आयात-निर्यात प्रक्रिया | Import Export Process in Hindi

 

आयात-निर्यात प्रक्रिया

Import Export Process in Hindi


आंतरिक एवं बाह्य व्यवसाय परिचालन में प्रमुख अंतर बाह्य व्यवसाय की जटिलता है। वस्तुओं का आयात एवं निर्यात उतना सीधा एवं सरल नही है जितना कि घरेलू बाजार में क्रय एवं विक्रय, क्योंकि विदेशी व्यापार में माल देश की सीमा के पार भेजा जाता है तथा इसमें विदेशी मुद्रा का प्रयोग किया जाता है, इसलिए अपने देश की सीमा को पार करने तथा दूसरे देश की सीमा में प्रवेश करने से पूर्व कई औपचारिकताओं को पूरा करना होता है।

निर्यात की प्रक्रिया

अलग-अलग निर्यात लेन-देनों के विभिन्न चरणों की संख्या एवं जिस क्रम में यह चरण उठाए जाते हैं, अलग-अलग होते हैं। एक प्रारूपिक निर्यात लेन-देन के निम्नलिखित चरण होते हैं-

1- पूछताछ प्राप्त करना एवं निर्ख भेजना

संभावित क्रेता विभिन्न निर्यातकों को पूछताछ का पत्र भेजता है जिसमें वह उनसे माल के मूल्य, गुणवत्ता एवं निर्यात से संबंधित शर्तों के संबंध में सूचना भेजने के लिए प्रार्थना करता है। आयातक इस प्रकार विज्ञापन की पूछताछ के संबंध में निर्यातकों को समाचार पत्रों में विज्ञापन के माध्यम से भी सूचित कर सकता है। निर्यातक इस पूछताछ का उत्तर निर्ख के रूप में भेजता है जिसे प्रारूप बीजक कहते हैं। प्रारूप बीजक में उस मूल्य के संबंध में सूचना होती है जिस पर निर्यातक माल को बेचने के लिए तैयार हैं इसमें गुणवत्ता, श्रेणी, आकार, वजन, सुपुर्दगी की प्रणाली, पैकेजिंग का प्रकार एवं भुगतान की शर्तों आदि की भी सूचना दी होती है।

2- आदेश अथवा इंडैंट की प्राप्ति

यदि संभावित के्रता (आयातक फर्म) के लिए निर्यात का मूल्य एवं अन्य शर्तें स्वीकार्य हैं, तो वह वस्तुओं को भेजने का आदेश देगा। इस आदेश में जिसे इंडैंट भी कहते हैं आदेशित वस्तुओं का विवरण, देय मूल्य, सुपुर्दगी की शर्तें, पैकिंग एवं चिन्हांकन का ब्यौरा एवं सुपुर्दगी संबंधी निर्देश होते हैं।

3- आयातक की साख का आकलन एवं भुगतान की गारंटी प्राप्त करना

इंडैंट की प्राप्ति के पश्चात निर्यातक, आयातक की साख के संबंध में आवश्यक पूछताछ करता है। इस पूछताछ का उद्देश्य माल के आयात के गंतव्य स्थान पर पहुंचने पर आयातक द्वारा भुगतान न करने के जोखिम का आंकलन करना है। इस जोखिम को कम से कम करने के लिए अधिकांश निर्यातक, आयातक से साख पत्र की मांग करते हैं। साख पत्र आयातक के बैंक द्वारा जारी किया जाता है। जिसमें निर्यातक के बैंको को एक निश्चित राशि तक के निर्यात बिलों के भुगतान की गारंटी देता है। अंतर्राष्ट्रीय लेन-देनों के निपटान के लिए भुगतान की सर्वाधिक उपयुक्त एवं सुरक्षित विधि है।

4- निर्यात लाइसेंस प्राप्त करना

भुगतान के संबध में आश्वस्त हो जाने के पश्चात् निर्यातक फर्म निर्यात संबंधी नियमों के पालन की दिशा में कदम उठाती है। भारत में वस्तुओं के निर्यात पर सीमा नियम लागू होते हैं जिनके अनुसार निर्यातक फर्म को निर्यात करने से पहले निर्यात लाइसेंस प्राप्त कर लेना चाहिए। निर्यात लाइसेंस प्राप्त करने के पूर्व महत्वपूर्ण अपेक्षा निम्नलिखित हैं-

  • भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अधिकृत किसी भी बैंक में खाता खोलना एवं खात संख्या प्राप्त करना।
  • विदेशी व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) अथवा क्षेत्रीय आयात-निर्यात लाइसेंसिग प्राधिकरण से आयात-निर्यात कोड (आईसीसी) संख्या प्राप्त करना।
  • उपर्युक्त निर्यात संवर्द्धन परिषद् के यहां पंजीयन कराना।
  • निर्यात साख एवं गारंटी निगम (ईसीजीसी) भुगतान प्राप्त न होने के कारण होने वाले जोखिमों के विरूद्ध सुरक्षा हेतु पंजीयन कराना।
  • विदेशों से भुगतान को राजनीतिक एवं वाणिज्यिक जोखिमों से संरक्षण के लिए ई.सी.जी¬.सी के पास पंजीकरण कराना आवश्यक है। पंजीकरण करा लेने पर निर्यातक फर्मों को व्यापारिक बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थानों से वित्तीय सहयोग भी प्राप्त हो जाता है।

5- माल प्रेषण से पूर्व वित्त करना

आदेश होने एवं साख पत्र की प्राप्ति के पश्चात् निर्यातक माल के प्रेषण के पूर्व के वित्त हेतु अपने बैंक के पास जाता है जिससे कि वह निर्यात के लिए उत्पादन कर सके। प्रेषण-पूर्व वित्त वह राशि है जिसकी निर्यातक को कच्चा माल एवं अन्य संबंधित चीजों का क्रय करने, वस्तुओं के प्रक्रियन एवं अन्य संबंधित चीजों का क्रय करने, वस्तुओं के प्रक्रियन एवं पैकेजिंग तथा वस्तुओं के माल लदान बंदरगाह तक परिवहन के लिए आवश्यकता होती है।

6- वस्तुओं का उत्पादन एवं अधिप्राप्ति

माल के लदान से पूर्व बैंक से वित्त की प्राप्ति हो जाने पर निर्यातक आयातक के विस्तृत वर्णन के अनुसार माल को तैयार करेगा। फर्म या तो इन वस्तुओं का स्वयं उत्पादन करेगी अथवा इन्हें बाजार से क्रय करेगी।

7- जहाज लदान निरीक्षण

भारत सरकार ने यह सुनिश्चित करने की दिशा में कई कदम उठाए हैं कि देश से केवल अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुओं का ही निर्यात हो। इनमें से एक कदम सरकार द्वारा मनोनीत सर्वथा योग्य एजेसी द्वारा कुछ वस्तुओं का अनिवार्य निरीक्षण है। इस उद्देश्य की प्राप्ति सरकार ने निर्यात गुणवत्ता नियंत्रण एवं निरीक्षण अधिनियम-1963‘ पारित किया। सरकार ने कुछ एजेंसियों को निरीक्षण एजेंसियों के रूप में अधिकृत किया । यदि निर्यात किया जाने वाला माल इस वर्ग के अंतर्गत आता है तो उसे निर्यात निरीक्षण एजेंसी अथवा अन्य मनोनीत की गई एजेंसी से संपर्क कर निरीक्षण प्रमाणपत्र प्राप्त करना होगा। इस निरीक्षण अनुवेदन को निर्यात के अवसर पर अन्य निया्रत प्रलेखोें के साथ जमा कराया जाएगा।

 8- उत्पाद शुल्क की निकासी

केंद्रीय उत्पादन शुल्क अधिनियम (सेंट्रल एक्साइज टैरिफ एक्ट) के अनुसार वस्तुओं के विनिर्माण में प्रयुक्त माल पर उत्पादन शुल्क कमिशनर को आवेदन करना होता है। यदि कमिशनर संतुष्ट हो जाता है तो वह उत्पादन शुल्क की छूट का प्रमाण पत्र दे देगा। लेकिन कुछ मामलों में यदि उत्पादित वस्तुएं निर्यात के लए होती हैं तो सरकार उत्पादन शुल्क से छूट प्रदान कर देती है अथवा इसे लौटा देती है। इसप्रकार की छूट अथवा वापसी का उद्देश्य निर्यातक को और अधिक निर्यात के लिए प्रोत्साहित करना एवं निर्यात उत्पादों को विश्व बाजार में और अधिक प्रतियोगी बनाना हैं उत्पादन शुल्क की वापसी को शुल्क की वापसी कहते हैं।

9- उद्गम प्रमाण पत्र प्राप्त करना

कुछ आयातक देश, किसी विशेष देश से आ रहे माल पर शुल्क की छूट अथवा अन्य कोई छूट देते हैं। इनका लाभ उठाने के लिए आयातक निर्यातक से उद्गम प्रमाण पत्र की मांग कर सकता है। यह प्रमाण पत्र इसबात को प्रमाणित करता है कि वस्तुओं का उत्पादन उसी देश में हुआ है जिस देश ने इसका निर्यात किया हैं इस प्रमाण पत्र को निर्यातक के देश में स्थित वाणिज्य दूतावास अधिकारी से प्राप्त किया जा सकता है।

10- जहाज में स्थान आरक्षण

निर्यातक फर्म जहाज में स्थान के लिए प्रावधान हेतु जहाजी कंपनी को आवेदन करती है। इसे निर्यात के माल का प्रकार, जहाज में लदान की संभावित तिथित एवं गंतव्य बंदरगाह को घोषित करना होता हैं जहाज पर लदान के आवेदन की स्वीकृति के पश्चात् जहाजी कंपनी जहाजी आदेश पत्र तैयार करती हैं जहाजी आदेश पत्र जहाज के कप्तान के नाम आदेश होता है कि वह निर्धारित वस्तुओं को नामित बंदरगाह पर सीमा शुल्क अधिकारियों द्वारा निकासी होने पर जहाज पर माल का लदान करेगा।

11- पैकिंग एवं माल को भेजना

माल का उचित ढंग से पैकिंग कर उन पर आवश्यक विवरण देंगे। जैसे अयातक का नाम एवं पता, सकल एवं शुद्ध भार, भेजे जाने वाले एवं गंतव्य बंदरगाहों के नाम एवं उद्गम देश का नाम आदि। निर्यातक तत्तपश्चात् माल को बंदरगाह तक ले जाने की व्यवस्था करता है।

12- वस्तुओं का बीमा

वस्तुओं को मार्ग में समुद्री जोखिमों के कारण, माल के खो जाने अथवा टुट-फूट जाने के जोखिम से संरक्षण प्रदान करने के लिए निर्यातक बीमा कंपनी से वस्तुओं का बीमा करा लेता है।

13- कस्टम निकासी

जहाज में लदान से पहले वस्तुओं की कस्टम निकासी अनिवार्य है। कस्टम निकासी  प्राप्त करने के लिए निर्यातक जहाजी बिल तैयार करता हैं यह मुख्य प्रलेख होता है जिसके आधार पर कस्टम कार्यालय निर्यात की अनुमति प्रदान करता है। जहाजी बिल में निर्यात किये जाने वाले माल, जहाज का नाम, बंदरगाह जहां माल उतारना है अंतिम गंतव्य देश, निर्यातक का नाम एवं पता, आदि का विवरण दिया जाता है तत्तपश्चात् जहाजी बिल की पाॅच प्रति  एवं निर्धारित प्रारूप  के अनुसार जानकारी कस्टम मूल्यांकन अधिकारी के पास जमा कर दी जाती है।

14- जहाज के कप्तान की रसीद (मेट्स रिसीप्ट) प्राप्त करना

वस्तुओं का अब जहाज पर लदान  किया जाएगा जिसक बदले जहाज का कारिंदा अथवा कप्तान/मेट्स रसीद /बंदरगाह अधीक्षक को जारी करेगा। मेट्स रसीद जहाज के नायक के कार्यालय द्वारा जहाज पर माल के लदान पर जारी की जाती है।

15- भाड़े का भुगतान एवं जहाजी बिल्टी का बीमा

भाड़े की गण्ना हेतु निकासी एवं प्रेषक एजेंट मेट्स रसीद को जहाजी कंपनी को सौंप देगा। भाड़े के भुगतान के पश्चात जहाजी कंपनी जहाजी बिल्टी जारी करेगी जो इस बात का प्रमाण है कि जहाजी कंपनी ने माल को नामित गंतव्य स्थान तक ले जाने के लिए स्वीकार कर लिया है।

16- बीजक बनाना

माल को भेज देने के पश्चात् भेजे गए माल का बीजक तैयार किया जाएगा। बीजक में भेजे गए माल की मात्रा एवं आयातक द्वारा भुगतान की जाने वाली राशि लिखी होती है। निकासी एवं प्रेषक एजेंट इसे कस्टम अधिकारी से सत्यापित कराएगा।

17- भुगतान प्राप्त करना

माल के जहाज से भेज देने के पश्चात् निर्यातक इसकी सूचना आयातक को देगा। माल के आयातक देश में पहुंच जाने पर उसे माल पर अपने स्वामित्व के अधिकार का दावा करने के लिए एवं उनकी कस्टम निकासी क लिए विभिन्न प्रलेखों की आवश्यकता होती है। आवश्यक प्रलेखों को निर्यातक अपने बैंक के माध्यम से इन निर्देशों के साथ भेजता है कि इन प्रलेखों को आयातक को तभी सौंपा जाए जब वह विनिमय विपत्र को स्वीकार कर ले जिसे प्रलेखों के साथ भेजा जाता है। प्रासंगिक प्रलेखों को बैंक को भुगतान प्राप्ति के उद्देश्य से सौंपना प्रलेखों का विनियमन कहलाता है।

विनियमन विपत्र आयातक को एक निश्चित राशि का निश्चित व्यक्ति को भुगतान करने का आदेश होता है। अधिकार पत्रों को आयातक को भुगतान होने पर ही सौंपा जाता है।  इसके पश्चात् संबंधित प्रलेखों को उसे सौंप दिया जाता है। निर्यातक को आयातक द्वारा भुगतान करने का इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है। निर्यातक अपने बैंक को प्रलेख सौंपकर एवं क्षतिपूरक पत्र पर हस्ताक्षर कर तुरंत भुगतान कर सकता है। क्षतिपूरक पत्र पर हस्ताक्षर कर निर्यातक आयातक से भुगतान की प्राप्ति न होने की स्थिति में बैंक को यह राशि ब्याज सहित भुगतान करने का दायित्व लेता है।


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