Swatantrata andolan ka chatutha charan |स्वतंत्रता आंदोलन का चतुर्थ चरण (1929-1939)

स्वतंत्रता आंदोलन का चतुर्थ चरण (1929-1939)

भारत का स्वतंत्रता आंदोलन 1929-1939

स्वतंत्रता आंदोलन का चतुर्थ चरण (1929-1939)

आंदोलन के चतुर्थ चरण में निम्नलिखित घटनाएं घटित हुई-

सविनय अवज्ञा आंदोलन एवं दांडी मार्च

असहयोग आंदोलन असफल होने के पश्चात गांधीजी शांत नही बैठे। अब उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा निर्धारित लगान, मद्य निषेध, नमक कर, सैनिक व्यय संबंधी नीतियों के विरूद्ध सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ किया। 12 मार्च 1930 को गांधीजी अपने चुने हुए 79 साथियों के साथ ब्रिटिश सरकार की अवज्ञा करने के लिए गुजरात प्रदेश के समुद्र तट पर दांडी नामक स्थान की और नमक कानून तोड़ने के लिए चल पड़े। साबरमती आश्रम से दांडी तक समुद्र तट की 200 मील यात्रा पैदल चलकर 24 दिनों में तय की गई। इस यात्रा में सरदार पटेल भी गांधीजी के साथ थे। 5 अप्रैल 1930 को गांधीजी दांडी पहुंच गए और 6 अप्रैल को प्रातः  प्रार्थना के बाद उन्होंने नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा। सुभाष चन्द्र बोस ने गांधीजी की दांडी यात्रा को नेपोलियन के पेरिस मार्च और मुसोलिनी के रोम मार्च के समान बताया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन का कार्यक्रम

महात्मा गांधी ने संविनय अवज्ञा आंदोलन का निम्नलिखित कार्यक्रम निश्चित किया-

1-भारवासियों को नमक बनाना चाहिए।

2- हिन्दुओं को अस्पृश्यता त्याग देना चाहिए।

3- विदेशी कपड़ों की होली जलाई जाए।

4- शराब की दुकानों पर धरना दिया जाए।

5- सरकारी कर्मचारी अपने कार्यालय का त्याग करें।

6- विद्यार्थियों द्वारा सरकारी विद्यालयों का बहिष्कार किया जाना चाहिए।

7- मई 1930 को गांधीजी को गिरफ्तार करने के बाद करबंदी को भी उपर्युक्त कार्यक्रम में शािमल कर लिया गया।

प्रथम गोलमेज सम्मेलन (1930)

भारत की संवैधानिक समस्या को सुलझाने के लिए लंदन में 12 नवम्बर 1930 को प्रधानमंत्री मैक्डोनेल्ड की अध्यक्षता में प्रथम गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें भाग  लेने वाले कुल 89 प्रतिनिधियों में से 16 ब्रिटिश संसद प्रतिनिधियों ने भी यह अनुभव किया कि बिना कांग्रेस के किसी निर्णय पर नहीं पहुंचा जा सकता, अतः ब्रिटिश सरकार ने वायसराय इरविन को आदेश दिया कि वे गांधीजी से समझौता करें, 5 मार्च 1931 को गांधी व इरविन के बीच समझौता हुआ, जो गांधी इरविन समझौता के नाम से जाना जाता है।

गांधी इरविन समझौते के मुख्य बिंदु

1- केवल उन्हीं राजनीतिक बंदियों को जेल में रखा जाए जिन पर हिंसक आरोप है। शेष बंदियों को रिहा कर दिया जाए।

2- भारतीय समुद्र के किनारे नमक बना सकते हैं।

3- शराब एवं विदेशी कपड़ों की दुकान पर भारतीय धरना दे सकते हैं।

4- जिन सरकारी कर्मचारियों ने अपनी नौकरी से त्यागपत्र दिया है, उन्हें उनके पद पर बहाल करने में सरकार उदारता दिखएगी।

5- सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित कर दिया जाए।

6- कांग्रेस ब्रिटिश समान का बहिष्कार नहीं करेगी।

7- गांधीजी पुलिस द्वारा की गई ज्यादतियों के बारे में जॉच की मांग नहीं करंेगे।

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (1931)

गांधी इरविन समझौते के पश्चात जब लंदन में 7 सितम्बर 1931 को द्वितीय गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया तो कांग्रेस की ओर से गांधीजी इस सम्मेलन में पहुंचे। वहां डॉ भीमराव अम्बेडकर एवं जिन्ना आदि ने ब्रिटिश सरकार के इशारे पर स्वराज्य के स्थान पर अपनी-अपनी जातियों के लिए सुविधाओं की मांग की। इससे गांधीजी को बहुत दुख पहुँचा और वे खाली हाथ लौट आए।

सविनय अवज्ञा आंदोलन पुनः प्रारंभ

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन से लौटकर गांधीजी ने पुनः सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ कर दिया। यह आंदोलन 1934 तक चलता रहा। अप्रैल 1934 में जनता के कम होते हुए उत्साह को देखकर यह आंदोलन स्थगित कर दिया गया।

तृतीय गोलमेज सम्मेलन (1932)

1932 में लंदन में तीसरा एवं अंतिम गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में पुनः कांग्रेस ने भाग लिया। तीनों गोलमेज सम्मेलनों की सिफारिशों के आधार  पर ब्रिटिश सरकार ने श्वेत पत्र प्रकाशित किया। ब्रिटिश संसद की प्रवर समिति की रिपोर्ट व कुछ संशोधनों के पश्चात संसद ने 1935 का भारत शासन अधिनियम पारित किया, जो आंशिक संशोधन के पश्चात भारत में नवीन संविधान लागू होने से पूर्व तक लागू रहा।

कम्यूनल अवार्ड एवं पूना समझौता (1932)

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के अंत में ब्रिटिश प्रधानमंत्री रेम्जे मेकडोनेल्ड ने यह घोषणा की थी कि अगर भारतीय प्रतिनिधि अपनी साम्प्रदायिक समस्या को शीघ्र न सुलझा सके तो वे मजबूरन इस संबंध में अपना निर्णय दे देंगे और हुआ भी यही। भारतीय प्रतिनिधियों के मध्य साम्प्रदायिक समस्या को लेकर कोई समझौता न हो सका। अतः 16 अगस्त 1932 को मैकडोनेल्ड ने अपने निर्णय की घोषणा कर दी जिसको साम्प्रदायिक पंचात अथवा कम्यूनल अवार्ड कहा जाता है अपनी इस घोषणा में मेकडोनल्ड ने मुसलमान, सिख, ईसाई तथा हरिजनों के लिए पृथक चुनाव की व्यवस्था की। इस घोषणा का वास्तविक उद्देश्य भारतीय राष्ट्रीय एकता को क्षति पहुँचाना था। गांधीजी ने मेकडोनेल्ड को पत्र द्वारा चेतावनी दी कि वह अपना निर्णय 20 सितम्बर 1932 तक वापस ले लें, नहीं तो मैं अमरण अनशन शरू कर दूँगा। गांधीजी के पत्र की ओर ब्रिटिश सरकार ने केाई ध्यान नहीं दिया। अतः 20 सितम्बर 1932 को गांधीजी ने आमरण अनशन शुरू कर दिया। अंत में अंबेडकर व गांधीजी के मध्य 26 सितंबर 1932 को एक समझौता हुआ जो पूना समझौता के नाम से जाना जाता है। इस समझौते के साथ ही गांधीजी ने आमरण अनशन समाप्त कर दिया।

अगस्त प्रस्ताव (1940)

युद्ध की गंभीरता को देखते हुए लॉर्ड लिनलिथगो ने भारत की संवैधानिक गुत्थी सुलझाने के लिए 8 अगस्त 1940 को अगस्त घोषणा की। भारत में औपनिवेशिक स्वराज्य की स्थापना, वायसराय की कार्यकारिणी में भारतीय प्रतिनिधियों को अधिक से अधिक शामिल करना, युद्ध संबंधी विषयों पर विचार-विमर्श हेतु युद्ध परामर्श समिति बनाना आदि इस प्रस्ताव की मुख्य बातें थीं ।  कांग्रेस व लीग ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया।

पाकिस्तान की मांग (1940)

22 दिसंबर , 1939 को मुक्ति दिवस मनाने के पश्चात जब लाहौर में मार्च 1940 में मुस्लिम लीग का अधिवेशन हुआ तो इस अधिवेशन में अध्यक्ष पद से भाषण देते हुए जिन्ना ने 22 मार्च,1940 को अलग से मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की मांग की। अपने भाषण में उन्होंने यह भी कहा कि वे अलग मुस्लिम राष्ट्र के अलावा और कुछ स्वीकार नहीं करेंगे।

क्रिप्स मिशन (1942)

द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों की बिगड़ती हुई स्थिति ने चर्चिल सरकार को भारत के प्रति अपना रवैया बदलने के लिए विवश कर दिया। प्रधानमंत्री चर्चिल ने भारत के राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिए मजदूर दल के नेता सर स्टैफर्ड क्रिप्स को, जो कि पं. नेहरू के व्यक्तिगत मित्र भी थे, भारत भेजा। क्रिप्स ने भारतीयों से वादा किया कि युद्ध के पश्चात औपनिवेशीय राज्य की स्थापना की जाएगी। संविधान सभा का निर्वाचन कराया जाएगा जो भारत के लिए नए संविधान का निर्माण करेगी। संविधान सभा में भारतीय प्रतिनिधि भी होंगे। जो प्रात या देशी रियासतें संविधान सभा द्वारा निर्मित संविधान को स्वीकार नहीं करते, उन्हें अपना अलग संविधान बनाने का अधिकार होगा। अगर वे चाहें तो बाद में भारतीय संघ में शामिल भी हो सकते हैं। भारत चाहे तो राष्ट्रमण्डल से अपने संबंध विच्छेद कर सकेगा। युद्ध के समय भारत की सुरक्षा का उत्तदायित्व ब्रिटिश सरकार का होगा। यद्यपि यह प्रस्ताव 1940 से अगस्त प्रस्ताव से अपेक्षाकृत अच्छे थे, किन्तु फिर भी भारतीयों को संतुष्ट नहीं कर सके। अंत में कांग्रेस ने क्रिप्स प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। इस प्रस्ताव को मुस्लिम लीग ने भी नहीं स्वीकार किया। 11 अप्रैल 1942 को ब्रिटिश सरकार ने क्रिप्स प्रस्ताव वापस ले लिया।

भारत छोड़ो आंदोलन (1942)

अगस्त प्रस्ताव एवं क्रिप्स प्रस्ताव में अनेक दोष होने के कारण कांग्रेस ने उसे अस्वीकार कर दिया था। क्रिप्स ने भी कांग्रेस को संकेत दे दिया था । फिर अगर उसके प्रस्ताव पर कांग्रेस विचार नहीं करती है, तो भविष्य में ब्रिटिश सरकार भारत में राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिए कोई बातचीत नहीं करेगी। अतः क्रिप्स मिशन की असफलता के पश्चात् आंदोलन ही एकमात्र रास्ता था, जिससे राजनीतिक गतिरोध दूर किया जा सकता था। अतः विवश होकर 14 जुलाई 1942 को वर्धा में कांग्रेस की कार्य समिति ने प्रस्ताव पारित किया, जिसका शीर्षक था भारत छोड़ो प्रस्तावइस प्रस्ताव में कहा गया था कि यदि अंग्रेज भारत पर से अपना नियंत्रण हटा लें तो, भारतीय जनता विदेशी आक्रमणकारियों के विरूद्ध अपना योगदान देने को तैयार है। 8 अगस्त 1942 को  बंबई अधिवेशन में कुछ संशोधनों के साथ कांग्रेस कार्यसमिति ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इस आंदोलन के समय गांधीजी ने कहा कि मेरे जीवन का यह अंतिम संघर्ष होगा। उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु आंदोलनकारियों को करो या मरो का नारा दिया। दूसरे दिन 9 अगस्त को प्रातः अनेक प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, किन्तु इस पर शीघ्र ही यह आंदोलन व्यापक स्तर पर समस्त भारत में फैल गया। आंदोलनकारियों ने जुलूस निकाले, हड़तालें की, ब्रिटिश सरकार ने दमन की नीति अपनाई, अनेक बार पुलिस को गोली चलानी पड़ी जिससे अनेक लोग मारे गए। उत्तेजित आंदोलनकारियों ने सरकारी इमारतों को लूट लिया। थाने एवं डाकघरों में आग लगा दी, रेल पटरियाँ उखाड़ दीं। यह स्थिति फरवरी 1943 तक चलती रही। इसके पश्चात मई 1944 तक यह आंदोलन धीमी गति से चलता रहा। उसी समय इस आंदोलन को दबा दिया गया।

आजाद हिन्द फौज का गठन (1943)

कैप्टन मोहन सिंह ने आई.एन.ए. की पहली डिवीजन का गठन 1942 में किया जो शीघ्र ही समाप्त हो गई। तत्पश्चात् 1943 ई. में सुभाष चन्द्र बोस ने इसका पुनर्गठन किया, और दिल्ली चलोका नारा दिया। अगस्त 1945 में जब जापान ने हथियार डाल दिये तो आजाद हिन्द फौज को आत्मसर्पण करना पड़ा।

वेवल योजना (1945)

लॉर्ड लिनलिथगो के पश्चात नियुक्त गवर्नर जनरल लॉर्ड वेवल ने भारत में व्याप्त गतिरोध को दूर करने के लिए इंग्लैण्ड से सलाह कर एक योजना प्रस्तुत की जो वेवल योजना के नाम से जानी जाती है। इस योजना में अन्य बातों के अलावा कहा गया कि वायसराय की कार्यकारिणी परिषद में वायसराय व प्रधान सेनापति को छोड़कर शेष सभी भारतीय सदस्य होंगे। वायसराय की कार्यकारी परिषद में मुसलमानों और सवर्ण हिन्दुओं का समान प्रतिनिधित्व मिलेगा और यह एक अंतरिम राष्ट्रीय सरकार की भांति होगी।

शिमला सम्मेलन (1945)

वेवल योजना पर विचार-विमर्श करेन हेतु 25 जून, 1945 को शिमला में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन मेें महात्मा गांधी, मो. जिन्ना, कांग्रेस अध्ययक्ष मौलना अबुल कलाम आजाद तथा तारासिंह ने भाग लिया। सम्मेलन अत्यंत ही सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में प्रारंभ हुआ, किन्तु साम्प्रदायिक मतभेद एवं जिन्ना की हठधर्मी के कारण कोई निर्णय नहीं लिया जा सका। जिन्ना की जिद थी कि मुस्लिम लीग ही एकमात्र मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करेगी। उधर कांग्रेस का यह तर्क था कि वह अखिल भारतीय संस्था है, इसलिए उसे भी कार्यकारिणी परिषद् में मुसलमानों को नियुक्त करने का अधिकार है। इस प्रकार आपसी सामंजस्य स्थापित न होने के कारण यह सम्मेलन असफल हो गया।

कैबिनेट मिशन (1946)

24 मार्च, 1946 को भारतीयों को सत्ता हस्तांतरित करने के संबंध में कैबिनेट मिशन भारत आया। मिशन के अध्यक्ष लार्ड पैंथक लारेन्स थे। इसके अतिरिक्त स्टैफर्ड क्रिप्स तथा ए.बी. अलेक्जेण्डर दो अन्य सदस्य थे। इस मिशन ने संविधान सभा तथा अंतरिम सरकार के गठन के संबंध में मुस्लिम लीग तथा कांग्रेस से बातचीत की। किन्तु दोनों ही अपनी जिद पर अड़े थे। इसलिए कोई निर्णय नहीं निकल सका। मुस्लिम लीग तो पाकिस्तान की मांग पर अटल थी, जबकि कांगेस विभाजन के लिए तैयार न थी। इस मिशन ने लीग तथा कांग्रेस के बीच समझौता करने का प्रयास किया। किन्तु सफलता नहीं मिली। 12 मई , 1946 को यह यह मिशन भी असफल हो गया।

एटली की घोषणा (1947)

प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस के पश्चात समस्त भारत में साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठे। स्थिति इतनी भयंकर हो गई थी कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने 20 फरवरी , 1947 को घोषणा कर दी कि ब्रिटिश सरकार जून 1948 से पहले ही भारतीयों को पूर्ण सत्ता हस्तांतरित कर देगी।

माउंटबेटन योजना और स्वतंत्रता प्राप्ति (1947)

लॉर्ड वेवल के पश्चात लार्ड माउण्टबेटन भारत के वायसराय बने। एटली की सत्ता हस्तांतरण संबंधी पूर्व घोषणा के अनुसार माउण्टबेटन  ने पंडित नेहरू, सरदार पटेल से पाकिस्तान की मांग स्वीकार करने के लिए वार्ता की। भारत विभाजन की योजना पर कांग्रेस से सहमति प्राप्त कर विभाजन संबंधी योजना पर वार्ता करने हेतु वे इंग्लैण्ड गए। इंग्लैण्ड से लौटकर 3 जून, 1947 को उन्होंने अपनी योजना प्रकाशित की। यही योजना माउण्टबेटन योजना के नाम से जानी जाती है। माउण्टबेटन के दबाव के कारण जिन्ना ने इस योजना को स्वीकार कर लिया। 15 जून 1947 को कांग्रेस ने बड़ी विवश्ता में इस योजना को स्वीकार कर लिया। जुलाई 1947 के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम द्वारा इस योजना को क्रियान्वित कर दिया गया।

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम (1947)

लार्ड-माउण्टबेटन की योजना को लागू करने के लिए 4 जुलाई, 1947 को एक विधेयक कॉन सभा में पेश किया गया। 18 जुलाई, 1947 को ब्रिटिश संसद ने इस विधेयक को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के रूप में पारित कर दिया। इस अधिनियम के अनुसार भारत-पाकिस्तान दो स्वतंत्र राज्यों की स्थापना हुई। लॉर्ड माउण्टबेटन ने 13 अगस्त , 1947 को कराची जाकर पाकिस्तान संविधान सभा  को सत्ता सौंप दी। जिन्ना नवनिर्मित पाकिस्तान देश के गवर्नर जनरल बने। 14 अगस्त, 1947 को मध्यरात्रि को भारत स्वतंत्र देश हो गया। लॉर्ड माउण्टबेटन को भारत का गर्वनर जनरल बनाया गया। माउण्टबेटन के इस पद से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात चक्रवर्ती राजगोपालाचारी भारत के गवर्नर जनरल बने। 26 जनवरी, 1950 को भारत में नवीन संविधान लागू हुआ।

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