शांति और सुरक्षा के आंतरिक खतरे |सुरक्षा और सरकार की रणनीति | Shanti Aur Surkasha Ke Mdde

शांति और सुरक्षा के आंतरिक खतरे

शांति और सुरक्षा के आंतरिक खतरे |सुरक्षा और सरकार की रणनीति | Shanti Aur Surkasha Ke Mdde


 

 सुरक्षा के आंतरिक खतरे

  • आपने देखा होगा कि जब भी जान-माल को क्षति पहुँचाते हुए कोई आक्रमक विरोध एवं प्रदर्शन या हिसंक गतिविधयाँ होती हैं तो यह शांति और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करती हैं। किन्तु ऐसी कई घटनाएँ कानून व्यवस्था की समस्याएँ होती हैं जिन्हें पुलिस स्थानीय रूप से सुलझाती है।
  • हमारे लोकतंत्र में ऐसे विराधप्रदर्शनहड़तालबंद और अन्य आंदोलन सरकार या अन्य सम्बंधित अधिकारियों का ध्यान विशेष मांगो और चिंताओं के प्रति ध्यान आकर्षित करने के लिए किए जाते हैं। हालांकि भारत आतंकवाद या विद्रोह या नक्सल आंदोलन के वेष में कई तरह की हिंसक गतिविधियों का अनुभव करता रहा है जो शांति और सुरक्षा के लिए अधिक गम्भीर खतरे हैं।

 

आतंकवाद

 

  • आतंकवाद हमारे देश में शांति और सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है। 26 नवम्बर2008 जो आम तौर पर 26/11 के नाम से जाना जाता हैका मुम्बई पर आतंकवादी हमला बहुत ही घिनौनी घटना का प्रतीक है। वास्तव मेंस्वतंत्रता से ही देश के विभिन्न भागों में ऐसी गतिविधियाँ होती रही है। ये आतंकवादी जो हिंसक गतिविधियाँ करते है वे या तो विदेशी लोग है या ऐसे भारतीय युवक पड़ोसी देशों में प्रशिक्षितउनके द्वारा समर्थित तथा पथ भ्रष्ट हैं। कभी-कभी हम आतंकवादी गतिविधियों की परिभाषा करने में भ्रमित हो जाते है । वास्तव में आतंकवाद की परिभाषा को लेकर कोई आम समहति नहीं है। हालांकि भारत के संदर्भ में मोटे तौर पर आतंकवाद आवश्यक रूप से एक आपराधिक गतिविधि है जिसके द्वारा भय का माहौल बनाने के लिए तथा सामान्य रूप से राजनीतिक तथा वैचारिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आम नागरिकों पर घातक हमला किया जाता है। आतंकवाद एक अपराधी कार्य है। ये कार्य किसी भी परिस्थिति में अन्यायसंगत है चाहे इसको उचित ठहराने के लिए राजनीतिकदार्शनिकवैचारिकनस्लीयप्रजातीयधार्मिक या अन्य किसी प्रकार का तर्क दिया जाय ।

 

2 विद्रोह

 

  • विद्रोहसरकार जैसी गठित एक संस्था के विरूद्ध एक सशस्त्र विद्रोह है। आजादी से ही भारत ने विद्राही आन्दोलन से संबंधित हिंसा का अअनुभव किया है। मोटे तौर पर उन्हें दो भागों में विभाजित किया जा सकता है: राजनीतिक उद्देश्य से चलाए गए आंदोलन तथा सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए आन्दोलन । सबसे प्रमुख उग्रवादी गुट है: जम्मू और कश्मीर तथा असम में कार्यरत हिंसक चरमपंथी अलगावादीतथा भारत के उत्तर-पूर्व राज्योंअरूणाचल प्रदेशमणिपुरमिजोरमनागालैंड और त्रिपुरा में विभिन्न उग्रवादी गुट । हालांकि इन गुटों के सभी सदस्य भारतीय हैपरन्तु उन्हें पड़ोसी देशों से सहायता मिलती है । ये उग्रवादी आंदोलन चल रहें है क्योंकि इनमें शामिल अपनी वर्तमान स्थिति से असंतुष्ट हैं जबकि कुछ ऐसे भी गुट हैविशेषकर जम्मू-कश्मीर गुट और असम मेंजिनका राजनीतिक एजेंडा है । वे देश से पृथक होने लिए संघर्षशील हैं। उन गुटों को पड़ोसी देशों तथा कुछ अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवादी गुटों का सक्रिय सहयोग प्राप्त है ।

 

3. नक्सलवादी आंदोलन

 

  • विभिन्न प्रकार की जटिलवाओं के कारण नक्सलवादी आंदोलन चिंता का विषय है। इसकी शुरूआत पश्चिम बंगाल के एक गाँव से हुईकिन्तु अब यह लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करते हुए बारह राज्यों के 125 जिलों में फैल गया है। नक्सलवादी अक्सर सार्वजनिक सम्पत्तिसरकारी अधिकारियोंपुलिस और अर्द्धसैनिक बलों तथा ऐसे लोगों पर जिन्हें वे अपना दुश्मन समझते हैंहमला करते हैं। वे वन क्षेत्र के अंतर्गत किसी विकास कार्य के भी खिलाफ है। सरकार गाँवों तथा जंगलों में पक्की सड़क बनाना चाहती है परन्तु नक्सलवादी किसी भी विकास कार्य को हतोत्साहित करते हैं। उन्हें पता है एक बार विकास हो जाता है तो वे शायद लोगों का समर्थन खों बैठेंगे। इसलिए वे निर्दोष लोगों को मुमराह करते हैं कि सरकार उनसे खनिज सम्पदा तथा उनके जंगल उनसे छीनना चाहती है। दुर्भाग्य से इस आंदोलन के उद्भव और प्रसार का बुनियादी कारण समाज के कुछ वर्गों के बीच असंतोष है। वे युवक जो इस आन्दोलन की हिंसक गतिविधियों में लगे हैं मोटे तौर पर समाज के उन वर्गों से जुड़े हुए है युगों से सामाजिक भेदभाव और आर्थिक अभाव का खामियाजा भुगत रहें है जैसे अनुसूचित जन जातिअनुसूचित जाति तथा दलित। आपको पता होगा या आपने अनुभव भी किया होगा कि किस तरह इन वर्गों के सदस्यों को समाज में भेदभावपूर्ण व्यवहार सहना पड़ता है। इसके अतिरिक्तभारत में हो रहें विकास के लाभ उन वर्गों तक पूरी तरह नहीं पहुँच रहे है। कारण जो भी होविकास उन लोगों की आशा और आकांक्षाएँ पूरा करने में सफल नहीं है. 

 

भारत में नक्सली विद्रोह मार्च

 

  • भारत में नक्सली विद्रोह मार्च 1967 में शुरू हुआ जब चारू मजुमदार और कानु सन्याल के नेतृत्व में क्रांतिकारियों के एक गुट ने नक्सलवादी में किसान विद्रोह शुरू किया। एसे तब ने हुआ जब न्याधिक आदेश के बावजूद एक आदिवासी युवक को अपनी जमीन जोतने से रोका गया और स्थानीय जमींदार के गुण्डों ने उस पर हमला किया आदिवसियों ने जवानी कारवाई की और भूमि के मालिक को उपज में उसका हिस्सा देने से इन्कार कर दिया और उसके भंडार से सारा अनाज उठा लिया। एक ऐसी आग भडकी जो पूरे राज्य में फैल गया। 

सुरक्षा और सरकार की रणनीति

 

  • भारत सरकार आतंकवाद विद्रोह और नक्सलवादी आन्दोलन से निपटने कि लिए रणनीतियाँ और तरीके अपना रहीं है। यह आतंकवाद से लड़ने के लिए सभी राष्ट्रों के प्रयासों का समर्थन करती रही है तथा कभी भी आतंकवादी हमले होने पर उनका समर्थन मांगती है । कूटनीतिक दृष्टि से भारत पाकिस्तान तथा अन्य पड़ोसी देशों पर अतर्राष्ट्रीय दबाव बनाती है कि वे ऐसे आतंकवादी गुटों को अपना सक्रिया समर्थन न दें । जहाँ तक राजनीतिक उद्देश्यों के दृष्टिगत विद्रोही गतिविधियों का सवाल है, भारत सरकार इससे कूटनीति से निपटने की कोशिश बांग्लादेश के साथ संधि की है कि वे विद्रोही आंदोलन को सहायता और समर्थन देने से बचें। ऐसा करने के लिए भारत पाकिस्तान पर भी अर्राष्ट्रीय दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है । नक्सलवादी आंदोलन के संदर्भ में राज्य सरकारों ने प्रारम्भ में इसे कानून-व्यवस्था की समस्या माना । लेकिन यह महसूस किया गया कि यह एक ज्यादा गम्भीर मुद्दा है जिसके गहरे सामाजिक आर्थिक आयाम हैं। उन क्षेत्रों में विकास के गति बड़ाने तथा युवकों को मुख्य धारा में लाने के प्रयास किए जा रहे हैं ।

 

भारत और अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा

 

  • भारत अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को लेकर समान रूप से परेशान रहा है । यह इसकी प्रगति के लिए आवश्यक है। अन्य राष्ट्रो की तरह, भारत की विदेश नीति भी राष्ट्रीय हित पर आधारित है। भारत ने एक ऐसी विदेश नीति अपनाई है जिसमें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर और विशेष कर हमारे पड़ोस में तथा हमारे क्षेत्र में शांति और सुरक्षा मुख्य चिंता का विषय है। 


वास्तव में स्वतंत्रता से ही भारत के विदेश नीति के मुख्य उदद्देश्य हैं- 

(क) विदेश नीति निर्माण में स्वतंत्रता;

(ख) अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढावा

(ग) अन्य राष्ट्रों तथा विशेषकर पड़ोसी देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध;

 (ड) शस्त्रीकरण; उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद और जाति भेद का विरोध

(च) विकासशील देशों में सहयोग। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए जिस विदेश नीति का भारत ने निरन्तर पालन किया उसे गुट निरपेक्षता की नीति कहते है, हालांकि अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य में बदलाव के संदर्भ में इसमें बदलाव भी लाए गये हैं।

 

1 गुट निरपेक्षता की नीति

 

  • गुट निरपेक्षता भारत की विदेश नीति की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता मानी जाती है। भारत ने उस युग में गुट निरपेक्षता की अवधारणा की विकास प्रक्रिया का नेतृत्व किया जब विश्व दो परस्पर विरोधी गुटों में विभाजित थाः प्रथम गुट संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमों देशों और दूसरा गुट सोवियत संघ के नेतृत्व में साम्यवादी देशों का था। यह दोनों गुटों के बीच शीत युद्ध की स्थिति के रूप में जाना जाता था। सीधे तौर पर युद्ध में टकराए बिना शीत युद्ध संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ के मध्य अफ्रिका, एशिया तथा लैटिन अमेरिका के देशों को अपने गुट में शामिल करने की होड़ थी। यह द्वितीय विश्व युद्ध के तुरन्त बाद प्रारम्भ हुआ और 45 वर्षो तक चला । ये दोनों शक्तिशाली देश दो विपरीत ध्रुव बन गए और विश्व राजनीति इनके इर्द गिर्द घुमने लगी वास्तव में विश्व द्वि-ध्रुवीय बन गया ।

 

  • अमेरिका तथा सोवियत संघ द्वारा गठित दो सैन्य संधियों में बिना शामिल हुए गुट निरपेक्षता का उद्देश्य विदेश नीति के मामले में स्वतंत्र रहने का था। गुट निरपेक्षता न तो तटस्थता थी, और न ही अलगाववाद । यह एक ऐसी गतिशील सक्रिय अवधारणा थी जिसका अर्थ था किसी सैन्य गुट से प्रतिबद्ध हुए बिना हर मामले के गुण-दोष के आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी स्वतंत्र राय रखना । विकासशील देशों में गुट निरपेक्षता की नीति के कई समर्थक थे क्योंकि इसने उन्हें अपनी प्रभुसत्ता सुरक्षित रखने का अवसर प्रदान किया, साथ ही इसने तनाव युक्त शीत युद्ध की अवधि में उन्हें स्वतंत्र रूप से कार्य करने का अवसर दिया। गुट निरपेक्षता के मुख्य निर्माता तथा गुट निरपेक्षता आंदोलन के अग्रणी सदस्य के रूप में भारत ने इसके विकास में सक्रिय भूमिका निभाई। आकार और को नजर अन्दाज करते हुए गुट निरपेक्ष आंदोलन सभी सदस्य देशों को वैश्विक निर्णय निर्धारण तथा विश्व रातनीति में भाग लेने का अवसर प्रदान करता है।

 

  • गुट निरपेक्ष आंदोलन चूंकि शीत युद्ध तथा द्विध्रुवीय विश्व का परिणाम था, सोवियत संघ के विघटन के बाद गुट निरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता पर प्रश्न लगे। हालांकि वर्तमान परिदृश्य में में भी गुट निरपेक्ष आन्दोलन महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। प्रथम, सोवियत संघ के विघटन के बाद दुनियाँ के सामने एक ध्रुविय विश्व का खतरा बना हुआ है। गुट निरपेक्ष आंदोलन अमेरिकी प्रभुत्व पट रुकावट का काम कर सकता है। द्वितीय; विकसित (उत्तर) और विकासशील (दक्षिण) विश्व कई आर्थिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर विभाजित है। गुट निरपेक्ष आन्दोलन विकासित देशों के साथ एक अर्थपूर्ण वार्तालाप के लिए विकासशील देशों को एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त, गुट निरपेक्ष आंदोलन दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिए एक शक्तिशाली संगठन साबित हो सकता है। विकासशील देशों को विकसित देशों के समक्ष अपनी स्थिति मजबूत करने के लिये भी गुटनिरपेक्ष आन्दोलन आवश्यक व सार्थक है। अंततः विकासशील देशों को संयुक्त राष्ट्र में सुधार तथा 21वीं शताब्दी की आवश्यकताओं के अनुकूल उसे ढालने के लिए विकासशील देशों को गुट निरपेक्ष आंदोलन के झंडे तले एक जुट होकर संघर्ष करना पडेगा।

 

संयुक्त राष्ट्र को समर्थन

 

  • भारत ने हमेशा संयुक्त राष्ट्र को विश्व राजनीति में शांति और सुरक्षा तथा शांतिपूर्ण परिवर्तन के वाहक के रूप में देखा है। संयुक्त राष्ट्र के 51 में से एक संस्थापक सदस्य के रूप में, भारत अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा तथा निशस्त्रीकरण के उसके प्रयासों का खुलकर समर्थन करता रहा है। भारत ये आशा करता है कि संयुक्त राष्ट्र वार्ता के द्वारा देशों के बीच मतभेद को कम करने के लिए प्रयास करता रहेगा। इसके अतिरिक्त भारत ने विकासशील देशों के विकास प्रयासों में संयुक्त राष्ट्र की सक्रिय भूमिका की भी वकालत की है। इसने संयुक्त राष्ट्र में इन देशों की  सामान्य एकजुटता की बात की है। इसका मानना है कि गुट निरपेक्ष देश अपनी संख्या के दम पर महाशक्तियों को अपने हित में इस विश्व संस्था का इस्तेमाल करने से रोककर संयुक्त राष्ट्र में एक सकारात्मक तथा अर्थपूर्ण भूमिका निभा सकते है। संयुक्त राष्ट्र का एक महत्वपूर्ण अंग सुरक्षा परिषद अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के रखरखाव में एक अहम भूमिका निभाती है। इसलिए इसके सुधार की प्रक्रिया की पहल की गई है तथा इसके स्थायी सदस्यों की संख्या को बढाने की सम्भावना है। सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य बनने के लिये भारत की प्रमुख दावेदारी है। 

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