Ugravadi Kaal | उग्रवादी काल (1905-1919)

उग्रवादी काल (1905-1919)

आंदोलन का द्वितीय चरण या उग्रवादी काल (1905-1919)

1905 से 1919 के मध्य कांग्रेस का नेतृत्व एक नवीन उग्र विचारधारा के नेताओं यथा लोकमान्य तिलक, विपिनचन्द्र पाल, अरविंद घोष, लाला लाजपत राय आदि द्वारा किया गया। बंगाल विभाजन के पश्चात इस नवीन विचारधारा का उदय हुआ। ये लोग नरम दल के नेताओं से भिन्न विचार रखते थे। इन उग्रवादियों ने अपना लक्ष्य स्वराज्य प्राप्ति रखा। उनका विचार था कि स्वशासन के बिना कोई सुधार नहीं हो सकता। उन्होंने न तो हिंसा का आश्रय लिया और न सरकार के कानूनों की अवज्ञा की बात कही। उन्होंने मात्र सरकार के साथ असहयोग की नीति अपनाने का सुझाव दिया। 1907 ई. में सूरत  अधिवेशन में दोनों वर्गों में टकराव हो गया। नरम दल के रास बिहारी घोष चुनाव जीत गए। उग्रवादी तिलक पराजित हुए। उन्हें कांग्रेस से निष्कासित भी कर दिया गया। 1908 में उन्हें 6 वर्ष की जेल हो गई। विपिनचंद्र पाल ने अवकाश ले लिया। अरविंद घोष पांडिचेरी और लाला लाजपत राय अमेरिका चले गए। जब तिलक जेल से छूट कर आए तो उग्रवादियों की पुनः गतिविधियां शुरू हो गई। 1916 ई. में उग्रवादी कांग्रेस में पुनः प्रवेश कर गए और उनका प्रभाव एवं प्रभुत्व बढ़ता ही गया।

1905 से 1919 तक राष्ट्रीय आंदोलन की प्रमुख घटनाएं

बंगभंग (बंगाल विभाजन) 1905

बंगाल में बढ़ती हुई राष्ट्रीय चेतना से ब्रिटिश सरकार चिंतित हो उठी। अतः तत्कालीन गवर्नर लॉर्ड कर्जन ने बांटो एवं राज करोकी नति का अनुसरण किया। राष्ट्रीय भावनाओं को कुचलने के उद्देश्य से उसने हिन्दू एवं मुसलमानों में 20 जुलाई 1905 ई. में बंगाल विभाजन कर फूट डाल दी। लॉर्ड कर्जन द्वारा किया गया बंगाल विभाजन भारत की राष्ट्रीयता पर धूर्ततापूर्ण आक्रमण था। इस विभाजन का सर्वत्र विरोध हुआ। इस आंदोलन से सभी वर्ग के लोग प्रभावित हुए सरकार ने इस आंदोलन को दबाने का असफल प्रयास किया। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने समस्त भारत का भ्रमण किया। कांग्रेस ने प्रतिवर्ष बंगभंग के विरोध में प्रस्ताव पारित किए। 1911 में बंगभंग को सरकार ने रद्द कर दिया। अविभाजित बंगाल की पुनः स्थापना हो गई।

स्वदेशी तथा बहिष्कार आंदोलन (1905)

बंगाल विभाजन का सर्वत्र विरोध हुआ। बंगालवासी उत्तेजित हो उठे। विभाजन के विरोध में स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन चलाया गया। जगह-जगह सभाएँ आयोजित की गईं। वंदेमातरमका गान करती हुई अनेक टोलिया जुलूस के रूप में निकाली। आंदोलनकारियों ने विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करके स्वदेशी आंदोलन चलाया। अनेक स्थलों पर भारतीयों ने विदेशी कपड़ों की होली जलाकर अंग्रेजी सरकार के समक्ष अपना विरोध प्रकट किया। गोपालकृष्ण गोखले ने ब्रिटिश सरकार के समक्ष लंदन जाकर बंगाल विभाजन रद्द करने की प्रार्थना की। किंतु गोखले की प्रार्थना पर अंग्रेजों ने कोई ध्यान नहीं दिया।  चूकिं अंग्रेजी सरकार ने इस आंदोलन को दबाने के लिए दमन का सहारा लिया, परिमाणतः उग्रवाद का युग प्रारंभ हुआ।

मुस्लिम लीग का उदय (1906)

राष्ट्रीय आंदोलन की बढ़ती हुई शक्ति को देखकर राष्ट्रीय आंदोलन को कमजोर करने के उद्देश्य फूट डालो और शासन करोकी नीति का अनुसरण करते हुए बंगाल विभाजन कर दिया गया। यहीं से अंग्रेज बहुत कुछ हद तक अपने उद्देश्य में सफल हो गए। हिन्दू एवं मुसलमानों के बीच मतभेद उत्पन्न हो गए। मुस्लिम नेता सर सैयद अहमद खॉ ने मुसलमानों को पृथक निर्वाचन एवं विभिन्न सेवाओं में  उचित प्रतिनिधित्व के लिए उकसाया। लार्ड मिण्टों ने इसका समर्थन किया। परिणामस्वरूप 30 दिसम्बर 1906 में ढाका में अंग्रेज समर्थक मुसलमानों ने नवाब बकासल मुल्क की अध्यक्षत में मुस्लिम लीग की स्थापना की।

मुस्लिम लीग की स्थापना के उद्देश्य

1- भारतीय मुसलमानों को ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादार बनाना।

2- भारतीय मुसलमानों के राजनीतिक अधिकारों और हितों की रक्षा करना। प्रांरभ में लीग साम्प्रदायिकता नीति का अनुसरण करती रही। किन्तु बाद में इसकी नीतियों में कुछ परिवर्तन हुआ और लीग कांग्रेस के समीप आई।

सूरत अधिवेशन (1907)

बंगभंग के पश्चात गोखले ने लंदन जाकर ब्रिटिश सरकार के समक्ष बंगाल विभाजन रद्द करने की प्रार्थना की। जब उनकी प्रार्थना पर ब्रिटिश सरकार द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया गया, तभी एक नीवन उग्र विचारधारा का जन्म हुआ। लाला लाजपतराय, विपिनचंद्र पाल, बाल गंगाधर तिलक इस विचारधारा के प्रमुख समर्थक तथा उदारवादी नीतियों के विरोधी थे। 1907 के सूरत अधिवेशन में मतभेद और स्पष्ट हो गए। अब कांग्रेस दो दलो नरम दल ओर उग्र दल में विभाजित हो गई। अंग्रेजी सरकार ने मार्ले मिण्टो सुधारों द्वारा उदारवादियों को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया।

मार्ले मिण्टो सुधार (1909)

भारत सचिव मार्ले ने मिण्टो से बातचीत करके 1909 ई. में एक सुधार अधिनियम पारित करवाया, जो मार्ले सुधार के नाम से जाना जाता हे। इस एक्ट के द्वारा केन्द्रीय व प्रांतीय धारा सभाओं की सदस्य संख्या तथा उनके अधिकारों में भी कुछ वृद्धि की गई। हिन्दू एवं मुसलमानों के लिए अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था की गई। अंग्रेजो की इस नीति ने ही पाकिस्तान का बीजारोपण कर दिया। अंग्रेजी सरकार के इन सुधारों से भारतीय प्रसन्न नहीं हुए। केवल अलीगढ़ विचारधारा के मुसलमान पृथक निर्वाचन क्षेत्र सुविधा से प्रसन्न हुए। मार्ले मिण्टो सुधार अधिनियम  से उदारवादी नेताओं में भी निराशा फैल गई।

राजद्रोह सभा अधिनियम (1911)

मार्ले मिण्टो सुधार अधिनियम से उग्रवादी सर्वाधिक असंतुष्ट हो गए। अंग्रेजी सरकार के खिलाफ का्रंतिकारी गतिविधियां और तेज हो गई। इन गतिविधियों के दमन हेतु ब्रिटिश सरकार ने 1911 ई. में राजद्रोह सभा अधिनियम पारित किया। लाल लाजपतराय, अजीतसिंह व अनेक क्रांतिकारी नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।

दिल्ली दरबार (1911)

लॉर्ड हार्डिंग ने 1911 ई. में दिल्ली में एक भव्य दरबार का आयोजन किया। इस दरबार में सम्राट जार्ज पंचम तथा महारानी मेरी को बुलाया गया। दरबार में बंगाल विभाजन के रद्द होने की घोषणा के साथ ही यह भी घोषित किया गया कि अब भारत की राजधानी कलकता के स्थान पर दिल्ली होगी। बांग्ला भाषा क्षेत्र को एक प्रांत बना दिया गया तथा एक अन्य घोषणा से बिहार व उड़ीसा के नाम से एक नवीन प्रांत बनाया गया।

गदर दल का गठन (1913)

1 नंवबर , 1913  ई. को संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित सेन फ्रांसिस्को नगर में पंजाब के महान क्रांतिकारी नेता लाल हरदयालय ने रामचन्द्र तथा बरकतुल्ला के सहयोग से गदर दल का गठन किया। अन्य देशों में भी इसकी शाखाएँ खोली गई। रास बिहारी बोस, राजा महेन्द्रप्रताप, अब्दुल रहमान तथा काम आदि इस दल के प्रमुख सदस्य थे। प्रथम विश्व युद्ध आरंभ होने पर लाल हरदयाल जर्मनी चले गए। यहां बर्लिन में उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता समिति का गठन किया।

लखनऊ पैक्ट (1916)

मौलना अबुल कलाम आजाद, मौलाना मोहम्मद अली, शौकत अली आदि अनेक ऐसे मुस्लिम नेता हुए, जो साम्प्रदायिक नीति के विरूद्ध थे। बाल्कान युद्ध के पश्चात लीग अंग्रेजों से रूष्ट थी। अतः 1913 के अधिवेशन में मुस्लिम लीग ने अपने लखनऊ अधिवेशन में स्वराज्य प्राप्त करने का प्रस्ताव पारित किया। इस प्रकार बदलती हुई परिस्थितियां तथा हिन्दू-मुस्लिम नेताओं के सहयोग से 1916 में लखनऊ में कांग्रेस व लीग के मध्य एक समझौता हुआ, जो लखनऊ पैक्ट के नाम से जाना जाता है। इसी अधिवेशन में दोनों संस्थाओं में मेल करने के उद्देश्य से कांग्रेस व लीग ने  एक संयुक्त समिति बनाकर एक योजना तैयार की। इस योजना को कांग्रेस लीग योजना कहा जाता है। इस समझौते में मुस्लिम लीग की साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व की मांग को मान लिया गया, जिसके बाद अत्यंत ही घातक परिणाम निकले इसी अधिवेशन में तिलक को आमंत्रित कर उग्रवादियों को कांग्रेस में शामिल कर लिया गया।

होमरूल आंदोलन (1916)

1914 ई. में जेल से रिहा होने के पश्चात बाल गंगाधर तिलक ने उग्रवादियों को संगठित करना प्रारंभ किया। 1916 ई. में उन्होंने श्रीमती एनी बेसेण्ट के साथ मिलकर स्वशासन की प्रापित हेतु होमरूल आंदोलन चलाया तथा श्रीमती ऐनी बेसेण्ट की प्रेरणा से 28 अप्रैल 1916 ई. को पूना में प्रथम होमरूल लीग की स्थापना की। सितम्बर 1916 में श्रीमती एनीबेसेण्ट ने मद्रास में होमरूल लीग की स्थापना की। तिलक ने अपने मराठातथा केसरीव ऐनी बेसेण्ट ने अपने कॉमनतथा न्यू इंडियासमाचार पत्रों के माध्यम से गृह शासन की जोरदार मांग का प्रचार किया व शीघ्र ही यह आंदेालन समस्त भारत में फैली गया। अंग्रेजी सरकार ने इस आंदोलन को कठोरता से दबाना प्रारंभ किया। 1917 ई. में अंग्रेजी सरकार ने विद्यार्थियों को इस आंदोलन से दूर रहने की चेतावनी दी। श्रीमती ऐनी बेसेण्ट को गिरफ्तार कर लिया गया। उनकी गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए तिलक सत्याग्रह शुरू ही करने जा रहे थे कि ऐनी बेसेण्ट को सरकार ने रिहा कर दिया। यही नहीं 20 अगस्त 1917 को ब्रिटिश संसद में भारत सचिव द्वारा यह घोषणा की गई कि भारत को उत्तरदायी शासन दिया जाएगा। परिणामस्वरूप यह आंदोलन समाप्त हो गया।

रौलट एक्ट अथवा काला कानून (1919)

भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने न्यायाधीश रौलट की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की। फरवरी 1919 में रौलट ने दो विधेयक प्रस्तावित किए, जो पारित होने के पश्चात् रौलट एक्ट के नाम से प्रसिद्ध हुए। अनेक भारतीय नेताओं द्वारा इस कानून का विरोध किया गया, किन्तु सरकार ने 21 मार्च 1919 ई. को इसे लागू कर दिया। इस एक्ट के अनुसार किसी भी व्यक्ति को संदेह मात्र होने पर उसे गिरफ्तार किया जा सकता था अथवा गुप्त मुकदमा चलाकर अपराधी को दण्डित किया जा सकता था। इस एक्ट को भारतीयों ने काले कानून की संज्ञा दी। संपूर्ण भारत में इस एक्ट के विरूद्ध प्रदर्शन हुआ। महात्मा गांधी, जो अब भारतीय राजनीति में सक्रिय हो चुके थे, ने अप्रैल 1919 में देशव्यापी हड़ताल रखी तथा जुलूस निकाले गए। दिल्ली में स्वामी श्रद्धानंद ने जुलूस का नेतृत्व किया। दिल्ली रेलवे स्टेशन के निकट अंग्रेजों ने जुलूसपर गोली चला दी, जिसमें 5 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। लाहौर तथा पंजाब में उपद्रव हुए। लाहौर और पंजाब में भी उपद्रव हुए। स्वामी श्रृद्धानंद एवं पंजाब के नेता डा. सत्यपाल के कहने पर गांधीजी ने दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। पलवल में गांधीजी को ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार कर बंबई भेज दिया। इस एक्ट से भारतीयों में और राष्ट्रीय भावना जागृत हो गई।

जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड (1919)

महात्मा गांधी की गिरफ्तारी से जनता में और अधिक उत्तेजना फैल गई। अंग्रेजी सरकार ने भारतीयों के विद्रोह को दबाने के उद्देश्य से अमृतसर के दो प्रसिद्ध नेताओं, डॉ. किचलू एवं डॉ. सत्यपाल, को गिरफ्तार कर अज्ञात स्थान पर भेज दिया। इससे विद्रोह शांत होने के बजाय और भड़क उठा। जब भीड़ अपने नेताओं के संबंध में जानकारी हासिल करने जिला मजिस्ट्रेट की कोठी पर आ गई तो सैनिक अधिकारियों ने भीड़ पर गोली चला दी। गोली से दो व्यक्ति मारे गए। उत्तेजित भीड़ ने एक बैंक में आग लगाकर वहाँ के अंग्रेज मैनेजर की हत्या कर दी। 10 अप्रैल 1919 को अमृतसर का शासन सैनिक अधिकारियों को सौंप दिया गया। 13 अप्रैल बैसाखी के दिन अमृतसर के जलियाँवाला बाग में भारतीयों द्वारा एक आम सभा का आयोजन किया गया। जब सभी चल रही थी, तब अंग्रेज जनरल डॉयर ने से गैर-कानूनी घोषित कर भीड़ पर बिना चेतावनी दिए गोली चलवा दी, जिसमें लगभग 400 व्यक्ति मारे गए तथा दो हजार के आसपास घायल हुए। किन्तु वास्तवर में मरने वालों व घायलों की संख्या उससे कहीं अधिक थी। भारतीय इतिहास में यह घटना जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के नाम से प्रख्यात है। इस घटना से अंग्रेज और भारतीयों के बीच वैमनस्यता और अधिक बढ़ गई। इस घटना का संपूर्ण भारत पर असर पड़ा।

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