहासिक युगीन उपकरण मिलें हैं।
  • श्योपुर के समीपवर्ती टीले पर उच्चपुरा प्रस्तर युगीन उपकरण मिलें हैं। 
  • श्योपुर के समीप ही बनास  नदी के किनारे ताम्राश्म युगीन उपकरण मिले हैं जिनका समय 2000 से 1000 ईसा पूर्व माना गया है। इसी युग के अवशेष भिण्ड जिले के रूर में तथा आसन नदी के पास हुरई गढ़ी में मिले हैं। 
  • गोहद के समीप स्थित मौ नामक ग्राम में दो हजार वर्ष से भी प्राचीन मृद्भाँड प्राप्त हुए हैं। 
  • ग्वालियर मोहना पहाड़गढ़ के त्रिकोणीय भूभाग में बहुसंख्यक शैलाश्रय प्राप्त हुए हैं जिनमें अन्य स्थानों के शैलचित्रों के समान आखेट दृश्य नहीं हैंअपितु गोपालन और गृहस्थ जीवन के भावपूर्ण चित्र अंकित हैं। 
  • ग्वालियर क्षेत्र के शैलचित्रों के काल निर्धारण के बारे में विद्वान एक मत नहीं हैं तथापि निस्संदेह बहुसंख्यक पीढ़ियों तक अनवरत चली आ रही शैलचित्र कला की यह साधना गोपालक संस्कृति को प्रमाणित करती है। 
  • प्रारंभिक ऐतिहासिक काल से लगभग तृतीय शती ईसा पूर्व तक इस क्षेत्र में अनेक ऐतिहासिक घटनाएँ घटींजिनके संकेत हमें विभिन्न पुरातात्विक स्थलों से मिले हैं इनमें गिलौलीखेड़ा (मुरैना)आकोड़ाबाराकलाँ (भिण्ड)मेवाड़ाऊँचडीहखेरा सुरदासी आदि स्थल उल्लेखनीय हैं। इन स्थलों से विशेषतः चित्रित धूसरमृद्माण्ड संस्कृति के अवशेष मिले हैं।
  • इसके अतिरिक्त तुमैनजड़ेरुआसोरोंकुतवारभदावलीबड़ौनी खुर्दचौपाराबरेछाबसवाहाचैमाबहौरा का बागबरखेड़ाअगोरा, (दतिया) आदि स्थलों के पुरातात्विक उत्खनन के फलस्वरूप विभिन्न सांस्कृतिक जमाव मिले हैं जिनमें चित्रित धूसर मृद्भाण्ड तथा ब्लैक स्लिप्ड मृद्भाण्डों के अवशेष प्रमुखतः मिले हैं।

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