प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी एवं प्रक्षेपण यान | Launch vehicle technology in Hindi

 

प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी


1962 में भारतीय अंतरिक्ष समिति (Indian National Committee on Space Research- INCOSPAR) के गठन के साथ ही थुम्बा में विषुवतीय राकेट प्रक्षेपण स्टेशन का निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया था।


1963 में अमेरिका से प्राप्त दो चरणों वाले राकेट का प्रक्षेपण किया गया । यह भारत का प्रथम प्रक्षेपण था। बाद में रोहिणी सांउडिंग राॅकेट का देश में ही निर्माण किया गया।


1967 में रोहिणी-75 का प्रायोगिक प्रक्षेपण किया गया इस समय तक देश में कई प्रकार के राॅकेटों का विकास कर लिया गया था।


आर.एच.-200(RH-200),  6 किग्रा. भार को 60-90 किमी. ऊपर ले जाने में सक्षम था, आर.एच.-300(RH-300), 50 किग्रा. भार को 140-150 किमी तक ले जाने में सक्षम था आर.एच.-560(RH560) , 100 किग्रा भार को 350 किमी. तक ले जाने में सक्षम था।


1972 में अंतरिक्ष विभाग तथा अंतरिक्ष आयोग के गठन के साथ ही इसरों के उपग्रह विकास एवं निर्माण कार्य में तेजी आई। इसके साथ ही इसरो ने उपग्रहों को निर्धारित कक्षा में स्थापित करने में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए प्रक्षेपण यानों के विकास पर भी ध्यान देना शुरू किया। इसरो के वैज्ञानिक जानते  थे कि प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता प्राप्त किए बिना अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में विकास नहीं किया जा सकता है। आज भारत 36 हजार किमी. की ऊंचाई पर भू-स्थैतिक कक्षा में उपग्रह स्थापित करने की जिस क्षमता से युक्त है वह इसरो की दूरदर्शिता का ही परिणाम है।


प्रक्षेपण यानों के विकास 


एसएलवी-3  ( SLV-3 Satellite Launch Vehicle-3)

भारत का प्रथम प्रक्षेपण यान एसएलवी-3 था जिसका 18, जुलाई 1980 को सफल परीक्षण किया गया। यह चार चरणों वाला साधारण क्षमता का प्रक्षेपण यान था जो 40 किग्रा. भार वर्ग के उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित कर सकता था।

ठोस ईंधन वाले प्रणोदक से परिचालित होने वाले एसएलवी-3 प्रक्षेपण यान की लंबाई 22 मीटर तथा भार 17 टन था। एसएलवी की सफल उड़ान के साथ ही भारत इस क्षमता से युक्त विश्व के गिने चुने देशों की श्रेणी में शामिल हो गया।

उस समय विश्व के केवल पांच देशों अमेरिका, रूस, फ्रांस, जापान, तथा चीन को ही इस क्षेत्र में दक्षता प्राप्त थी।



उपग्रह प्रमोचन यान (एसएलवी-3) पर टिप्पणी 

उपग्रह प्रमोचन यान (एसएलवी-3) पहला भारतीय प्रायोगिक उपग्रह प्रमोचन यान था।  17 टन भारी व 22 मीटर ऊंचे एसएलवी के सभी चार ठोस चरण थे तथा यह 40 कि.ग्रा. वर्ग के नीतभारों को निम्न पृथ्वी कक्षा (एलईओ) में  स्थापित करने में सक्षम था।


एएसएलवी (ASLV- Augmented Satellite Launch Vehicle)

  • एसएलवी-3 का थोड़ा विकसित रूप एएसएलवी है।
  • यह पांच चरणों वाला संवर्द्धित प्रक्षेपण यान 150 किग्रा. भार के उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करने में सक्षम था।
  • इसकी कुल लंबाई 23.8 मीटर तथा वजन 40 टन था।
  • इसमें ठोस ईंधन का प्रयोग किया जाता था।
  • प्रथम एवं द्वितीय चरण के लिए ईंधन के रूप में स्वदेशी तकनीक से विकसित हाइड्राक्सिल टर्मिनेटेड पाॅली ब्यूटाडाइन तथा तृतीय चरण के लिए एच.ई.एफ.20 का प्रयोग किया जाता था। इसकी कुल चार उड़ाने कराई गईं जिनमें से प्रथम दो पूर्णतः असफल रहीं।


एएसएलवी ASLV पर टिप्पणी 

उत्थापन के समय 40 टन भारी व 23.8 मी. लंबे पांच चरणों वाले, पूर्णतः ठोस नोदक यान एएसएलवी को 400 कि.मी. वृत्तीय कक्षाओं में परिक्रमारत 150 कि.ग्रा. भारी उपग्रह श्रेणी के मिशनों के लिए संरूपित किया गया था।

पीएसएलवी ( PSLV- Polar Satellite Launch Vehicle) 

  • 1600 किग्रा भार के उपग्रहों को 620 किमी की ऊंचाई पर स्थित सूर्य तुल्यकालिक कक्षा में स्थापित करने के उद्देश्य से इसरो द्वारा पीएसएलवी का विकास किया गया था।
  • 14.4 मीटर लंबा 295 टन उत्थापन भार वाला पीएसएलवी 1050 किग्रा वजन के उपग्रहों को भूतुल्यकालिक स्थानांतरण कक्षा में स्थापित करने में सक्षम है।



ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन वाहन PSLV पर टिप्पणी 

 

ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचक राकेट (पी.एस.एल.वी.) भारत का तृतीय पीढ़ी का प्रमोचक राकेट है। यह पहला भारतीय प्रमोचक राकेट है जो द्रव चरणों से सुसज्जित है। अक्‍तूबर 1994 में इसके प्रथम सफल प्रमोचन के पश्‍चात, जून 2017 तक लगातार 39 सफल मिशनों के साथ पी.एस.एल.वी. भारत के विश्‍वस्त एवं बहुमुखी विश्‍वसनीय प्रमोचक राकेट के रूप में उभर कर आया है। वर्ष 1994-2017 की अवधि के दौरान, राकेट ने 48 भारतीय उपग्रहों एवं विदेशी ग्राहकों के लिए 209 उपग्रहों का प्रमोचन किया।

 

इसके अतिरिक्‍त, राकेट ने सफलतापूर्वक दो अंतरिक्षयान - वर्ष 2008 में चंद्रयान-1 एवं वर्ष 2013 में मंगल कक्षित्र अंतरिक्षयान का प्रमोचन किया जिन्‍होंने क्रमश: चंद्र और मंगल तक यात्रा तय की।

जीएसएलवी ( GSLV- Geo Synchronous Satellite Launch Vehicle)

  • इसरो द्वारा जीएसएलवी का विकास उपग्रहों को 36 हजार किमी. की ऊंचाई पर स्थित भू-स्थैतिक कक्षा में स्थापित करने के लिए किया गया है।
  • यह त्रिचरणीय प्रमोचन यान है, जो 90 मीटर लंबा और 414 टन के उत्थापन भार वाला है।
  • इसके प्रथम चरण में ठोस प्रणोदक होता है, जिसके साथ चार द्रव प्रणोदक युक्त स्ट्रैप आन बूस्टर मोटर होते हैं। इसके द्वितीय चरण में द्रव प्रणोदक प्रयुक्त होता है तथा तृतीय चरण क्रायोजिनक चरण होता है।



भू-तुल्यकाली उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (जी.एस.एल.वी.) पर टिप्पणी 

 

भूतुल्‍यकाली उपग्रह प्रमोचक राकेट मार्क II (जी.एस.एल.वी. मार्क II) भारत में विकसित सबसे बड़ा प्रमोचक राकेट है, जो वर्तमान में प्रचालन में है। यह चौथी पीढ़ी का प्रमोचक राकेट चार द्रव स्‍ट्रैपऑन  से युक्‍त तीन चरणीय राकेट है। स्‍वदेशी रूप से विकसित क्रायोजेनिक ऊपरी चरण (सी.यू.एस.), जोकि उड़ान प्रमाणि‍त है, जी.एस.एल.वी. मार्क II का तृतीय चरण है। जनवरी, 2014 से राकेट ने लगातार चार सफलताएं अर्जित की हैं।

 

जी.एस.एल.वी. मार्क III ( GSLV- Mark III)

 

जी.एस.एल.वी. मार्क III इसरो द्वारा विकसित तीन-चरणों वाला भारी वाहक प्रमोचक राकेट है। 

राकेट में दो ठोस स्‍ट्रैप-ऑन, एक क्रोड द्रव बूस्‍टर और एक क्रायोजेनिक ऊपरी चरण शामिल है। 

जी.एस.एल.वी. मार्क III को भूतुल्‍यकाली अंतरण कक्षा (जी.टी.ओ.) में 4 टन श्रेणी के उपग्रहों या निम्‍न भू-कक्षा (एल.ई.ओ.) में लगभग 10 टन, जोकि जी.एस.एल.वी मार्कII की क्षमता से लगभग दो गुना है, का वहन करने हेतु डिजाइन किया गया है। 

जी.एस.एल.वी. मार्कIII के दो स्‍ट्रैप-ऑन मोटर उसके क्रोड द्रव बूस्टर के दोनों ओर स्थित होते हैं। एस.200के रूप में निर्दिष्‍ट, प्रत्‍येक स्‍ट्रैप-ऑन 205 टन के सम्मिश्र ठोस नोदक का वहन करता है और उनके प्रज्‍वलन से राकेट उड़ान भरता है। एस200’, 140 सेकंडों तक कार्य करता है। 

स्‍ट्रैप-ऑन के प्रकार्यात्मक चरण के दौरान, एल110 द्रव क्रोड बूस्‍टर के दो विकास द्रव इंजनों का समूह राकेट के प्रणोद के संवर्धन के लिए उड़ान भरने के पश्‍चात 114 सेकंड बाद प्रज्‍वलित होंगे। उड़ान भरने के लगभग 140 सेकेंड पर स्‍ट्रैप-ऑन के पृथक होने के पश्‍चात, ये दोनों इंजन कार्य करते रहेंगे। 

एल.वी.एम.3 की प्रथम परीक्षणात्मक उड़ान, एल.वी.एम.3-एक्‍स/सी.ए.आर.ई. मिशन ने 18 दिसंबर, 2014 को श्रीहरिकोटा से उड़ान भरी तथा उड़ान के वायुमंडलीय चरण की सफलतापूर्वक जाँच की। इसी उड़ान में कर्मीदल माड्यूल वायुमंडलीय पुनःप्रवेश परीक्षण भी पूरा किया गया था। माड्यूल ने पुनःप्रवेश किया और योजनानुसार अपने पैराशूटों का प्रस्‍तरण किया तथा बंगाल की खाड़ी में उतरा।

जी.एस.एल.वी. मार्क III की प्रथम विकासात्मक उड़ान, जी.एस.एल.वी. मार्क III-डी1, ने 05 जून, 2017 को एस.डी.एस.सी. शार, श्रीहरिकोटा से जीसैट-19 उपग्रह को भूतुल्‍यकाली अंत‍रण कक्षा (जी.टी.ओ.) में सफलतापूर्वक स्‍थापित किया।

जी.एस.एल.वी. मार्क III की द्वितीय विकासात्मक उड़ान, जी.एस.एल.वी. मार्क III-डी2 ने  14 नवंबर, 2018 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, शार, श्रीहरिकोटा से उच्‍च क्षमता वाले संचार उपग्रह जीसैट-29 का सफलतापूर्वक प्रमोचन किया।




 

आरएलवी-टीडी ( RLV-TD)

  

पुन:उपयोगी प्रमोचक राकेट-प्रौद्योगिकी प्रदर्शक (आर.एल.वी.-टी.डी.) अंतरिक्ष में कम लागत पर पहुँच में सहायता हेतु पूर्ण रूप से पुन:उपयोगी प्रमोचक राकेट के लिए आवश्‍यक प्रौद्योगिकियों में विकसित करने की ओर इसरो के प्रयासों में से सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण प्रौद्योगिकीय प्रयास है।

आर.एल.वी.-टी.डी. का संरूपण एक अंतरिक्षयान के समान है तथा इसमें प्रमोचक राकेट तथा अंतरिक्षयान दोनों की ही जटिलताएं शामिल हैं। 

द्रुतगामी आर.एल.वी.-टी.डी. को विभिन्‍न प्रौद्योगिकीयों जैसे, अतिध्‍वनिक उडा़न, स्‍वायत्त लैंडिंग तथा उर्जायुक्‍त समुद्री यात्रा उडा़न के मूल्‍यांकन के लिए उडा़न परीक्षण स्‍थल के तौर पर कार्य करने के लिए संरूपणित किया गया है। 

भविष्‍य में इस राकेट को भारत के पुन:उपयोगी दो चरण वाले कक्षीय प्रमोचक राकेट के प्रथम चरण के रूप में विकसित किया जाएगा। 

आर.एल.वी.-टी.डी. में ढाँचा (body), एक नासिका टोप, डबल डेल्‍टा पंख तथा द्वि उर्ध्‍वाधर पुच्‍छ शामिल है। इसमें संतुलित रूप से प्रतिस्‍थापित सक्रिय नियंत्रण सतह भी शामिल है जिसे एलिवोन और रूडर कहा जाता है।

इस प्रौद्योगिकी प्रदर्शक को निम्‍न ज्‍वलन दर के लिए परंपरागत ठोस अभिवर्धक (459) द्वारा डिजाइन किया गया है तथा मैच सं:5 में अभिवर्धन किया गया। 

आर.एल.डी.-टी.वी. के विकास हेतु विशेष मिश्रधातु, संयुक्‍त पदार्थ तथा रोधन जैसी विशेष सामग्रियों का चयन तथा इसके अंगों के क्राफ्टिंग बहुत जटिल है तथा इसके लिए अति कुशल मानवशक्ति की आवश्‍यकता है। इस राकेट के निर्माण हेतु कई उच्‍च प्रौद्योगिकी तंत्र तथा जांच उपकरण का प्रयोग किया गया है।


 


आर.एल.वी-टी.डी. के उद्देश्‍य:

  • पंखयुक्‍त वस्‍तु का अतिध्‍वनिक ऐरो ऊष्‍मागतिक चित्रीकरण
  • स्‍वायत्त नौवहन, मार्गदर्शन तथा नियंत्रण (एन.जी.सी.) योजनाओं का मूल्‍यांकन
  • समेकित उडा़न प्रबंधन
  • तापीय सुरक्षा प्रणाली मूल्‍यांकन

स्क्रैमजेट इंजन टीडी

इसरो के पहले प्रायोगिक मिशन स्क्रैमजेट इंजन के वायुश्वसन प्रणोदन प्रणाली की प्राप्ति की दिशा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र शार, श्रीहरिकोटा से 28 अगस्त, 2016 को सफलतापूर्वक आयोजित किया गया।

300 सेकंड की उड़ान के बाद, श्रीहरिकोटा से लगभग 320 किलोमीटर पर वाहन बंगाल की खाड़ी में उतरा। श्रीहरिकोटा के भू केंद्रों से वाहन का उड़ान के दौरान सफलतापूर्वक अनुवर्तन किया गया था। इस उड़ान के साथ, क्रांतिक प्रौद्योगिकियां जैसे सुपरसोनिक गति में वायुश्वसन इंजन का प्रज्वलन, सुपरसोनिक गति में लौ का जारी रहना, हवा का अंतर्ग्रहन तंत्र और ईंधन अंतक्षेपण प्रणालियों का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया गया है।



इसरो द्वारा डिजाइन किए स्क्रैमजेट इंजन ने हाइड्रोजन का ईंधन के रूप में और वायुमंडलीय हवा से ऑक्सीजन का ऑक्सीडाइजर के रूप में उपयोग किया है। अगस्त 28 का परीक्षण माख 6 का हाइपरसोनिक उड़ान के साथ इसरो के स्क्रैमजेट इंजन की पहली छोटी अवधि का प्रायोगिक परीक्षण है । इसरो का उन्नत प्रौद्योगिकी वाहन (एटीवी), जो एक उन्नत परिज्ञापी रॉकेट है सुपरसोनिक स्थिति में स्क्रैमजेट इंजन का हाल ही में किया परीक्षण में ठोस बूस्टर रॉकेट का उपयोग किया था । एटीवी से वहन किया स्क्रैमजेट इंजन का उत्थान के समय वजन 3277 किलोग्राम था ।

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