शिक्षण अधिगम के सिद्धान्त |सुक्ष्म शिक्षण |सूक्ष्म शिक्षण के सिद्धान्त |शिक्षण विधियों के प्रकार |Theories of Teaching Learning in Hindi

शिक्षण अधिगम के सिद्धान्त, सुक्ष्म शिक्षण ,सूक्ष्म शिक्षण के सिद्धान्त ,शिक्षण विधियों के प्रकार

शिक्षण अधिगम के सिद्धान्त |सुक्ष्म शिक्षण |सूक्ष्म शिक्षण के सिद्धान्त |शिक्षण विधियों के प्रकार Theories of Teaching Learning in Hindi



शिक्षण अधिगम के सिद्धान्त Theories of Teaching Learning 

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सुचारु एवं प्रभावशाली बनाने के लिए सिद्धान्तों का विभाजन दो वर्गों में किया गया है-अधिगमकर्ता से सम्बन्धित सिद्धान्त एवं शिक्षण प्रक्रिया से सम्बन्धित सिद्धान्त. 


अधिगमकर्ता से सम्बन्धित सिद्धान्त Theories Related to Learner 

अध्यापन एक त्रिध्रुवी प्रक्रिया है। इसमें अधिगमकर्ता का प्रमुख स्थान है, क्योंकि शिक्षण प्रक्रिया द्वारा उसके व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन लाकर उसका सर्वांगीण विकास किया जाता है।

 

इसके लिए निम्नलिखित सिद्धान्तों का अनुपालन किया जाता है -


व्यक्तिगत विभिन्नता का सिद्धान्त

  • कोई भी दो व्यक्ति एकसमान नहीं होते। उनकी योग्यताओं, क्षमताओं, रुचियों में बहुत अन्तर होता है। इसलिए अध्यापक अध्यापन के दौरान छात्रों की व्यक्तिगत विभिन्नता को ध्यान में रखता है।

 

छात्र केन्द्रिता का सिद्धान्त

  • अधिगम का प्रमुख उद्देश्य छात्र के व्यवहार में परिवर्तन लाना होता है। इसलिए समस्त अध्यापन-अधिगम प्रक्रिया छात्र केन्द्रित होनी चाहिए। इसका अर्थ यह है कि छात्रों की योग्यता, क्षमता, आवश्यकता आदि को ध्यान में रखकर अध्यापन-अधिगम क्रियाओं का आयोजन किया जाना चाहिए।

 

सक्रिय सहयोग लेने का सिद्धान्त

  • अध्यापन अधिगम प्रक्रिया के दो पक्ष होते हैं शिक्षक एवं छात्र । यह प्रक्रिया तभी सफल हो सकती है जब दोनों ही क्रिया में सक्रिय रहें। इसलिए इस सिद्धान्त के तहत अध्यापक छात्रों को सक्रिय भागीदारी निभाने के लिए अभिप्रेरित करता है।

 

शिक्षण प्रक्रिया से सम्बन्धित सिद्धान्त Theories Related to Teaching Process

 

नियोजन का सिद्धान्त 

  • किसी भी कार्य की सफलता का आधार नियोजन होता है। नियोजन करने से पूर्व क्या, क्यों और कैसे के प्रश्नों का उत्तर ढूँढा जाता है। क्या का अर्थ पाठ्यवस्तु से तथा क्यों का अर्थ अध्यापन के उद्देश्य से है। इसी प्रकार कैसे का तात्पर्य शिक्षण विधि, नीतियों और युक्तियों से है।

व्यूह रचनाओं एवं युक्तियों के चयन तथा उपयोग का सिद्धान्त 

  • समस्त शिक्षण प्रक्रिया में उद्देश्यों का निर्धारण तथा व्यूह रचनाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है। व्यूह रचनाएँ प्रस्तावित उद्देश्यों को प्राप्त करने में अध्यापक तथा छात्रों की सहायता करती हैं।

 

अधिगम परिस्थितियों से सम्बन्धित सिद्धान्त 

  • अधिगम परिस्थितियों के अन्तर्गत वे परिस्थितियाँ आती हैं, जिनके द्वारा छात्र अन्तः क्रिया कर नवीन ज्ञान, कौशल तथा अभिवृत्ति अर्जित करता है। 

  • इस प्रकार स्पष्ट है कि शैक्षिक-तकनीक, अधिगम की विधियों एवं प्रविधियों के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की सहायक सामग्री के प्रयोग द्वारा शिक्षा के आधुनिकीकरण में शिक्षकों के लिए सहायक की भूमिका अदा करती है।

 

अध्यापन में शैक्षिक तकनीक की उपयोगिता

 

शैक्षिक तकनीक की निम्नलिखित विशेषताओं से इसकी उपयोगिता का पता चलता है- 


  • यह वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक प्रयोगों पर आधारित होती है। 
  • यह शिक्षण को वैज्ञानिकरुचिकरवस्तुनिष्ठसरल एवं उद्देश्यपरक बनाने में सहायक होती है।
  • यह शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को अधिक प्रभावशाली एवं सार्थक बनाती है। 
  • इसमें प्रभावशाली अधिगम के लिए विधियों एवं तकनीकों के विकास पर बल दिया जाता है। 
  • यह छात्रों एवं शिक्षकों के व्यवहारों में अपेक्षित परिवर्तन लाती है एवं शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सीखने की परिस्थितियों को व्यवस्थित या संगठित करती है।

 


सुक्ष्म शिक्षण क्या है Micro Teaching

 

  • शिक्षक व्यवहार में सुधार के लिए अपनाई जाने वाली प्रविधियों में से सूक्ष्म शिक्षण भी है। यह एक प्रशिक्षण प्रणाली है जिसका प्रयोग अध्यापकों को कक्षा अध्यापन प्रक्रियाओं की शिक्षा देने हेतु किया जाता है।

 

  • सूक्ष्म शिक्षण वास्तविक शिक्षण है, परन्तु इस प्रणाली में साधारण कक्षा अध्यापन की जटिलताओं को कम कर दिया जाता है तथा एक समय में किसी भी एक विशेष कार्य एवं कौशल के प्रशिक्षण पर ही जोर दिया जाता है। इसमें प्रतिपुष्टि या पृष्ठपोषण द्वारा अभ्यास को नियन्त्रित किया जा सकता है।

 

डी. एलन की परिभाषा के अनुसार, "सूक्ष्म शिक्षण समस्त शिक्षण को लघु क्रियाओं में बाँटना है।" सूक्ष्म शिक्षण चक्र को निम्नलिखित चित्र की सहायता से समझा जा सकता है

 

शिक्षण अधिगम के सिद्धान्त |सुक्ष्म शिक्षण |सूक्ष्म शिक्षण के सिद्धान्त |शिक्षण विधियों के प्रकार Theories of Teaching Learning

  1. पाठ नियोजन 
  2. शिक्षण
  3. पृष्ठपोषण
  4. पुनः पाठ योजन
  5. पुनः शिक्षण 
  6. पुनः पृष्ठपोषण 


 

सूक्ष्म शिक्षण के सिद्धान्त

 

  • यह वास्तविक अध्यापन है।
  • इसमें एक समय में एक ही कौशल के प्रशिक्षण पर बल दिया जाता है। 
  • अभ्यास की प्रक्रिया पर नियन्त्रण रखा जा सकता है।
  • पृष्ठपोषण के प्रभाव की परिधि विकसित होती है।

 

शिक्षण कौशल Teaching Skills

 

  • सूक्ष्म शिक्षण का प्रयोग शिक्षण कौशलों के विकास के लिए किया जाता है। 
  • शिक्षण कौशलों से तात्पर्य उन शिक्षक व्यवहार स्वरूपों से होता है, जो छात्रों में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन के लिए प्रभावशाली होते हैं। 
  • एन.एल. गेज ने शिक्षण कौशल को इस तरह परिभाषित किया है, “शिक्षण कौशल वह विशिष्ट अनुदेशन प्रक्रिया है जिसे अध्यापक अपनी कक्षा शिक्षण में प्रयोग करता है एवं जो शिक्षण-क्रम की उन क्रियाओं से सम्बन्धित होता है, जिन्हें शिक्षक अपनी कक्षा अन्तः क्रिया में लगातार उपयोग करता है।" 


अध्यापक अपने शिक्षण में अनेक प्रकार के कौशलों का उपयोग करता है। इनमें से कुछ प्रमुख कौशल इस प्रकार हैं-

 

  • उद्दीपन 
  • समीपता 
  • पुनर्बलन 
  • खोजपूर्ण प्रश्न 
  • छात्र व्यवहार का ज्ञान 
  • व्याख्यान 
  • नियोजित पुनरावृत्ति 
  • विन्यास प्रेरणा 
  • मौन एवं अशाब्दिक अन्त प्रक्रिया 
  • प्रश्न पूछना 
  • विकेन्द्री प्रश्न 
  • दृष्टान्त देना 
  • उच्चस्तरीय प्रश्न करना 
  • सम्प्रेषण

 

शिक्षण विधियाँ एवं शिक्षण व्यूह रचनाएँ
Teaching Methods and Teaching Strategies

 

  • शिक्षण व्यूह रचना शिक्षण विधि से भिन्न होती है। शिक्षण व्यूह रचना का अर्थ है शिक्षण की रणनीति का निर्माण एवं उसका प्रयोग जबकि शिक्षण विधि का अर्थ होता है- शिक्षण का तरीका । यद्यपि कुछ शिक्षण व्यूह रचनाओं को आव्यूहों की संज्ञा भी दी जा सकती है, परन्तु जब उन्हें आव्यूह कहा जाता है, तब उनका उद्देश्य बदल जाता है।

 

  • शिक्षण विधियों में कार्य तथा प्रस्तुतीकरण को महत्त्व दिया जाता है, जबकि शिक्षण आव्यूहों में उद्देश्यों को महत्त्व दिया जाता है। 
  • शिक्षण विधियाँ तीन प्रकार की होती हैं। 
  • कथन विधियाँ, प्रदर्शन विधियाँ एवं कार्य विधियाँ

 

शिक्षण व्यूह रचना परिभाषा 

  • स्टोन्स एवं मौरिस के अनुसार, “शिक्षण व्यूह रचना पाठ की एक सामान्य योजना है, जिसमें उसकी संरचना, शैक्षणिक लक्ष्यों के रूप में छात्रों का अपेक्षित व्यवहार और रव्यूह रचना को प्रयोग करने के लिए आवश्यक नियोजित युक्तियों की रूपरेखा शामिल है।"

 

शिक्षण व्यूह रचनाओं को निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है- 

 

  • प्रभुत्ववादी व्यूह रचनाएँ 
  • प्रजातान्त्रिक व्यूह रचनाएँ

 


  • व्याख्यान, प्रदर्शन, ट्यूटोरियल समूह एवं अभिक्रमित अनुदेशन प्रभुत्ववादी व्यूह रचना के प्रकार हैं। प्रजातान्त्रिक व्यूह रचना के अन्तर्गत कई व्यूह रचनाएँ आती हैं।

 

  • जिनमें से कुछ प्रमुख व्यूह रचनाएँ इस प्रकार हैं प्रश्नोत्तर व्यूह रचना, खोज अथवा अन्वेषण व्यूह रचना, प्रोजेक्ट व्यूह रचना, सामूहिक वाद-विवाद व्यूह रचना, गृहकार्य व्यूह रचना, कम्प्यूटर द्वारा प्रशिक्षण इत्यादि ।

 

शिक्षण विधियों के प्रकार Types of Teaching Methods

  • शिक्षक, शिक्षण विधियों के उपयोग से छात्रों में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन लाता है और छात्र शिक्षकों की सहायता से सीखने के अनुभव प्राप्त करते हैं, परन्तु अनेक शिक्षण विधियों को छात्रों की समस्त क्षमताओं के विकास के लिए प्रयुक्त नहीं किया जा सकता।

 

  • शिक्षक एवं छात्रों की भूमिका के आधार पर शिक्षण विधियों को निम्नलिखित चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

 

  • शिक्षक-नियन्त्रित अनुदेशन 
  •  छात्र नियन्त्रित अनुदेशन 
  • समूह-नियन्त्रित अनुदेशन 
  • शिक्षक व छात्र नियन्त्रित अनुदेशन

 

शिक्षक-नियन्त्रित अनुदेशन Teacher Controlled Instruction

 

  • यह शिक्षण की सर्वाधिक प्राचीन विधि है। इसमें शिक्षक की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होती है। शिक्षक अधिक क्रियाशील रहता है। इस प्रकार शिक्षण विधियों को निम्नलिखित तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

 

  1. व्याख्यान विधि 
  2. पाठ-प्रदर्शन विधि 
  3. अनुवर्ग-शिक्षण विधि

 

छात्र- नियन्त्रित अनुदेशन Student Controlled Instruction

 

  • 19वीं शताब्दी में मनोविज्ञान ने शिक्षा एवं शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावित किया और छात्र के विकास को प्राथमिकता दी जाने लगी। प्रकृतिवादी, दर्शन ने भी छात्र की प्रकृति के अनुसार शिक्षा की व्यवस्था को महत्त्व दिया। इस प्रकार की शिक्षा छात्र केन्द्रित होने लगी और छात्र का स्थान मुख्य एवं शिक्षक का स्थान गौण होता गया।

 

  • छात्र - नियन्त्रित अनुदेशन में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि छात्र का विकास स्वाभाविक रूप से हो, जिससे उसकी क्षमताओं तथा योग्यताओं का सम्पूर्ण विकास हो सके।

 

  • छात्र-नियन्त्रित अनुदेशन के उदाहरण-कैलर-योजना, अभिक्रमित अनुदेशन, कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन, स्वामित्व अधिगम, गृहकार्य विधि, खेल-विधि, कहानी विधि इत्यादि छात्र-नियन्त्रित अनुदेशन के उदाहरण हैं।

 

समूह-नियन्त्रित अनुदेशन Group Controlled Instruction

 

  • समूह नियन्त्रित अनुदेशन में छात्रों को विभिन्न समूहों में बाँटकर शिक्षा दी जाती है। यह एक प्रकार का छात्र - नियन्त्रित अनुदेशन ही है, अन्तर केवल इतना है कि इसमें शिक्षक छात्रों की पूरी निगरानी करते हैं।

 

  • अनुकरणीय विधि, शैक्षिक यात्रा विधि, योजना विधि, ऐतिहासिक खोज विधि इत्यादि समूह नियन्त्रित विधि के उदाहरण हैं।

 

शिक्षक व छात्र नियन्त्रित अनुदेशन 

Teacher and Student Controlled Instruction

 

  • शिक्षक व छात्र नियन्त्रित अनुदेशन में शिक्षक एवं छात्र दोनों की भूमिका होती है। प्रश्नोत्तर विधि, अन्वेषण विधि, सामूहिक वाद-विवाद विधि संवेदनशील प्रशिक्षण विधि इत्यादि शिक्षक व छात्र नियन्त्रित अनुदेशन के उदाहरण हैं।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.