बच्चा: एक समस्या समाधक वैज्ञानिक अन्वेषक के रूप |समस्या समाधान की वैज्ञानिक विधि |Child as a Problem Solver

 बच्चा: एक समस्या समाधक  वैज्ञानिक अन्वेषक के रूप , समस्या समाधान की वैज्ञानिक विधि 

बच्चा: एक समस्या समाधक  वैज्ञानिक अन्वेषक के रूप  |समस्या समाधान की वैज्ञानिक विधि |Child as a Problem Solver


समस्या समाधान का अर्थ Meaning of Problems Solving

 

  • समस्या को सुलझाना हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग है। हर दिन हम सरल से लेकर जटिल समस्याओं का समाधान करते हैं। कुछ समस्याओं का हल करने में कम समय लगता है और कुछ में अधिक। किसी समस्या का "समाधान करने के लिए या समुचित साधन उपलब्ध नहीं होते तो समाधान का विकल्प देना पड़ता है।

 

  • किसी भी प्रकार की समस्या का समाधान निकालने में हमारा चिन्तन निर्देशित और केन्द्रित हो जाता है और सही और उपयुक्त निर्णय पर पहुँचने के लिए हम सभी संसाधनों आन्तरित (मन) और बाह्य (दूसरों का समर्थन और सहायता) दोनों का उपयोग करने का प्रयास करते हैं। उदाहरण के लिए यदि आप एक परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करना चाहते हैं तो आप परिश्रम से पढ़ाई, शिक्षकों, मित्रों और माता-पिता की सहायता लेते हैं और अन्त में आप अच्छे अंक प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार समस्या समाधान एक विशिष्ट समस्या से निपटने की दिशा में निर्देशित चिन्तन है। स्टैनले ग्रे के शब्दों में "समस्या समाधान वह प्रतिमान है जिसमें तार्किक चिन्तन निहित होता है।" 


  • समस्या समाधान के अनेक स्तर हैं। कुछ समस्याएँ बहुत सरल होती हैं जिनको हम बिना किसी कठिनाई के हल कर सकते हैं।

 

  • निर्देशित चिन्तन के तीन तत्व हैं समस्या, लक्ष्य और लक्ष्य दिशा में एक कदम। ऐसी दो विधियाँ हैं जिनका प्रमुख रूप से समस्या समाधान में उपयोग किया जाता है, ये हैं 'मध्यमान - अन्त - विश्लेषण' और 'एल्गोरिद्म' या कलन विधि।

 

  • मध्यमान - अन्त- विश्लेषण में विशेष प्रकार की समस्याओं का समाधान करने में एक विशिष्ट प्रकार की प्रक्रिया का चरणबद्ध प्रयोग किया जाता है।

 

  • ह्यूरिस्टिक्स या अन्वेषणात्मक के मामले में व्यक्ति समस्या समाधान के लिए किसी सम्भव नियम या विचार का उपयोग करने के लिए स्वतन्त्र है। इसे अभिसूचक नियम (रूल ऑफ थम्ब) भी कहा जाता है।

 

बच्चा: एक समस्या समाधक के रूप में Child as a Problem Solver

 

  • स्कूली जीवन में एक बच्चे के समक्ष अनेकों समस्याएँ आती हैं तथा उनका समाधान भी उसे ही ढूँढना होता है। बच्चों को इस स्तर के योग्य बनाने के लिए आवश्यक है कि उसका व्यक्तिगत विकास किया जाए जिससे कि वह सभी प्रकार की परिस्थितियों का सही ढंग से सामना कर सके।

 

बच्चे को समस्या समाधक के रूप में बनाने के लिए निम्नलिखित गुणों का विकास किया जा सकता है-

 

  • बच्चे में आत्म पहचान का गुण विकसित करके 
  • अपनी कमियों को स्वीकार करना तथा दूर करना सिखाकर 
  • बच्चे को स्वावलम्बी बनाने के लिए प्रोत्साहित करके 
  • बच्चे में भाषा का विकास करके 5. बच्चे को बार-बार प्रयास करके

 

समस्या समाधान की वैज्ञानिक विधि Scientific Method of Problem Solving

 

स्किनर के अनुसार, समस्या समाधान की वैज्ञानिक विधि में निम्नलिखित छः सोपानों का  अनुसरण किया जाता है -

  • समस्या को समझना 
  • सम्भावित समाधानों का मूल्यांकन 
  • सम्भावित समाधानों का परीक्षण 
  • समाधान का प्रयोग 
  • जानकारी का संग्रह 
  • सम्भावित समाधानों का निर्माण 
  • निष्कर्षों का निर्णय

 

बच्चा : एक वैज्ञानिक अन्वेषक के रूप में 
Child as a Scientific Investigator

 

  • जब बालक अपने ज्ञान और अनुभव के माध्यम से किसी समस्या के प्रत्येक पहलू को जानने लगता है तथा स्वयं ही समस्या का समाधान खोज लेता है तब बच्चे में एक वैज्ञानिक अन्वेषक के गुण आने लगते हैं तथा वह अपनी समस्याओं का स्वयं समाधान करने लगता है।

 

  • बच्चों को वैज्ञानिक अन्वेषक के रूप में विकास के लिए निम्नलिखित गुणों का विकास किया जा सकता है

 

बच्चों के समक्ष छोटी-छोटी समस्याएँ रखकर 

  • बच्चों में एक वैज्ञानिक अन्वेषक बनने के लिए यह आवश्यक है कि उसे यह जानकारी हो कि समस्या क्या है? इसके लिए बच्चों के समक्ष छोटी-छोटी समस्याओं को रखकर उनसे समस्या के विषय में पूछा जा सकता है।

 

बच्चों को सम्भावित समाधानों के निर्माण हेतु प्रेरित करके 

  • बच्चों को समस्या देकर उस समस्या से सम्बन्धित समाधान हेतु उपाय बताने के लिए प्रेरित करना चाहिए जिससे बच्चों में समस्या को स्वयं हल करने के गुण विकसित हो सकें।

 
बच्चे के द्वारा बताए गए सम्भावित समाधानों का परीक्षण करके 

  • एक शिक्षक को बच्चे में वैज्ञानिक अन्वेषक के गुण विकसित करने के लिए बच्चे द्वारा समस्या पर बताए गए समाधानों का परीक्षण करना अत्यन्त आवश्यक है कि बच्चा समस्या का समाधान सही दिशा में कर भी रहा है अथवा नहीं।

 

बच्चों का वैज्ञानिक अन्वेषक के रूप में विकास क्यों?

 

  • इससे बालक अपने संज्ञानात्मक स्तर के अनुरूप विज्ञान के तथ्यों व धारणाओं को समझने और इसे प्रयुक्त करने के योग्य हो जाएगा। 
  • बालक उन तरीकों और प्रक्रियाओं को समझ सके, जिससे वैज्ञानिक ज्ञान का सृजन किया जा सके तथा इसका वैधीकरण भी किया जा सके।
  • बालक विज्ञान के ऐतिहासिक एवं विकास सम्बन्धी परिप्रेक्ष्यों को समझ सके। साथ ही विज्ञान को एक सामाजिक उद्यम की तरह देख सके। 
  • बालक खुद को स्थानीय तथा वैश्विक परिवेश से जोड़ सके और विज्ञान, प्रौद्योगिकी और समाज के बीच की अन्तःक्रिया को व तद्जन्य उपजे मुद्दों को समझ सके। 
  • बालक रोजगार की दुनिया में पैर टिका पाने के लिए आवश्यक सैद्धान्तिक और व्यावहारिक कुशलता हासिल कर सके। 
  • बालक अपनी स्वाभाविक जिज्ञासा, सौन्दर्य बोध और रचनात्मकता से विज्ञान व प्रौद्योगिकी को परिभाषित कर सके। बालक ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, सहयोग, जीवन के प्रति सरोकार और पर्यावरण सुरक्षा जैसे मूल्यों की महत्ता समझ सके। 
  • बालक 'वैज्ञानिक स्वभाव' विकसित करना सीख जाए जिससे हमारा मतलब है - वस्तुनिष्ठता, आलोचनात्मक सोच और भय एवं अन्धविश्वास से मुक्ति।

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