पल्लव राजवंश का इतिहास | Pallav Rajvansh ka itihas


Pallav Rajvansh ka itihas

पल्लव राजवंश का इतिहास

  • पल्लव राजवंश ने दक्षिण भारत में किया। उनका मूल स्थान ‘ तोण्डमंडलम ‘ में था। इसकी राजधानी काञची थी। सिंह वर्मा इस वंश का प्रथम शासक थाजिसने तृतीय शताब्दी में अंतिम चरण में शासन किया था।
  • शिवस्कंदवर्मा चतुर्थ  प्रारंभिक पल्लव नरेशों में सबसे महान था। इसने ‘ धर्ममहाराज ‘ की उपाधि धारण की थी।
  • सिंहविष्णु ( 575-600  ई. ) ने ‘ अवनिसिंह ‘ की उपाधि धारण की तथा मामल्लपुरम में वाराह मंदिर का निर्माण कराया। संस्कृत महाकवि ‘ भारवि ‘ उसके दरबारी थेजिन्होंने कीरातार्जुनीय नामग ग्रंथ  लिखा।
  • सिंहविष्णु के बाद उसका पुत्र महेंद्रवर्मन प्रथम (600-630  ई. ) शासक बना। वह पल्लव वंश का महान शासक था। उसने मत्तविलास ‘  की उपाधि धारण की। वह एक महान निर्माताकवि एवं संगीतज्ञ था। इसी के समय पल्लव-चालुक्य संघर्ष प्रारंभ हुआ। उसने  अनेक गुहा मंदिरों का निर्माण करवाया तथा मत्तविलासप्रहसन की रचना की।
  • महेंद्रवर्मन के बाद उसका पुत्र नरसिंवर्मन प्रथम (630-668)  पल्लव वंश का शासक बना। वह अपने कुल का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। इसने चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय को हराया।
  • नरसिंहवर्मन एक महान निर्माता था। महाबलिपुरम के कुछ एकाश्म रथों का निर्माण उसके काल में हुआ। महाबलिपुरम उसके राज्य का सर्वप्रमुख बंदरगाह भी था। उसके शासनकाल में हेनसांग काञची गया था।
  • नरसिंहवर्मन प्रथम ने महामल्ल ‘ की उपाधि धारण की थी।
  • परमेश्वर वर्मन प्रथम ( 670-700  ई. ) ने मामल्लपुरम में गणेश मंदिर का  निर्माण  करवाया था। उसने विद्याविनीत की उपाधि धारण की थी।
  • नरसिंहवर्मन द्वितीय (700 ई.-728 ई. )ने महाबलिपुरम के शोर मंदिर एवं कांची के कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण कराया। उसने अपना एक दूतमंडल चीन भेजा था।
  • नंदिवर्मन द्वितीय ने काची में मुक्तेश्वर मंदिर तथा बैकुण्ठ पेरूमल मंदिर का निर्माण करवाया।
  • अपराजित अंतिम पल्लव शासक था। उसके समय चोलो ने पल्लवों पर आक्रमण कर पल्लवों के राज्य को अपने राज्य में मिला लिया।
  • सित्तनवासल की गुफायें पल्लवों से संबंधित है।

शंकराचार्यः
  • शकराचार्य का जन्म केरल में हुआ था। शंकराचार्य के मत को अद्धैतवाद ‘ के नाम से जाना जाता है। शकराचार्य को भक्ति-आंदोलन का प्रवर्तक भी माना जाता है।

इनकी चार पीठें इस प्रकार थीं 
  • 01  उत्तरी पीठ केदारनाथ 
  • 02  दक्षिणी पीठ-श्रृगेरी
  • 03  पूर्वी पीठ-पुरी
  • 04  पश्चिमी पीठ-द्वारका।

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