मगध का उदय भाग -04 | शिशुनाग वंश | कालाशोक (काकवण)

मगध का उदय भाग -04

शिशुनाग वंश 

मगध का उदय भाग -04 |


 

  • शिशुनाग भी नाग वंश से ही सम्बन्धित था। 
  • महावंश टीका में उसे एक लिच्छवि राजा की वेश्या पत्नी में उत्पन्न कहा गया है। 
  • पुराण उसे क्षत्रिय कहते हैं पुराणों का कथन अधिक सही लगता है क्योंकि यदि वह वेश्या की सन्तान होता तो रूढ़िवादी ब्राह्मण उसे कभी भी राजा स्वीकार न करते तथा उसकी निन्दा भी करते। 
  • पुराणों के विवरण से ज्ञात होता है कि पांच प्रद्योत पुत्र 138 वर्षों तक शासन करेंगे। उन सब को मारकर शिशुनाग राजा होगा। अपने पुत्र को वाराणसी का राजा बनाकर वह गिरिव्रज को प्रस्थान करेगा। इससे स्पष्ट है कि शिशुनाग ने अवन्ति राज्य को जीतकर मगध साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया था। 
  • सुधाकर चट्टोपाध्याय की धारणा है कि शिशुनाग अन्तिम हर्यक शासक नागदशक का प्रधान सेनापति था और इस प्रकार उसका सेना के ऊपर पूर्ण नियन्त्रण था। उसने अवन्ति के ऊपर आक्रमण नागदशक के शासन काल में ही किया होगा तथा इसी के तत्काल बाद नागदशक को पदच्युत कर जनता ने उसे मगध का राज सिंहासन सौंप दिया होगा।
  • अवन्ति राज्य की विजय एक महान सफलता थी। इससे मगध साम्राज्य की पश्चिमी सीमा मालवा तक जा पहुंची। इस विजय से शिशुनाग का वत्स के ऊपर भी अधिकार हो गया क्योंकि यह अवन्ति के अधीन था।
  • आर्थिक दृष्टि से भी अवन्ति की विजय लाभदायक सिद्ध हुई। 
  • पाटलिपुत्र से एक व्यापारिक मार्ग वत्स तथा अवन्ति होते हुए भड़ौच तक जाता था वत्स तथा अवन्ति पर अधिकार होते हुए भड़ौच तक जाता था वत्स तथा अवन्ति पर अधिकार हो जाने से पाटलिपुत्र को पश्चिमी विश्व के साथ व्यापार वाणिज्य के लिए एक नया मार्ग प्राप्त हो गया । 
  • इस प्रकार शिशुनाग की विजयों के फलस्वरूप मगध का राज्य एक विशाल साम्राज्य में बदल गया तथा उसके अन्तर्गत बंगाल की सीमा से लेकर मालवा तक का विस्तृत भू-भाग सम्मिलित हो गया उत्तर प्रदेश का एक बड़ा भाग भी उसके अधीन था। 
  • भण्डारकर का अनुमान है कि इस समय कोशल भी मगध की अधीनता में आ गया था। इस प्रकार अब मगध का उत्तर भारत में कोई भी प्रतिद्वन्द्वी नहीं बचा। 
  • मगध साम्राज्य में उत्तर भारत के वे सभी मनुष्य राजतन्त्र सम्मिलित हो गये जो बुद्ध के समय विद्यमान थे इस प्रकार शिशुनाग एक शक्तिशाली राजा था। 
  • गिरीब्रज के अतिरिक्त वैशाली नगर को उसने अपनी दूसरी राजधानी बनाई थी। जो बाद में उसकी प्रधान राजधानी बन गई। ऐसा उसने सम्भवतः वज्जियों के ऊपर कठोर नियन्त्रण रखने के उद्देश्य से किया होगा।

 

कालाशोक (काकवण)

 

शिशुनाग ने सम्भवतः 412 ईसा पूर्व तक शासन किया महावंश के अनुसार उसकी मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र कालाशोक राजा बना । पुराणों में उसी को काकवर्ण कहा गया है । 

उसने अपनी राजधानी पुनः पाटलिपुत्र में स्थानान्तरित कर दिया। इस समय के बाद पाटलिपुत्र में ही मगध की राजधानी रही। 


बौद्ध धर्म की दूसरी संगीति 

कालाशोक के शासन काल में वैशाली में बौद्ध धर्म की दूसरी संगीति का आयोजन हुआ। 

इसमें बौद्ध संघ में विभेद उत्पन्न हो गया तथा वह स्पष्टतः दो सम्प्रदायों में बट गया। (1) स्थाविर 

(2) महासंघिका


पराम्परागत नियमों में आस्था रखने वाले लोग स्थविर कहलाये तथा जिन लोगों ने बौद्ध संघ में कुछ नये नियमों को समाविष्ट कर लिया वे महासंघिक कहे गये। इन्हीं दोनों सम्प्रदायों से बाद में चलकर क्रमशः हीनयान और महायान की उत्पत्ति हुई।

 

  • बाणभट्ट के हर्षचरित से पता चलता है कि काकवर्ण की राजधानी के समीप घूमते हुए किसी व्यक्ति ने गले में छुरा भोंककर हत्या कर दी। यह राजहन्ता कोई दूसरा नहीं अपितु नंदवंश का पहला राजा महापदमानन्द ही था। 
  • कालाशोक ने सम्भवतः 366 ई0पू0 तक राज्य सम्मिलित रूप से 22 वर्षों तक राज्य किया। 
  • इसमें नन्दिवर्धन का नाम सबसे महत्वपूर्ण लगता है। पुराणों के अनुसार नन्दिवर्धन शिशुनाग वंश का अन्तिम राजा था जिसका उत्तराधिकारी महानंदिन हुआ। ग्रेगर महोदय ने इन दोनों नामों को एक ही माना है इस प्रकार नन्दिवर्धन
  • अथवा महानन्दिन शिशुनाग वंश का अन्तिम शासक था। 
  • कालाशोक के उत्तराधिकारियों का शासन 344 0पूके लगभग समाप्त हो गया।

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