लोक प्रशासन का अन्तर्राष्ट्रीयकरण | Internationalization of Public Administration

लोक प्रशासन का अन्तर्राष्ट्रीयकरण 

Internationalization of Public Administration

लोक प्रशासन का अन्तर्राष्ट्रीयकरण | Internationalization of Public Administration


 

लोक प्रशासन का अन्तर्राष्ट्रीयकरण 

  • 1960 व 1970 के प्रथम दो विकासात्मक दशकों की असफलता के बाद 1980 के दशक के प्रारंभिक चरण में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में वस्तुओं के मूल्य में जबर्दस्त गिरावट आई। इस प्रवृत्ति ने संपूर्ण विश्व में सरकारों के विरुद्ध असंतोष की एक लहर पैदा की। विकसित देशों में यह असंतोष अधिक केन्द्रित और मुद्दों पर आधारित था। इसके विपरीत विकासशील देश उस प्रबंध से बाहर आर्थिक संकट से गुजर रहे थेजिसका जन्म मंहगे लेकिन असफल गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमोंअस्थायी राजनीति और अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में मनमानी की प्रवृत्तियों के कारण हुआ। इन प्रवृत्तियों का संदेश स्पष्ट था राज्य इतना बड़ा है कि इसका प्रबंध नहीं किया जा सकता है और उन सभी क्षेत्रों का प्रबंध करने की स्वतंत्रता निजी क्षेत्र को होनी चाहिए जहाँ राज्य असफल हो रहा है। व्यापक उद्यमशीलता और खुली प्रतियोगिता सुधारों की प्रमुख शब्दावलि बन गए। वस्तुओं और सेवाओं की पूर्ति करना अब सरकार से निजी एजेंसियों के हाथों में जाने लगा। बाज़ार की आवश्यकताओं और अंतर्राष्ट्रीय दाता एजेंसियों द्वारा समर्पित नीतियों के कारण परंपरागत मॉडल को पूरी तरह से नकार दिया गया।

 

  • सहायता कार्यक्रमों में यह परिवर्तन दिखाई देने लगा। दाता एजेंसियों ने विकासशील देशों में विकेन्द्रीकरणउदारीकरणमूल्यांकन करने की कार्यपद्धतिनिजीकरण और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों की लागत प्रभावकारिता पर बल देना शुरू कर दिया। विश्व बैंक की 1996 की रिपोर्ट में इस उद्देश्य का स्पष्ट वक्तव्य दिखाई देता है। इस रिपोर्ट का शीर्षक फ्रॉम प्लान टू मार्किट (From Plan to Market) है। शासन के दूरगामी कार्यक्रमों में यह रिपोर्ट दो परिवर्तनों की ओर इशारा करती है। प्रथमयोजना के असफल दशक बाजारीकरण के लिए तर्क प्रदान करते हैंऔर द्वितीयजो कुछ भी राज्य उपलब्ध कराने में असफल रहा हैउसे बाजार उपलब्ध कराएगा।

 

  • इस प्रकार से इस नई सुधार मुहिम को दान एजेंसियों जैसे विश्वबैंकअन्तर्राष्ट्रीय वित्त कोष (आई.एम. एफ.) आर्थिक सहयोग व विकास के लिए संगठन (Organisation for Economic Cooperation and Development, OECD- ओ.ई.सी.डी.) और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू.एन.डी.पी.) ने आगे बढ़ाया लागत में बचत और अर्थपूर्ण निष्पादन ऑडिट मुख्य प्रेरक था। ऐसा महसूस किया गया कि सुधारों को शीघ्र लाया जाना आवश्यक था। इसका कारण यह था कि विकासशील देशों में प्रचलित संरक्षणवाद के कारण विकसित औद्योगिक देशों में बाजार में ठहराव की स्थिति आ गई थी। लाभप्रद निष्पादन का एक बहुत बड़ा हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों और तृतीय विश्व के देशों को नहीं पहुँच रहा था। इसका कारण यह था कि बाज़ार के कठिन व स्वेच्छाचारी कानून नौकरशाही द्वारा नियंत्रित हो रहे थेऔर यह नौकरशाही अपव्यय करने और अपने हित साधने वाली थी। उनका उद्देश्य था नौकरशाही राज्य के लोह-प्रभामण्डल (Iron Halo) को हटानासार्वजनिक चयन को कम करनाऔर बाज़ार को इस तरह से मुक्त बनाना कि सरल व आसान बाज़ार के तर्क न कि बड़ी योजनाओं द्वारा पूँजी का प्रवाह एक स्थान से दूसरे स्थान के लिए हो सके। यह मानना था कि बड़ी योजनाएँ सार्वजनिक घाटे को बढ़ावा देती है।

 

  • नव लोक प्रबंधन के अंतर्राष्ट्रीय पक्ष ने इसे सुशासन की अवधारणा में आसानी से परिवर्तित होने में मदद की है। इसके बाद से ओ.ई.सी.डी. (1995, 1996 और 2000) अंतर्राष्ट्रीय विकास विभाग (डी.एफ.आई. डी.- 1997) और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू.एन.डी.पी.- 1996, 1998) ने प्रबंध-उन्मुख उपागमों पर आधारित बहुत से समान सुधार पैकेज प्रचारित किए हैं। इन सुधार मुहिमों की बहुत सारी अफसलताओं की कहानियों के बावजूद भी बहुस्तरीय दान एजेंसियों को "मारीशस मैनेजिंग सक्सैज एंड ईस्ट एशियन मिरेकल" (Mauritius: Managing Success and East Asian Miracle) रिपोर्ट के रूप में छोटी-छोटी सफलताओं की भूलीभटकी व बहुत सारी कहानियाँ प्राप्त होती रहती हैं। यहाँ पर विलियमसन (op.cit.) के नीति सुधारों के दस दिशा-निर्देशों का उल्लेख करना अति आवश्यक है। ये निर्देश राज्य के स्वरूप में होने वाले परिवर्तन में दृष्टिगोचर होते हैंऔर संपूर्ण संसार में सुधार के लिए कुख्यात वाशिंगटन सहमति (Washington Consensus) सुझाव बन गए हैं। 


विलियमसन द्वारा सुझाए गए ये दिशा-निर्देश निम्न बातों पर बल देते हैं :

 

  • वित्तीय अनुशासन 
  • सार्वजनिक खर्च की वरीयताओं का उन क्षेत्रों की ओर पुनर्निर्देशनजिनमें उच्च आर्थिक लाभ मिले और आय वितरण जैसे प्राथमिक स्वास्थ्य देखभालप्राथमिक शिक्षा व आधारभूत संरचना में सुधार की संभाव्यता हो 
  • कर सुधारों द्वारा मारजिनल (परिधीय) दरों में कमी करना और कर आधार को व्यापक बनाना 
  • ब्याज दर का उदारीकरण 
  • प्रतिस्पर्धी विनिमय दर 
  • व्यापार उदारीकरण 
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment) के प्रवाह के लिए उदारीकरण
  • निजीकरण 
  • प्रवेश व निर्गमन के अवरोधों की समाप्ति के लिए विनियमन 
  • सुरक्षित सम्पत्ति अधिकार

 

  • ये दिशा-निर्देश विश्वबैंक के नव-उदारवादी एजेंडा को प्रदर्शित करते हैं और साथ ही प्रशासनिक कार्यप्रणाली में कार्यकुशलता व मितव्ययता को सुनिश्चित करते हैं। संयुक्त राष्ट्र के 1998 के प्रपत्र द बैशिंग ऑफ द स्टेट (The Bashing of the State) यानि राज्य की निन्दा वाशिंगटन सहमति की प्रमुख विशेषता थी। एक अन्य टिप्पणीकार ने इसकी तुलना नव साम्राज्यवाद के साथ की है। 


  • यद्यपि 1989 में, 'वाशिंगटन मतैक्यताशब्द का प्रयोग करने वाले विलियमसन ने इसकी व्याख्या काफी अच्छे ढंग से की है मैने जिस वाशिंगटन मतैक्यता शब्द का प्रयोग किया हैवह उस निर्देश से शुरू होता हैजिसमें कहा गया है कि वित्तीय अनुशासन की कमी के कारण हुई मुद्रास्फीति आय वितरण के लिए उचित नहीं है। 1990 के मध्य में इस बात को अनुभव किया गया कि स्थानीय सिद्धांतों और सामुदायिक संस्थाओं में वैश्विक व्यवहारों को अपनाए जाने की आवश्यकता है।

 

  • 1990 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका में लोक प्रशासन के प्रति प्रबंध दृष्टिकोण ने अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के कारण गति पकड़ी। सरकार में सुधार लाने के ऐसे प्रयास किए गएजिनका उद्देश्य सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए वर्तमान व्यवस्था व परिस्थिति में परिवर्तन लाना है। नव लोक प्रबंधन में एक महत्त्वपूर्ण विकास सरकार में सुधार लाना रहा हैताकि सरकार पूरी संभाव्यता कार्यकुशलता से कार्य करें। सरकार में सुधार लाने के कार्य को सरकार द्वारा प्रारंभ एक चेतन व नियोजित प्रक्रिया के रूप में किया गयाताकि आंतरिक व बाह्य राजनैतिक व प्रशासकीय संगठनों व नीतियों में परिवर्तन होऔर सुशासन के प्रधान मूल्यों के प्रकाश में लोक प्रबंधन की संभाव्यता में संवृद्धि हो (बेमलमेन्स - Bemelmans, 1999) .

 

  • सन् 1992 में डेविड आस्बोर्न एवं टेड गैब्लर (David Osborne and Ted Gaebler) ने सरकार का पुनःनिर्माण की अवधारणा को प्रस्तुत किया। इस अवधारणा में भी शासकीय व्यवस्था के बदलाव के बारे में बताया गया है। अपनी पुस्तक रिइन्वेंटिंग गवर्नमेंट हाउ इंटरप्रिनियल स्प्रिंट इज ट्रांसफोर्मिंग द पब्लिक सेक्टर (Reinventing Government: How the Entrepreneurial Spirit is Transforming the Public Sector) में उन्होंने कहा कि नौकरशाही सरकार को उद्यमशील सरकार में बदलने की आवश्यकता है। सरकार की पुनः खोज से उनका अर्थ है एक ऐसी सरकारजो कभी ठहरती नहीं हैपरंतु वातावरण के अनुसार स्वयं को ढाल लेती हैऐसी सरकार जो उत्तरदायी व संवेदनशील हैकार्यकुशल और प्रभावकारी है। यह सरकार अधिक बाज़ार उन्मुख समझी जाती हैऔर नागरिकों की प्राथमिकताओं को पूरा करने वाली गुणवत्ता युक्त वस्तुओं व सेवाओं को उपलब्ध कराती है।

 

  • सरकार का पुनःनिर्माण ने 'दस विभिन्न रूप ले लिए हैं जो इस प्रकार से हैं: उत्प्रेरणात्मकसमुदाय उन्मुखप्रतिस्पर्धीमिशन प्रेरित परिणाम उन्मुख ग्राहक प्रेरित उद्यमीपूर्वानुमानविकेन्द्रीकृत और बाज़ार उन्मुख है। आस्बोर्न और गैब्लर द्वारा प्रस्तुत सरकार का पुनः निर्माण मॉडल नव लोक प्रबंधन में एक व्यापक प्रयास है। यह बढ़ती कुशलताविकेन्द्रीकरणउत्तरदायित्व और बाजारीकरण के सुधार एजेंडा को पुनः स्थापित करता है। इन्हीं विचारों के प्रभाव से इंग्लैंड में उस समय के उपराष्ट्रपति एल. गोर के नेतृत्व में राष्ट्रीय कार्य-निष्पादन पुनरीक्षण (National Performance Review ) का प्रयास हुआ बुनियादी उद्देश्य इन संगठनों को निष्पादन- उन्मुख और ग्राहक उन्मुख बनाकर संघीय संगठनों की संस्कृति में बदलाव लाना था।

 

 लोक प्रशासन और प्रबंध की राष्ट्रकुल संस्था (सी.ए.पी.ए.एम. CAPAM)

 

लोक प्रशासन और प्रबंध की राष्ट्रकुल संस्था (सी.ए.पी.ए.एम. CAPAM-Commonwealth Association of Public Administration and Management) द्वारा 1994 में आयोजित संक्रमण काल में सरकार (Government in Transition) विषय पर सम्मेलन और 1996 में 'नव लोक प्रशासन वैश्विक चुनौतियाँ - स्थानीय समाधान (The New Public Administration : Global Challenges - Local Solutions) विषय पर सम्मेलन में भी नागरिकों को उच्च गुण की सेवाओं को प्रदान करने में सार्वजनिक प्रबंधकों की नई भूमिका को बताने का प्रयास किया गया। इनके द्वारा उस खाई को भरने का प्रयास किया गयाजो वैश्विक माँग व स्थानीय अनुभवों के बीच उत्पन्न होती है। इन सम्मेलनों में नए प्रतिमान का समर्थन किया गया। इस प्रतिमान की निम्न पाँच विशेषताएँ हैं :

 

i) उच्च गुण की सेवाओं को मुहैया करना 

ii) अधिक प्रबंधकीय स्वायत्तता 

iii) व्यक्तियों व संगठनों का गंभीर व गहन निष्पादन मूल्यांकन 

iv) नीतिगत लक्ष्यों की प्राप्ती आसान करने के लिए प्रबंधकीय सहायता सेवाओं को उपलब्ध करना 

v) प्रतिस्पर्धा की स्वीकार्यता

 

  • यह नया प्रतिमान सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों के बीच दृढ़ संबंध व भागीदारी की ओर इशारा करता है। इस परिवर्तन को भारत के पाँचवें वेतन आयोग, 1998 की संदर्भ शर्तों में भी देखा जा सकता है। यह आयोग 1966 के प्रशासनिक सुधार आयोग अलग हटकर है।

 

  • यह परिवर्तित प्रतिमान इस तथ्य को प्राथमिकता देता है कि सरकार के कार्य पहले परिभाषित किए जाएँ। उनका उत्तरदायित्व तय किया जाएऔर उस कार्य के निष्पादन लागत का अनुमान भी लगा लिया जाए। यह माना गया था कि नव लोक प्रबंधन राज्य द्वारा किए जा रहे स्वैच्छाचारी एकाधिकारवादी प्रशासन के स्थान पर वैज्ञानिक अवधारणा को बढ़ावा देगाऔर ऐसा करने से अंतर्राष्ट्रीय पूँजी का एक देश से दूसरे देश को प्रवाह होगा। इन सबके परिणामस्वरूपबाज़ारों का विकास होगा और इस तरह से अंतर्राष्ट्रीय समृद्धि आएगी।

 

  • नव लोक प्रबंधन का यह अंतर्राष्ट्रीय तत्त्व राज्य के पुराने नौकरशाही मॉडल से एकदम स्पष्ट रूप से भिन्न थाजो संरक्षणवादनियम उन्मुखता और निष्पादन में गुप्तता के सहारे खड़ा था लेकिन यह कहना होगा कि नया मॉडल सामाजिक व मानवशास्त्रीय विशेषताओंनस्लीय जटिलताओं और विभिन्न समाजों में पारिस्थितिकीय विभिन्नताओं की एक साधारण समझ व विशलेषण पर आधारित था। इस प्रकार से नव लोक प्रबंधन के विरुद्ध अधिक मान्य आलोचना यह थी कि यह एक ऐसा आकार हैजो कि हर किसी के लिए उपयुक्त नहीं है।"

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