सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि का वर्णन |Indus Valley Civilization script description

सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि का वर्णन 

सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि का वर्णन |Indus Valley Civilization script description



सिन्धु लिपि के बारे में जानकारी 

  • इस लिपि के लगभग 400 चिह्नों के बारे में जानकारी मिली है। ये सभी स्थानों में छोटे आकार में हैं। 
  • ये चिह्न साधारण तौर पर सेलखड़ी की नया पांच पैसा के समान आयताकार मोहरों के रूप में मिले हैं। ये ताम्बे की गुटिकाओं आदि पर अंकित हैं। 
  • इनकी लिखावट आधुनिक हिन्दी भाषा लेखन जैसा ही बाई से दाईं ओर है। इससे पता चलता है कि सिन्धु घाटी के लोग लेखनकला से अनजान नहीं थे। लेकिन दुःख एवं चिन्ता की बात यह है कि उनकी लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है। 
  • आज भी विद्वानों के लिये यह रहस्य का विषय बना हुआ है। ये लेख एक प्रकार के चित्रलेख से निकले हैं जिसमें प्रत्येक चिह्न शब्दविशेष या वस्तु को प्रकट करता है। 
  • कई विद्वानोंजैसे- फादर हेरास आदि का कहना है कि इन मोहरों पर की लिखावटों से ज्ञात होता है कि इसकी भाषा द्रविड़ है। कुछ अन्य विद्वान इसे ब्राह्मी की पूर्ववर्ती आर्य लिपि और भाषा मानते हैं परन्तु इसका प्रमाण कुछ भी नहीं है। इस तरह सिन्धुलिपि ने विद्वानों के समक्ष एक समस्या खड़ी कर दी है। 
  • ह्वीलर महोदय का कहना है कि "इस लिपि का अनुवाद करने के लिए आवश्यक साधन- एक द्विभाषी शिलालेख जिसमें एक भाषा का हमें पूर्ण ज्ञान हो या एक लम्बा शिलालेख जिसमें कुछ महत्त्वपूर्ण भाग बार-बार प्रयोग किये गये हों अभी तक हमें नहीं मिल पाये हैं।" 
  • सिन्धु घाटी में पाये गये अधिकांश शिलालेख छोटे हैं और उनमें औसत छह अक्षर हैं। सबसे लम्बे शिलालेख में भी केवल सत्रह अक्षर हैं जिनकी आपस में भिन्नता के कारण हम इस बात की कल्पना तक करने में असमर्थ हैं कि उनका सम्बंध मुहरों पर पाये जाने वाले नमूनों से है या नहीं। 
  • अनुमान के ही आधार पर कहा जाता है कि ये शिलालेख शायद संज्ञाएं हैं और कभी-कभी पिता के नाम उपाधि या व्यवसाय के नाम उनके साथ दिये गये हैं। लगता हैइस पहेली को सुलझाने के लिए रीजेट्टा स्टोनकी भांति किसी भाग्यशाली वस्तु की खोज करनी पड़ेगी। हमें तो मालूम ही है कि अगर पुरातत्ववेत्ताओं को बहिस्तान और रोजेट्टा के त्रिभाषी अभिलेख न मिले होते तो मित्र और सुमेर की चिह्न संकेत अक्षर लिपियां बहुत समय तक अज्ञात ही रहतीं। अंत मेंहमें इतना तो मानना ही पड़ेगा कि सैन्धव सभ्यता के निवासी लिखने की क्रिया से अनभिज्ञ नहीं थे और यह इतने प्राचीन काल में साधारण बात नहीं है। 
  • इस भाषा के लगभग 700 चिह्न अक्षर थे लेकिन यह पता नहीं कि इण्डोग्राफिकलोगोग्राफिक या किसी दूसरे प्रकार की लिपि थी। 
  • स्केण्डिनेविया के कुछ विद्वानों ने विशेषकर ए० पारपोला ने यह दावा किया है कि उन्होंने प्राचीन तमिल के आधार पर कई अभिलेखों को समझ लिया है किन्तु अन्य विद्वानों ने इस खोज को नहीं स्वीकारा है। कुछ ही दिन पहले फ्रांस में अंतर्राष्ट्रीय विद्वानों की गोष्ठी हुई थीजिसमें एक भारतीय विद्वान ने सिन्धु लिपि को पढ़कर समझने का दावा किया लेकिन उनके सारे तर्क को एक चीनी विद्वान ने काट दिया। 

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