जयप्रकाश नारायण का वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था पर आलोचनात्मक दृष्टिकोण |Jaiprakash Narayan's reformist Suggestions in the context of democracy

जयप्रकाश नारायण का वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था पर आलोचनात्मक दृष्टिकोण |Jaiprakash Narayan's reformist Suggestions in the context of democracy

विषय सूची 


जयप्रकाश नारायण का वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था पर आलोचनात्मक दृष्टिकोण

 

जयप्रकाश नारायण ने उपरोक्त शर्तों के आधार पर लोकतंत्र को सफल बनाने की आवश्यकताओं को स्वीकार किया परन्तु साथ ही उन्होंने वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था पर कड़ा प्रहार करते हुए निम्न आधारों पर इसकी आलोचना की है:


भारतीय लोकतंत्र के सन्दर्भ में जयप्रकाश नारायण के सुधारवादी सुझाव

1 दोषपूर्ण चयन प्रणाली

  • जयप्रकाश नारायण का मत है कि हमारी वर्तमान चुनाव प्रणाली दोषपूर्ण है। चुनाव में विजयी उम्मीदवार हेतु यह जरूरी नहीं है कि वह सभी का बहुमत हासिल करें। चुनाव में कई उम्मीदवार खड़े होते हैं, परन्तु सबसे ज्यादा मत प्राप्त करने वाला विजयी होता हैभले ही उसे पड़े मत कुल मतदान का 35 प्रतिशत ही क्यों न हो। इस तरह जनता के बहुमत के बिना ही वे चुनाव जीत जाते है इसलिए उस विजयी प्रतिनिधि को जनता का वास्तवकि प्रतिनिधित्व मानना उचित नहीं है। इतना ही नहीं जो सरकारें बनती है उन्हें कहने के लिए तो बहुमत है परन्तु उनके विरूद्ध पड़े मत उनको प्राप्त मतों की तुलना में लगभग दो गुणा होते है परन्तु फिर भी वह बहुमत के नाम पर सत्ता का सुख भोगता हैं इसी दोषपूर्ण प्रणाली का सहारा लेकर राजनीतिक दल इस प्रकार की नीति अपनाते है जिससे की उनका वोट बैंक तैयार हो जाए उसी केन्द्रित नीति अपनाते है।

 

2 राजनीतिक दलों का उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्ति

  • जयप्रकाश नारायण के अनुसार वर्तमान लोकतंत्र में राजनेता व राजनैतिक दल यद्यपि कहने के लिए जन सेवा के लिए राजनीति में आते है और चुनाव लड़ते है केवल और केवल सत्ता प्राप्त करना जिसके लिए वे किसी भी हद तक जा सकते है। 
  • चुनावी घोषणा पत्रों के माध्यम से वे बड़े बड़े दावे जरूर करते है परन्तु उन पर खरे नहीं उतरते। चुनावों के समय में वोटो का धुव्रीकरण कर सत्ता प्राप्त करने की लालसा लोकतंत्र के लिए एक चुनौती है।
  • चुनाव के समय इस प्रकार के मुद्दे राजनीतिक दलों के द्वारा लाए जाते है जिनका जनहितों से कोई सरोकार नहीं होता केवल जनता की भावना को भड़का कर वोट प्राप्त करना चाहते है। इतना होने के बावजूद हर चुनाव में इन राजनीतिक दलों के बहकावे में आती हैं जिस तरह से चुनावों में धन बल का महत्व बढ़ा है जिसका पूरा लाभ औद्योगिक घराने उठा रहे हैं जो न केवल राजनीतिक दलों को चंदा देने तक सीमित है अपितु अपने हितों की पूर्ति करने वाली सरकार भी बनाते है इसके लिए सक्रिय होकर पार्टी या व्यक्ति विशेष के पक्ष में वातावरण बनाते है।
  • इस तरह वर्तमान लोकतंत्र कहने के लिए तो जनता के हितों की पूर्ति करने वाला है और सरकारें व जन प्रतिनिधि ऐसा ही दिखाना चाहते है कि वे जनता के लिए समर्पित होकर कार्य करते है परन्तु वे केवल चंद औद्योगिक घरानों के हितों को साधने के लिए ज्यादा गम्भीर होते है। उनका केवल एक ही लक्ष्य होता हैसत्ता को हर कीमत में प्राप्त करना अधिकांश तथा सत्ता प्राप्त हेतु अपवित्र व अनैतिक साधनों का खुलकर प्रयोग करते हैं।

 

3 जनता की भावना से खेलना

  • जयप्रकाश नारायण के अनुसार वर्तमान लोकतंत्र के अन्तर्गत राजनीतिक दल सत्ता प्राप्त करने के लिए जातिवादभाषावादक्षेत्रवादसाम्प्रदायिकता जैसे तत्वों की मदद लेते है। इन संकीर्ण मुद्दों का सहारा लेकर लोगों में आपसे मतभेद को बढ़ावा देते है ताकि आम जनता इन मुद्दों में उलझकर रह जाए और अपनी हित व विकास के मुद्दों को न उठाए और वही राजनेता व दल सफल है जो कितना प्रभावी ढंग से इस प्रकार के मुद्दों को उठा सकता है। 
  • वे इस बात का भूल जाते है। उनके यह कृत राष्ट्रीय एकता अखण्डता के लिए कितने घातक हैं। जनता की भावना से खेलना राजनीतिक दलों के आसान हथियार है और वे चुनाव के समय इसी तरह के मुद्दों को उठाकर सत्ता आसानी से प्राप्त कर लेते है। जनता की भावना से खेलना किसी भी रूप में उचित नहीं हो सकता है।

 

4 नैतिक मूल्यों का ह्यास

  • लोकतंत्र में नैतिक मूल्यों का होना जरूरी है अर्थात् सत्ता प्राप्ति का साधन पवित्र व नैतिक मूल्यों पर आधारित होना चाहिए परन्तु वर्तमान लोकतंत्र से नैतिक मूल्यों को कोई स्थान नहीं है। यह लोकतंत्र के लिए भाभ संकेत नहीं है। सत्ता प्राप्ति परम लक्ष्य बन गया है।

 

5 राजनीतिक व आर्थिक भाक्तियों का केन्द्रीयकरण

  • लोकतंत्र विकेन्द्रीकरण से ओर मजबूत हो सकता है परन्तु वर्तमान लोकतंत्र के तहत राजनीतिक तथा आर्थिक सत्ता के बढ़ते हुए केन्द्रीकरण की प्रवृत्ति लोकतंत्र व व्यक्ति की स्वतंत्रता दोनों के लिए घातककारी है। बड़े पैमाने पर औद्योगिकीकरण तथा लोककल्याणकारी राज्य की अवधारणा के बाद तो राजनीतिक व आर्थिक केन्द्रीकरण ओर तीव्र गति से बढ़ा है।

 

  • राजनीति कुछ लोगों व परिवारों तक सीमित होती जा रही है। सरकार भी बनाते है इसके लिए सक्रिय होकर पार्टी या व्यक्ति विशेष के पक्ष में वातावरण बनाते है। इस तरह वर्तमान लोकतंत्र कहने के लिए तो जनता के हितों की पूर्ति करने वाला है और सरकारें व जन प्रतिनिधि ऐसा ही दिखाना चाहते है कि वे जनता के लिए समर्पित होकर कार्य करते है परन्तु वे केवल चंद औद्योगिक घरानों के हितों को साधने के लिए ज्यादा गम्भीर होते है। उनका केवल एक ही लक्ष्य होता हैसत्ता को हर कीमत में प्राप्त करना अधिकांश तथा सत्ता प्राप्त हेतु अपवित्र व अनैतिक साधनों का खुलकर प्रयोग करते हैं।

 

6 वर्तमान लोकतंत्र में जनता की हिस्सेदारी नहीं

  • जयप्रकाश नारायण का मत है कि जिस प्रकार वर्तमान लोकतंत्र का आज संचालन किया जा रहा हैउससे पता चलता कि यह उल्टे पिरामिड की तरह काम कर रहा हैजिसका आधार संकुचित है। 'व्यस्क मताधिकार तथा "हर व्यक्ति को चुनाव में खड़ा होने का अधिकार से "लोकतंत्र अल्पतंत्र" की स्थापना में सहायक हुई है। इससे लोगो का लोकतंत्र में विश्वास अल्प हुआ। सता में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करके ही वर्तमान लोकतंत्र के आधार पर विस्तार किया जाना सम्भव है।

 

इस तरह जयप्रकाश नारायण ने वर्तमान लोकतंत्र पर कड़ा प्रहार करते हुए उसमें निहित दोषों को स्पष्ट करते हुए व्यापक सुधारों की आवश्यकता पर बल देकरराजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली व सत्ता प्राप्ति की अभिलाषा को लोकतंत्र के लिए आत्मघाती माना। नैतिकता विहिन लोकतंत्र कभी भी अपने निहित लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकता। जिस तरह चुनाव जीतने के लिए जनता की भावना को भड़का कर संकुचित मुद्दों को ज्यादा महत्व देते है। यह प्रवृत्ति राष्ट्रीय एकता व लोकतंत्र के लिए उचित नहीं है। परन्तु जनता का भड़काने की प्रवृत्ति इसी तरह जारी है।

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