Archimedes ka sidhhant |आर्कीमिडीज का सिद्धान्त| Archimedes's principle

आर्कीमिडीज का सिद्धान्त

              आर्कीमिडीज का सिद्धान्तArchimedes's principle

आर्कीमिडीज का सिद्धान्त(Archimedes's principle)

आर्कीमिडीज

आर्किमिडीज़ एक यूनानी गणितज्ञ, भौतिक विज्ञानी,इंजीनियर, आविष्कारक और खगोलशास्त्री थे, उनका जन्म ईसा पूर्व 287 में हुआ था एवं मृत्य ईसा पूर्व 212 में हुई थी। भौतिक विज्ञान में उन्होनें जलस्थैतिकी, सांख्यिकी और उत्तोलक के सिद्धांत की व्याख्या का आधार रखा।

आर्कीमिडीज का सिद्धान्तArchimedes's principle

आर्कीमिडीज सिद्धान्त तरल यांत्रिकी का एक महत्वपूर्ण और आधारभूत सिद्धांत है, जिसके अनुसार
''किसी तरल माध्यम में किसी वस्तु पर लगने वाला उत्प्लावन बल उस वस्तु द्वारा विस्थपित तरल के भार के बराबर होगा। अन्य शब्दो में, किसी तरल माध्यम में आंशिक या पूर्णतः डूबी हुई वस्तु पर लगने वाला उत्प्लावन बल उस वस्तु द्वारा विस्थापित तरल के भार के बराबर होता है।''
''The upward buoyant force that is exerted on a body immersed in a fluid, whether fully or partially submerged, is equal to the weight of the fluid that the body displaces.''
तरल में जब किसी वस्तु को डाला जाता है तो वस्तु के भार के कारण गुरूत्वीय त्वरण वस्तु पर नीचे की ओर कार्य करता है जबकि उत्प्लावन के सिद्धांत के अनुसार उल्प्लावन बल उपर की ओर कार्य करता है।
आर्कीमिडीज का सिद्धान्त

आर्कीमिडीज के सिद्धांत के निम्न प्रारूप हैं-

पहला प्रारूप

जब ठोस वस्तु का वजन विस्थापित तरल से अधिक होता है तो उत्प्लावन बल का मान वस्तु पर लगने वाले गुरूत्वीय बल से कम होने के कारण वस्तु तरल में डूब जाती है।
दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते है कि यदि किसी वस्तु का घनत्व तरल के घनत्व से अधिक होगा तो वह वस्तु तरल में डूब जायेगी।
जैसे-लोहे का घनत्व पानी से अधिक होने के लोहे से बनी कील पानी में डूब जाती है।
आर्कीमिडीज के सिद्धांत के निम्न प्रारूप है
                  आर्किमिडीज के सिद्धांत का उदाहरण

दूसरा प्रारूप

जब ठोस वस्तु का वजन विस्थापित तरल से कम होता है तो उत्प्लावन बल का मान वस्तु पर लगने वाले गुरूत्वीय बल  से अधिक होने के कारण वस्तु तरल में तैरते रहती है।
दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते है कि यदि किसी वस्तु का घनत्व तरल के घनत्व से कम होगा तो वह वस्तु तरल में तैरते रहेगी।
जैसे- कार्क का घनत्व पानी से कम होने के कारण कार्क पानी में तैरते रहती है।

तीसरा प्रारूप

जब ठोस वस्तु का वजन विस्थापित तरल के बराबर होता है इस स्थिती में वस्तु पर उपर की ओर लगने वाला उत्प्लावन बल वस्तु पर नीचे की ओर लगने वाले गुरूत्वीय बल के बराबर हो जाता है तो वस्तु आधी तरल के उपर तथा आधी तरल में डूबी रहती है।

वस्तु के तरल में तैरने या डूबने पर आयतन का बहुत अधिक प्रभाव पडता है.
घनत्व=दव्यमान/आयतन से यदि किसी वस्तु का घनत्व अधिक है तो उसके आयतन को घनत्व के सापेक्ष बढाकर वस्तु को तरल में तैराया जा सकता है
उदाहरण
(1) मछली का पानी में तैरना-
 जब मछलिया तैरना चाहती हैं तो अपने स्विम ब्लेडर में हवा भर लेती है ताकि उनका आयतन (Volume) उनके वजन (Mass) की तुलना में बढ जाये, आयतन बढने से मछली आसानी से पानी में तैर पाती है, एवं जब भी मछली को पानी में अंदर जाना होता है तो स्विम ब्लेडर में भरी हुई हवा को बाहर निकाल देती है जिससे उसका आयतन वजन की तुलना में कम हो जाता है एवं मछली आसानी से पानी के अंदर चले जाती है।
लोहे से बनी शिप का पानी में तैरना
(2) लोहे से बनी शिप का पानी में तैरना-
लोहे से बनी शिप पानी में तैरती है जबकि लोेहे का घनत्व पानी से अधिक होता है, नांव को पानी में तैराने के लिये उसका आयतन बढा दिया जाता है जिससे की वह पानी में तैर सके।

आर्कीमिडीज के सिद्धांत का उपयोग अनियमित आकार की वस्तु के आयतन को ज्ञात करने के लिये किया जाता है-
जब किसी वस्तु का घनत्व पानी से ज्यादा है तो सर्वप्रथम वस्तु का वजन पानी के बाहर ज्ञात कर लेते हैं इसके बाद वस्तु का वजन पानी में डुबाने के बाद ज्ञात कर लेते हैं, दोनों स्थितियों में घनत्व में जो अंतर आता है उससे विशिट घनत्व का मान निकालते है।
विस्थापित तरल का भार = पदार्थ का निर्वात में भार - पदार्थ का तरल में भार

आर्कीमिडीज के सिद्धांत को समझने के लिये निम्न को समझना आवश्यक है-

उत्प्लावक बल (Buoyant force)

द्रव का वह गुण जिसके कारण वह वस्तुओं पर ऊपर की ओर एक बल लगाता है, उसे उत्क्षेप (UpThrust) या उत्प्लावक बल (Buoyant force) कहते हैं. यह बल वस्तुओं द्वारा हटाए गए द्रव के गुरुत्व-केंद्र पर कार्य करता है, जिसे उत्प्लावक केंद्र (center of buoyancy) कहते हैं
उत्प्लावन बल नावों, जलयानों, गुब्बारों आदि के कार्य के लिये जिम्मेदार है।

प्लवन (Flotation) का नियम

(i) संतुलित अवस्था में तैरने पर वस्तु अपने भार के बराबर द्रव विस्थापित करती हैं.
(ii) ठोस का गुरुत्व-केंद्र तथा हटाए गए द्रव का गुरुत्व-केंद्र दोनों एक ही उर्ध्वाधर रेखा में होने चाहिए.

मित केंद्र (meta center)

तैरती हुई वस्तु द्वारा विस्थापित द्रव के गुरुत्व-केंद्र को उत्प्लावन-केंद्र कहते हैं. उत्प्लावन-केंद्र से जाने वाली उर्ध्व रेखा जिस बिंदु पर वस्तु के गुरुत्व-केंद्र से जाने वाली प्रारंभिक उर्ध्व रेखा को काटती हैं उसे मिट केंद्र कहते हैं
तैरने वाली वस्तु के स्थायी संतुलन के लिए शर्तें:
(i) मिट केंद्र गुरुत्व-केंद्र के ऊपर होना चाहिए.
(ii) वस्तु का गुरुत्व-केंद्र तथा हटाए गए द्रव का गुरुत्व-केंद्र यानी कि उत्प्लावन केंद्र दोनों को एक ही उर्ध्वाधर रेखा में होना चाहिए.

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