Bharat ka Mantri Parisad | भारत का मंत्रिपरिषद

भारत का मंत्रिपरिषद
मंत्रिपरिषद

  • संविधान द्वारा प्रदान की गई समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है तथापि यथार्थ में कार्यपालिका की समस्त सत्ता मंत्रिपरिषद में निहित होती है।
  • वास्तव में शासन की सभी शक्तियों का प्रयोग मंत्रिपरिषद ही करती है।
  • संविधान के अनुच्छेद-74 में यह उल्लिखित है कि राष्ट्रपति को उसकी शक्तियों को प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होगा और राष्ट्रपति इसकी सलाह के अनुसार कार्य करेगा। लेकिन राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह पर पुनर्विचार करने की अपेक्षा कर सकता है। राष्ट्रपति ऐसे पुनर्विचार के बाद दी गई सलाह के अनुसार ही कार्य करेगा।
  • संघीय स्तर पर संवैधानिक तंत्र के अवरुद्ध हो जाने तथा राष्ट्रपति के सीधे शासन के परिप्रेक्ष्य में कोई उपबंध नहीं है, जैसा कि राज्यों के लिए अनुच्छेद-356 में उल्लिखित है।
  • विशेषतया 42वें एवं 44वें संवैधानिक संशोधनों के बाद राष्ट्रपति के लिए यह बाध्यकारी हो गया है कि वह मंत्रिपरिषद के परामर्श को स्वीकार करे। लेकिन राष्ट्रपति द्वारा मंत्रिपरिषद की सलाह की स्वीकृति कोई स्वतः यांत्रिक प्रक्रिया नहीं है। राष्ट्रपति को यह अधिकार प्रदान किया गया है कि वह उस पर विचार करते समय अपनी बुद्धि का प्रयोग करे।
  • 44वां संशोधन राष्ट्रपति को इस बात का अवसर प्रदान करता है कि वह मंत्रिपरिषद को सलाह एवं चेतावनी दे और किसी मामले पर पुनर्विचार किए जाने का आग्रह करे और उसके उपरांत ही प्रस्तावित कार्यविधि को स्वीकार करे और उस पर अपने अनुमोदन की मोहर लगाए।

मंत्रिपरिषद का निर्माण

  • अनुच्छेद 75 के अनुसार प्रधानमंत्री का चयन राष्ट्रपति करता है और अन्य मंत्री प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किये जाते हैं।
  • मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करते हैं। मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है।
  • मंत्री अपने पद और गोपनीयता की शपथ राष्ट्रपति के समक्ष लेते हैं।
  • कोई मंत्री, जो निरंतर 6 मास की किसी अवधि तक संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं रहता है, उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री पद धारण नहीं कर सकता।
  • संविधान के 91वें संशोधन अधिनियम, 2003 के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई है कि संसद के किसी भी सदन के उस सदस्य को, जिसे दसवीं अनुसूची के अंतर्गत सदस्यता के अयोग्य सिद्ध कर दिया गया है, मंत्री बनने के लिए भी अयोग्य माना जाएगा तथा उसे मंत्री नियुक्त नहीं किया जा सकेगा। इस प्रकार यह सदस्य सदन की अवधि की समाप्ति तक या जब तक वह पुनर्निर्वाचित न हो, इनमें से जो भी पहले हो, मंत्री नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
राष्ट्रपति अनिवार्यतः बहुमत दल के नेता को ही प्रधानमंत्री पद के लिए आमंत्रित करता है। कुछ परिस्थितियों में राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री की नियुक्ति में स्वविवेक से कार्य करने का अवसर मिल सकता है-
  • उस समय जब लोकसभा में किसी भी दल का बहुमत अस्पष्ट हो।
  • उस समय जब बहुमत वाले दल में कोई निश्चित नेता नहीं रहे या प्रधानमंत्री पद के दो प्रभावशाली दावेदार हों।
  • राष्ट्रीय संकट के समय राष्ट्रपति, लोकसभा को भंग करके कुछ समय के लिए स्वेच्छा से कामचलाऊ सरकार का नेता मनोनीत कर सकता है। 

मंत्रिपरिषद की संरचना

  • संविधान केवल मंत्रियों का उल्लेख करता है। वह मंत्रिमंडल के मंत्रियों, उप-मंत्रियों आदि के रूप में मंत्रियों के किसी वर्गीकरण या श्रेणीक्रम का उल्लेख नहीं करता। लेकिन मंत्रिपरिषद का उल्लेख करता है।
  • मंत्रिमंडल का गठन कैबिनेट स्तर के मंत्रियों से होता है। कैबिनेट मंत्रियों के कार्यों में सहायता देने के लिए जब राज्य मंत्रियों और उपमंत्रियों को नियुक्त किया जाता है तो इन समस्त मंत्रियों के समूह को मंत्रिपरिषद कहा जाता है। 

मंत्रिपरिषद तीन स्तरीय होता है-

  1. कैबिनेट स्तर का मंत्री,
  2. राज्य स्तर का मंत्री, तथा;
  3. उपमंत्री।

संविधान के 91वें संशोधन अधिनियम

  • वर्ष 2008 तक संविधान में यह नहीं लिखा था कि मंत्रिपरिषद में कितने मंत्री होंगे प्रधानमंत्री उतने मंत्री नियुक्त कर सकता था जितने वह ठीक समझे।
  • 2008 में पारित संविधान के 91वें संशोधन अधिनियम से स्थिति बदल गई है। अब इस अधिनियम के अनुसार प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या लोक सभा की सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती।

मंत्रियों की विभिन्न श्रेणियां

मंत्रिपरिषद के सभी मंत्री एक ही पंक्ति या श्रेणी के नहीं होते। संविधान में मंत्रियों का विभिन्न पंक्तियों में वर्गीकरण नहीं किया गया है  किंतु व्यवहार में चार श्रेणियां स्वीकार की जाती हैं।  

कैबिनेट मंत्री

  • ऐसे मंत्री को मंत्रिमंडल की प्रत्येक बैठक में उपस्थित होने और भाग लेने का अधिकार है।
  • अनुच्छेद 352 के अधीन आपात की उदघोषण के लिए सलाह प्रधानमंत्री और अन्य कैबिनेट मंत्री मिलकर देंगे। 
  • उल्लेखनीय है कि मूल संविधान में कैबिनेट शब्द का उल्लेख नहीं किया गया था लेकिन 44वें संविधान संशोधन (1978) के द्वारा कैबिनेट शब्द को अनुच्छेद 352 में स्थान प्रदान किया गया।

स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री

  • यह किसी कैबिनेट मंत्री के अधीन काम नहीं करता। जब उसके विभाग से संबंधित कोई विषय मंत्रिमंडल की कार्यसूची में होता है तो उसे बैठक में उपस्थित होने के लिए आमंत्रित किया जाता है।

राज्य मंत्री

  • इसके पास किसी विभाग का स्वतंत्र प्रभार नहीं होता और वह कैबिनेट मंत्री के अधीन कार्य करता है। ऐसे मंत्री को उसका कैबिनेट मंत्री कार्य आवंटित करता है।

उप-मंत्री

  •  ऐसे मंत्री कैबिनेट मंत्री या स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री के अधीन कार्य करता है।
 
मंत्रियों के संबंध में  अन्य बातें

  • प्राधानमंत्री कैबिनेट मंत्रियों और स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्रियों के विभाग का आवंटन करता है।
  • अन्य मंत्रियों के कार्य का आवंटन उनके कैबिनेट मंत्री करते हैं।
  • मंत्री लोक सभा या राज्य सभा से चुने जा सकते हैं। जो मंत्री एक सदन का सदस्य है वह दूसरे सदन में बोल सकता है और उसकी कार्यवाहियों में भाग ले सकता है। किंतु मंत्री मतदान उसी सदन में कर सकता है जिसका वह सदस्य है।

मंत्रियों का कार्यकाल

  • संविधान के अनुच्छेद 75(2) के अनुसार भी मंत्री राष्ट्रपति की इच्छापर्यंत अपने पद पर आसीन रहेंगे। किंतु व्यावहारिक दृष्टिकोण से राष्ट्रपति की इच्छा का अभिप्राय प्रधानमंत्री की इच्छा है। यदि कोई मंत्री अयोग्य सिद्ध हो अथवा वह प्रधानमंत्री की नीतियों से सहमत न हो तो प्रधानमंत्री उस मंत्री को त्यागपत्र देने पर विवश कर सकता है और यदि वह त्यागपत्र नहीं देता है तो प्रधानमंत्री के परामर्श से राष्ट्रपति उसे बर्खास्त कर सकता है।
उत्तरदायित्व

सामूहिक उत्तरदायित्व

  • अनुच्छेद 75(3) के अनुसार, मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है। मंत्रिमंडल की यह संवैधानिक बाध्यता है कि विधानमंडल के निर्वाचित सदन का विश्वास खोते ही शीघ्र पदत्याग कर दे। यह सामूहिक उत्तरदायित्व लोकसभा के प्रति है चाहे मंत्री राज्यसभा के भी हों। 
  • यदि किसी मंत्री के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है तो संपूर्ण मंत्रिमंडल के लिए पदत्याग करना आवश्यक हो जाता है अथवा पदत्याग न करके मंत्रिमंडल राष्ट्रपति की विधानमंडल को भंग करने का परामर्श देता है, क्योंकि सदन निर्वाचन मंडल के मत का सही प्रतिनिधित्व नहीं करता है।

राष्ट्रपति के प्रति व्यक्तिगत उत्तरदायित्व:

  • राज्य के प्रधान के प्रति व्यक्तिगत उत्तरदायित्व का सिद्धांत अनुच्छेद 75(2) में समाविष्ट है।
  • मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपने पद पर बने रहेंगे।
  • यद्यपि सामूहिक रूप से मंत्रीगण विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी होते हैं, किंतु वे व्यक्तिगत रूप से कार्यपालिका के प्रधान के प्रति उत्तरदायी होंगे और विधान मंडल का विश्वास प्राप्त होने पर भी उन्हें पदच्युत किया जा सकेगा।

मंत्रियों का विधिक उत्तरदायित्व:

  • भारतीय संविधान द्वारा विधिक उत्तरदायित्व का सिद्धांत, जैसा कि इंग्लैंड में है, अंगीकार नहीं किया गया है। इंग्लैंड में सम्राट बिना किसी मंत्री के हस्ताक्षर के कोई संकल्पना और उसका विकास प्रतिनिधानात्मक लोकतंत्र के सर्वोच्च सिद्धांतों के आधार पर किया गया है, जो कि लोकसभा में जनता के सीधे निर्वाचित प्रतिनिधियों के प्रति सरकार का दायित्व है।
  • भारत में राज्य के उन कार्यों के लिए मंत्रियों का कोई क़ानूनी उत्तरदायित्व नहीं होता जो राष्ट्रपति के नाम से किए जाते हैं। उनके बारे में प्रामाणीकरण के रूप में प्रति-हस्ताक्षर की अपेक्षा मंत्री से नहीं की जाती बल्कि उसकी अपेक्षा सरकार के किसी सचिव से की जाती है। 
  • संविधान में यह उपबंध भी है कि कार्यपालिका के प्रधान को मंत्रियों ने क्या परामर्श दिया था, इसके विषय में न्यायालय कोई जांच नहीं कर सकेंगे।
  • यदि राष्ट्रपति का कोई कार्य, उसके द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार भारत सरकार के किसी सचिव द्वारा अधिप्रमाणित किया जाता है तो उस कार्य के लिए कोई मंत्री उत्तरदायी नहीं हो सकता।

मंत्रिमंडल के कार्य एवं शक्तियां

मंत्रिमंडल का गठन प्रधानमंत्री के परामर्श से राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। परंतु व्यावहारिक रूप में कार्यपालिका की वास्तविक शक्ति मंत्रिमंडल में निहित होती है, राष्ट्रपति मंत्रिमंडल के परामर्श के अनुसार अपनी शक्तियों का प्रयोग करता है। भारत में मंत्रिमंडल के प्रमुख कार्य अग्रलिखित हैं: 
राष्ट्रीय नीतियों का निर्धारण
  • मंत्रिमंडल का सबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य राष्ट्रीय नीतियों का निर्धारण करना है। मंत्रिमंडल के द्वारा यह निश्चय किया जाता है कि आंतरिक क्षेत्र में प्रशासन के विभिन्न विभागों के द्वारा और वैदेशिक क्षेत्र में दूसरे देशों के साथ संबंधों के विषय में किस प्रकार की नीति अपनाई जाएगी। मंत्रिमंडल के द्वारा नीति निर्धारित करने के बाद संबद्ध विभागों के द्वारा इस नीति के आधार पर विभिन्न विधेयक संसद में प्रस्तुत किए जाते हैं। 
  • कानून निर्माण का कार्य मंत्रिमंडल की इच्छा पर ही निर्भर करता है। मंत्रिमंडल युद्ध और शांति दोनों ही स्थितियों में निर्णय लेता है।
  •  राष्ट्रपति के अभिभाषणों को भी मंत्रिमंडल ही तैयार करता है।
 
विधि-निर्माण में संसद का नेतृत्व करना
  • मंत्रिमंडल संसद का नेतृत्व करता है। दोनों सदनों के अध्यक्ष मंत्रिमंडल के परामर्श से ही सदन की कार्य सूची तय करते हैं और यह निश्चित करते हैं कि प्रत्येक विषय की कितना समय प्रदान किया जाएगा। संसद में अधिकांश विधेयक मंत्रियों द्वारा ही प्रस्तुत किए जाते हैं। व्यवहारतः राष्ट्रपति के अधिकारों का प्रयोग मंत्रिमंडल ही करता है।
  • अध्यादेश जारी करने का अधिकार राष्ट्रपति को प्राप्त है, लेकिन व्यवहार में इसका प्रयोग मंत्रिमंडल ही करता है। 
  • मंत्रिमंडल के सदस्य विभिन्न विभागों के अध्यक्ष होते हैं। वे अपने विभागों का संचालन और उनके कार्यों की देखभाल करते हैं।
लोकसभा के विघटन की शक्ति
  • कानूनी तौर पर लोकसभा को भंग करने का अधिकार राष्ट्रपति को है, परंतु राष्ट्रपति अपनी इस शक्ति का प्रयोग मंत्रिमंडल की सलाह पर ही करता है।
  • इस प्रकार मंत्रिमंडल के पास ऐसी शक्ति है जिससे लोकसभा पर अंकुश रखा जा सदन अपनी अवधि से पहले ही भंग हो जाए।
वित्तीय कार्य
  • देश की आर्थिक नीति निर्धारित करने का उत्तरदायित्व भी मंत्रिमंडल का ही होता है।
  • बजट का निर्माण, नये कर लगाना तथा पुराने करों की दरों में हेरफेर करना, आदि मंत्रिमंडल के प्रमुख कार्यों में सम्मिलित हैं।
  • मंत्रिमंडल की सहमति के पश्चात् ही वित्त मंत्री बजट लोकसभा में प्रस्तुत करता है। अन्य वित्त विधेयकों को भी मंत्रिमंडल ही लोकसभा में प्रस्तुत करता है।
वैदेशिक संबंधों पर नियंत्रण
  • वैदेशिक मामलों में मंत्रिमंडल का पूर्ण नियंत्रण होता है। 
  • विदेशी राज्यों के अध्यक्षों या सरकारों के साथ सभी वार्ताओं का संचालन प्रधानमंत्री या विदेश मंत्री या प्रधानमंत्री के किसी अन्य प्रतिनिधि द्वारा किया जाता है।
  • जब वार्ताओं के परिणामस्वरूप कोई संधि या समझौता हो जाता है तो संसद को उनके संबंध में सूचना दे दी जाती है और यदि आवश्यकता हुई तो संसद से उसकी स्वीकृति प्राप्त कर ली जाती है।
  • वैदेशिक संबंधों के संचालन में संसद की भूमिका बहुत गौण होती है। कई बार सरकार विदेशों के साथ गुप्त संधियां एवं समझौते करती है और संसद को इस संबंध में सूचना नहीं दी जाती है।
  • वैदेशिक संबंधों के संचालन में गोपनीयता की आवश्यकता होती है और इसी कारण यह कार्य मंत्रिमंडल के द्वारा ही किया जाता है, संसद के द्वारा नहीं।
नियुक्ति संबंधी कार्य
  • संविधान के द्वारा राष्ट्रपति को जिन पदाधिकारियों को नियुक्त करने की शक्ति प्रदान की गई है, व्यवहारिक रूप में इनकी नियुक्ति मंत्रिमंडल के द्वारा ही की जाती है।
  • मंत्रिमंडल के परामर्श से ही संसद के दोनों सदनों के मनोनीत सदस्य नियुक्त किए जाते हैं।
  • राज्यों के राज्यपाल, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, महाधिवक्ता, महालेखा परीक्षक और सेना के प्रमुखों की नियुक्ति मंत्रिमंडल के परामर्श से ही की जाती है।
प्रधानमंत्री का कर्तव्य

राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद के बीच संचार साधन के रूप में कार्य करने के संदर्भ में अनुच्छेद 78 में यह प्रावधान है:
प्रधानमंत्री का यह कर्तव्य होगा कि वह 
  • (i) संघ के कार्यकलाप के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी मंत्रिपरिषद के सभी विनिश्चय राष्ट्रपति को संसूचित करे।
  • (ii) संघ के कार्य-कलापों के प्रशासन संबंधी और विधानविषयक प्रस्थापनाओं संबंधी जी जानकारी राष्ट्रपति मांगे, वह दे, और;
  • (iii) किसी विषय पर यदि किसी मंत्री ने विनिश्चय कर दिया है और मंत्रिपरिषद ने उस पर विचार नहीं किया है, तो राष्ट्रपति द्वारा अपेक्षा किए जाने पर परिषद के समक्ष विचार के लिए रखे।

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