अंग्रेजों का भारत में प्रवेश | British entry into India |ईस्ट इण्डिया कम्पनी की प्रकृति


 अंग्रेजों का भारत में प्रवेश | British entry into India

अंग्रेजों का भारत में प्रवेश | British entry into India


 

  • पुर्तगालियों तथा डचों द्वारा किए गए व्यापारिक मार्ग की खोज नेअंग्रेजों के लिए भारत के साथ व्यापार का मार्ग प्रशस्त किया.  1599 में कुछ लंदन के व्यापारियों ने प्रिवी काउंसिल के समक्ष ईस्ट इण्डिया के साथ व्यापार की अनुमति के संबंध में एक पेटीशन प्रस्तुत किया प्रिवी कांसिल ने इसे गंभीरता से लिया जिसकी परिणति 1600 के एलिजाबेथ के चार्टर के रूप में हुई। इस प्रकार 1600 ई. में लन्दन के व्यापारियों द्वारा ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी की औपचारिक स्थापना हुई| 
  • ब्रुश के अनुसार स्थापना के समय ईस्ट इण्डिया कम्पनी को साहसी लोगों कि मंडली कहा गया थाजिसके सदस्य लूट के लिए निकलते थे और जो धन कमाने के लिए झूठ तथा बेईमानी करने में थोड़ा भी संकोच नहीं करते थे कम्पनी के मालिकों ने आरंभ में ही निश्चय कर लिया था कि कम्पनी के नौकरी में वो किसी ईमानदार व्यक्ति को नहीं रखेंगे. 
  • इस प्रकार एक ऐसे गुट की स्थापना हुई जिसके सदस्यों में नैतिक-अनैतिकन्याय-अन्याय तथा सच-झूठ आदि चीजों के लिए कोई जगह नहीं थी. 
  • |” लिवांटन कम्पनी जिसकी स्थापना ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी से पूर्व 1581 में हुई थीके व्यापारी बिलियम क्लार्क सूचना दी कि पुर्तगालियों एवं ने डचों का व्यापार मुख्य रूप से गरम मसालों तक ही सीमित हैअतः अंग्रेज़ व्यापारी अन्य वस्तुओं का व्यापार कर सकते हैं।
  • के0 एन0 चौधरी के अनुसार अंग्रेजों ने भारत में बाहरी तथा आंतरिकएक बन्दरगाह से दूसरे बन्दरगाह तक गर्म मसालों के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं का व्यापार आरंभ किया। वे कोरोमण्डल कोस्ट का बना हुआ कपड़ा मलेशिया तथा इन्डोनेशिया जाते थे उन्होंने नीलजायफल आदि का भी व्यापार आरंभ किया। इस प्रकार उन्होंने व्यापार को केवल गर्म मसालों के निर्यात तक सीमित नहीं रखा बल्कि व्यापार को फैलाया इस प्रकार अंग्रेजों के विनिमय आदान-प्रदान कि समस्या भी हल हो गयी। उनके व्यापार कि यह प्रकृति अन्य यूरोपीय व्यापारियों से भिन्न थी |”
  •  मुगल सम्राट से व्यापार के लिय आज्ञा प्राप्त करने हेतु 1608 में विलियम हॉकिन्स सूरत पहुंचा वह मुगल सम्राट जहाँगीर के दरबार में उपस्थित हुआ 
  • हॉकिन्स एवं जहाँगीर की मुलाक़ात का वर्णन करते हुए सुंदरलाल ने लिखा जहाँगीर के दरबार में उस समय किसी को इस बात का गुमान नहीं हो सकता था कि दूर पश्चिम को एक छोटी से निर्बल जाति का जो दूत उस समय दरबार में अपने घुटनों पर गिरकर जमीन चूम रहा थाउसके वंशजएक रोज मुगल साम्राज्य का अंग भंग हो जाने पर हिंदुस्तान के उपर शासन करने लगेंगे|” 
  • हॉकिन्स को अधिक सफलता प्राप्त नहीं हुई क्योंकि मुगल दरबार में पुर्तगालियों का अधि प्रभाव था| 1612 में अंग्रेज़ कैप्टनबेसेंट ने स्वाली नाम के स्थान पर पुर्तगाली सेना को बुरी तरह पराजित कर दिया  मुगलों ने अंग्रेजों की इस वीरता से प्रसन्न होकर उन्हें सूरतकम्बाया तथा अहमदाबाद व्यापार करने की आज्ञा दे दी. 
  • 1616 में टॉमस रो ईस्ट इण्डिया कम्पनी का राजदूत बन कर भारत आयाटॉमस रो को अपेक्षाकृत अधिक सफलता मिली तथा मुगलों की राजकीय सीमा में अंग्रेजों को व्यापार करने की आज्ञा मिल गई शहजादे शाहजहाँ ने अंग्रेजों पर अपनी अधिक कृपा दृष्टि दिखाई तथा उन्हें बंगालभड़ौच तथा आगरा के क्षेत्रों में व्यापार करने कि आज्ञा प्रदान की |
  •  1662 में चार्ल्स द्वितीय को पुर्तगालियों से बम्बई दहेज के रूप में प्राप्त हुआ टॉमस रो ने अंग्रेज़ व्यापारियों को भारत के राजनैतिक तथा धार्मिक विषयों में बगैर किसी पक्षपात के रहने तथा बगैर इन विषयों में हस्तक्षेप करते हुए व्यापार पर अधिक बल देने का आदेश दिया |
  • इससे अंग्रेज़ व्यापारियों को अधिक लाभ हुआ 1690 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने बंगाल के नबाब से तीन गाँवकालिकत्तासुतनौतीतथा गोबिंदपुरी प्राप्त किए जो एक दशक के अंदर कलकत्ता के रूप में विकसित होने लगे मद्रास की स्थापना पहले ही हो चुकी थी इस प्रकार 1700 ई0 तक कम्पनी को व्यापार एवं राजनीति के तीन महत्वपूर्ण केंद्र मिल चुके थे। 
  • टॉमस रो की इस अहस्तक्षेप की नीति में परिवर्तन उस समय आया जब जॉन चाइल्ड के प्रभाव में कम्पनी ने हुगली पर आक्रमण किया उसका यह अनुमान था कि मुगल साम्राज्य कमजोर हो चुका है और अपने पतन की ओर तेजी से बढ़ रहा है। ऐसी स्थिति का लाभ उठाकर मुगल साम्राज्य के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों पर अधिकार कर अपनी राजनैतिक बढ़ायी जानी चाहिए
  • चाइल्ड के इस कृत्य से क्रोधित होकर औरंगजेब ने हुगली पर चढ़ाई कर कम्पनी को उस क्षेत्र से निष्कासित कर दिया चाइल्ड के इस गलत अनुमान के हर्जाने के रूप में न केवल कम्पनी को हुगली से अपना हाथ छोड़ना पड़ा बल्कि सम्राट की नाराजगी का भी सामना करना पड़ा संजोगवशकम्पनी को अपनी भूल का शीघ्र ही आभास हुआ तथा उसने मुगल सम्राट से शांति संधि कर ली जिसके अनुसार कम्पनी द्वारा सम्राट को 17 हजार पौंड हर्जाने के रूप में अदा करना पड़ा।

 

  • 1707 में औरंगजेब की मृत्यु तथा तेजी से घटती मुगल साम्राज्य कि शक्ति ने कम्पनी को एक ऐसा अवसर प्रदान किया जिसका लाभ उठाकर कम्पनीराजनैतिक सत्ता की स्थापना की ओर तेजी से बढ़ी . 
  • कम्पनी ने 1717 में फर्रुखसियर से तीन फरमान प्राप्त किए जिससे न केवल कम्पनी के व्यापार को बढ़ावा मिला बल्कि एक राजनैतिक शक्ति के रूप में उसकी साख भी मजबूत हुई। व्यापारिक एकाधिकार के युद्ध में पहले ब्रिटिश इस्ट इण्डिया कम्पनी को पुर्तगाली एवं डच व्यापारियों से युद्ध करना पड़ा एवं बाद में फ्रांसीसियों से. 

 

ईस्ट इण्डिया कम्पनी की प्रकृति Nature of the East India Company

 

  • इतिहासकारों में कम्पनी की प्रकृति एवं उसकी नियत को लेकर हमेशा से विवाद रहा हैकुछ इतिहासकारों का मानना है कि कम्पनी की स्थापना ने न केवल व्यापार के लिए बल्कि भारत पर राजनैतिक सत्ता स्थापित कर उसे ब्रिटेन का एक उपनिवेश बनाने के लिए हुई थी |
  • पी0 जे0 मार्शल का मानना है कि “1784 के पिट्स इण्डिया एक्ट तक भारत में क्षेत्रीय साम्राज्य का विस्तार न तो पूर्व नियोजित था और न ही ब्रिटेन द्वारा निर्देशित था |” 
  • यह भारत में उपस्थित कम्पनी के अधिकारियों की पहल थी जिन्होंने उस समय भारत में मौजूद राजनैतिक परिस्थिति का लाभ उठाया तथा राजनैतिक सत्ता की स्थापना की ओर निकल पड़े लेकिन मार्शल ने भी माना था कि व्यापार और ब्रिटिश साम्राज्य के संबंध पूरी तरह से अलग करके नहीं देखे जा सकते हैं सतही तौर पर भले ही कम्पनी एवं ब्रिटिश शासन एक-दूसरे से अलग दिखे परन्तु वास्तव में उनके हित एक दूसरे से जुड़े हुए थे इंग्लैंड की वैदेशिक नीति में कम्पनी कि महत्वपूर्ण भागीदारी होती थी
  • जॉन केय के अनुसार कम्पनी और ब्रिटिश राज एक दूसरे को अच्छी तरह समझते थेप्रेसिडेंसी व्यवस्था का प्रारंभिक इतिहास साफ दिखाता है कि ब्रिटिश राज ने किस प्रकार कम्पनी के द्वारा भारत के उपनिवेशिकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया जो बम्बई चार्ल्स द्वितीय को पुर्तगाल से दहेज के रूप में मिला था राजा ने मात्र 10 पाउंड वार्षिक किराए पर इसे कम्पनी को दे दिया यही बम्बई 1687 में पश्चिमी भारत का प्रेसिडेन्सी मुख्यालय बना
  • बेली कहते हैं,” साम्राज्यवादी विस्तार का मुख्य उदेश्य वित्तीय तथा सैनिक आवश्यकता थी न कि व्यापारभले ही चाइल्ड औरंगजेब द्वारा पराजित हुआ लेकिन इससे कम्पनी का साम्राज्यवादी उदेश्य साफ स्पष्ट होता है |

Read Also....

 भारत में आंग्ल फ्रांसीसी संघर्ष  |अंग्रेज़ एवं फ्रांसीसी  कम्पनियों का स्वरुप एवं स्थिति

कर्नाटक युद्धों से पूर्व हैदराबाद एवं कर्नाटक की स्थिति

कर्नाटक का प्रथम युद्ध | अडियार का युद्ध 

द्धितीय कर्नाटक युद्ध 1749-1754 | गाडेहू संधि |दूसरे कर्नाटक युद्ध के परिणाम

तीसरा कर्नाटक युद्ध- 1758-63

कर्नाटक युद्ध में अंग्रेजों की सफलता के कारण

फ्रांसीसियों का आगमन

 अंग्रेजों का भारत में प्रवेश | ईस्ट इण्डिया कम्पनी की प्रकृति 

भारत में डचों का आगमन 

पुर्तगालियों की असफलता के कारण

पुर्तगाली व्यापारियों का भारत में आगमन

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.