ध्वनि बूम तरंगें विशेषताएं।ध्वनि का वेग,परावर्तन अपवर्तन अनुनाद डॉप्लर प्रभाव |sound characteristics in Hindi

ध्वनि बूम तरंगें विशेषताएं।ध्वनि का वेग,परावर्तन अपवर्तन अनुनाद  डॉप्लर प्रभाव

ध्वनि बूम तरंगें विशेषताएं।ध्वनि का वेग,परावर्तन अपवर्तन अनुनाद  डॉप्लर प्रभाव |sound characteristics in Hindi


 

ध्वनि क्या है ध्वनि के गुण 

 

  • सभी प्रकार की ध्वनि, पदार्थ निर्मित वस्तुओं के कम्पनों से उत्पन्न होती हैं। हमारे कंठ में स्वर-यंत्र (larynx) में वाक्-तन्तुओं (vocal chords) के कम्पन से ही हमारी आवाज उत्पन्न होती है। सितार में लगे तार में कम्पन से संगीत ध्वनि तथा तबला, ढोलक अथवा ड्रम आदि में उन पर मढ़ी खाल अथवा झिल्ली के कम्पन्न से ध्वनि स्वर उत्पन्न होते हैं। इनमें से प्रत्येक मामले में ध्वनि तरंग की आवृति और कम्पमान स्रोत (vibrating source) की आवृत्ति अभिन्न है।

 

  • ध्वनि तरंगें अनुदैर्ध्य-तरंगें होती हैं, जो निर्वात में गमन नहीं कर सकती । इनके संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है: जैसे- वायु, द्रव, अथवा ठोस । ठोसों व द्रवों की अपेक्षा गैस (अथवा वायु) ध्वनि की अच्छी चालक नहीं है। दूर से आती रेलगाड़ी की ध्वनि वायु में होकर कान को नहीं सुनाई पड़ती, जबकि रेल पटरी पर कान रखकर सुनें तो यह ध्वनि स्पष्ट सुनाई पड़ती है ।

 

1 ध्वनि की विशेषताएं

 

(i) तारत्व (Pitch) एवं आवृत्ति

  • ध्वनि का तारत्व (अर्थात् तीक्ष्णता) इसकी आवृत्ति पर निर्भर करता है। उच्च आवृत्ति का तारत्व उच्च होता है। पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की आवाज का तारत्व उच्च (तीक्ष्ण) होता है।

 

  • मानव कान सामान्यतः उन ध्वनियों के प्रति संवेदी होता है जिनकी आवृत्ति 16 से 20,000 हर्ट्ज के बीच होती है। 
  • 16 हर्ट्ज से कम आवृत्ति की ध्वनि को अवश्रव्य (infrasonic) तथा 20,000 हर्ट्ज से अधिक आवृत्ति की ध्वनि को पराश्रव्य (ultrasonic) ध्वनि कहते हैं। 
  • सामान्य मानव-प्राणी 20,000 Hz से अधिक को सुन पाने में सक्षम नहीं होते हैं, किन्तु बिल्लियाँ व कुत्ते आदि कुछ जन्तु इन्हें सुन पाते हैं। 
  • डॉल्फिनें 100,000 हर्ट्ज जैसी उच्च आवृत्ति (उच्च तारत्व) की ध्वनि उत्पन्न कर सकती हैं, जिसकी वजह से वे जल में एक-दूसरे का पता लगा लेती हैं।

 

(ii) प्रबलता – 

  • ध्वनि की प्रबलता (loudness) तरंगों की ऊर्जा से संबंधित तथा तरंग आयाम पर निर्भर करती है। ध्वनि की सापेक्ष प्रबलता डेसिबेल में मापी जाती है। कुछ सामान्य ध्वनि और उनके शोर स्तर को तालिका 2 में दर्शाया है। 85 db या उससे ऊपर के शोर से अधिक की ध्वनि हमारे कान को खराब कर सकती है। 

 

ध्वनि का स्रोत -शोर स्तर (db)

फुसफुसाहट -020

साधारण बातचीत -065

व्यस्त सड़क पर यातायात -070

प्रवर्धित (amplified) रॉक संगीत -120

जैट वायुयान (30 मी० दूर)-140

 

ध्वनि की बढ़ती प्रबलता – 

  • कभी-कभी यह आवश्यक हो जाता है कि ध्वनि की प्रबलता को बढ़ाया जाए। कम्पनों को वायु के अधिक द्रव्यमान में स्थापित करने से ऐसा होता है।

 

  • तार लगे वाद्य यंत्रों, जैसे-वायलिन, सितार, गिटार आदि में ध्वनि की प्रबलता में वृद्धि हेतु ध्वनि-बॉक्स लगे होते हैं। इनमें से किसी भी वाद्य यंत्र के तार को छेड़ने पर तार की सतह का क्षेत्रफल बहुत कम होने के कारण बहुत कम वायु में कम्पन संचरित हो पाता है, यानी बहुत कम हवा में गति होती है। किन्तु इनमें लगे ध्वनि बॉक्स में तार के कम्पनों से प्रणोदित कम्पन स्थापित होते हैं। जब ध्वनि बॉक्स कम्पित होता है तो यह वायु की अधिक मात्रा को गतिशील बनाकर ध्वनि की प्रबलता को बढ़ा देता है।

 

  • लाउड स्पीकर में कम्पन शंकु होता है, जिसकी सतह का क्षेत्रफल अधिक होता है। अतः शंकु की सतह के सम्पर्क में वायु के अधिक द्रव्यमान में कम्पन स्थापित हो जाते हैं और ध्वनि की प्रबलता में वृद्धि हो जाती है।

 

ध्वनि तरंगें (Sound Waves)

 

  • ध्वनि एक प्रकार की ऊर्जा है जो यांत्रिक ऊर्जा का रूपांतरित रूप है। ध्वनि तरंगें अनुदैर्ध्य तरंगें होती हैं। अनुदैर्ध्य तरंगों के किसी माध्यम में व्याप्त होने के लिए संपीड़न और विरलन की क्रिया बारी-बारी से होती है और इस प्रकार ध्वनि का संचार होता है। ध्वनि ऊर्जा में भी कार्य करने की क्षमता होती है। ध्वनि, द्रव्यों में कम्पन उत्पन्न कर सकती है। इसकी तीव्रता अधिक होने पर यह कान के परदे को क्षतिग्रस्त भी कर सकती है।

 

  • ध्वनि की उत्पत्ति के लिए कम्पन आवश्यक है। जहां कहीं भी ध्वनि उत्पन्न होती है, वहां किसी-न-किसी वस्तु में कम्पन अवश्य होता है। यद्यपि में ध्वनि की उत्पत्ति के लिए वस्तु में कम्पन आवश्यक है, फिर भी हर तरह का कम्पन ध्वनि नहीं करता। डोलता हुआ लोलक, हिलते हुए वस्त्र आदि से भी ध्वनि उत्पन्न होती है लेकिन इनसे कम्पन नहीं होता।

 

श्रव्य आवृत्ति एवं पराश्रव्य आवृत्ति

 

  • ध्वनि उत्पादन के लिए कम्पन की आवृत्तियां एक निश्चित सीमा के भीतर रहनी चाहिए। इस सीमा के भीतर की आवृत्तियां श्रव्य आवृत्ति कहलाती हैं। 
  • ध्वनि उत्पन्न करने की आवृत्तियां प्राय: 20 हर्ट्ज से 20,000 हर्ट्ज तक होती हैं।

  • कम्पन की आवृत्ति 20,000 Hz या 20 किलोहर्ट्ज से अधिक होने पर इसे पराश्रव्य आवृत्ति कहते हैं। पराश्रव्य तरंगों किसी निश्चित दिशा में फोकस किया जा सकता है तथा प्रकाश की किरणों की तरह उसे परावर्त्तित किया जा सकता है। विशिष्ट प्रकार की आवृत्तियां कुछ अणुओं में कम्पन उत्पन्न कर सकती हैं, जबकि कुछ अणु स्थिर ही रह जाते हैं। एक विशिष्ट आवृत्ति से किसी सोल्डर में कम्पन उत्पन्न कर उसे गर्म किया जा सकता है तथा उसे द्रवित भी किया जा सकता है। 
  • पराश्रव्य आवृत्ति वाली तरंगों को मानव द्वारा नहीं सुना जा सकता, पर कुछ पक्षी, कुत्ते, चमगादड़ इत्यादि इनको सुनने में सक्षम होते हैं। चमगादड़ शिकार को पकड़ने के लिए 100,000 हर्ट्ज की आवृत्ति वाला कम्पन उत्पन्न करता है तथा इसके मार्ग में आने वाले किसी शिकार से परावर्त्तित होने वाली प्रति ध्वनि को फिर से सुनकर शिकार को पकड़ता है। 
  • बेरियम लिटेनेट, क्वार्ट्ज, जिंक ऑक्साइड आदि के कणों द्वारा उत्पन्न कम्पन की आवृत्ति 10 किलोहर्ट्ज से अधिक होती है। इन उच्च आवृत्ति वाले कम्पनों की उत्पत्ति उच्च विभवांतर के कारण होती है। इस प्रकार के ऊर्जा परिवर्त्तन यांत्रिक कम्पन से विद्युतीय या विद्युतीय कम्पन से यांत्रिक कम्पन, पीजियोइलेक्ट्रिक प्रभाव के उदाहरण हैं। 


  • पराश्रव्यों के अनेक उपयोग हैं, जैसे- चांदी की सफाई, चोरों को पकड़ना, गर्भस्थ शिशु की जानकारी प्राप्त करना इत्यादि । सोनोग्राफी एक प्रकार का पराश्रव्य उपकरण है, जिसके द्वारा गर्भस्थ शिशु का लिंग एवं अन्य बातें पता लगायी जाती हैं। कुछ आवृत्तियों का उपयोग दांतों के पटिका या फलक को ढीला करने में किया जाता है। कुछ प्रकार की आवृत्तियों का उपयोग वृक्क की पथरी के उपचार में किया जाता है।

 

2 ध्वनि का वेग

 

  • ध्वनि के तारत्व व प्रबलता का ध्वनि के वेग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता 10°C की शुष्क वायु में ध्वनि का वेग लगभग 331 मीटर प्रति सेकंड (अथवा 750 मील प्रति घंटा) होता है। वायु में नमी होने पर ध्वनि का वेग कुछ बढ़ जाता है। ठंडी वायु की अपेक्षा गर्म वायु में ध्वनि का वेग अधिक होता है। अतः ठंडे दिन की अपेक्षा गर्म दिन में ध्वनि का वेग अधिक होता है। 0°C के ऊपर प्रति 1°C ताप वृद्धि से ध्वनि का वेग वायु में 0.61 मीटर प्रति सेकंड बढ़ता जाता है। 


इस प्रकार, t ताप पर ध्वनि का वेग (Vt), निम्न संबंध के आधार पर दर्शाया जा सकता है-

 

Vt =  + 0.61t

 

30°C ताप पर ध्वनि का वेग होगा 

V30°C = V° + 0.61 x 30 

= 331+18.3 

= 349.3 m\s

 

ध्वनि का वेग माध्यम पर निर्भर करता है। यह ठोस में अधिक तरल में कम एवं गैसों में सबसे कम होता है। 


विभिन्न माध्यमों में ध्वनि का वेग 

माध्यम-  वेग (m/s)

वायु -0331

जल -1450

इस्पात 5000


  • इस प्रकार, वायु की तुलना में इस्पात में ध्वनि का वेग लगभग 15 गुना होता है। इस्पात की पटरी के एक सिरे पर ठकठक कर ध्वनि उत्पन्न की जाय तो वायु दूसरे सिरे पर स्पष्टतः दो ध्वनियां कुछ अन्तराल से सुनाई पड़ती है। इनमें पहले सुनाई पड़ने वाली ध्वनि पटरी (इस्पात) में होकर तथा दूसरी बाहर की में होकर गमन करती है। 
  • प्रकाश के वेग (3×10*m/s) की अपेक्षा ध्वनि का वेग बहुत कम होता है। बादलों में बिजली की चमक (तड़ित) के दिखाई पड़ने के बहुत देर पश्चात् उसकी गरज सुनाई पड़ती है जो प्रकाश व ध्वनि के अन्तर के कारण होता है। इसमें चमक तो तुरन्त ही दिखाई दे जाती है किन्तु गरज कुछ समय के पश्चात् सुनाई दे पाती है। क्रिकेट के मैच में, खिलाड़ी द्वारा बल्ले से गेंद का मारना (अर्थात् गेंद को खेलना) तो शीघ्र की दिखाई पड़ता है किन्तु उसकी ध्वनि कुछ देर बाद ही सुनाई पड़ती है।

 

  • जैट वायुयान की ध्वनि हमें वायुयान की स्थिति से ना आती लगकर उसकी स्थिति से काफी पहले की स्थिति से आती आभासित होती है। इसका कारण है, वायुयान की अति तीव्र गति और जब तक ध्वनि हम तक पहुंचती है उसकी स्थिति आगे हो जाती है।

 

3 ध्वनि का परावर्तन, प्रतिध्वनि (गूंज ) 

  • तरंगों का यह एक गुण है कि अवरोध से ये परावर्तित हो जाती हैं। अब किसी दूर स्थित अवरोध, जैसे- दीवार अथवा पहाड़ी से टकराकर ध्वनि जब परावर्तित होती है तो प्रतिध्वनि भी सुनाई पड़ती है। ध्वनि व प्रतिध्वनि में स्पष्ट अन्तर ज्ञात हो इसके लिए मूल ध्वनि के 0.1 सेकंड उपरान्त प्रतिध्वनि सुनाई देनी चाहिए। ऐसा तब ही संभव है, जबकि ध्वनि स्रोत व परावर्तक सतह के मध्य कम से कम 17 मीटर का अन्तराल हो। इस अन्तराल के 17 मीटर से कम होने पर प्रतिध्वनि अलग से सुनाई न देकर ऐसा लगता है मानो मूल ध्वनि लम्बे समय तक सुनाई दे रही है। मूल ध्वनि के परावर्तन से प्राप्त इस विलम्बित ध्वनि को अनुरणन (reverberation) कहते हैं। एक से अधिक परावर्तक सतहों से प्राप्त प्रतिध्वनियां भी अनुरणन होती हैं।

 

  • प्रतिध्वनि की सहायता से ध्वनि का वेग ज्ञात किया जा सकता है। अंतर्जलीय (underwater) गैस व तेल की खोज, जल की सतह पर किए विस्फोटों से प्राप्त (उत्पन्न) आघात तरंगों की प्रतिध्वनि की जांच से की जाती है। पराश्रव्य तरंगों की प्रतिध्वनि से समुद्र तल की गहराई अथवा समुद्र में डूबे पोतों आदि का पता लगाया जाता है। इसके लिए सोनार (SONAR— साउन्ड 'SO' नेविगेशन 'NA' रेंजिंग 'R') यंत्र का उपयोग किया जाता है।

 

  • पराश्रव्य ध्वनि का उपयोग ठोसों में आन्तरिक दोषों का पता लगाने, सूक्ष्मजीवियों (micro organisms) को नष्ट करने एवं तेल व खनिज निक्षेपों (deposits) के लिए भूमिगत संरचनाओं के मानचित्र तैयार करने के लिए किया जाता है।

 

  • चमगादड़ 80,000 हर्ट्ज आवृत्ति की पराध्वनिक तरंगे निकालता है और जिसके परावर्तन का (प्रतिध्वनि) उपयोग अपने मार्ग में आने वाली वस्तुओं और उनकी दूरी को जानने के लिए करता है।

 

पराश्रव्य तरंगों का उपयोग

  • पराश्रव्य तरंगों का उपयोग चिकित्सीय निदान व उपचार में बहुतायत से. किया जाता है। उदाहरणार्थ- उदर की ध्वनिकारी के लिए पराश्रव्य तरंगों को जब उदर में भेजा जाता है तो ऊतकों की प्रत्यास्थता (elasticity) व घनत्व के अनुसार ये तरंगें विभिन्न वेग से जाती हैं। इन संरचनाओं से पराश्रव्य तरंगे टकरा कर संवेदी माइक्रोफोनों में प्रतिध्वनियां पहुंचकर विद्युत् संकेतों में परिवर्तित होती हैं और फिर इन्हें टेलीविजन में प्राप्त करके स्क्रीन पर देखा जा सकता है। स्क्रीन पर प्राप्त प्रतिध्वनि के पैटर्न से अबुर्द (ट्यूमर), विद्रधि (फोड़ा), विक्षतियों (lesion) तथा यकृत (liver) अग्नाशयों (pancreas), गुर्दों, हृदय तथा अन्य इंद्रियों अथवा अंगों में अन्य असामान्यताओं का पता लगाया जा सकता है।

 

4 ध्वनि का अपवर्तन

 

  • वायु की विभिन्न परतों का ताप भिन्न-भिन्न होता है तथा ध्वनि का वेग ठंडी वायु की अपेक्षा गर्म वायु में अधिक होने के कारण, ध्वनि इन परतों में संचरित होने पर अपने मार्ग से मुड़ जाती है। ध्वनि के इस मुड़ने की घटना को ध्वनि का अपवर्तन कहते हैं। 
  • गर्म दिन में भूमि के निकट वायु ऊपर की अपेक्षा अधिक गर्म होती हैं, अत: भूमि के निकट की वायु परत में ध्वनि का वेग अपेक्षाकृत अधिक होता है। इस प्रकार नीचे से ऊपर गमन करती ध्वनि अपने मार्ग से पृथ्वी से दूर मुड़ जाती है। इसके विपरीत ठंडे दिन अथवा रात्रि में ध्वनि अपने मार्ग से पृथ्वी की ओर मुड़ जाती है। अतः रात्रि में अथवा ठंडे दिन में ध्वनि अधिक दूरी तक सुनाई पड़ती है।

 

  • शांत दिनों में जल की सतह पर ध्वनि असाधारण रूप से अधिक दूरी तक  सुनाई पड़ती है, क्योंकि ऊपर की वायु की अपेक्षा जल के निकट की वायु अधिक ठंडी होने से ध्वनि जल की ओर मुड़कर अधिक दूरी तक गमन करती है।

 

5 अनुनाद (Resonance)

 

  • साधारण रूप से किसी भी कम्पमान वस्तु में स्वाभाविक आवृत्ति होती है जो वस्तु की प्रत्यास्थता व आवृत्ति जैसे कारकों (factors) पर निर्भर करती है। ध्वनि उत्पन्न कर सकने वाले तंत्र पर जब किसी अन्य ध्वनि स्रोत की तरंगे पड़ती हैं, तब उस तंत्र में प्रणोदित कम्पन पैदा होते हैं। जब उस प्रणोदित ध्वनि स्रोत की आवृत्ति उस प्रणोदित तंत्र की स्वाभाविक आवृत्ति के बराबर होती है तब इसका आयाम महत्तम होता है, फलस्वरूप उस तंत्र से प्रबल ध्वनि उत्पन्न होने लगती है। यह घटना अनुनाद कहलाती है। अनुनाद ध्वनिक, यांत्रिक, वैद्युत एवं प्रकाशीय प्रणाली तंत्रों में हो सकता है।

 

  • बच्चों के झूले को आवृत्ति की लय में हल्का सा धक्का देने पर झूले का आयाम बहुत बढ़ जाता है। यह अनुनाद का एक और उदाहरण है। तरण ताल के डाइविंग बोर्ड के सिरे पर गोताखोर बारम्बार उछाल लेकर उसमें अनुनादी कम्पन उत्पन्न कर देता है और इस प्रकार गोता लगाने से पूर्व उसे पर्याप्त उठान मिल जाती है।

 

  • जैसे कभी-कभी अनुनाद के कारण उत्पन्न आयाम विनाशक हो सकता है, सेना द्वारा पुल पार करते समय उन्हें एक साथ कदम मिलाकर नहीं चलने दिया जाता क्योंकि एक साथ कदम चलाने की आवृत्ति पुल की स्वाभाविक आवृत्ति से मेल खाते ही पुल के कम्पन का आयाम अधिक होकर उसे तोड़ सकता है।

 

  • कभी-कभी यह देखा गया है कि वाहनों का पश्चदर्शी- दर्पण (rearview mirror) इंजन की केवल एक विशेष चाल के कम्पन से अनुनाद में आकर बहुत तेजी से कम्पित हो जाता है। ऐसा दर्पण की स्वाभाविक आवृत्ति व इंजन के कम्पन की आवृत्ति बराबर हो जाने पर होता है।

 

  • विधयुत परिपथ में भी दोलन होते हैं। रेडियो रिसीवर में किसी स्टेशन की ट्यूनिंग तब होती है जब आगत संकेतों की आवृत्ति और रिसीवर के विद्युत् परिपथ की आवृत्ति एक हो जाए।

 

6 डॉप्लर प्रभाव

 

  • ध्वनि अथवा प्रकाश तरंग की आवृत्ति में तरंग-स्रोत अथवा प्रेक्षक की सापेक्ष गति के कारण उत्पन्न परिवर्तन डॉप्लर प्रभाव कहलाता है। ध्वनि की आवृत्ति (और इसलिए तारत्व) उस समय उच्च होती है, जब स्रोत श्रोता की ओर बढ़ता है और उस समय निम्न होती है जब स्रोत उससे पीछे खिसकता है।

 

  • डॉप्लर प्रभाव के कारण ही जब रेलगाड़ी निकट आ रही होती है तो उसकी सीटी अधिक तीखी सुनाई पड़ती है, जबकि रेलगाड़ी दूर जा रही हो तो कम तीखी सुनाई पड़ती है। डॉप्लर प्रभाव खगोल विज्ञान में बहुत उपयोगी है। इसकी सहायता से यह ज्ञात किया जा सकता है कि कोई तारा हमारे निकट आ रहा है अथवा दूर जा रहा है। डॉप्लर प्रभाव के द्वारा किसी तारे (जैसे हमारे अपने सूर्य) के घूर्णन (rotation) का पता लगाकर उसे मापा भी जा सकता है।

 

  • डॉप्लर प्रभाव का उपयोग करते हुये पुलिस स्पीड बंदूक (रडार यंत्र) के द्वारा वाहनों की गति नापती है। एक रडार यंत्र रेडियो तरंगें भेजता है और उसके परावर्तित होकर आने की प्रतीक्षा करता है। तब वह डॉप्लर शिफ्ट को सूचकों से नापता है और इस शिफ्ट से गति का आंकलन करता है। (लेजर स्पीड बंदूक)

 

  • खगोल विज्ञान में डॉप्लर प्रभाव बहुत उपयोगी है। इसके उपयोग से यह पता लगाया जाता है कि कोई तारा हमारे पास आ रहा है या हमसे दूर जा रहा है। जब तारा हमसे दूर जाता है तो तारे से निकलने वाला प्रकाश ज्यादा लाल ( अन्य रंगों की तुलना में लाल रंग की आवृत्ति कम है) दिखाई पड़ता है। वस्तुत: जब हम पृथ्वी से दूर स्थित किसी मंदाकिनी (galaxy) के तारे से निकलने वाले प्रकाश को देखते हैं तो उसमें हम लाल विस्थापन (Red Shift ) देखते हैं अर्थात यह गैलेक्सी हमारी गैलेक्सी से दूर जा रही है। ब्रह्माण्ड के फैलने की परिकल्पना का यह प्रमुख साक्ष्य है। 
  • डॉप्लर प्रभाव का उपयोग तारों जैसे सूर्य के घूर्णन को जानने एवं उसके आकलन के लिए भी किया जा सकता है। डॉप्लर प्रभाव की सहायता से गतिमान पिंडों, जैसे-उपग्रह की गति का परिपथ (ट्रैकिंग) पृथ्वी पर स्थित संदर्भ बिन्दु के सापेक्ष किया जा सकता है। यह विधि आश्चर्यजनक रूप से बहुत सही है क्योंकि 105 मी० दूर उपग्रह की स्थिति में होने वाले परिवर्तन को सेंटीमीटर के भिन्न (traction) तक निर्धारित किया जा सकता है।

 

7 ध्वनि बूम (Boom )

 

  • पराध्वनिक ( अर्थात् ध्वनि की गति से तेज गति) वायुयान एक ध्वनि शंकु उत्पन्न करता है, जिसे प्रघाती-तरंग (shock-wave) कहते हैं। जब यह प्रघाती-तरंग श्रोता तक पहुंचती है तो वह अचानक एक प्रकार का जोरदार धमाका सुनता है जिसे ध्वनि बूम कहते हैं।

 

विस्पंद ( Beat)

 

  • जब कभी दो लगभग बराबर आवृत्ति की ध्वनि तरंगें साथ-साथ उत्पन्न की जाती हैं तो उनके अध्यारोपन से जो परिणामी ध्वनि उत्पन्न होती है, उसकी तीव्रता बारी-बारी से घटती और बढ़ती है। ध्वनि की तीव्रता से इस चढ़ाव व उतार को विस्पंद कहते हैं। एक चढ़ाव और एक उतार को मिलाकर एक विस्पंद बनता है। यदि हम बराबर आवृत्ति के दो ध्वनि श्रोतों को एक साथ बजायें तो उनसे उत्पन्न परिणामी ध्वनि की तीव्रता हमें कोई उतार-चढ़ाव सुनाई नहीं देता।

 

  • एक सेकेण्ड में जितनी बार ध्वनि की तीव्रता में चढ़ाव या उतार हैउसे विस्पंद आवृत्ति (beat frequency) कहते हैं। 
  • विस्पंद आवृत्ति = ध्वनियों की आवृत्तियों में अंतर =स्रोतों की आवृत्तियों का अंतर ।  
  • साधारण जीवन में विस्पंद के कई उपयोग हैं, जैसे-वाद्यों के समस्वरण में स्वरित्र द्विभुज की आवृत्ति के निर्धारण में खानों में विस्फोट करने वाली मिथेन गैस का पता लगाने में तथा रेडियो अभिग्रहण में इत्यादि ।

 

प्रणोदित कम्पन (Forced vibration)

 

  • कम्पन करने वाली वस्तु पर यदि कोई ऐसा बाह्य आवर्त्त बल (external periodic force) लगाया जाये जिसकी आवृत्ति वस्तु की स्वाभाविक आवृत्ति से कम्पन करने की चेष्टा करती है किंतु शीघ्र ही वस्तु आरोपित बल की आवृत्ति से स्थिर आयाम के कम्पन करने के लिए बाध्य हो जाती है तो बाह्य आवर्त्त बल के प्रभाव में वस्तु द्वारा उत्पन्न इस कम्पन को प्रणोदित कम्पन कहते हैं ।

 

8 म्यूजिकल स्केल

 

  • म्यूजिकल या संगीतमय स्केल सुरों की मापनी है, जिसमें इन सुरों की एक के बाद पुनरावृत्ति होती है। इस स्केल में सा, रे, गा, मा, पा, धा, नि, सा हो ह डाइटोनिक स्केल कहा जाता है। इन सुरों की आवृत्ति इस प्रकार होती है सा (256), रे (288), गा (320), मा (341.3), पा (384), धा (426. 7 ) न्य एवं नि (480) दूसरी बार 'सा' की आवृत्ति पहली 'सा' से दुगनी होती है, जो 512 होती है।

 

9 रिकॉर्डिंग मीडिया में शोर को कम करना 

म्यूजिकल रिकॉर्डिंग कंपनी डोल्बी लैबोरेटरीज इंक ने एक ऐसी तकनीक का आविष्कार किया है, जिससे रिकॉर्ड किये गये संगीत में शोर का स्तर कम हो जाता है। यह तकनीक संगीत की रिकॉर्डिंग एवं प्लेबैक के समय प्रयोग में लायी जाती है, जिससे संगीत में शोर का स्तर कम होता है तथा उसकी गुणवत्ता में सुधार होता है।

 

  • डोल्बी A कंपनी का पहला शोर कम वाला सिस्टम था, जिसका उपयोग पेशेवर रिकॉर्डिंग स्टूडियो में किया जाता है। यह शोर का स्तर कम करने के लिये लगभग 10 डीबी ब्रॉडबैंड प्रदान करता था।

 

  • डोल्बी B का विकास कैसेटों में लगभग 9 डीबी का शोर स्तर प्राप्त करने के लिये किया गया था। यह डोल्बी A से ज्यादा आसान था। इसी वजह से उपभोक्ता सामानों के दाम कम करने में यह काफी सहायक था। 1970 के दशक के मध्य में पहले से रिकॉर्ड किये कैसेटों के लिये यह एक  मानक बन गया। 


  • डोल्बी C लगभग 15 डीबी का मानक शोर स्तर प्रदान करता है। यह 1980 के दशक में सबसे पहली बार दुनिया सामने आया।

 

  • डोल्बी SR (स्पेक्ट्रल रिकॉर्डिंग) डाल्बी A की तुलना में रिकॉर्डिंग में शोर का स्तर कम करने में ज्यादा प्रभावी है। यह डाल्बी B तथा C की तुलना में भी ज्यादा प्रभावी है लेकिन यह उच्च आवृत्ति की रेंज में 25 डीबी तक शोर का स्तर कम कर सकता है।

 

  • डोल्बी S (अर्द्ध- पेशेवर रिकॉर्डिंग उपकरणों एवं हाई-फाई में यह पाया जाता है। यह निम्न आवृत्ति में शोर का स्तर 10 डीबी तक तथा उच्च आवृत्ति में 24 डीबी तक कम करने में सक्षम है।

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