न्यायिक सक्रियता के उत्प्रेरक | Catalyst for judicial activism

 न्यायिक सक्रियता के उत्प्रेरक 

Catalyst for judicial activism

न्यायिक सक्रियता के उत्प्रेरक  Catalyst for judicial activism


 

उपेन्द्र बक्शी के अनुसार न्यायिक सक्रियता को उत्प्रेरित करने वाले कारक 

उपेन्द्र बक्शीप्रमुख न्यायविद ने निम्नलिखित प्रकार के सामाजिक/मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को रेखांकित किया है जो न्यायिक सक्रियता को उत्प्रेरित करते हैं:

 

1. नागरिक अधिकार कार्यकर्ताः ये समूह मुख्यतः नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों से जुड़े मामले उठाते हैं। 


2. जन अधिकार कार्यकर्ताः ये समूह सामाजिक एवं आर्थिक अधिकारों पर जनांदोलनों का राज्य द्वारा दमन की स्थिति में जोर देते हैं।


3.उपभोक्ता अधिकार कार्यकर्ताः ये समूह राजनीति एवं आर्थिक व्यवस्था की जवाबदेही के ढाँचे में उपभोक्ता अधिकार संबंधी मामले उठाते हैं। 


4. बंधुआ मजदूर समूहः ये समूह भारत में मजदूरी दासता के उन्मूलन के लिए न्यायिक सक्रियता की अपेक्षा करते हैं।

 

5. पर्यावरणीय कार्यवाही के लिए नागरिकः ये समूह न्यायिक सक्रियता को बढ़ते पर्यावरणीय गिरावट तथा प्रदूषण को समाप्त करने के लिए उत्प्रेरित करते हैं ।

 

6. वृहत सिंचाई परियोजनाओं के विरुद्ध नागरिक समूहः इन कार्यकर्ताओं की भारत की न्यायपालिका से यह अपेक्षा होती है कि वह वृहत सिंचाई परियोजनाओं को रोक दे, जो कि दुनिया की किसी भी न्यायपालिका के लिए असंभव है।

 

7. बाल अधिकार समूहः ये लोग बाल श्रम, शिक्षा- साक्षरता का अधिकार, सुधार गृहों के किशोरों तथा यौन श्रमिकों के बच्चों के अधिकारों से संबंधित मामलों को उठाते हैं।

 

8. हिरासती या परिरक्षण अधिकार समूहः इनमें कैदियों के अधिकार, राज्य के संरक्षक परिरक्षण या हिरासत में महिलाएँ तथा निवारक बंदीकरण से प्रभावित व्यक्तियों के लिए की जाने वाली सामाजिक कार्रवाइयाँ शामिल हैं।

 

9. निर्धनता अधिकार समूहः ये समूह सूखे एवं अकाल के दौरान सहायता तथा शहरी गरीबों के मामलों को न्यायालय तक लाते हैं।

 

10. मूलवासी जन अधिकार समूह: ये समूह वनवासियों, संविधान की पाँचवीं एवं छठी अनुसूचियों के नागरिकों तथा अस्मिता संबंधी अधिकारों के लिए कार्य करते हैं ।

 

11. महिला अधिकार समूहः ये समूह लैंगिक समानता, लिंग आधारित हिंसा एवं उत्पीड़न, बलात्कार तथा दहेज हत्या जैसे मामलों पर आंदोलन करते हैं ।

 

12. बार-आधारित समूहः ये समूह भारतीय न्यायपालिका की स्वायत्तता तथा जवाबदेही संबंधी मुद्दों के लिए आंदोलन करते हैं।

 

13. मीडिया स्वायत्तता समूह- ये समूह प्रेस के साथ ही राज्य के स्वामित्व वाले जन माध्यमों की स्वायत्तता एवं जवाबदेही पर एकाग्र रहते हैं।

 

14. वर्गीकृत अधिवक्ता आधारित समूहः इस कोटि में प्रभावशाली वकीलों के समूह आते हैं जो विभिन्न मुद्दों के लिए आंदोलन करते हैं। 


15. वर्गीकृत वैयक्तिक आवेदन याचिकाकर्ता: इसके अंतर्गत स्वतंत्र कार्यकर्ता आते हैं।

 

न्यायिक सक्रियता को लेकर आशंकाएँ Apprehensions about Judicial activism

 

न्यायविद उपेन्द्र बक्शी ने ही उस भय का भी जिक्र किया है जो न्यायिक सक्रियता से उत्पन्न होता है । वे कहते हैं 

तथ्य यह है कि अनेक प्रकार के भय इसको लेकर व्याप्त हैं। यह आवाहन भारत के सबसे कर्त्तव्यनिष्ठ एवं ईमानदार न्यायाधीशों के अंदर भी एक घबराहट भरी यौक्तिकता लाता है।


न्यायिक सक्रियता को लेकर भय 

 

1. विचारात्मक भयः (क्या वे विधायिका, कार्यपालिका या नागरिक समाज की अन्य स्वायत्त संस्थाओं की शक्ति हड़प रहे हैं?)

 

2. मीमांसात्मक भयः (क्या वे अर्थशास्त्र में मनमोहन सिंह, वैज्ञानिक मामलों में परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान के जारों, तथा वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् के कप्तानों के स्तर का ज्ञान रखते हैं?)

 

3. प्रबंधन संबंधी भयः (इस प्रकार के वादों का अतिरिक्त कार्य भार लेकर क्या वे न्याय कर पा रहे हैं, एक ऐसी परिस्थिति में जबकि पहले के बकाया मामलों का ढेर सामने है?)

 

4. वैधता संबंधी व्ययः (क्या वे अपने प्रतीकात्मक प्राधिकार की ही क्षति नहीं कर रहे जनहित याचिकाओं में आदेश पारित करके, जिनकी कि कार्यपालिका अनदेखी भी कर सकती है? क्या इससे न्यायपालिका में लोगों का भरोसा कम नहीं होगा?)

 

5. लोकतंत्र संबंधी भयः (जनहित याचिका वास्तव में लोकतंत्र का पोषण कर रही है या भविष्य की इसकी संभावनाओं को समाप्त कर रही है?)

 

6. आत्मवृत्त संबंधी भयः (सेवानिवृत्ति के पश्चात राष्ट्रीय मामलों में मेरा क्या स्थान होगा, अगर में इस प्रकार के वाद आवश्यकता से अधिक करूँ?)

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