गाँधीवादी दर्शन के नैतिक बिन्दु | Gandhi Vaadi Darshann Natik

 गाँधीवादी दर्शन के नैतिक बिन्दु

 

गाँधीवादी दर्शन के नैतिक बिन्दु

  • अहिंसा (Non-violence)- उपनिषदों तथा जैन व बौद्ध दर्शनों की भाँति गाँधी जी अहिंसा को बहुत महत्वपूर्ण स्थान देते हैं एवं प्रत्येक मनुष्य के लिए आवश्यक उपवास की तरह इसका निष्ठापूर्वक पालन करने के लिए आवश्यक मानते हैं। 
  • उन्होंने अहिंसा का जो वर्णन किया है वह बहुत व्यापक, युक्तिसंगत एवं संतुलित है । 
  • उनके विचारानुसार क्रोध, घृणा, विद्वेष, ईर्ष्या तथा स्वार्थ से प्रेरित होकर किसी प्राणी को अपने वचन या कर्म द्वारा किसी प्रकार की हानि न पहुँचाना एवं हानि पहुँचाने का विचार भी न करना अहिंसा है। 
  • अहिंसा के इस निषेधात्मक अर्थ के अलावा गाँधीजी के मतानुसार उसका स्वीकारात्मक अर्थ भी समस्त प्राणियों के प्रति प्रेम, यथा, सहानुभूति आदि भावनाएँ रखना है। यथासम्भव उनकी सेवा तथा सहायता करना अहिंसा के उपवास का स्वीकारात्मक पक्ष है।
  • इस प्रकार गाँधीजी के विचारानुसार अहिंसा के व्रत का पालन करने हेतु मनुष्य को स्वार्थ, क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, विद्वेष, निर्दयता आदि समस्त दुर्भावनाओं से मुक्त होने का प्रयत्न करना चाहिए।
  • इसके विस्तृत अर्थ में अहिंसा के समान सदा आचरण प्रत्येक मनुष्य का कर्त्तव्य है।
  • गाँधीजी ने अहिंसा को व्यापक क्षेत्र बनाकर उसे सम्पूर्ण मानव जाति के लिए आवश्यक बताया है न कि कुछ साधु-सन्तों के लिए इसका उपयोग करने के लिए कहा उनमें दृढ़ विश्वास था कि सामाजिक, आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याओं का समाधान केवल शान्तिपूर्वक अहिंसात्मक उपायों द्वारा ही हो सकता है, न कि हिंसा द्वारा।
  • उनका मानना था कि हिंसा से संघर्ष में बढ़ोतरी होती है जबकि शान्ति व अहिंसा से किसी भी बात का समाधान आसान होता है। 
  • गाँधीजी ने अशांतिपूर्ण अहिंसात्मक सत्याग्रह, जिसका कि प्रयोग उन्होंने भारत में सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याओं के समाधान हेतु सफलतापूर्वक किया। 
  • उनका ये विचार था कि हिंसात्मक उपयोग द्वारा किसी प्रकार के अत्याचार के विरोध से उसमें वृद्धि ही होती है क्योंकि हिंसा और अधिक हिंसा को उत्पन्न करती है। इसी कारण उन्होंने आजीवन स्वयं कष्ट सहकर केवल अहिंसात्मक उपायों द्वारा सभी प्रकार के अत्याचारों का दृढ़तापूर्वक विरोध किया और अन्य समस्त लोगों को भी ऐसा ही करने की शिक्षा दी।
  • इस प्रकार गाँधीजी ने संसार के समक्ष यह क्रांतिकारी विचार प्रतिपादित किया कि सम्पूर्ण मानव समाज को विनाशकारी युद्ध की आग से स्वतन्त्रता दिलाने के लिए केवल अहिंसात्मक उपायों द्वारा ही समस्त राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान करना अनिवार्य है। 
  • इससे स्पष्ट होता है कि गाँधीजी के विचार में अहिंसा का आधार मनुष्य का नैतिक अथवा आध्यात्मिक बल होता है, उनकी मजबूरी या कमजोरी नहीं। 
  • उनका विचार है कि मजबूरी और कमी के कारण, हिंसा से दूर रहना या अन्याय सहन करते हुए प्रतिरोध न करना अहिंसा नहीं, प्रत्युत कायरता है जो हिंसा से भी अधिक निष्कृष्ट तथा निन्दनीय है। 
  • गाँधीजी ने स्पष्ट करते हुए कहा कि यदि कायरता और हिंसा में से किसी एक को चुनना पड़े तो हिंसा को चुनना ही उचित होगा क्योंकि हिंसा करने वाले व्यक्ति में साहस होता है जबकि कायर में यह गुण भी नहीं पाया जाता

Q- गाँधीवादी दर्शन के नैतिक बिन्दुओं पर प्रकाश डालिए। MPPSC 2018


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