गैर सरकारी संगठनों (NGO) की भारतीय लोकतंत्र में भूमिका | NGO Role in Democracy in Hindi

 

भारतीय लोकतंत्र में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका

गैर सरकारी संगठनों (NGO) की भारतीय लोकतंत्र में भूमिका | NGO Role in Democracy in Hindi


भारत में लगभग 3.4 मिलियन गैर-सरकारी संगठन हैं जो हाशिए पर और वंचित समुदायों के लिये आपदा राहत से लेकर समर्थन तक के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। 

NGO की भारतीय लोकतंत्र में भूमिका

 

अंतर को भरना: 

  • गैर सरकारी संगठन सरकार के कार्यक्रमों में खामियों को दूर करने का प्रयास करते हैं और उन लोगों तक पहुँचते हैं जो अक्सर राज्य की परियोजनाओं से अछूते रह जाते हैं। उदाहरण के लिये- COVID-19 संकट में प्रवासी श्रमिकों को सहायता प्रदान करना।
  • इसके अलावा वे मानव और श्रम अधिकारों, लैंगिक मुद्दों, स्वास्थ्य देखभाल, पर्यावरण, शिक्षा, कानूनी सहायता और यहाँ तक कि अनुसंधान से संबंधित विविध गतिविधियों में लगे हुए हैं।


अधिकार संबंधी भूमिका: 

  • समाज में कोई भी बदलाव लाने के लिये सामुदायिक-स्तर के संगठन और स्वयं सहायता समूह महत्त्वपूर्ण हैं।
  • अतीत में ऐसे ज़मीनी स्तर के संगठनों को बड़ी NGO और अनुसंधान एजेंसियों के साथ सहयोग से सक्षम किया है जिनकी विदेशी फंडिंग तक पहुँच है।
  • दबाव समूह के रूप में कार्य करना: ऐसे राजनीतिक गैर सरकारी संगठन हैं जो सरकार की नीतियों और कार्यों के विरुद्ध जनता की राय जुटाते हैं।
  • इस तरह के NGO जनता को शिक्षित करने और सार्वजनिक नीति पर दबाव बनाने में सक्षम हैं, वे लोकतंत्र में महत्त्वपूर्ण दबाव समूहों के रूप में कार्य करते हैं।
  • वे गुणवत्ता सेवा की मांग के लिये गरीबों को जुटाते और संगठित करते हैं और ज़मीनी स्तर के सरकारी अधिकारियों के प्रदर्शन पर जवाबदेही के लिये सामुदायिक प्रणाली लागू करते हैं।


सहभागी शासन में भूमिका:

  • कई नागरिक समाज की पहल ने देश में कुछ पथ-तोड़ने वाले कानूनों में योगदान दिया है जिसमें पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986, शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009, वन अधिकार अधिनियम, 2006 और सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 शामिल हैं।
  • सामाजिक मध्यस्थ के रूप में कार्य करना: सामाजिक अंतर-मध्यस्थता समाज में परिवर्तन के वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिये प्रचलित सामाजिक परिवेश के भीतर सामाजिक और व्यवहारिक दृष्टिकोण को बदलने के लिये विभिन्न एजेंटों द्वारा समाज के विभिन्न स्तरों का एक हस्तक्षेप है।
  • भारतीय संदर्भ में जहाँ लोग अभी भी अंधविश्वास, आस्था, विश्वास और रीति-रिवाज में फंसे हुए हैं, वहाँ NGO उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं और लोगों में जागरूकता पैदा करते हैं।


NGO से संबंधित मुद्दे

विश्वसनीयता में कमी: 

  • पिछले कुछ वर्षों के दौरान कई संगठनों ने मुहिम शुरू की है जो गरीबों की मदद करने के लिये काम करने का दावा करते हैं।
  • एक गैर सरकारी संगठन होने की आड़ में ये NGO अक्सर दानदाताओं से पैसे लेते हैं और मनी लॉन्ड्रिंग गतिविधियों में भी शामिल होते हैं।
  • भारत में हर 400 लोगों के लिये लगभग एक NGO है। हालाँकि प्रत्येक गैर-सरकारी संगठन महत्त्वपूर्ण सामाजिक कल्याण कार्यों में संलग्न नहीं है।


पारदर्शिता की कमी: 

  • भारत के गैर-सरकारी संगठनों की संख्या और इस क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी स्पष्ट रूप से एक मुद्दा है जिसमें सुधार की आवश्यकता है।
  • इसके अलावा गैर-सरकारी संगठनों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। अतीत में कई गैर-सरकारी संगठनों को धन की हेराफेरी में लिप्त पाए जाने के बाद ब्लैकलिस्ट किया गया था।


विकास संबंधी गतिविधियाँ: 


  • भारत के इंटेलिजेंस ब्यूरो की एक रिपोर्ट ने ग्रीनपीस, कॉर्डैड, एमनेस्टी, और एक्शन एड जैसे NGOs पर भारत के सकल घरेलू उत्पाद को 2-3% प्रतिवर्ष कम करने का आरोप लगाया।

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