एग्रो बायोडायवर्सिटी |Agro Biodiversity

 

एग्रो बायोडायवर्सिटी

एग्रो बायोडायवर्सिटी Agro Biodiversity

कृषि-जैव विविधता एक पर्यावरण अनुकूल प्रणाली है जो आनुवंशिक संसाधनों प्रबंधन प्रणालियों और विभिन्न सांस्कृतिक समूहों द्वारा प्रयोग की जाती है।

कृषि-जैव विविधता में फसल, पशुधन वानिकी और मत्स्य पालन को सम्मिलित किया जाता है।

खाद्य सुरक्षा, पोषण, स्वास्थ्य और कृषि परिदृश्य में कृषि-जैव विविधता महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

इसमें आनुवांशिक संसाधनों (किस्मों, नस्लों) और भोजन चारा, फाइबर, ईधन और फार्मास्युटिकल्स के लिए प्रयोग की जाने वाली जातियों को सम्मिलित किया जाता है।

कृषि-जैव विविधता में बिना-फसल वाली प्रजातियां भी सम्मिलित हैं, जिनमें मिट्टी के सूक्षम जीवों, शिकारियों परागणकों आदि का उत्पादन प्रमुख है।

भारत में भूख की समस्या और एग्रो बायोडायवर्सिटी

भारत पशुपालन तथा फसल उत्पादन की दृष्टि से एक समृद्ध देश है। यह चावल, केला, बैंगन, खट्टे फलों और ककड़ी आदि प्रजातियों का उत्पत्ति केंद्र रहा है। विश्व स्तर पर 37 स्थलों को, ग्लोबली महत्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली (GIAHS) के रूप में सम्मिलित किया गया है। जिसमें से तीन भारतीय स्थल हैं- कश्मीर (केसर उत्पादन के लिए), कोरापुट (पारंपरिक कृषि के लिए), कुट्टनाद (समुद्री स्तर के नीचे की जाने वाली कृषि के लिए)।

एम एस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (MSSRF) द्वारा पारिस्थितकी रूप से संवेदनशील कृषि के लिए, बायो-विलेज की अवधारणा को बढ़ावा देना।

सेंटर फॉर बायोडायवर्सिटी पॉलिसी एंड लॉ ने, कृषि के लिए पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रदान करने वाले देशी कीट और परागण आबादी को बढ़ाने के लिए पारिस्थितिकी कृषि पर एक व्याप्त नीति का सुझाव दिया है।

कृषि-जैव विविधता से, स्वास्थ्यवर्धक भोजन के लिए अनाज, बाजरा, तिलहन, रेशे, चारा, फल और मेवे सब्जियां, मसाले आदि की जंगली किस्मों का संरक्षण होगा।

यह देशी, घरेलू किस्मों, पशुधन और कुक्कुर किस्मों की देसी नस्लों की कृषि करने वाले किसानों को प्रोत्साहन प्रदान करेगा।

सेंटर फॉर बायोडायवर्सिटी पॉलिसी एंड लॉ ने प्रत्येक कृषि-जलवायु क्षेत्र में सामुदायिक बीज बैंकों की सिफारिश की है, ताकि नई पीढ़ी के किसानों द्वारा क्षेत्रीय जैविक गुणों को बचाया और उपयोग किया जा सके।

भूख से लाखों की संख्या में लोग प्रभावित हैं। और कई लोग पर्याप्त मात्र में आयरन तथा विटामिन-A जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का उपभोग नहीं कर रहे हैं एग्रो जैव विविधता के माध्यम से इस प्रकार की समस्याओं को दूर किया जा सकेगा, जिससे सभी को पर्याप्त पोषण उपलब्ध होगा।

कृषि जैव विविधता के माध्यम से मुख्यतः सस्ते तथा सुलभ पोषक तत्वों के पर्याप्त विकल्प उपलब्ध होंगे।

जैव विविधता, फूड-फोर्टिफाइड तथा भोजन की संवेदनशीलता में वृद्धि करती है। उदाहरण के लिए, मोरिंगा में माइक्रोन्यूट्रिएंट्स होते हैं, वहीं शकरकन्द विटामिन-A से भरपूर होता है तथा बाजरा और सोरघम आयरन और जिंक से भरपूर होते हैं।

भारत की खाद्य टोकरी में वृद्धि के लिए उपभोग प्रतिरूप में तथा खाद्य प्रतिरूप में वृद्धि करनी होगी।

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