दाब- द्रवों में दाब |द्रवीय दाब का संचरण | उत्प्लावन -आर्किमिडीज सिद्धान्त | Dab Kya Hota Hai

द्रवों में दाब, द्रवीय दाब का संचरण, उत्प्लावन -आर्किमिडीज सिद्धान्त

दाब- द्रवों में दाब |द्रवीय दाब का संचरण | उत्प्लावन -आर्किमिडीज सिद्धान्त | Dab Kya Hota Hai

दाब क्या होता है 

 

प्रति इकाई क्षेत्रफल पर लगे बल को दाब कहते हैं। 

दाब = बल / क्षेत्रफल 

दाब का SI मात्रक न्यूटन प्रति वर्ग मीटर अथवा पास्कल है। 


  • दाब व बल का अन्तर स्पष्टतः ज्ञात करने के लिए, एक समान भार व  आकृति की दो ईंटें लीजिए। दोनों ईंटें एक समान बल ही पृथ्वी पर डालेंगी लेकिन सीधी खड़ी ईंट पृथ्वी पर अधिक दाब डालेगी क्योंकि इसका संपर्क क्षेत्र अपेक्षाकृत कम है। 
  • मोटी धार के चाकू की अपेक्षा तेज़ धार के चाकू से फल काटना अधिक से होता है, क्योंकि तेज़ धार के चाकू का ब्लेड फल के कम क्षेत्रफल पर संपर्क में होता है। अतः फल पर इसका दाब अधिक होने से सुगमतापूर्वक उसे काट देता है। 
  • ड्राइंग-बोर्ड पर लगाने वाले पिन का शीर्ष अधिक चौड़ा व नोंक तीखी होती है। अत: बोर्ड पर पिन गाड़ने के लिए उसके शीर्ष पर बल लगाने (दबाने) से, नोंक का क्षेत्रफल कम होने के कारण, नोंक पर अधिक दाब पड़ने के फलस्वरूप वह बोर्ड की लकड़ी में आसानी से घुस जाती है। 
  • रेल की पटरियां लकड़ी के चौड़े स्लीपरों पर बिछाई जाती है, जिससे रेलगाड़ी के भार के कारण उत्पन्न दाब कम हो जाए।

 

द्रवों में दाब

गोताखोर जब पानी में नीचे जाता है तो अपने ऊपर पानी के भार के कारण दाब का अनुभव करता है। द्रव में किसी भी बिन्दु पर दाब सभी दिशाओं में कार्य करता है। घनत्व के द्रव में h गहराई पर दाब P का संबंध-सूत्र इस प्रकार है- 

P =hÞg

 जबकिg गुरुत्वीय त्वरण है।

 

  • जल (द्रव) का दाब गहराई के साथ बढ़ता जाता है, इसी कारण जल पर बने बांध का आधार (तल) शीर्ष की अपेक्षा अधिक मोटा (चौड़ा) बनाया जाता है। 

 

  • किसी भवन में भूतल पर नल की टोंटी से पानी की धार सबसे ऊपरी मंजिल की अपेक्षा अधिक तेज चाल से निकलती है।

 

 

द्रवीय दाब का संचरण- 

  • किसी बन्द बर्तन में भरे जल में एक बिन्दु पर दाब लगाने पर वह द्रव में सब ओर समान रूप से संचारित हो जाता है, यह पास्कल का सिद्धान्त है। द्रवचालित (हाइड्रॉलिक) प्रैस, द्रवचालित ब्रेक, द्रवचालित द्वार क्लोजरइत्यादि इसी सिद्धान्त पर आधारित अनुप्रयोग हैं। 


वायुमंडलीय दाब – 

  • पृथ्वी के चारों ओर काफी ऊंचाई तक वायु है, जिसे वायुमंडल कहते हैं। वायु का भार होता है अतः यह पृथ्वी की सतह पर ही नहीं, अपितु पृथ्वी पर स्थित सभी वस्तुओं पर दाब डालती है। वास्तव में, मानव एवं समुद्र की तली पर रहने वाले प्राणी वायु के इसी दाब के कारण जीवित हैं। यह दाब इसलिए अनुभव नहीं होता क्योंकि हमारे शरीर में मौजूद रक्त आन्तरिक रूप से थोड़ा अधिक दाब बाहर की ओर डालता है। इसी कारण, ऊंचे पहाड़ों पर जहां वायुमंडलीय दाब कम होता है हमारी नाक से रक्त बहने लगता है जो रक्त के उच्च दाब के कारण नासिका रंध्रों की कोमल रक्त वाहनियां फट जाने से होता है।

 

  • फाउंटेन पैन में वायु दाब के कारण ही स्याही उसकी ट्यूब में चढ़ जाती है। इसी प्रकार इंजेक्शन की सिरिज में तरल दवा पिस्टन को खींचने पर उसमें चली जाती है।

 

  • ऊंचाई पर उड़ते विमान के अन्दर वायु पम्प की सहायता से सामान्य वायुमंडलीय दाब के समान दाब रखा जाता है। यदि ऐसा न किया जाए तो विमान के चालक दल व यात्रियों को सांस लेने में कठिनाई होगी और वह ख़तरनाक हो सकता है। ऐसा अनुमान है कि दुर्घटनाग्रस्त बोइंग 'कनिष्क' के सभी यात्री शायद वायुयान के टूटते ही मर गये होंगे ।

 

  • वायुमंडलीय दाब को वायुदाबमापी (barometer) द्वारा मापा जाता है।

 

  • प्रयोगशाला में वायु दाब का उचित रूप (शुद्धता) से मापन फोर्टिन के बैरोमीटर द्वारा किया जाता है। फोर्टिन का बैरोमीटर वास्तव में पारे के साधारण (सरल) बैरोमीटर का ही उन्नत रूप है। एक छोटे सुवाह्य बैरोमीटर में, जिसे एनीरॉयड (द्रवहीन) बैरोमीटर कहते हैं, कोई द्रव काम में नहीं लाया जाता।

 

  • वायुमंडलीय दाब ऊंचाई के साथ परिवर्तित होता है, अत: बैरोमीटर को ऊंचाई ज्ञात करने के यंत्र के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इसी प्रयोजन हेतु एनीरॉयड बैरोमीटर, जिस पर ऊंचाई के अनुसार अंशांकन किया हो, प्रयोग करते हैं। इस यंत्र को ऊंचाई मापक (altimeter) कहते हैं। बैरोमीटर की सहायता से मौसम का पूर्वानुमान भी किया जा सकता है। यदि बैरोमीटर की ऊंचाई (रोडिंग) में आकस्मिक गिरावट होती है तो वह तूफान का संकेत देती है। बैरोमीटर की ऊंचाई में क्रमिक गिरावट वर्षा की संभावना का संकेत देती है। बैरोमीटर की ऊंचाई में क्रमिक चढ़ाव साफ मौसम का संकेत होता है।

 वायुमंडलीय दाब के अधिक अध्ययन के लिए यहाँ क्लिक करें 

उत्प्लावन किसे कहते हैं  (Upthrust )

 

  • यदि लकड़ी के एक गुटके को जल की सतह से नीचे पकड़कर छोड़ दिया जाए तो हम देखते हैं कि वह तुरन्त ही ऊपर सतह पर आ जाता है। इसका कारण यह है कि गुटके पर ऊपर की ओर जल के कारण एक बल कार्य करता है जिसे उत्प्लावन (upthrust) बल कहते हैं। द्रव की तरह गैसें भी वस्तु पर उत्प्लावन लगाती हैं।


आर्किमिडीज सिद्धान्त- 

  • इस सिद्धान्त के अनुसार, जब कोई वस्तु पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से किसी द्रव में डूवी हो तो उस पर एक उत्प्लावन कार्य करता है, जो वस्तु द्वारा हटाए गए द्रव के भार के बराबर होता है।

 

जब कोई वस्तु किसी तरल में डूबी होती है तो उस पर दो बल कार्य करते हैं- 

(i) वस्तु का भार नीचे की ओर तथा

(ii) उत्प्लावन (द्रव के कारण) ऊपर की ओर। वस्तु पर लगे उत्प्लावन के कारण ही तरल में डुबोने पर उसके भार में कमी प्रतीत होती है।

 

  • यंसी द्वारा मछली पकड़ते हुए, बंसी को ऊपर खींचने पर व्यक्ति मछली के भार में उस समय अचानक भारीपन महसूस करता है, जब वह जल से बाहर निकलती है। नदी की तली से बड़े पत्थर को उठाने में उस समय तक अपेक्षाकृत कम प्रयास (आयास) लगाना पड़ता है जब तक वह जल में रहता है। 
  • जल से बाहर आते ही उसे उठाने में अधिक प्रयास करना पड़ता है। भार व उत्प्लावन के सापेक्ष मान से हम यह ज्ञात कर सकते हैं कि वस्तु द्रव में डूबेगी अथवा तैरेगी। यदि वस्तु का भार उत्प्लावन से अधिक हो तो वस्तु द्रव में डूब जाएगी, जबकि भार उत्प्लावन बराबर होने पर वस्तु द्रव में किसी भी स्तर पर मछली के समान तैरेगी, अन्यथा भार की अपेक्षा उत्प्लावन अधिक होने पर वस्तु ऊपर आकर जल की सतह पर तैरने लगेगी। 
  • वस्तु का घनत्व, द्रव के घनत्व से अधिक हो तो वस्तु द्रव में डूब जाएगी और वस्तु का घनत्व, द्रव के घनत्व से कम होने पर वस्तु द्रव पर तैरने लगेगी। इस बात को बड़ी आसानी से दर्शाया जा सकता है।

 

प्लावन का नियम (Law of Floatation)- 

  • लकड़ी के एक गुटके को जल में रखकर छोड़ने पर वह धीरे-धीरे डूबता है जब तक कि गुटके द्वारा हटाए गए जल का भार उसके अपने भार के बराबर न हो जाए और इस अवस्था में गुटका, जल में तैरने लगता है और स्थिर हो जाता है। यह प्लवन के नियम का उदाहरण है; जिसके अनुसार, 'किसी वस्तु के द्रव में तैरने पर उसका भार व हटाए गए द्रव का भार बराबर होता है।'

 

  • आर्किमीडीज़ का सिद्धान्त व प्लवन के नियम द्रव संबंधी अनेक परिघटनाओं की व्याख्या कर सकते हैं।

 

  • लोहे की कील जल में डूब जाती है, जबकि लोहे व इस्पात का बना जलयान तैरता है। इसका कारण यह है कि जलयान खोखला होता है और उसमें हवा होती है। परिणामतः उसका घनत्व जल की अपेक्षा कम हो जाता है।

 

  • जहाज जल में उस स्तर तक डूबता है जिससे उसके द्वारा हटाए गए जल का भार उसके अपने भार के बराबर हो जाए। समुद्र के जल का घनत्व नदी जल के घनत्व की अपेक्षा अधिक होता है, अतः समुद्र में जलयान कम गहराई तक ही डूबता है और इसी कारण नदी से समुद्र में पहुंचने पर वह थोड़ा ऊपर उठ जाता है। समुद्र के जल का घनत्व अधिक होने के कारण ही समुद्र में तैरना अपेक्षाकृत अधिक सुगम है।

 

  • पनडुब्बी में बड़े-बड़े बैलास्ट टैंक होते हैं, इन टैंकों को जल से भर देने पर पनडुब्बी का औसत घनत्व जल के घनत्व से अधिक हो जाता है और यह पानी में आसानी से गोता लगा जाती है। पनडुब्बी को जल की सतह पर लाने के लिए, बैलास्ट टैकों में संपीड़ित वायु (compressed air) तेजी के साथ भरते हैं, जिससे उनमें भरा जल बाहर निकल जाता है और पनडुब्बी का घनत्व कम हो जाता है जिससे वह ऊपर की ओर आना शुरू कर देती है।

 

  • लोहे का एक टुकड़ा पानी में डूब जाता है किन्तु पारे पर तैरता रहता है क्योंकि जल की अपेक्षा लोहे का घनत्व अधिक है तथा पारे की अपेक्षा कम है। 

 

  • हाइड्रोजन जैसी हल्की गैस से भरा गुब्बारा वायुमंडल में ऊपर की ओर उठकर उड़ता जाता है क्योंकि गैस भरे गुब्बारे का औसत घनत्व वायु की अपेक्षा कम होता है। गुब्बारा हवा में एक सीमित ऊंचाई तक ही जा पाता है क्योंकि वायुमंडल में ऊंचाई के साथ-साथ वायु का घनत्व कम होता जाता है। किसी विशेष ऊंचाई पर जब वायु का घनत्व गुब्बारे के औसत घनत्व के बराबर हो जाता है तब गुब्बारा ऊपर उठना बन्द कर, सीधा ही हवा के बहाव के साथ उड़ता जाता है। 

 

  • बर्फ का घनत्व जल की अपेक्षा कम होता है अतः घनत्व के अनुसार बर्फ का दसवां भाग जल के बाहर निकला रहता है और बर्फ जल पर तैरती रहती है। बर्फ के पिघलने पर उसका उतना आयतन कम हो जाता है जितना पानी की सतह से ऊपर था इसलिए जल के स्तर में कोई वृद्धि न होकर वह पूर्ववत् एक समान बना रहता है।

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