पर्यावरण संबंधित महत्वपूर्ण समझौते | Important environmental agreement

 

पर्यावरण संबंधित महत्वपूर्ण समझौते |

पर्यावरण संबंधित महत्वपूर्ण समझौते

मांट्रियल प्रोटोकॉल, 1987: मांट्रियल प्रोटोकॉल का उद्देश्य वर्ष 1990 तक क्लोरो फ्लोरो कार्बन के उत्पादन एवं उनके इस्तेमाल को 1986 के स्तर तक लाना था।


हेलसिंकी घोषणा (1989): हेलसिंकी घोषणा, ओजोन परत पर ग्रीन हाउस गैसों के दुष्प्रभाव को लेकर की गई थी। इसमें क्लोरो फ्लोरो कार्बन के उपभोगों को 2000 तक समाप्त करने की बात कही गई।


लंदन सम्मेलन (1990): विकसित एवं विकासशील देशों द्वारा आयोजित किए गए इस सम्मेलन में कार्बन उत्पादन को खत्म करने के लिए क्रमश: 2000 तथा वर्ष 2010 तक का लक्ष्य निर्धारित किया गया।

रियो पृथ्वी सम्मेलन (1992): पर्यावरण के तापमान के स्तर में लगातार हो रही वृद्धि को देखते हुए इससे संबंधित उपायों का प्रस्ताव रियो पृथ्वी सम्मेलन में किया गया।


कोपेनहेगन सम्मेलन 1992: इस सम्मेलन में यह माना गया कि ग्लोबल वार्मिग का मुख्य कारण हानिकारक गैसों का उत्सर्जन है। अत: इन गैसों में कार्बन ट्रेटा क्लोराइड 1996 तक, सी.एफ.सी. 1996, हाइड्रो क्लोरोफ्लोरो वर्ष 2030 तक एवं वर्ष 2000 तक हैलोन्स गैसको पूर्णतः समाप्त किया जाना तय हुआ था।

नैरोबी सम्मेलन: 

जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को लेकर संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित 12वां सम्मेलन नैरोबी में हुआ, जिसमें विश्व के 189 सदस्य देशों ने भाग लिया। इसी बैठक में दिसंबर 2007 में बाली में भी एक जलवायु सम्मेलन बुलाने का प्रस्ताव किया गया था। बाली सम्मेलन में यह भी तय किये जाने का प्रावधान किया गया कि वर्ष 2013 से 2017 तक के मध्य कार्बन उत्सर्जन में कितनी कमी की जानी चाहिए। साथ ही, ग्रीन हाउस उत्सर्जन संबंधी नई संधि लागू करने की कोशिश की जाएगी, क्योंकि क्योटो प्रोटोकॉल की समय-सीमा भी 2012 में समाप्त हो जायेगी। नैरोबी में हुआ यह सम्मेलन कोई विशेष योगदान देने में असफल ही रहा। नैरोबी सम्मेलन के मुख्य बिंदु-

  • 35 औद्योगीकृत राष्ट्रों की श्रेणी में बेलारूस को भी सम्मिलित किया गया तथा बेलारूस ने ग्रीन हाउस उत्सर्जन मामले में क्योटो संधि पर विश्वास जताया।
  • सम्मेलन में गरीब देशों के पर्यावरणीय विकास हेतु एक कोष का निर्माण किए जाने की बात कही गई है।

विश्व जलवायु सम्मेलन: 

  • संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में 3-15 दिसंबर, 2007 तक इंडोनेशिया के बाली द्वीप में स्थित नूसादुआ में विश्व जलवायु सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में 193 देशों के 11000 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। बाली सम्मेलन के दौरान, ग्लोबल वार्मिग की मौजूदा स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई तथा जलवायु परिवर्तन पर क्योटो संधि के स्थान पर नई संधि लागू करने की सहमति दी गई। नई संधि के अंतर्गत ही वर्ष 2009 के अंत में डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगेन में एक दौर की वार्ता भी आयोजित की गयी।
  • आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री, केविन रूड ने इस सम्मेलन को संबोधित किया। बैठक में भारतीय शिष्टमण्डल का प्रतिनधित्व केंद्रीय विज्ञान मंत्री कपिल सिब्बल ने किया। इस अवसर पर जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी देशों द्वारा बदली परिस्थितियों का सामना करने के लिए कड़े कदम उठाने आवश्यक हैं। वैज्ञानिक मत के अनुसार वायुमण्डल में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा तेजी से बढ़ती जा रही है। अगर इस विषय पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया तो जीव-जंतुओं, वनस्पति एवं मानव संसाधन के अस्तित्व पर संकट आ सकता है। अत: यह जरूरी है कि आने वाले तीन-चार वर्षों में कार्बन डाई-ऑक्साइड के स्तर को कम किया जाये।
  • बाली सम्मेलन में आई.पी.सी.सी. पैनल की रिपोर्ट को भी शामिल किया गया, जिससे यह कहा गया है कि वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा 450 PPM से आगे नहीं जानी चाहिए। सम्मेलन में प्रमुख औद्योगिक देशों से ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने की अपील की गई।




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