लोक प्रशासन में संगठन के सिद्धांत |समन्वय का शाब्दिक अर्थ |Principles of Organization in Public Administration

लोक प्रशासन में संगठन के सिद्धांत

संगठन के सिद्धान्त

 


सामान्य परिचय 


यह सर्वविदित है कि प्रशासनिक संगठन नियमों और सिद्धान्तों के आधार पर अपनी संरचना और दैनिक क्रिया कलापों को अगली जामा पहनाते हैं पिछली इकाई ने संगठन के आधार भूत तीन सिद्धान्तों को विस्तृत विवेचना प्रस्तुत की है। वर्तमान इकाई वस्तुतः उन सिद्धान्तों का विवेचन करेगी जिनका उपयोग क्रियात्मक रूप से संगठन को प्रत्यायोजन, पर्यवेक्षण केन्द्रीकरण तथा विकेन्द्रीकरण को सम्मिलित किया गया है।

 

संगठन के सिद्धान्त- 01 समन्वय

संगठन के सिद्धान्त- 01 समन्वय    समन्वय से आशय Coordination Explanation in Hindi


 

समन्वय से आशय Coordination Explanation in Hindi

 

  • समन्वय से आशय विभिन्न उत्पन्ति के साधनों और उनकी क्रियाओं को इस तरह से क्रमबद्ध से है, जिससे कि प्रभावी ढंग से संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके। एक प्रशासक अपने अधीनस्थ कर्मचारियों एवं अधिकारियों के मध्य सामूहिक प्रयासों को इस प्रकार सुव्यवस्थित करता है कि सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति में सभी का योगदान सकारात्मक हों।

 

  • सामान्यतः समन्वय यह सुनिश्चित करता है कि एक कर्मचारी दूसरे कर्मचारी के कार्यों में सहयोग दे। इसके अभाव में सामूहिक प्रयासों की सही दिशा नहीं दी जा सकती है। यह संगठन का हृदय हैं, जिसमें सर्वोच्च अधिकारी से लेकर नीचे स्तर तक के श्रमिकों को उद्देश्य प्राप्ति के लिए समन्वित प्रयास हेतु प्रेरित किया जाता है। इससे गुणवत्ता के साथ समय बद्ध कार्य का निष्पादन सम्भव हो पाता है।

 

  • इस प्रकार संगठन के लक्ष्य को ध्यान में रखकर संगठन के अधीनस्थों तथा विभागों में एकीकरण करने की प्रक्रिया इसमें समाहित होती है। संगठन में प्रशासक के अनेक कार्य होते हैं, जैसे- नियोजन, नियंत्रण, नियुक्तियाँ, संगठन, अभिप्रेरणा आदि। इन सभी में समन्वय रखना उसके लिये अति महत्वपूर्ण प्रकार्य होता है। अतः सामूहिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए संस्था के मानवीय एवं भौतिक संसाधनों में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया जाता है। 


इसे एक उदाहरण द्वारा समझने का प्रयास करें

 

जिस प्रकार भारतीय क्रिक्रेट टीम के खिलाड़ी दूसरी टीम पर उसी दशा में जीत प्राप्त प्राप्त करतें हैं, जबकि टीम के समस्त खिलाड़ी आपस में समन्वय रखते हुए अपनी भूमिकाओं का निर्वहन करें। ठीक उसी प्रकार संगठन के कर्मचारी भी संगठन के पूर्व-निर्धारित लक्ष्यों को तभी प्राप्त कर सकते हैं, जब उनके कार्यों में समन्वय हो। इस प्रकार समन्वय प्रशासन का महत्वपूर्ण कार्य है। समन्वय को विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से समझाने का प्रयास किया है। अत: इसकी विभिन्न परिभाषाओं को समझने का प्रयास करें


समन्वय की परिभाषाएँ 

हेनरी फेयोल के शब्दों में-समन्वय की परिभाषा


समन्वय से अभिप्राय किसी संगठन की सभी क्रियाओं में एकरूपता स्थापित करने से है, जिससे उसकी कार्यशीलता तथा सफलता सम्भव हो सके।"

 

मूने तथा रैले के अनुसार -समन्वय की परिभाषा


कार्य की एकता की स्थापना हेतु सामूहिक प्रयास का व्यवस्थित आयोजन ही समन्वय कहलाता है।" 

 

न्यूमैन के अनुसार समन्वय की परिभाषा


समन्वय का सम्बन्ध व्यक्तियों के एक समूह के कार्यों को व्यवस्थित ढंग से जोड़ने तथा उनमें एकरूपता लाने से है। "

 

कूण्टज '' डोनेल के अनुसार समन्वय की परिभाषा


समन्वय प्रबन्ध का सार है, जो एक समूह के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए व्यक्तिगत प्रयासों में एकरूपता लाने के लिए किया जाता है। "

 

मैरी पार्कर फोलेट के अनुसार समन्वय की परिभाषा


यह एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। अतः प्रारम्भ से ही संस्था की क्रियाओं में समन्वय स्थापित करना चाहिए, क्योंकि बाद में इसकी स्थपना करना अत्यन्त कठिन हो जाता है। " 


  • उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि समन्वय संगठन में पारस्परिक विरोध व कटुता को दूर करता है, जिससे सहयोग पूर्ण वातावरण का निर्माण करता है। चूँकि प्रत्येक संगठन में विभिन्न योग्यताओं, इच्छाओं, दृष्टिकोणों तथा आकांक्षाओं वाले व्यक्ति कार्य करते हैं, अतः यदि इस विविधता को उद्देश्य की एकता में रूपान्तरित न किया जाये तो परिणाम नकारात्मक होंगे। 


  • वस्तुतः समन्वय ही वह कला है जो अनेकता को एकता में परिवर्तित कर संगठन को कार्यकुशल एवं प्रभावी बनाता है। 

समन्वय के अन्तर्गत क्रियाएँ 


लोक प्रशासन के विचारक समन्वय के अन्तर्गत निम्नलिखित क्रियाओं को सम्मिलित करते हैं - 


  • संगठन की समस्त क्रियाओं में प्रारम्भ से ही समन्वय स्थापित करना चाहिए। 
  • विभिन्न अधिकारियों द्वारा किसी निर्णय पर सामूहिक विचार-विमर्श करना चाहिए। 
  • अधिकारियों एवं कर्मचारियों के मध्य प्रत्यक्ष सम्प्रेषण व्यवस्था स्थापित करना चाहिए। 
  • सेवी वर्गीय विभागों की आन्तरिक क्रियाओं में समन्वय स्थापित करना चाहिए। 


समन्वय की व्याख्या 

उपरोक्त क्रियाओं के पश्चात समन्वय को निम्नलिखित ढंग से सूचीबद्ध कर आत्मसात् किया जा सकता है। इन्हें समझने का प्रयास करें-

 

  • समन्वय एक सतत् चलने वाली प्रक्रिया है। यह स्थिर न होकर गत्यात्मक हैं जो कि किसी निश्चित उद्देश्य के लिए क्रियान्वित की जाती है।

 

  • समन्वय आयोजना, संगठन, अनुमान तथा नियन्त्रण के समन्वय का मूर्त विज्ञान है।

 

  • समन्वय की आवश्यकता सभी व्यावसायिक, गैर-व्यावसायिक, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक संगठनों में उनेक प्रारम्भिक कार्यों से ही प्रारम्भ हो जाती है।

 

  • संगठन की कार्यकुशलता उचित समन्वय पर ही निर्भर करती है। जितना कुशल समन्वय होगा, संगठन उतना ही सुचारू रूप से अपने कार्यों का निष्पादन करेगा।

 

  • इस प्रकार कार्य की एकता की स्थापना हेतु सामूहिक प्रयास की नियमित व्यवस्था ही समन्वय का मूल आधार है। एक ओर जहाँ समन्वय के विभिन्न लाभ हैं, वही दूसरी ओर इसके महत्वपूर्ण कार्य भी है। जिन्हें अध्ययन को पूर्णता प्रदान करने हेतु वर्गीकृत कर अध्ययन किया जाना आवश्यक हैं। इन्हें विश्लेषित करने का प्रयास करें

 

  • बिना समन्वय के एक संस्था के कर्मचारी विभिन्न दिशाओं में भटक सकते हैं, समन्वय समूह के सदस्यों में समान उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सामूहिकतर की भावना को जगाने का प्रयास करता है।

 

  • सामान्यतया यह देखा गया है कि एक ही संगठन के विभागीय उद्देश्य व वैयक्तिक उद्देश्य परस्पर विरोधी होते हैं। जिससे संसाधनों का दुरूपयोग प्रारम्भ हो जाता है। ऐसे विरोधों को दूर कर संसाधनों का सदुपयोग संभव बनाने का कार्य करता है।

 

  • निजीकरण उदारीकरण और भूमण्डलीकरण के कारण प्रशासनिक संगठन के आकार में अधिक वृद्धि होने लगी है। इनका बढ़ता हुआ आकार जटिल संगठन संरचना तथा दोषपूर्ण सम्प्रेषण को जन्म देता है और ऐसी दशा में संगठन में प्रवाहपूर्ण कार्य प्रणाली के लिये समन्वय की आवश्यकता बढ़ जाती है।

 

  • जब समूह का मिला जुला प्रभाव समूह के प्रत्येक सदस्य के पृथक-पृथक किये जा सकने वाले योगदान के योग से अधिक हो तो इसे सिनर्जी लाभ कहा जाता है। समन्वय द्वारा एक संगठन को सिनर्जी लाभ होता है, क्योंकि समन्वय द्वारा वैयक्तिक प्रयास समूह प्रयास में बदल दिये जाते हैं और संगठन की कुल कार्यक्षमता बढ़ जाती है।

 

  • समन्वय के अन्तर्गत ऐसी योजनाओं का निर्माण किया जाता है जो कि अधीनस्थ कर्मचारियों की गतिविधियों में उचित समन्वय स्थापित करने में सर्वथा सक्षम हों तथा जो उनकी गतिविधियों का नियमन कर सकें।

 

अब तक के विश्लेषण से आप समन्वय के सिद्धान्त के अनुप्रयोगों से भली-भाँति परिचित हो चुके हैं। अब प्रश्न


 समन्वय को क्रियान्वित करने की विधियाँ हैं

 

नियोजन

  • नियोजन को समन्वय की तरफ बढ़ा हुआ प्रथम कदम मानते हैं। यह साधन, कर्मचारी-वर्ग एवं उनके व्यवहार आदि से प्रत्यक्ष सम्बन्धित होता है। एक अच्छे नियोजन का कार्य आधी सफलता की गारण्टी होता है। अतः संगठन में कुशल समन्वय के लिये प्रभावी नियोजन का होना आवश्यक है।

 

समन्वय 

  • संगठन के समस्त अनुभाग समन्वय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, प्रशासन में विभिन्न प्रकार के विवाद उठते हैं, जिनका समाधान समन्वय के द्वारा किया जाता है। अतः विभागीय स्तर पर समन्वय की स्थापना, प्रभावी समन्वय का द्वितीय चरण है।

 

लेखा विभाग

  • किसी भी संगठन का 'लेखा विभाग मंत्रालय' स्वयं एक महत्वपूर्ण समन्वयकर्ता है। प्रशासकीय विभाग लेखा विभाग में अपनी वित्त सम्बन्धी माँगे प्रस्तुत करते हैं और ऐसा करने में वे अक्सर समन्वयात्मक दृष्टिकोण अपनाते हैं। बजट निर्माण के क्रम में लेखा विभाग को विभिन्न प्रकार की समन्वयकारी भूमिका निभानी पड़ती है। अतः आवश्यकतानुसार समन्वय स्थापना में लेखा एवं वित्त अनुभाग की सहायता ली जा सकती है।

 

अन्तर्विभागीय समितियां 

  • प्रशासनिक विभागों के बीच उत्पन्न होने वाले विवादों और मतभेदों को सुलझाने में प्रशासनिक क्रियाओं और विभागीय समितियों का महत्वपूर्ण स्थान होता है। अतः इन समितियों की स्थापना एवं कुशल प्रयोग समन्वय को प्रभावी बनाता है।

 

संचार के साधन

  • संचार के साधन भी समन्वय स्थापना में महत्वपूर्ण होते हैं। संचार के साधनों द्वारा लिखित या अलिखित सूचनाओं, आज्ञाओं, निर्देशों आदि को एक अधिकारी से दूसरे अधिकारी तक पहुँचाया जाता है, जिससे समन्वय की प्रक्रिया आसान हो जाती है।


प्रश्न -  

समन्वय का शाब्दिक अर्थ क्या है? 
किस विद्वान के अनुसार समन्वय संगठन की विभिन्न क्रियाओं में एकरूपता लाता है?


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