भारत में वानस्पतिक विविधता |Botanical Diversity in India

 

भारत में वानस्पतिक विविधता


भारत में वानस्पतिक विविधता Botanical Diversity in India

पादपों का वर्गीकरण

 

भारत में वानस्पतिक विविधता

थैलोफाइटा समूह (Thallophyta)

यह पादपों के वर्गीकरण का सबसे बड़ा समूह है। इसके अन्तर्गत थैलस युक्त ऐसे पौधे आते हैं जिनके तने एवं जड़ में कोई स्पष्ट अंतर नहीं होता है। इनमें संवहन ऊतक एवं भ्रूण अनुपस्थित होते हैं। इसके तहत शैवाल, कवक और लाइकेन आते हैं।

शैवाल (Algae) –

शैवाल के अध्ययन को फाइकोलॉजी (Phycology) कहा जाता है। इनमें लवक मौजूद होते हैं। शैवाल को हरा सोना भी कहा जाता है। शोधकर्ताओं ने शैवाल से मलेरिया का टीका विकसित कर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। विशेषकर कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के जीव वैज्ञानिकों ने मलेरिया का टीका विकसित करने के लिए शैवाल का इस्तेमाल प्रोटीन को उत्पन्न करने के लिए किया जो प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम (Plasmodium falciparum) के खिलाफ एंटीबाडी का निर्माण करता है। कारा तथा नाइटेला शैवाल मलेरिया उन्मूलन में सहायक हैं।

पूर्वी स्पेन में वैज्ञानिक शैवाल को कार्बनडाइऑक्साइड के साथ मिलाकर बायो ऑयलबनाने की तकनीक विकसित करने में लगे हैं। शैवाल में 50 % हिस्सा ईंधन होता है। आधुनिक शब्दावली में जैव विज्ञान को ग्रीन ऑयल भी माना जा रहा है।

शैवाल स्वपोषी होते हैं।

शैवाल प्रायः पर्णहरित युक्त, संवहन ऊतक रहित, आत्मपोषी तथा सेल्युलोज भित्ति वाले पौधे होते हैं।

क्लोरेलीन नामक प्रतिजैविक क्लोरेला नामक शैवाल से तैयार की जाती है।

क्लोरेलानामक शैवाल से अंतरिक्ष यात्री प्रोटीनयुक्त भोजन, जल और ऑक्सीजन प्राप्त कर लेते हैं।

आल्वा (शैवाल) को समुद्री सलाद भी कहा जाता है।

कवक (Fungi) –

कवकों का अध्ययन माइकोलॉजी (Mycology) कहलाता है। कवक क्लोरोफिल रहित, मृत पादप जीवी (Saproplyte) अथवा

परजीवी, व थैलस युक्त पादप होते हैं।

लाइकेन (Lichen) –

यह एक निम्न श्रेणी की ऐसी छोटी वनस्पतियों का समूह है, जो विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों के आधारों पर उगते हैं। इनके आधारों के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के वृक्षों की पत्तियाँ एवं छाल, प्राचीन दीवारें, भूतल, चट्टान और शिलाएँ प्रमुख हैं।

ब्रायोफाइटा (Byophytes)

स्थल पर विकसित होने वाले ब्रायोफाइट्स उभयचर प्रकृति के होते हैं। इनके लैंगिक प्रजनन के लिए जल अत्यावश्यक होता है। आमतौर पर पौधे जड़, तना एवं पत्तियों में विभाजित नहीं रहते हैं।

ट्रैकियोफाइटा (Tracheophyta)

ट्रैकियोफाइटा प्रभाग में उन पादपों को सम्मिलित किया गया है जिनमें संवहनी ऊतक पाये जाते हैं। इस प्रभाग में अब तक 2.75 लाख जातियों की खोज की जा चुकी है। इस प्रभाग को पुनः तीन उप प्रभाग में विभाजित किया गया है

  1.   टेरिडोफाइटा (Pteridophyta)
  2.  अनावृतबीजी (Gymnosperm)
  3.  आवृतबीजी (Angiosperms)

टेरिडोफाइटा (Pteridophyta) 

ये स्थलीय, बीजरहित पादप हैं और इनके संवहन ऊतक अविकसित होते हैं। कुछ विकसित टेरिडोफाइटा समूह के पादपों में जड़, राना एवं पत्ती में स्पष्ट अंतर होता है। जैसे साइलोटम, फर्ग, सिल्वर फर्न आदि

जिम्नोस्पर्म (Gymnosperms) 

नग्न बीज का बनना इसका प्रमुख गुण है। यह वर्ग जीवाश्म वर्गभी कहलाता है क्योंकि इस वर्ग के कई पौधों का जीवश्मीय महत्व अधिक है।

साइकसको जीवित जीवाश्मकहा जाता है।

संवहनीय ऊतक के जाइलम में वाहिनी (vessel) का अभाव होता है। ब्रायोफाइट्स ग्रुप का सबसे लंबा पौधा सिविचया गिगेन्टीया

(Sequoia gigantea) है।

आवृतबीजी/एन्जियोस्पर्म (Angiosperms) –

यह सबसे विकसित पादप समूह है। पूर्ण विकसित ऊतक और विकसित भूण एन्जियोस्पर्म समूह का महत्वपूर्ण लक्षण है। उदाहरण कटहल, आम, बबूल आदि। यूकेलिप्टस सबसे लंबा एन्जियोस्पर्मिक पौधा है। एन्जियोस्पर्म पौधों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया गया है ।

एकबीजपत्रीय (Monocot)

एकबीजपत्रीय


द्विबीजपत्रीय (Dicot)

 

द्विबीजपत्रीय

जैव विविधता सूचकांक

जैवविविधता: संपूर्ण अध्ययन सामग्री

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