सुल्तान मुहम्मद तुगलक Sultan Muhammad Tughlaq

 

सुल्तान मुहम्मद तुगलक Sultan Muhammad Tughlaq

सुल्तान मुहम्मद तुगलक Sultan Muhammad Tughlaq


तुगलक वंश प्रस्तावना

  • अप्रैल, 1320 में खिलजी वंश का पतन हो गया था। 
  • ख्यातिप्राप्त सेनानायक और पंजाब के तत्कालीन सूबेदार गाज़ी मलिक गियासुद्दीन तुगलक ने नासिरुद्दीन खुसरो शाह को पराजित कर सितम्बर, 1320 में दिल्ली के तख्त पर अधिकार कर लिया। 
  • तुगलक वंश में दो शासकों मुहम्मद तुगलक और फिरोज़ तुगलक ने इतिहास में अपनी अलग छाप छोड़ी है। 
  • मुहम्मद तुगलक जहां अपनी विवादास्पद नीतियों और चारित्रिक दुरूहता लिए कुख्यात है वहीं दूसरी ओर फिरोज़ तुगलक अपने प्रशासनिक सुधारों के लिए विख्यात है। 
  • दिल्ली सल्तनत के इतिहास में तुगलक वंश का शासन, बाकी सभी राजवंशों से अधिक, कुल 94 वर्ष तक रहा था। 
  • किन्तु इस काल में तैमूर के आक्रमण जैसी विनाशकारी घटना भी हुई थी और इस आक्रमण के बाद सुल्तान दिल्ली से पालम तक के क्षेत्र के ही शासक रह गए थे। परन्तु दिल्ली सल्तनत के विघटन की प्रक्रिया मुहम्मद तुगलक के शासनकाल में बहमनी तथा विजयनगर राज्यों की स्थापना से ही प्रारम्भ हो गई थी। 
  • फिरोज़ तुगलक की सैनिक दुर्बलता और उसके उत्तराधिकारियो की अयोग्यता ने इसकी गति को और भी अधिक तेज़ कर दिया था।


गियासुद्दीन तुगलक का शासन Giasuddin Tughlaq's rule

 

  • अलाउद्दीन के शासनकाल के अंतिम वर्षों से ही खिलजी राज्य वंश अवनति की ओर अग्रसर होने लगा था। अलाउद्दीन के अयोग्य उत्तराधिकारियों, मलिक काफूर तथा नासिरुद्दीन खुसरो शाह ने तो उसका पूर्ण पतन कर दिया। 
  • अलाउद्दीन के काल से उत्तर-पश्चिमी सीमा पर मंगोलों के विरुद्ध निरन्तर सफलता प्राप्त करने वाले और पंजाब के तत्कालीन सूबेदार गाज़ी मलिक गियासुद्दीन तुगलक ने अपने पुत्र जूना खाँ (तत्कालीन अमीर-ए-खुर्द तथा समाना, सिविस्तान और मुल्तान के सूबेदारों के सहयोग से नासिरुद्दीन खुसरो शाह को पराजित कर मार डाला
  • मलिक गियासुद्दीन तुगलक ने सितम्बर, 1320 में उसने दिल्ली के तख्त पर अपना अधिकार कर लिया। सुल्तान बनते ही गियासुद्दीन तुगलक ने अलाई अमीरों को उनके पूर्व पदों पर पुनर्प्रतिष्ठित करके तथा अपने विश्वस्त समर्थकों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त कर अराजकता व अशान्ति की स्थिति को सुधारने का प्रयास किया। 
  • उसने भ्रष्ट अधिकारियों को अपदस्थ किया तथा योग्य कर्मचारियों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें पुरस्कृत किया। अल्प काल ही में उसने अपने राज्य की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार किया। उसकी धार्मिक नीति असहिष्णुता से ग्रस्त थी किन्तु कृषि विकास, उद्योग तथा व्यापार को प्रोत्साहन देने में उसने अपनी धार्मिक नीति को कभी आड़े नहीं आने दिया।
  • सैनिक सुधार कर उसने अपनी सेना में व्याप्त भ्रष्टाचार को दूर किया। 
  • गियासुद्दीन तुगलक के काल में वारंगल तथा बंगाल में विरोधी शक्तियों का सफलतापूर्वक दमन किया गया तथा मंगोलों द्वारा उसके राज्य पर आक्रमण करने के प्रयास को निष्फल किया गया।
  • बंगाल अभियान से लौटने के बाद अपने पुत्र जूना खाँ द्वारा दिल्ली के निकट अफ़गानपुर में आयोजित स्वागत समारोह में अपने ऊपर तम्बू गिर जाने से गियासुद्दीन की सन् 1325 में मृत्यु हो गई।

 

सुल्तान मुहम्मद तुगलक Sultan Muhammad Tughlaq

 

दोआब में कर वृद्धि- सुल्तान मुहम्मद तुगलक

 

  • मुहम्मद तुगलक एक सुशिक्षित, बुद्धिमान तथा मौलिक प्रतिभा का धनी व्यक्ति था। वह जानता था कि शासन को सुदृढ़ बनाने के लिए राजस्व प्रशासन को सुव्यवस्थित बनाना आवश्यक है।
  • उसने प्रान्तीय सूबेदारों को आदेश दिए कि वे अपने-अपने प्रान्त की आय तथा व्यय का लेखा तैयार कर उसे दीवान-ए-विज़ारत को भेजें। उसका उद्देश्य समस्त राज्य में एक सी राजस्व व्यवस्था स्थापित करना था। 
  • दिल्ली सल्तनत में दोआब (गंगा तथा यमुना के मध्य का भू-क्षेत्र) सबसे उपजाऊ क्षेत्र था। इस कारण इससे अन्य सभी क्षेत्रों की तुलना में सबसे अधिक राजस्व अपेक्षित था किन्तु वास्तविकता इससे भिन्न थी। 
  • सत्तारूढ़ होने के कुछ ही समय बाद (सन् 1325 में) मुहम्मद तुगलक ने दोआब में कर वृद्धि करने का निर्णय लिया। ज़ियाउद्दीन बर्नी के अनुसार दो दशक पूर्व दोआब के हिन्दुओं ने मंगोल - अली बेग और तार्ताक को हिन्दुस्तान पर आक्रमण करने के लिए आमन्त्रित किया था इसलिए मुहम्मद तुगलक कर वृद्धि के बहाने वहां के निवासियों को सबक सिखाना चाहता था।
  • बर्नी के अनुसार यह कर वृद्धि पूर्व कर से 10 से 20 गुनी थी परन्तु इस कथन में अतिशयोक्ति का पुट है। वास्तव में मुहम्मद तुगलक ने गृहकर तथा चराई कर के रूप में नए अबवाब (भू-राजस्व के अतिरिक्त अन्य कर) लगाए थे जोकि पूर्व निर्धारित कर के 1/20 से लेकर 1/10 तक थे। 
  • इस योजना के कार्यान्वयन का समय उपयुक्त नहीं था क्योंकि अनावृष्टि के कारण वहां के किसान पहले से निर्धारित कर चुकाने की भी स्थिति में नहीं थे। 
  • दोआब वासियों ने करों की अदायगी से इंकार किया। बरन, डलमऊ और कन्नौज में किसान विद्रोह हुए। सुल्तान ने स्वयं अभियान का नेतृत्व कर उनका दमन किया। सुल्तान को बहुत देर बाद समझ में आया कि किसानों के दमन से उसका राजस्व बढ़ने के स्थान पर घट रहा है। 
  • उसने भूल सुधार के रूप में अकाल पीड़ितों को राहत, लगान वसूली पर रोक, किसानों को ऋण, सिंचाई के लिए कुओं का निर्माण आदि के आदेश दिए पर जन-धन की अपार हानि के कारण तब तक दोआब उजड़ चुका था।

 

राजधानी परिवर्तन-सुल्तान मुहम्मद तुगलक

 

  • अपनी राजधानी को दिल्ली से दौलताबाद स्थानान्तरित करना मुहम्मद तुगलक की एक ऐतिहासिक भूल थी। 
  • दक्षिण में साम्राज्य विस्तार के कारण अब दिल्ली से पूरी सल्तनत पर शासन कर पाना कठिन हो गया था। 
  • मुहम्मद तुगलक एक ऐसे स्थान को अपनी राजधानी बनाना चाहता था जो उसकी सल्तनत के केन्द्र में स्थित हो। दौलताबाद नगर ( पुराना नाम देवगिरि) दिल्ली, गुजरात, लखनौती, सतगांव, सुनारगांव, वारंगल, द्वारसमुद्र, माबर और कम्पिला से लगभग एक समान दूरी पर था। इसके अतिरिक्त दक्षिण भारत धन-धान्य से परिपूर्ण था और वहां अपेक्षाकृत शान्ति भी स्थापित थी।
  • सन् 1327 में सुल्तान ने विशेषज्ञों से परामर्श किए बिना राजधानी परिवर्तन का ऐतिहासिक किन्तु मूर्खतापर्ण निर्णय ले लिया। उसने इस निर्णय के दूरगामी परिणामों पर कोई विचार नहीं किया और न ही देश की राजनीतिक राजधानी व सांस्कृतिक गतिविधियों के केन्द्र के रूप में दिल्ली के गौरवशाली इतिहास को महत्व दिया। 
  • उत्तर-पश्चिमी सीमा से निरन्तर हो रहे मंगोल आक्रमणों की समस्या से दौलताबाद जैसे दूरस्थ क्षेत्र से कैसे निपटा जाएगा, इस प्रश्न का हल खोजना भी उसने आवश्यक नहीं समझा। वह सख्ती के साथ अपने इस अव्यावहारिक और अटपटे निर्णय के कार्यान्वयन में जुट गया। 
  • इब्न बतूता ने सुल्तान पर आरोप लगाया है कि दिल्ली वासियों को उसकी गुप्त पत्रों के माध्यम से भर्त्सना करने का दण्ड, राजधानी परिवर्तन और दिल्ली से निर्वासन के रूप में दिया गया था। इस अव्यावहारिक निर्णय के विनाशकारी परिणाम हुए। 
  • इब्न बतूता के सन् 1334 के वृ से ज्ञात होता है कि सुल्तान, दिल्ली के सभी निवासियों को दौलताबाद नहीं ले गया था। अपने मूर्खतापूर्ण निर्णय के विनाशकारी परिणाम देखने के बाद सन् 1337 में सुल्तान ने फिर से दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया लेकिन इस दस वर्ष की अवधि के दौरान इतने व्यापक जन-स्थानान्तरण ने अकल्पनीय कठिनाइयां उत्पन्न कीं, इसमें हज़ारों लोग मारे गए, अपरिमित आर्थिक हानि हुई तथा सुल्तान सदैव के लिए उपहास और भर्त्सना का पात्र बन गया।

 

सांकेतिक मुद्रा-सुल्तान मुहम्मद तुगलक

 

  • दोआब में कर वृद्धि की योजना की असफलता, राजधानी परिवर्तन की प्रक्रिया में अपरिमित व्यय, विद्रोहों को कुचलने में और आक्रमणकारी तार्माशीरीन मंगोल को वापस लौटने के लिए भारी मात्रा में धनराशि देने के कारण मुहम्मद तुगलक का राजकोष काफ़ी खाली हो चुका था। अपने अभियानों के लिए सुल्तान को एक विशाल सेना का संगठन करना था जिसके लिए उसे अतिरिक्त धनराशि की आवश्यकता थी। 
  • सुल्तान की प्रवृत्ति नए-नए प्रयोग करने की पहले से ही थी। अपने राजकोष में अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप सोने-चाँदी की पर्याप्त मात्रा के अभाव की स्थिति में उसने सांकेतिक मुद्रा का प्रयोग किया। 
  • 13 वीं शताब्दी में चीन और ईरान में सांकेतिक मुद्रा का प्रयोग किया जा चुका था। चीन में कागज़ की सांकेतिक मुद्रा का प्रयोग सफल रहा था। 
  • मुहम्मद तुगलक ने चाँदी के टंके के स्थान पर पीतल और तांबे की सांकेतिक दिया। मुद्रा जारी करने का आदेश सुल्तान ने सांकेतिक मुद्राओं के ढाले जाने में इस प्रकार की कोई सावधानी नहीं बरती कि जाली सिक्कों को सांकेतिक मुद्रा के रूप में बाज़ार में चलाया न जा सके। 
  • बर्नी के अनुसार हिन्दुओं के घर जाली सिक्के ढालने वाली टकसाल बन गए परन्तु सत्य तो यह है कि सुल्तान की असावधानी का लाभ अनेक अवसरवादियों ने उठाया और अपने ढाले हुए तांबे और पीतल के सिक्के चाँदी के टंके के रूप में बाज़ार में चलाए. 
  • जब जाली सिक्कों से बाज़ार पटने के कारण आर्थिक जीवन ठप्प पड़ने लगा तो सुल्तान ने सांकेतिक मुद्राओं का चलन रोकने तथा जाली सिक्कों के बदले राज्य की ओर से उनकी तौल के बराबर चाँदी लौटाए जाने का आदेश दिया। 
  • जाली सिक्कों के बदले राज्य की ओर से चाँदी लेने के लिए तुगलकाबाद में जाली सिक्कों का पहाड़ खड़ा हो गया किन्तु सुल्तान ने बिना कोई आपत्ति उठाए राजकोष से उनका भुगतान करा दिया। इस प्रकार अपने जल्दबाज़ी वाले अव्यावहारिक निर्णय से राजकोष और अपनी प्रतिष्ठा, दोनों को ही एक साथ, कभी भी न भर पाने वाली चोट पहुंचाई। 

 

खुरासान तथा कराचल पर विजय की योजना

 

  • मुहम्मद तुगलक को तार्माशीरीन मंगोल ने खुरासान तथा ईराक़ की राजनीतिक अस्थिरता की जानकारी दी थी। इन क्षेत्रों की राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर मुहम्मद तुगलक ने उन पर विजय प्राप्त कर अपने साम्राज्य में मिलाने की महत्वाकांक्षी किन्तु अव्यावहारिक योजना बनाई। 
  • बर्नी के अनुसार उसने इसके लिए न केवल 370000 की सेना संगठित की अपितु इन सैनिकों को एक वर्ष के अग्रिम वेतन का भुगतान भी कर दिया दूरस्थ एवं अनजान देश की युद्धप्रिय जातियों को अत्यन्त दुर्गम मार्ग से गुज़रते हुए जीतना कोई आसान बात नहीं थी। 
  • शीघ्र ही सुल्तान को अपनी योजना की अव्यावहारिकता समझ में आ गई और उसने भारी नुक्सान उठाकर अभियान शुरू होने से पहले ही उसको रद्द कर दिया।
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  • सन् 1337 में मुहम्मद तुगलक ने कांगड़ा में नगरकोट पर विजय प्राप्त की थी। इस विजय से उत्साहित होकर उसने कराचल विजय की योजना बनाई। 
  • गॉर्डन ब्राउन के अनुसार यह मध्य हिमालय में स्थित कुल्लू तथा कांगड़ा का क्षेत्र था जब कि मेहंदी हुसेन इसे कुमाऊँ तथा गढ़वाल मानते हैं। फ़रिश्ता के अनुसार चूंकि कराचल हिन्दुस्तान और चीन के मध्य में स्थित था इसलिए यह अभियान उसके द्वारा चीन पर विजय प्राप्त करने हेतु सैनिक अभियान का पूर्वाभ्यास था। 
  • खुसरो मलिक के नेतृत्व में भेजे गए इस सैनिक अभियान को कराचल के शासक को सुल्तान की आधीनता स्वीकार कर खिराज देने के लिए राज़ी करने में अवश्य सफलता मिली। इब्न बतूता के अनुसार लौटते समय वर्षा और बीमारी से जूझ रही खुसरो मलिक की सेना पर पहाड़ियों पर छिपे हमलावरों ने आक्रमण कर उसे लूटा और उसे लगभग पूरी तरह नष्ट कर दिया। इस सेना के मुठ्ठी भर अधिकारी और सैनिक अपनी जान बचाकर वापस आ सके।
  • इस अभियान की असफलता से अनेक महत्वाकांक्षी अधिकारियों तथा अधीनस्थ शासकों को सुल्तान के विरुद्ध विद्रोह करने की प्रेरणा मिली और इसके बाद विधिवत साम्राज्य का विघटन प्रारम्भ हो गया।

 

मुहम्मद तुगलक का चरित्र Character of muhammad tughlaq

 
  • साहित्य, दर्शन, तर्कशास्त्र, इतिहास, गणित और खगोलशास्त्र का उद्भट विद्वान, एक लब्धप्रतिष्ठ कवि एवं लेखक, सुलेख में पारंगत, कुशल वक्ता, शास्त्रार्थ में निपुण और मौलिक चिन्तक सुल्तान मुहम्मद तुगलक अपनी अव्यावहारिकता, जल्दबाज़ी, अनियन्त्रित क्रोधी एवं हिंसक प्रवृत्ति के कारण 'वाइज़ैस्ट ऑफ़ फ़ूल्स' तथा 'मिक्सचर ऑफ़ अपोज़िट्स' की अपमानजनक उपाधियों से जाना जाता है। 
  • इस बदनाम छवि के पीछे उसके समकालीन ज़ियाउद्दीन बर्नी तथा इब्न बतूता के अतिरंजित वृतान्तों का कुछ भी हाथ है किन्तु इसके लिए मुख्य रूप से उसकी गलत नीतियां और उसका अपना अस्थिर व दुर्बोध चरित्र ही उत्तरदायी है।
  • इब्नबतूता उसके द्वारा अपने महल के मुख्य द्वार पर आए दिन शवों को लटकाए जाने और अनावश्यक रक्तपात की घटनाओं का उल्लेख करता है। 
  • मेहंदी हुसेन और ईश्वरी प्रसाद सुल्तान के क्रूरतापूर्ण कृत्यों को मध्यकालीन वातावरण में आम बात मानते हैं किन्तु वे हताशा और आक्रोश में उसके द्वारा दिए गए अमानुषिक दण्ड दिए जाने की घटनाओं को उचित नहीं मानते हैं। 
  • धार्मिक संकीर्णता से परे, प्रगतिशील विचारधारा के बुद्धिवादी मुहम्मद तुगलक ने अलाउद्दीन की भांति मध्यकालीन मुस्लिम शासकों की परम्पराओं को तोड़कर धर्म को राजनीति से अलग रखने के लिए राज्य में उलेमा वर्ग की ही नहीं अपितु खलीफ़ा की भी उपेक्षा की थी। 
  • मुहम्मद तुगलक ने उलेमा वर्ग, क़ाज़ियों, खातिबों और फ़क़ीरों का न केवल अपमान किया था अपितु अनेक बार उन्हें प्रताड़ित भी किया था। इसी कारण इस वर्ग ने अक्सर उसके विरुद्ध विद्रोह करने वालों का साथ दिया था।
  • इसामी और बर्नी मुहम्मद तुगलक को नास्तिक ठहराते हैं किन्तु वह अपने जीवन में शरियत के नियमों का पालन करता था। उसके सिक्कों में क़लमा का अंकित किया जाना खुदा में उसकी आस्था को व्यक्त करता । 
  • कुल मिलाकर मुहम्मद तुगलक के चरित्र में गुण-अवगण का अद्भुत एवं जटिल सम्मिश्रण दिखाई है। पड़ता है। वह खुद दुनिया से और दुनिया उससे परेशान थी। उसकी मृत्यु ने जहां जीवन के जंजाल से उसे मुक्ति दी वहां उसकी प्रजा को उस जैसे क्रूर और सनकी सुल्तान से छुटकारा मिल गया।

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