नव-पाषाण काल Neolithic or New Stone Age in Hindi

नव-पाषाण काल Neolithic or New Stone Age 

नव-पाषाण काल Neolithic or New Stone Age    नव-पाषाण काल के बारे में जानकारी


 

नव-पाषाण काल के बारे में जानकारी 

  • मानव ने हजारों वर्षों तक पूर्व पाषाण काल में जीवन व्यतीत किया और उसके पश्चात उसने नव-पाषाण काल में प्रवेश किया। 
  • यद्यपि इस काल में भी मानव ने पत्थर के औजारों व हथियारों का उपयोग किया किन्तु ये औजार व हथियार अधिक उन्नत अवस्था में थे और 'क्वार्टजाइट' (Quartzite) से भिन्न पत्थर के सुडौल और चिकने व विविध प्रकार के थे। 
  • इस काल के हथियार व औजार पूर्व काल की अपेक्षा अधिक सुन्दर थेकुशलता से बनाए गए थे और इनमें अधिक तीखापन था। 
  • अतः जिस काल में पत्थर के इन परिष्कृत औजारों का इस्तेमाल हुआवह काल नव-पाषाण काल (Neolithic or New Stone Age) कहलाया।

 

  • वास्तव में पूर्व पाषाण काल तथा नव-पाषाण काल के बीच में भी एक मध्य-पाषाण काल (Mesolithic Age) और भी थाजिसमें मानव ने पूर्व पाषाण काल की अपेक्षा अधिक उन्नति कर ली थी। 
  • यहाँ अध्ययन की सुविधा के लिए पूर्व-पाषाण काल के पश्चात नव-पाषाण काल का वर्णन किया गया हैजिसमें मध्य-पाषाण काल के मानव को भी सम्मिलित कर लिया गया है।

 

  • यद्यपि यह कहना अत्यन्त कठिन है कि मानव ने कितना समय पूर्व पाषाण काल में व्यतीत किया और कब नव-पाषाण काल में प्रवेश किया। वास्तविकता यह है कि परिवर्तन बहुत धीमी गति से हुआ। अतः दोनों के बीच कोई स्पष्ट विभाजन-रेखा नहीं खींची जा सकती।

यही कारण है कि विद्वानों ने अलग-अलग समय का उल्लेख नहीं किया है। 

सामान्यत: दस हजार वर्ष ई. पूर्व से लेकर लगभग तीन हजार वर्ष ई. पूर्व तक का काल नव-पाषाण काल का समय माना जाता है।

 

नव-पाषाण काल की मुख्य विशेषताएँ- Main features of the Neolithic period

नव-पाषाण काल का मानव अधिक उन्नत अवस्था में था। अब औजारों का विशिष्टीकरण किया गया। कृषि व पशु पालन प्रारम्भ हुआ। स्थायी निवास बन गया। वस्त्र व मिट्टी के बर्तन बनने लगे। इस प्रकार मानव ने सभ्यता के मार्ग पर अगला कदम रखा। 

उस काल की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थी 

नव-पाषाण काल के औजार व हथियार (Tools) 

  • पूर्व पाषाण काल के पश्चात मानव ने अपने औजारों में उन्नति कर ली। मध्य पाषाण काल में बदली हुई जलवायु में नए मानव ने नए प्रकार के औजार बनाए। 
  • ये औजार काल्सिडोनी (Chalcedonly), जैस्पर (Jasper), चर्ट (Chert) तथा ब्लडस्टोन (Bloodstone) नामक पत्थरों से बनाए जाते थे और लकड़ी के हत्थे लगाकर इस्तेमाल किये जाते थे।
  • इन औजारों को अलग अन्यत्र कार्यों व उपयोगों के लिए बनाया गया था। जैसे फलक (Blades), पाइंट्स (Points), खुरचने के काम आने वाले (Scrapers), खुदाई के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले (Engravers), त्रिकोण (Triangles), अर्द्धचन्द्राकार (Crescents), छेद करने के लिए (Borer) तथा सीने के लिए सुआ (Awl) आदि। 
  • नव-पाषाण काल के मानव ने औजारों के निर्माण में और अधिक कुशलता प्राप्त कर ली। पत्थर के ये औजार अधिक सुन्दर और चिकने थे। इन्हें रगड़-रगड़ कर चिकनाचमकदार व तेज बनाया जाता था। इस काल में हड्डी व लकड़ी के औजार भी बनाए गए। इन औजारों में सेल्टकुल्हाड़ीफैब्रिकेटरपालिशर व हेमरस्टोन अधिक उल्लेखनीय हैं।

 

नव-पाषाण मानव निवास के क्षेत्र ( Areas of settlement )
  •  इस काल के मानव ने अपना निवास भारत के विभिन्न क्षेत्रों को बनाया। कश्मीरदक्षिण भारत उत्तर पूर्वी भारत तथा बलूचिस्तान में उस काल के मानव के औजार तथा अन्य अवशेष प्राप्त हुए हैंअतः अनुमान लगाया गया है कि वह इन क्षेत्रों में निवास करता होगा। 
  • मध्य-पाषाण युग के मानव के औजार पेशावर जिले से लेकर तिनेवली जिले तक तथा कराँची से बिहार तक सब जगह प्राप्त हुए हैं। पंजाबगुजरात व मध्य भारत के अतिरिक्त मैसूर में ब्रह्मगिरि नामक स्थान पर व कुर्नूल में ये औजार पर्याप्त संख्या में मिले हैं।
  • महाराष्ट्र में नेवासा व काले गाँव में भी ये उपकरण प्राप्त हुए हैं। 
  • गुजरात में प्राप्त हुए अवशेषों के समान ही पश्चिमी बंगाल के वीरभानपुर में भी उपकरण मिले हैं।
  • नव-पाषाण काल के अवशेष कश्मीरसिन्धउत्तर प्रदेशबिहारबंगालअसममध्य प्रदेशआन्ध्र प्रदेशमैसूर आदि क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में मिले हैं।
  • दक्षिण भारत के तेकरूल कोटा में भी नव-पाषाण काल के अवशेष मिले हैं। 
  • दक्षिण भारत के विभिन्न क्षेत्रों की खुदाई से स्पष्ट होता है कि यहाँ की सभ्यताएँ नव-पाषाण काल की थींजिनका समय हड़प्पा की सभ्यता के समान ही था।

स्थायी जीवन का प्रारम्भ 

  • इस काल में मानव ने टोलियों में घूमने के स्थान पर स्थायी निवास की व्यवस्था कर ली।
  • वृक्षों व कन्दराओं के स्थान पर नदियों के किनारे निश्चित स्थान पर घर बनाकर स्थायी रूप से रहने लगा। उसके घुमक्कड़ जीवन का अन्त हो गया। 
  • वह पत्थरों को ऊपर-नीचे रख कर घर बनाता और छतों को वृक्षों की शाखाओं व पत्तों से तथा जानवरों की खाल व हड्डियों से ढक देता था। यह कार्य अकेला व्यक्ति नहीं कर सकता थाअतः उसने सम्मिलित रूप से रहना प्रारम्भ कर दिया था।

 

नव-पाषाण काल -पशुपालन व कृषि

  • इस युग में मानव ने व्यवसाय के क्षेत्र में आश्चर्यजनक उन्नति की। उसने शीघ्र ही जंगलों में कन्दमूलफल इकट्ठा करना अथवा शिकार करना बन्द नहीं कर दिया बल्कि उसमें अधिक प्रवीणता प्राप्त की। किन्तु धीरे-धीरे उसे अनुभव हुआ कि उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति इन साधनों से सम्भव नहीं है। 
  • हर कठिनाई को दूर करने के लिए उसने पशुपालन की ओर ध्यान दिया। 
  • पशुपालन द्वारा एक ओर शक्तिवर्धक दूध मिला और दूसरी ओर माँस भी प्राप्त हुआ। इस प्रकार मानव ने गायभैंस व बकरी आदि दुधारू पशु पालने प्रारम्भ किए। धीरे धीरे कृषि का भी उसे ज्ञान हुआ। उसने जंगल साफ करके भूमि को कृषि योग्य बनाया और कृषि करने लगा। 
  • इस प्रकार एक स्थान पर टिकना आवश्यक हो गया। यहीं से मानव ने शीघ्रता से सभ्य जीवन व्यतीत करना प्रारम्भ कर दिया।

 

नव-पाषाण काल के मानव का भोजन

  • इस काल में मानव ने कच्चा माँस खाना बन्द कर दिया था। वह मिट्टी के बर्तन में आग पर पका कर माँस खाता था क्योंकि आग का जलाना उसने सीख लिया था। 
  • वह जंगलों से लाए गए कन्दमूल व फल भी खाता था। 
  • कृषि की जानकारी ने भी उसकी भोजन की समस्या सुलझा दी क्योंकि उसे अन्य खाद्य पदार्थ भी प्राप्त होने लगे। 


वस्त्र व आभूषण 

  • इस काल के प्रारम्भ में मानव अपने गुप्त अंगों को वृक्षों की पत्तियों व छालों से अथवा जानवरों की खालों से ढकता था किन्तु धीरे-धीरे उसने कृषि के माध्यम से कपास उत्पन्न की। 
  • कपास से कपड़े तैयार किए और उनका उपयोग करने लगा। इतना ही नहीं वह पशुओं के ऊन से ऊनी वस्त्र तैयार करने लगा जिससे शीत काल में बचाव सम्भव हो सका। 
  • उस काल के मानव को रंगों का शौक था। वह वस्त्रों को वनस्पति से तैयार किए गए रंगों से रंगता था। कपड़े पहनने का उसका ढंग बड़ा सरल था वह आधे वस्त्र को कमर से लपेट लेता था और आधे को कंधे पर डाल लेता था। 
  • उस काल में पुरुष पगड़ी बाँधते थे और महिलाएँ लहंगे पहनती थीं। 
  • आभूषण के प्रति स्त्री व पुरुष दोनों का समान आकर्षण था। पत्थरोंहड्डियोंसीपियों व कौड़ियों की सहायता से बनाए गए आभूषण स्त्री व पुरुष दोनों पहनते थे। ले में मालाकान में बाली व उंगलियों में अंगूठी तथा हाथों में चूड़ियाँ पहनना भी प्रचलित था।

 

नव-पाषाण काल में भाषा का विकास

  • धीरे-धीरे भाषा का विकास हुआ। सामूहिक जीवन में अपने विचारों से दूसरों को अवगत कराने के लिए माध्यम की आवश्यकता अनुभव हुई। 
  • प्राचीन काल में मानव भद्दे चित्रों का प्रयोग इस कार्य के लिए करता था किन्तु धीरे-धीरे बोलियों का प्रचलन प्रारम्भ हुआजिससे शब्द भण्डार बना और भाषा का विकास हुआ। इस समय के हथियारों पर स्वस्तिक ( 卐 ) तथा (x) के चिह्न मिलते हैं।

 

कला का विकास तथा मिट्टी के बर्तन

  • नव पाषाण काल के मानव ने कला के क्षेत्र में भी उन्नति की। उसकी चित्रकला के नमूने भारत में सर्वत्र प्राप्त हुए हैं। 
  • ये कला का प्राचीनतम रूप हैं और यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि उस काल के मानव में कला के प्रति रुचि विद्यमान थी। उन्हें रंगों का भी ज्ञान था और वे चित्रों को रंग कर सुन्दर बनाते थे। 
  • इस काल के कला के नमूनों को देखने से लगता है मानो मानव प्रकृति का अनुकरण कर रहा हो। इन चित्रों में सजीवता भी विद्यमान है। 
  • पंचमढ़ीमिर्जापुरमानिकपुर व होशंगाबाद की पर्वत कन्दराओं में इस युग के चित्र उपलब्ध हैंजिनमें पशुओं व मनुष्यों दोनों के चित्र हैं। धनुषधारीकरवालधारीघुड़सवार तथा आखेट के चित्र बहुतायत में मिलते हैं। 
  • इस युग के मनुष्य चॉक पर मिट्टी के बर्तन बनाते थे और उन्हें रंगते थे। सामान्यतः काले रंग के मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग किया जाता था। इनमें से कुछ में टोंटी भी होती थी। ऐसे बड़े-बड़े मिट्टी के बर्तन भी मिले हैं जिनमें ये लोग मृतक के शव को काट-काट कर भर देते थे और उसे दफना देते थे। 
  • जमीन के नीचे इस युग के मिट्टी के मृतक-पात्र भी मिले हैं। इनसे अनुमान लगाया जाता है कि मृतक को जलाकर उसकी भस्म इन पात्रों में डाल कर गाड़ दी जाती होगी।

 

नव-पाषाण काल युद्ध व अस्त्र-शस्त्र

  • आत्म-रक्षा के लिए युद्ध भी होते थे। रक्षा के लिए दुर्ग व परकोटे भी बनाए जाते थे। सामान्यतः लोग लड़ाकू प्रकृति के थे और अन्यों पर अधिकार जमाने का प्रयास करते थे। 
  • युद्ध के लिए पत्थरहड्डीसींग व लकड़ी के अस्त्र-शस्त्र बनाए जाते थे। 
  • बर्छी भालेकुल्हाड़ी व धनुष-बाण अधिक उपयोग में लाए जाते थे। 

नव-पाषाण काल धार्मिक विचारों का उदय

  • धार्मिक क्षेत्र में भी उसने पूर्व-पाषाण काल के मानव से अधिक उन्नति कर ली थी। अब वह भौतिक पदार्थों में जीवन शक्ति का अनुभव करने लगा। अभी तक उसे अति भौतिक सत्ता का अनुभव नहीं हुआ थायद्यपि जीवन-मरण के सम्बन्ध में उसके विचारों में कुछ स्थायित्व अवश्य दिखाई देता है। 
  • वास्तव में यह अंधविश्वास का काल था। लोग वृक्षों व पर्वतों में देवी शक्ति का निवास समझते थे और सम्भवतः इनकी उपासना भी करते थे। कुछ पाषाण खण्डों को देवी का रूप दे दिया गया था। 
  • अस्थि पात्र व उसमें रखी गई। सामग्री को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि की पूजा करते होंगे। इस काल में जला भी थे और दफनाते भी थे। 
  • उपासना की विधि में चढ़ावे का प्रमुख स्थान था। दूधदहीअन्न व माँस आदि पदार्थ देवी-देवताओं को भेंट किए जाते थे। धीरे-धीरे लिंग पूजा का भी विकास हो गया। 
  • डॉ. राजबली पांडे अपने ग्रन्थ 'भारतीय इतिहास की भूमिका में लिखते हैं कि मृतकों की हड्डियाँ रखने के लिए अस्थि पात्रों तथा शव के ऊपर बनी हुई समाधियों से स्पष्ट होता है कि इस समय के लोग जीवन श्रृंखला तथा पुनर्जन्म में विश्वास करते थे। और अपने पितरों की पूजा करते थे। भूतों से आविष्ट प्रस्तर खण्डों की पूजा आरम्भ हुई जो क्रमशः लिंग पूजा के रूप में विकसित हुई।
  • चढ़ावे में अन्नदूधमाँस आदि पदार्थ अर्पित किए जाते थे। देश के निम्न स्तर के लोगों के धार्मिक विश्वास व पूजा पद्धति का ढांचा इस समय लगभग तैयार हो गया था।

1 comment:

  1. There is no option to copy this material how can i use it

    ReplyDelete

Powered by Blogger.