राज्य विधानमंडल राज्यपाल

 

राज्य विधानमंडल राज्यपाल

राज्य विधानमंडल और राज्यपाल

  • 7वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1956 के द्वारा संविधान के अनुच्छेद-153 में प्रावधान किया गया कि एक ही व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है।
  • संविधान के अनुच्छेद-155 में उपबंध है कि राज्यों के राज्यपाल की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।
  • संविधान के अनुच्छेद-159 में उपबंध है कि राज्यों के राज्यपाल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष और उसकी अनुपस्थिति में उस न्यायालय के उपलब्ध ज्येष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञा लेंगे। शपथ या प्रतिज्ञा का प्रारूप इसी अनुच्छेद में दिया गया है, न कि संविधान की तीसरी अनुसूची में।
  • संविधान के अनुच्छेद-153 में उपबंध है कि प्रत्येक राज्य के लिये एक राज्यपाल होगा।
  • संविधान के अनुच्छेद-157 में उपबंध है कि किसी व्यक्ति के राज्यपाल नियुक्त होने के लिये न्यूनतम आयु 35 वर्ष होनी चाहिये तथा उसे भारत का नागरिक होना चाहिये न कि जन्मजात नागरिक।
  • संविधान के अनुच्छेद-156(3) में उपबंध है कि राज्यपाल पद ग्रहण करने की तारीख से पाँच वर्ष तक पद धारण करेगा। पद की अवधि की समाप्ति के पश्चात भी तब तक पद धारण करता रहेगा, जब तक उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण न कर ले।
  • संविधान के अनुच्छेद-156 में उपबंध है कि राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करता है। अर्थात् राष्ट्रपति कभी भी उसे पद से हटा सकता है या राज्यपाल राष्ट्रपति को अपना त्याग-पत्र दे सकता है। संविधान में उसे पद से हटाने हेतु किसी प्रक्रिया का उल्लेख नहीं किया गया है।
  • संविधान के अनुच्छेद-158 में उपबंध है कि संसद के किसी सदन का कोई सदस्य या राज्य विधानमंडल के किसी सदन का कोई सदस्य राज्यपाल नियुक्त हो जाता है तो पद ग्रहण करने की तारीख से वह सदन का सदस्य नहीं रहेगा।
  • अनुच्छेद-158 में उपबंध है कि राज्यपाल को संविधान की दूसरी अनुसूची के तहत उपलब्धियाँ, वेतन, भत्तों एवं विशेषाधिकार प्राप्त होगा और जहाँ दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया गया हो, वहाँ राष्ट्रपति के आदेश द्वारा अवधारित होगा। 

राज्यपाल द्वारा नियुक्ति

राज्य के विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति (चांसलर) राज्यपाल स्वयं होता है। राज्यपाल द्वारा कुलपति  (वाइस चासंलर) की नियुक्ति की जाती है।

राज्यपाल द्वारा निम्नलिखित की नियुक्ति की जाती है: 

  • राज्य निर्वाचन आयुक्त (अनुच्छेद 243 ट)
  • राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य (अनुच्छेद-316)
  • राज्य के महाधिवक्ता (एडवोकेट-जनरल) (अनुच्छेद-165)
  • राज्य के मुख्यमंत्री तथा मुख्यमंत्री के सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति (अनुच्छेद-164)
  • छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, झारखण्ड एवं उड़ीसा में जनजाति कल्याण मंत्री (194वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2006 के द्वारा बिहार राज्य को इस प्रावधान से बाहर कर दिया गया।
  • राज्य वित्त आयोग की नियुक्ति (अनुच्छेद-243 झ)
  • राज्य के जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति (अनुच्छेद-233)

राज्यपाल को हटाने की शक्ति नहीं

  • राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा तो की जाती है, किन्तु उसे पद से उसी रीति से हटाया जा सकता है, जैसे किसी उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को हटाया जाता है।
  • राज्यपाल राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति तो करता है, किन्तु उसे केवल राष्ट्रपति ही हटा सकता है। राज्यपाल को हटाने की शक्ति नहीं है।
  • राज्य के मुख्यमंत्री एवं मुख्यमंत्री के सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है और मंत्री राज्यपाल के प्रसादपर्यंत पद धारण करते हैं।
  • राज्यपाल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त होने के  योग्य किसी व्यक्ति को राज्य का महाधिवक्ता नियुक्त करता है। महाधिवक्ता राज्यपाल के प्रसादपर्यंत पद धारण करता है।

राज्यपाल की शक्ति

  • संविधान के अनुच्छेद-333 के तहत राज्यपाल राज्य की विधानसभा में एक आंग्ल-भारतीय सदस्य को नामित कर सकता है। यदि उसे ऐसा लगे कि राज्य विधानसभा में आंग्ल-भारतीयों का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है, जबकि राष्ट्रपति लोकसभा के लिये दो आंग्ल-भारतीयों को नामित कर सकता है।
  • संविधान के अनुच्छेद-154 में उपबंध है कि राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में भी निहित होगी और वह इसका प्रयोग संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों द्वारा करेगा।
  • संविधान के अनुच्छेद-171 के तहत राज्यपाल विधान परिषद के लिये साहित्य, कला, विज्ञान, समाज सेवा एवं सहकारी आन्दोलन से संबंधित ज्ञान रखने वालों को मनोनीत कर सकेगा। यह संख्या विधान परिषद की कुल सदस्य संख्या का 1/6 भाग होगी।

राज्यपाल के अध्यादेश

  • राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद-213 के तहत अध्यादेश जारी करने की शक्ति है।
  • राज्यपाल के अध्यादेश की समय-सीमा छः सप्ताह की है (न कि 6 माह)। यदि छः सप्ताह के भीतर राज्य के विधानमंडल द्वारा स्वीकृति न दी तो अध्यादेश प्रवर्तन में नहीं रहेगा।
  • राज्यपाल किसी भी समय अध्यादेश को वापस ले सकता है।
  •  संविधान के अनुच्छेद-213 के तहत किसी राज्य का राज्यपाल अध्यादेश जारी कर सकता हैयदि राज्यपाल को किसी समय यह समाधान हो जाता है कि ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान हैंजिसके कारण तुरन्त कार्रवाई करना उनके लिये आवश्यक हो गया है। यह अध्यादेश तब जारी नहीं किया जा सकता हैजब राज्य की विधानसभा सत्र में है या विधान परिषद वाले राज्य में विधानमंडल के दोनों सदन सत्र में हैं।

राज्यपाल क्षमादान की शक्ति

  • संविधान के अनुच्छेद-72 के तहत राष्ट्रपति को क्षमादान की शक्ति है, जबकि राज्यपाल को अनुच्छेद-161 के तहत क्षमादान की शक्ति है। राष्ट्रपति मृत्युदण्ड को क्षमा कर सकता है, किन्तु राज्यपाल को यह शक्ति प्राप्त नहीं है। अन्य सभी मामलों में राज्यपाल की शक्ति राष्ट्रपति के समान है।
  • विधायी शक्ति के संबंध में राज्यपाल विधानमंडल का अंग होता है उसी प्रकार जैसे राष्ट्रपति संसद का अंग होता है।
  • आपातकालीन शक्ति राज्यपाल को नहीं प्राप्त है। ये शक्ति भारत के राष्ट्रपति में निहित है।

राज्यपाल की विधायी शक्ति

  • राज्य की विधानसभा को स्थगित करने की शक्ति विधानसभा के अध्यक्ष के पास होती है। यह स्थगन घंटों, दिनों या सप्ताह का हो सकता है या विधानसभा को अनिश्चितकाल के लिये स्थगित कर सकता है।
  • राज्य विधानमंडल के प्रत्येक सदन की (जिस राज्य में विधान परिषद है) राज्यपाल समय-समय पर बैठक आहुत कर सकता है। दो सत्रों के बीच छः माह से अधिक का समय अंतराल नहीं होना चाहिये। राज्य विधानमंडल को एक वर्ष में कम-से-कम दो बार ज़रूर मिलना चाहिये। एक सत्र में विधानमंडल की कई बैंठकें हो सकती हैं।  [अनुच्छेद-174 (1)]
  • राज्यपाल समय-समय पर सदन या किसी एक सदन का सत्रावसान कर सकता है एवं विधानसभा का विघटन कर सकता। [अनुच्छेद-174 (2)]
  • विधान परिषद (जिस राज्य में है) एक स्थायी सदन है, उसका विघटन नहीं हो सकता है।
  • राज्यपाल प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात् प्रथम सत्र के आरंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के प्रारंभ में विधानसभा में अभिभाषण करेगा और विधान परिषद वाले राज्य की दशा में एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण करेगा और विधानमंडल को उसके बुलाने का कारण बताएगा। [अनुच्छेद-176 (1)]
  • राज्यपाल विधानसभा में या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में उस राज्य के विधानमंडल के किसी एक सदन में या एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण कर सकेगा और इस उद्देश्य के लिये सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकेगा। [अनुच्छेद-175 (1)]
  • राज्यपाल, राज्य के विधानमंडल में उस समय लंबित किसी विधेयक के संबंध में संदेश उस राज्य के विधानमंडल के सदन या सदनों को भेज सकेगा और जिस सदन को कोई संदेश भेजा गया है उस पर शीघ्रता से विचार करेगा। [अनुच्छेद-175 (2)]

राज्यपाल प्रतिवेदन

  • संविधान के अनुच्छेद-243 (क) में राज्य वित्त आयोग के संबंध में उपबंध किया गया है। इसकी नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है और राज्यपाल राज्य वित्त आयोग की रिपोर्ट को राज्य के विधानमंडल के समक्ष रखवाएगा।
  • संविधान के अनुच्छेद-315 में उपबंध किया गया है कि प्रत्येक राज्य के लिये एक लोक सेवा आयोग होगा और संविधान के अनुच्छेद-323(2) के तहत राज्यपाल, राज्य लोक सेवा आयोग के प्रतिवेदनों को राज्य के विधानमंडल के समक्ष रखवाएगा।
  • संविधान के अनुच्छेद 148 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का उपबंध है और अनुच्छेद-151(2) के तहत राज्यपाल, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदनों को राज्य के विधानमंडल के समक्ष रखवाएगा।

राज्य विधानमंडल

संविधान के अनुच्छेद-200 के तहत राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक, उसके विधि बन जाने पर, राज्यपाल की राय में, उच्च न्यायालय की शक्तियों का अल्पीकरण होगा, तो राज्यपाल विधेयक पर अनुमति नहीं देगा और उसे राष्ट्रपति के लिये आरक्षित रखेगा।

संविधान के अनुच्छेद-200 के तहत राज्य के विधानमंडल के द्वारा पारित विधेयक के संबंध में राज्यपाल निम्न कदम उठा सकते हैं-

1.विधेयक पर स्वीकृति दे दे।

2. विधेयक पर स्वीकृति रोक दे।

3. विधेयक को पुनर्विचार के लिये राज्य के विधानमंडल को वापस भेज दे, किन्तु राज्य के विधानमंडल द्वारा संशोधन या बिना संशोधन के राज्यपाल के पास पुनः प्रस्तुत किया जाता है तो राज्यपाल उस पर अनुमति देने के लिये बाध्य है।

4. राज्यपाल विधेयक को राष्ट्रपति के लिये सुरक्षित रख सकता है।

धन विधेयक के संबंध में राज्यपाल विधेयक को पुनर्विचार के लिये राज्य के विधानमंडल के पास वापस नहीं भेज सकता है। 

राज्यपाल स्वविवेक की शक्ति

  • राज्यपाल को विवेकाधीन की शक्ति दो प्रकार से प्राप्त हैः (1) संविधान में इसके लिये उपबंध है और (2) परिस्थितिवश उत्पन्न स्थिति की अनुसार। 
  • संविधान के अनुच्छेद-163(2) में राज्यपाल के विवेकाधीन शक्ति के संबंध में चर्चा की गई है। इस संबंध में राज्यपाल का निर्णय अन्तिम होता है। और उसके निर्णय को किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जा सकता।
  • राज्यपाल संवैधानिक मुखिया होने के साथ-साथ केन्द्र (राष्ट्रपति) का प्रतिनिधि भी होता है। राष्ट्रपति राज्यपाल को कुछ विशेष उत्तरदायित्वों के निवर्हन के लिये समय-समय पर निर्देश देता है और राज्यपाल उस निर्देश के अनुसार कार्य करता है। ऐसे मामलों में राज्यपाल राज्य के मंत्रिपरिषद से सलाह लेते हैं, किन्तु अन्तिम निर्णय उसका व्यक्तिगत निर्णय होता है।
  • राष्ट्रपति के विचार के लिये किसी विधेयक को आरक्षित करना। (अनुच्छेद-200)
  • राज्यों में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करना। (अनुच्छेद-356)
  • राज्य के विधान विषयों एवं प्रशासनिक मामलों में मुख्यमंत्री से जानकारी प्राप्त करना।
  • संविधान के अनुच्छेद-239 (2) के तहत पड़ोसी केन्द्र-शासित राज्यों में प्रशासक (अतिरिक्त प्रकार की स्थिति में) के रूप में कार्य करते समय।
  • राज्यपाल राज्य के संवैधानिक प्रमुख के साथ-साथ राष्ट्रपति  के प्रतिनिधि के रूप में भी कार्य करता है। इसलिये राष्ट्रपति द्वारा सौंपे गए कार्यों को राज्यपाल विवेकाधीन के तहत करता है।
राज्यपाल के कुछ स्वविवेकाधीन कार्य परिस्थितिवश उत्पन्न होते हैं: 
  • विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत न मिलने की स्थिति में या कार्यकाल के दौरान अचानक मुख्यमंत्री की मृत्यु हो जाने पर या उसके निश्चित उत्तराधिकारी न होने पर मुख्यमंत्री नियुक्ति के मामले में।
  • राज्य विधानसभा में विश्वास मत हासिल न करने पर मंत्रिपरिषद की बर्खास्तगी के मामले में।
  • मंत्रिपरिषद के अल्पमत में आने पर राज्य विधानमंडल का विघटन करना।

सरकारिया आयोग सुझाव

केन्द्र- राज्य संबंधों की व्याख्या करने हेतु सन् 1983 में रंजीत सिंह सरकारिया की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया, जिसे सरकारिया आयोग के नाम से जाना जाता है। इसने जनवरी 1988 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में राज्यपाल के चयन के विषय में निम्न सुझाव दियेः

  • राज्यपाल जिस राज्य में नियुक्त किया गया हो उस राज्य से नहीं होना चाहिये।
  • राज्यपाल की नियुक्ति के संबंध में राष्ट्रपति उस राज्य के मुख्यमंत्री से परामर्श करेगा।
  • केन्द्र में सत्ताधारी दल के किसी राजनयिक की नियुक्ति राज्यपाल के रूप में नहीं की जाएगी।
  • राज्यपाल नामधारी शासक रहे न कि केन्द्र का अभिकर्त्ता या प्रतिनिधि।

राज्यपाल महत्वपूर्ण तथ्य 

  • राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद-123 के तहत और राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद-213 के तहत अध्यादेश जारी कर सकते हैं, किन्तु दोनों इस अध्यादेश का प्रयोग अपनी-अपनी मंत्रिपरिषद के परामर्श पर ही कर सकते हैं। अर्थात उनकी अध्यादेश की शक्ति स्वैच्छिक नहीं है।
  • राष्ट्रपति को संविधान के अनुच्छेद-72 के तहत और राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत क्षमादान  की शक्ति है। राष्ट्रपति कोर्ट मार्शल (सैन्य अदालत) के तहत सज़ा प्राप्त व्यक्तियों की सज़ा को माफ कर सकता हैं किन्तु राज्यपाल को यह शक्ति प्राप्त नहीं है।
  • राष्ट्रपति मृत्यु-दण्ड प्राप्त सज़ा को क्षमा कर सकता है, कम कर सकता है या स्थगति कर सकता है या बदल सकता है, परन्तु राज्यपाल को मृत्यु-दण्ड की सज़ा को क्षमा करने की शक्ति नहीं है, परन्तु उसे स्थगित कर सकता है या पुनर्विचार के लिये कह सकता है।
  • राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद-161 के तहत क्षमादान की शक्ति एवं अनुच्छेद-213 के तहत अध्यादेश की शक्ति का प्रयोग मंत्रिपरिषद के सलाह पर करता है।
  • संविधान के अनुच्छेद-239 (2) में उपबंध है कि राष्ट्रपति किसी राज्य के राज्यपाल को किसी निकटवर्ती संघ राज्य क्षेत्र के प्रशासक के रूप में नियुक्त कर सकेगा, न कि संसद विधि द्वारा नियुक्त करेगी।
  • वहाँ राज्यपाल ऐसे प्रशासक के रूप में अपने कार्यों का प्रयोग अपनी मंत्रिपरिषद से स्वतंत्र रूप में करेगा।
  • प्रारूप संविधान में योजना थी कि राज्यपाल निर्वाचित हो, किन्तु संविधान सभा में निर्वाचन के स्थान पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति की व्यवस्था की गई, क्योंकि:
  • इसका तात्पर्य होगा दूसरा निर्वाचन।
  • निर्वाचन के मुद्दे बिल्कुल व्यक्तिगत होंगे, मतदाताओं की संख्या बहुत अधिक होगी। इसमें जो कष्ट और व्यय होगा, उसकी तुलना में फायदा कुछ नहीं होगा।
  • निर्वाचित राज्यपाल अपने को मुख्यमंत्री से बड़ा समझेगा। अतः मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है।
  • राज्यपाल को संसदीय प्रणाली के अन्तर्गत ही कार्य करना था और राज्यपाल का सीधा निर्वाचन संसदीय प्रणाली के विरुद्ध हो सकता है।
  • राज्यपाल सिर्फ संवैधानिक प्रमुख होता है।
  • राज्यपाल के निर्वाचन से अलगाववाद को बढ़ावा मिलेगा।
  • राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति के माध्यम से संघ सरकार, राज्य पर नियंत्रण बनाए रख सकेगी।
  • एक निर्वाचित राज्यपाल स्वभाविक रूप से किसी राजनीतिक दल से जुड़ा होगा और वह निष्पक्ष एवं निःस्वार्थ मुखिया नहीं बन पाएगा।
  • राज्यपाल का सीधा निर्वाचन राज्य में आम चुनाव के समय एक गंभीर समस्या उत्पन्न कर सकता है।
  • भारतीय संसद संसदीय समितियों के माध्यम से प्रशासन पर नियंत्रण रखती है।
  • राज्यों के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है न कि राज्यपाल के द्वाराकिन्तु शपथ या प्रतिज्ञा राज्यपाल के समक्ष लेते हैं।
  • राज्यों के राज्यपालों के वेतन व भत्ते संविधान के दूसरी अनुसूची के तहत राज्य की संचित निधि पर भारित होते हैं न कि भारत की संचित निधि पर। वर्ष 2008 में राज्यपाल का वेतन ₹ 36,000 से बढ़ाकर ₹ 1.10 लाख प्रतिमाह कर दिया गया है
  • संविधान के अनुच्छेद-157 में उपबंध है कि राष्ट्रपति उस व्यक्ति को किसी राज्य का राज्यपाल नियुक्त कर सकेगाजिसकी न्यूनतम आयु 35 वर्ष हो और भारत का नागरिक हो। अन्य कोई उपबंध नहीं है। इसकी नियुक्ति में दो अन्य परम्पराएँ जुड़ी हैं;
  • जिस राज्य में उसे राज्यपाल नियुक्त किया गया हैवह उस राज्य से संबंधित नहीं होगा।
  • राष्ट्रपति राज्यपाल के नियुक्ति के समय उस राज्य के मुख्यमंत्री से परामर्श करे।
  • संविधान में राज्यपाल को हटाने संबंधी किसी प्रक्रिया का उल्लेख नहीं है। वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत/इच्छानुसार पद धारण करता है। राष्ट्रपति कभी भी उसे पद से हटा सकता है। राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी होता है और उसके प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है।

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