जयप्रकाश नारायण के लोकतंत्र के प्रति विचार |Jayaprakash NarayanThoughts on Democracy

जयप्रकाश नारायण के लोकतंत्र के प्रति विचार

जयप्रकाश नारायण के लोकतंत्र के प्रति विचार |Jayaprakash NarayanThoughts on Democracy


 विषय सूची 



जयप्रकाश नारायण और लोकतंत्र

जयप्रकाश नारायण प्रजातंत्र के प्रबल समर्थक थेपरन्तु वर्तमान प्रजातंत्र के कट्टर आलोचक थे। वे लोकतंत्र को नैतिक आधार पर मजबूत करने पर जोर देते थे। जयप्रकाश नारायण जी के शब्दों में लोकतंत्र की समस्या मूल रूप से तथा सबसे अधिक नैतिक समस्या है। जब तक कि लोगों में नैतिक तथा आध्यात्मिक गुणों का उदय नहीं होगा तब तक कितनी अच्छी राजव्यवस्था तथा संविधान क्यों न होलोकतंत्र सही ढंग से कार्य नहीं कर सकेगा। 


जयप्रकाश नारायण के लोकतंत्र पर विचारों का उल्लेख कीजिए ?

जयप्रकाश नारायण ने लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए निम्न शर्ते बताई: 


1 लोगों में सत्य के प्रति आस्था

 

  • गांधी जी की भांति जयप्रकाश नारायण की नैतिक मूल्यों की स्थापना का समर्थन करते है। मूल्यों विहिन लोकतंत्र कभी सफल नहीं हो सकता। नैतिक मूल्य नागरिकों के अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों पर बल देते हैं और लोकतांत्रिक व्यवस्था में नागरिकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे एक नागरिक के रूप में जो भी दायित्व दिया गया है उसका निर्वाह बिना किसी छलकपट व पूरी निष्ठा से करें नागरिकों के उच्च नैतिक आदर्श राष्ट्र को आगे बढ़ा सकता है। यदि लोगों के द्वारा सरकारी सुविधाओं का प्रयोग केवल अपनी स्वार्थ सिद्ध के लिए करने लगते है तो वह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं हैं।


2 दूसरों के मतों के प्रति सहिष्णुता

 

  • जयप्रकाश नारायण के अनुसार सहिष्णुता लोकतंत्र के मूल में है। इसलिए दूसरों के मतों के प्रति सहिष्णुता रखननी चाहिएभले ही हम उनके मतों से सहमत न हो। लोकतंत्र में यह भी माना जाता है कि यदि 99 लोगों की राय एक तरफ व 01 व्यक्ति की राय दूसरी तरफ है तो उस एक व्यक्ति की राय भी महत्वपूर्ण है। बहुमत के दम पर किसी भी अल्पमत की आवाज को दबाया नहीं जा सकता। यदि दबाया जाता है तो लोकतंत्र इसकी किसी भी कीमत पर इजाजत नहीं देता और अहिष्णुता की स्थिति उस राज्य या समाज को उस गहरे अंधकार में धकेल देती है जिससे निकलना फिर असंभव हैं भारत जैसे विविधता वाले राष्ट्र में सहिष्णुता की अति आवश्यकता है। यहीं कारण है कि जे.पी.गांधीनेहरू सहित अनेक विचारों ने न केवल सहिष्णुता को सम्मान दिया अपितु संविधान में भी वे तमाम प्रावधान किये जिससे सहिष्णुता को बल मिल सके और नागरिक एक दूसरों की भावना का सम्मान करना सीखें।

 

3 उत्तरदायित्व की भावना

 

  • उत्तरदायित्व की भावना दायित्व बोध करवाने के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित करती है कि शासन सत्ता से जुड़े लोग राज्य व नागरिकों के प्रति अपने उत्तरदायित्व या जवाबदेयी से मुक्त नहीं हो सकते। इसीलिए जयप्रकाश नारायण ने उत्तरदायित्व को लोकतंत्र की सफलता की शर्त माना है। इसके बिना लोकतंत्र की मर्यादाएं समाप्त हो जाएगी। यदि सत्ता पक्ष अपनी पूर्ववर्ती सरकारों को जिम्मेदार ठहराने की प्रवृत्ति से ग्रस्त है तो वह कभी भी राष्ट्र को आगे नहीं बढ़ा सकता और ऐसे में लोकतंत्र कमजोर ही बनेगा।

 

4 साधारण जीवन में विश्वास

 

  • यदि राज्य के लोगों की जरूरते अल्प है और जीवन साधारण है तो लोकतंत्र सफल होगा जब लोगों की आवश्यताएं सीमित होगी तो वे गलत तरीकों से दूर रहेगें तथा सादगी से अपना जीवन जीयेगें। जयप्रकाश नारायण सादा जीवन उच्च विचार के साथ यदि समाज के लोग बल देंगें तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छी बात है।

 

5 हिंसा का परित्याग

 

हिंसा का लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं है। यदि हिंसात्मक वातावरण है तो लोकतंत्र की सफलता की आशा नहीं की जा सकती है। सत्ता परिवर्तन हिंसात्मक साधनों की बजाए मत की शक्ति के माध्यम से होना चाहिए। लोकतंत्र में हिंसा के किसी भी रूप को स्वीकार नहीं किया जा सकता। जिस व्यवस्था में विचारों के आदर व सम्मान की बात की जाती है उसमें हिंसा का कोई स्थान नहीं हो सकता।


6 स्वतंत्रता के प्रति आस्था 

  • जयप्रकाश नारायण का यह मानना है कि लोकतंत्र की सफलता हेतु जरूरी है कि लोग आजादी के प्रति आस्था रखें तथा अन्याय व अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलन्द करने का साहस होना चाहिए। यदि लोग अन्याय व अत्याचार को चुपचाप सहेगें तो इससे तानाशाही का मार्ग प्रशस्त होगा।

 

7 आपसी सहयोग की भावना 

  • लोकतंत्र एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसका आधार ही लोगों की आपसी मदद है। यदिलोगों में आपसी सहयोग की भावना नहीं है तो लोकतंत्र की सफलता संदिग्ध हैं लोगों में आपसी संबंध परिवार के समान होने चाहिए तथा संकट की हर घड़ी में तत्परता से एक दूसरे का सहयोग करन चाहिए। ये भावना उस समाज व व्यवस्था को शीर्ष तक पहुंचा सकती है।

 

इस प्रकार जयप्रकाश नारायण के द्वारा लोकतंत्र की सफलता के लिए जो आवश्यक शर्तें बताई जो न केवल जरूरी है अपितु आज के समय में भी इनकी आवश्यकता हैंजितने आज से 75 वर्ष पहले थी। इन शर्तों के विरोधी तत्व जैसे नैतिक मूल्यों का पतन बढ़ती हुई अहिष्णुता की भावनासतारूढ़ दलों का प्रत्येक समस्या के लिए अपने पूर्ववर्ती सरकारों को दोषी ठहराने की प्रवृत्ति व राजनीति हिंसा तथा दिखावे की राजनीति हमारे लोकतंत्र के लिए प्रमुख चुनौती बनी हुई है। मूल्य हिनता के कारण राजनीति नकारात्मकता की प्रतीक बन गई है। ऐसे में जयप्रकाश नारायण के विचार हमारे लोकतंत्र को सशक्त बना सकते है।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.